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राजस्थान

सीएम के आदेश को पलीता लगा रहे अफसर, कोरोना से मृत पत्रकारों के परिजन दर-दर की ठोकरें खा रहे!

MAHESH JHALANI-

जयपुर : मुख्यमंत्री के निर्देश के बावजूद कोरोना से मृत्यु के शिकार पत्रकारों के परिजन दर दर की ठोकरे खाने को विवश है। अफसर नए नए घोंचे लगाकर मृतक के परिजनों को कत्थक करा रहे है । नतीजतन प्रदेश में एक भी मृतक पत्रकार के परिजनों को आज तक कोई मुआवजा नही मिला है । मुख्यमंत्री के आदेश की कलेक्टर और वित्त विभाग के अधिकारी धज्जियां उड़ाने में व्यस्त है तो मुख्य सचिव खमोश होकर नौकरशाही की उठापटक का मंजर देख रहे हैं।

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कोरोना से लगातार हुई मौत के मद्देनजर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी संवेदना का परिचय देते हुए कोरोना से संक्रमित होकर मौत के शिकार हुए पत्रकारों के परिजनों को 50 लाख रुपये की आर्थिक मदद का एलान किया था । इसके लिए बाकायदा आदेश भी जारी होगये । जन सम्पर्क विभाग के अतिरिक्त निदेशक अरुण जोशी को इस कार्य के लिए नोडल अफसर नियुक्त किया।

खेद का विषय है कि मुख्यमंत्री के आदेश दफन होगये और अफसर अपनी मनमानी करने पर आमादा है । यही वजह है कि कई माह व्यतीत होने के बावजूद किसी भी मृतक पत्रकार के परिजन को एक धेला भी मुआवजे के तौर पर नही मिला है । मृतक पत्रकारों के परिजन सीएमओ से लेकर सम्बंधित विभागों को गुहार लगा चुके है । लेकिन नतीजा शून्य रहा।

जयपुर के कलेक्टर अंतर सिंह नेहरा सबसे होशियार अफसर निकले । उन्होंने मृतक पत्रकार अनिल वार्ष्णेय की न केवल फाइल बन्द करदी बल्कि उनको मुआवजे के योग्य ही नही माना है ।
स्व अनिल वार्ष्णेय की उम्र करीब 70 साल थी । राज्य सरकार के कोरोना गाइड लाइन के अनुसार वरिष्ठ नागरिकों को घर से बाहर नही निकलने का निर्देश दे रखा था । अफसर पूछ रहे है अनिल वार्ष्णेय को कोरोना कैसे हुआ । इससे बेहूदा और कोई सवाल हो सकता है?

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पत्रकारों के मुआवजे सम्बन्धी आदेश में यह अंकित है कि कवरेज करते वक्त इलाज के दौरान मृत्यु होंने पर ही मुआवजा देय होगा । इससे बड़ा बेवकूफी भरा कोई आदेश हो ही नही सकता है । सवाल यह है कि जब वरिष्ठ नागरिक घर के बाहर ही नही निकल सकते है तो वह कवरेज कैसे करेगा ? वार्ष्णेय के मृत्यु प्रमाणपत्र में स्पस्ट तौर पर अंकित है कि उनकी मौत कोरोना की वजह से हुई । इस प्रमाणपत्र के बाद घोंचेबाजी क्यों?

खैर ! अनिल वार्ष्णेय जीवनपर्यंत पत्रकारिता से जुड़े रहे । आखिरी समय मे भी वे अपनी पुस्तक प्रकाशित कराने के लिए भागदौड़ करते रहे । इसके अलावा दैनिक अधिकार का संपादन भी आखिरी समय तक किया । संपादन के दौरान ही उन्हें बुखार, उल्टी और चक्कर आए । इस पर तुरंत ही उन्हें अधिकार वालो ने अस्पताल में भर्ती कराया । जहाँ वे कोरोना संक्रमित पाए गए । चार दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई।

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पहले तो कोरोना से मृत्यु होने का प्रमाणपत्र हासिल करने में उनकी 66 वर्षीय विधवा पत्नी को पसीना आ गया । इस प्रमाणपत्र के बाद कलेक्ट्री में लगने लगे नित नए घोंचे । अंत मे स्व वार्ष्णेय की पत्नी निशा को कलेक्ट्री की ओर से जवाब भिजवाया गया है कि अनिल वार्ष्णेय मुआवजे के हकदार नही है । इसलिए प्रकरण समाप्त किया जाता है।

अजमेर के पत्रकार अरविंद गर्ग के परिजनों को 50 लाख रुपये देने की कलेकटर ने स्वीकृति भी प्रदान करदी । लेकिन बजट के अभाव में चार माह से गर्ग के परिवारजन इधर से उधर धक्के खा रहे है । कलेक्टर पत्र लिख रहा है डीपीआर को और डीपीआर पत्र भेज रहा है वित्त विभाग को । इस पत्रबाजी मे मृतक पत्रकारों के परिजन धक्के खाने को विवश है।

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स्व अनिल वार्ष्णेय की वृद्धा पत्नी ने कहाकि राज्य सरकार की नीयत मुआवजा नही देने की है तो वह स्पस्ट तौर पर मना करदे । रोज रोज परेशान कर मृतक की आत्मा से राज्य सरकार और अफसर खिलवाड़ कर रहे है । घर मे एक धेला नही है । मकान मालिक किराए के लिए परेशान कर रहा है।

सीएम के ओएसडी और अफसर फोन उठाने को तैयार नहीं। और जो उठाते हैं उनका जवाब बहुत रूखा होता है।

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मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप कर सभी मृतक पत्रकारों को सात दिवस में मुआवजे का भुगतान करें । यदि सरकार की नीयत मुआवजा नहीं देने की है तो उसे तत्काल प्रभाव से मुआवजा सम्बन्धी आदेश निरस्त करने चाहिए।

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