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उत्तराखंड

देहरादून के अखबार बन गए सीएम के चाटुकार, महिला शिक्षिका के खिलाफ छापी खबर

Shiv Prasad Sati : खबर क्या थी और क्या लिख दी गई? पतलचाट. पतलकार. क्या बोलूं. मुख्यमंत्री कितनी तो घोषणाएं करते हें. कितनी घोषणा पुरी हूई उत्तराखंड में. सवाल आपने भी किया था, आपसे भी सवाल है. आपको भी जनता की अदालत में सस्पेंड कर देना चाहिए. मैं शर्मिंदा हूं आप मेरे मुख्यमंत्री हैं.

Virendra Dangwal : कल इस प्रकरण पर मैं office में साथियों से बात कर रहा था. लेकिन कुछ साथी महिला को दोषी बता रहे थे। सारे अखबारों में प्रकरण की खबर पढ़कर पत्रकारिता से ही विश्वास उठ गया है. किस हद तक चाटुकारिता हो गई है. सबने मीडिया सलाहकार के बयान पर खबर लिखी. महिला का दर्द और सच्चाई से किसी का वास्ता नहीं. शर्मनाक. आज छपी खबरों के लिए चाटुकारों को श्रद्धांजलि.

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Soban Singh : उत्तराखण्ड उन राज्यों में से एक है जहां जनता दरबार में शिकायतें सुनने की बजाय शिकायतकर्ता को जलील व दंडित किये जाने का फरमान सुनाया जाता है, फिर ऐसे शिकायत दरबार किसके लिए? साहस पूर्वक अंजाम की परवाह किये बगैर महिला शिक्षिका Uttara Pant Bahuguna सीएम दरबार में चोर उचक्के शब्द कहने को क्यों मजबूर हुई हैं, विचारणीय विषय है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत जनता दरबार में जिस प्रकार एक शिक्षिका की शिकायत सुनने की बजाय अपना आपा खोते दिखे, वह बेहद शर्मनाक व निंदनीय है।

Gaurav Singh Sengar : त्रिवेंद्र रावत साहब कुर्सी किसी की बपौती नहीं है. बड़े बड़े चले गए, और आप तो वैसे भी कृपा पर कुर्सी पाए हैं. किस बात पर इतना घमंड. एक विधवा महिला पर अपना पराक्रम दिखा रहे हैं. लानत है. शर्म करिये..

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Rahul Kotiyal : कल एक शिक्षिका ने अपने ट्रान्स्फ़र की मांग की तो मेरे मुख्यमंत्री भड़क गए. उन्होंने महिला की पीड़ा समझने से पहले ही ये सवाल दाग दिया कि ‘नौकरी लेते वक़्त तुमने क्या लिखकर दिया था?’

अव्वल तो ये सवाल ही मुख्यमंत्री की झेंप से निकला था. मुख्यमंत्री जानते हैं कि उसकी ट्रान्स्फ़र पॉलिसी पूरी तरह से फ़ेल है. धरातल पर इस पॉलिसी को कोई नहीं पूछता और सारे ट्रान्स्फ़र आज भी सिर्फ़ नेताओं/मंत्रियों/अधिकारियों की सिफ़ारिश से ही होते हैं. इसीलिए जब शिक्षिका ने कहा कि ‘मैं पिछले 25 साल से लगातार दुर्गम स्थान में तैनात हूं और पिछले साल मेरे पति का भी देहांत हो चुका है, मुझे ट्रान्स्फ़र दे दीजिए’ तो मुख्यमंत्री सकपका गए. इन महिला के मामले ने भरे ‘दरबार’ में स्पष्ट कर दिया था कि सरकार की ट्रान्स्फ़र पॉलिसी का रंग सिर्फ़ फ़ाइलों में ही गुलाबी है.

