Ravindra Bajpai : अखबार मालिक दोषी है तो…. इंदौर के एक अखबार मालिक के होटल, पब आदि पर छापा मारकर वहाँ चलने वाली अवैध गतिविधियों का भण्डाफोड़ करने का दावा शासन और प्रशासन कर रहे हैं। अश्लील सीडी भी बड़ी संख्या में जप्त की गईं, वहीं दर्जनों उन महिलाओं को भी कैद से छुड़ाने के दावे किए गए जिनसे अखबार मालिक पर आपत्तिजनक कारोबार करवाने का आरोप भी लगाया गया है।
मालिक का बेटा पुलिस के कब्जे में है लेकिन बाप फरार है। मुख़्यमंत्री क़मलनाथ ने किसी भी दबाव में आए बिना कार्रवाई का दम भी भरा है। गैर कानूनी काम-धंधे करने वाले के गले में फंदा कसना ही चाहिए फिर चाहे वह पत्रकार हो या कोई अन्य तुर्रम खां। लेकिन इंदौर की उक्त छापेमारी का समय काबिले गौर है।
अखबार ने मप्र के चर्चित हनीट्रैप कांड से जुड़े कुछ खुलासे किए जिनमें कुछ सफेदपोश बड़े साहेब बहादुरों की इज्जत का फलूदा बनना तय था। अखबार ने कुछ और उद्घाटन के संकेत भी दिए। अचानक शासन, प्रशासन, पुलिस की छठी इन्द्रिय जाग्रत हुई और उसे उक्त होटलों में चल रहे अवैध और अश्लील क्रियाकलापों की जानकारी हो गई। स्वीकृत सीमा से ज्यादा के निर्माण का पता भी चल गया।
इस समूचे घटनाक्रम में प्रेस की स्वतंत्रता से ज्यादा चिन्ता का विषय प्रशासन की इज्जत की परतें खुलना है। मुख़्यमंत्री में यदि नैतिक साहस है तो उन नौकरशाहों के कपड़े उतरने दें जो सिर से पांव तक भ्रष्ट, निकृष्ट और पतित हैं। यदि सन्दर्भित अखबार मालिक घृणित कार्यों में लिप्त था तो अभी तक पुलिस और प्रशासन लंबी तानकर क्यों सोते रहे जबकि इंदौर तो क्या किसी गांव -कस्बे तक में इस तरह के धंधे बिना पुलिस की सौजन्यता के नामुमकिन हैं।
मुख़्यमंत्री को चाहिए जो सीडी जप्त हुईं हैं उनका प्रदर्शन भोपाल में प्रशासन और प्रेस दोनों के सामने करें जिससे स्पष्ट हो कि असली मामला है क्या? रही बात अवैध काम करने वाले अखबार मालिक की तो यदि वह कसूरवार है तो उसे बकौल श्रीमती जया बच्चन जनता को सौंप देना चाहिए लिंचिंग के लिए।
इंदौर में जिस अखबार मालिक पर छापेमारी हुई उस पर ब्लैकमेलिंग का आरोप है। लेकिन वह जिन लोगों को ब्लैकमेल कर रहा था वे किस बात से डर रहे थे? आखिर उसके पास कुछ न कुछ तो ऐसा होगा जिसके आधार पर वह ऊंचे ओहदों पर विराजमान साहेब बहादुरों का भयादोहन करता रहा । पुलिस को भी ये स्पष्ट करना चाहिए कि जप्त सीडी में कौन – कौन नजर आ रहे हैं? सूचना क्रांति के दौर में किसी बात को छिपाने की कोशिश में निराधार चर्चाओं को बल मिलता है।
सभी बड़े होटलों में सीसी कैमरे लगाकर उनकी रिकार्डिंग की नियमित जांच होनी चाहिए जिससे इस बात का खुलासा हो सके कि कौन – कौन से अफसरों की वहां आवाजाही होती रहती है । या फिर उनकी गाड़ियां आती हैं मुफ्त में मुर्गा और शराब ले जाने। इंदौर में जिस होटल में देह व्यापार और ब्लैकमेलिंग के कारोबार को उजागर किया गया उस इलाके के पुलिस अमले को भी कठोर दंड मिलना चाहिए क्योंकि इस तरह का गंदा काम यदि पुलिस की जानकारी के बिना चलता था तब तो ये उसकी बड़ी असफलता है और निचले स्तर के स्टाफ की लापरवाही को संरक्षण देने वाले ऊपरी अमले की जिम्मेदारी भी तो बनती है।