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इसी से झेंपे मुख्यमंत्री ने अपनी झेंप मिटाने और महिला को लाजवाब करने के लिए पलट कर सवाल किया कि ‘नौकरी लेते वक़्त क्या लिख कर दिया था.’ शिक्षिका ने जवाब में कह दिया, ‘ये तो नहीं लिखकर दिया था कि ज़िंदगी भर के लिए वनवास पे चली जाऊँगी.’

इस जवाब की अपेक्षा मुख्यमंत्री को भी नहीं थी. उनका जूता उन्हीं के सिर बज चुका था. उन्होंने सवाल दागकर शिक्षिका को लाजवाब करना चाहा लेकिन शिक्षिका के जवाब से वे ख़ुद लाजवाब हो गए थे.

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अब उनके नथुने फूलने लगे, कुर्सी की ठसक और ज़्यादा उभरने लगी, चेहरे से घमंड टपकने लगा और सत्ता का नशा सिर चढ़ कर बोलने लगा…. लिहाज़ा उन्होंने शिक्षिका के निलंबन और उन्हें हिरासत में लेने का फ़रमान जारी कर दिया…

बहरहाल,

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‘नौकरी लेते वक़्त क्या लिखकर दिया था?’ शिक्षिका से ये सवाल करने वाले मुख्यमंत्री से भी कुछ ऐसे ही सवाल पूछे जाने चाहिए कि:

‘वोट मांगते हुए दोनों हाथ जोड़कर तुमने जनता से क्या-क्या वादे किए थे?’

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‘चुनावी घोषणापत्र में प्रदेश की शिक्षा और शिक्षकों की स्थिति सुधारने ख़ातिर क्या लिखकर दिया था?’

‘मुख्यमंत्री पद की शपथ पढ़ते हुए पद की गरिमा बनाए रखने की कौन-कौन सी क़समें खाई थी?’

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‘ट्रान्स्फ़र पॉलिसी जब बनाई तो उसमें तुमने क्या-क्या लिखा था?’

‘तुम्हारा राष्ट्रीय प्रधान कहता है कि वो देश का प्रधानसेवक है. तो तुम इस प्रदेश के मुख्य सेवक हुए. क्या तुम्हारा व्यवहार सेवकों जैसा है या कुर्सी मिलते ही तुम ख़ुद को शाह समझने लगे हो?’

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मैंने कुछ समय पहले लिखा था कि मेरा मुख्यमंत्री धूर्त है. लेकिन कल वाले प्रसंग ने मुझे ग़लत साबित कर दिया. मेरा मुख्यमंत्री धूर्त नहीं, महाधूर्त है..

देखें संबंधित वीडियो…

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सौजन्य : फेसबुक

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1 Comment

1 Comment

  1. Prashant Hiwarkar

    June 29, 2018 at 1:43 pm

    सरकार की पारदर्शिता के लिए सरकारी कर्मचारी स्थानांतरण नीति की आवश्यकता है। ना की कर्मचारियों को हिरासत में ले के उनपर केस दर्ज कर नोकरी से निलंबित करना है।
    अगर मुख्यमंत्री का अपने आप पर काबू नहीं है तो जनता का कैसे रहेगा। उनका काम था की सिस्टम की कर्मचारी बदली की निति खामियां खोजकर सुधार करना। सरकार को चाहिए था की कर्मचारियों की मुश्किलों का समाधान करना, हल ढूंढना।

    उनका ऐसा रवैया सरकार के नियमों में खामियों की वजह से ही रहा है। एक कर्मचारी एक ही जगह पर पिछले 25 सालों से कार्यरत हैं।
    महाराष्ट्र राज्य सरकार की तरह।
    अगर शिक्षिका हो या कोई भी राज्य का व्यक्ति हों राज्य के मुखिया के पास से न्याय नहीं मिला तो वो अपना आपा खो बैठेगा इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन मुखिया अपना आपा खो बैठे यह सोचने वाली बात है।

    Need doing government employee transfer policy for transparency of government.
    As like Maharashtra State government.

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