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र बाजपेयी के उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आए ढेरों कमेंट्स में से कुछ प्रमुख यूं हैं-
Davinder Kaur Uppal जो भागे हैं, इतने बड़े अपराध के बाद उनकी कीमत केवल दस हजार आंकी गई है, जो बहुत न इंसाफी है। फिर भगोड़ा कुछ शहदी सी.डी.साथ नहीं ले गया होगा, ऐसा तो थोड़ा न मुमकिन सा लगता है। भविष्य में भी सफेदपोशों को नींद नहीं आएगी।
Rajendra Singh ये एक सख्त संकेत हैं मध्यप्रदेश के मीडिया को की गोदी बन जाओ। बड़े अख़बार वैसे भी सूचना देने का काम ही कर रहे थोड़े बहुत खबरे देते। उन सबको ये चेतावनी हैं कायदे में रहे वरना लोकस्वामी बना दिये जायँगे। मोटे तौर पर देखे तो मोदी, कमलनाथ सरकार में कोई फर्क नजर नही आता। अब कांग्रेस भी वही सब करना जो मोदी सरकार प्रेस के साथ विपक्ष के साथ करती रही।
Rakesh Jha सही बात है, यदि,अख़बार के मालिक या किसी की भी गैरकानूनी कार्यों में लिप्तता है, तो कार्यवाही की जानी चाहिए। लेकिन, उन लोगों का क्या, जो हनीट्रैप में फँसे हुए हैं?…उन्हें क्यों बचाया जा रहा रहा।
Deepak Tamrakar Journalist भाई साहब, कमलनाथ सरकार और पूर्व की शिवराज सरकार दोनो के बड़े नेताओं को अगली बार संभवतः या सूत्रों की माने तो बेनकाब किया जाता। मीडिया हाउस पर छापा मार कर सरकार ने यह दर्शा दिया कि वे अगर कदम नही उठाते तो शायद जल्द वाट लग सकती थी। सरकार का यह कदम अब ठीक उसी तरह से बैकफुट पर आ गया है जिस तरह से वे कथित आईएएस अधिकारी बेनकाब हुए। कही न कही पिछली और वर्तमान सरकार के साथ नोकरशाहो कि भी फजीहत होने वाली थी जिसका उंन्हे डर था। खैर पब बार और होटल हाल में ही नही चालू हुए जिनकी इन्हें शिकायत मिली थी।अभी कई परते निकलना बाकी है।
Uma Tripathi अभी तक किसी अखबार के मालिक के अनेक कृत्य सुने हैं पर आज जो सुन रहे हैं वह तो निकृष्ट अपराधी का कार्य है।
Rakessh Kumar कमलनाथ के सगे संबंधियों की पैंट उतर जाएगी
Ganga Pathak बहुत सटीक भैया। हनी ट्रैप की न्यूज न छापता अखबार तो सब ठीक था। न्यूज छपी तो मानव तस्कर और जाने क्या क्या हो गया।इसके पहले इंदौर में पुलिस नहीं थी क्या।
Surendra Kumar Shrivastava हमारे जमाने में नेता, अभिनेता, व्यापारी, उद्योगपति, वकील, अफसर ,डाकू, चोर , माफिया , पत्रकार सब अलग अलग होते थे।सब के अपने क्षेत्र थे। अब आजकल बहुआयामी व्यक्तित्व का जमाना है कोई भी इनमें से दो या अधिक योग्यताएं रख सकता है।
Chandrahas Dixit सटीक, साहसिक एवं सामयिक पोस्ट। प्रखर पत्रकारिता।
Manoj Singh कार्यवाही का समर्थन लेकिन समय और निष्पक्षता पर संदेह बनता है
Sudhir Tiwari सही कह रहे हैं आप …..काली दाल में कुछ पीला है !
Somor Mukhopadhyay जीतू सोनी बहुत सालो से कांग्रेस के पीछे था। उसके पास बहुत कुछ है। आगे और भी खुलासा हो सकता है।
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