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टप्पल की दरिंदगी पर अखबारों की खबरें और शीर्षक देखिए

फिर कठुआ के ऐसे ही एक मामले में अदालत के फैसले की रिपोर्टिंग पर गौर कीजिए

आज मैं एक जैसे दो मामलों में अखबारों के शीर्षक पेश कर रहा हूं। कल अलीगढ़ में मासूम की हत्‍या पर अलीगढ़ के पास टपप्ल में उबाल की खबर थी। कातिलों को फांसी देने और जिन्दा जलाने की मांग जैसी खबरें थीं। कहने की जरूरत नहीं है कि यह एक अपराध और उसपर जनता की त्वरित मांग और प्रतिक्रिया की रिपोर्टिंग थी। आज जम्मू के ऐसे ही एक मामले पर अदालत का फैसला आया है। अपराध के बाद की स्थिति और कई महीने बाद अदालत का फैसला आने तक जनता का गुस्सा कम हो जाता है। इस बात का ख्याल रखते हुए आप देखिए कि फैसला और सजा क्या है तथा उसके मद्देनजर जनता (या अखबार का) गुस्सा शीर्षक में लगभग नहीं है। ना ही अभियुक्तों को फांसी की सजा नहीं दिए जाने का अफसोस या पाठकों को उसका कारण बताने की कोशिश। इस मामले में खास बात यह भी है कि तीन अधिकारियों को सबूत मिटाने का दोषी पाया गया है और उन्हें भी सजा दी गई है। पहले कल के शीर्षक देखिए।

  1. हिन्दुस्तान
    टप्पल छावनी बना, कर्फ्यू जैसे हालात
  2. नवभारत टाइम्स
    अलीगढ़ में दरिंदगी के खिलाफ सड़क पर उतरे लोग, आगजनी
    उपशीर्षक, धारा 144 के बावजूद दिन भर होता रहा प्रदर्शन
  3. नवोदय टाइम्स
    कल यह खबर पहले पन्ने पर नहीं थी.
  4. अमर उजाला
    छावनी बना टप्पल, नहीं हुई महापंचायत
    उपशीर्षक, “अलीगढ़ में बच्ची से बर्बरता का मामला : प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने खदेड़ा”
  5. दैनिक जागरण
    बच्ची के कातिलों को फांसी की मांग के साथ टप्पल में तालाबंदी। (पहले पन्ने पर)
    अंदर के पन्ने पर चार कॉलम में टॉप पर प्रकाशित खबर का फ्लैग शीर्षक है, “जबरदस्त गुस्सा – बच्ची की निर्मम हत्या के विरोध में टप्पल चलो आह्वान, दिन भर रहा तनाव, पुलिस से नोंकझोंक”। इस खबर का मुख्य शीर्षक है, “अलीगढ़ में फूटा आक्रोश, एक्सप्रेसवे जाम।” और इसके साथ प्रकाशित एक फोटो का कैप्शन है, यमुना एक्सप्रेसवे पर जाम लगाने की कोशिश कर रहे लोगों को खदेड़ते पुलिस कर्मी।
  6. राजस्थान पत्रिका
    अखबार ने कल टप्पल की खबर को पहले पन्ने पर नहीं छापा था। यह शीर्षक अंदर के पन्ने पर छपी खबर का था।
  7. दैनिक भास्कर
    फ्लैग शीर्षक है, “अलीगढ़ में बच्ची की हत्या, इलाके में सुरक्षा बलों की 10 कंपनियां तैनात”। मुख्य शीर्षक है, “साध्वी प्राची को टप्पल जाने से रोका, धारा 144 तोड़ने पर पांच हिरासत में”।

संयोग से आज की मुख्य खबर यह है कि जम्मू के पास कठुआ के ऐसे ही एक मामले में कल अदालत का फैसला आया है। इसमें तीन अभियुक्तों को तो दोषी पाया ही गया है तीन लोगों को सबूत मिटाने के आरोप में भी सजा हुई है। सबूत मिटाने के मामले में अधिकारियों को सजा होने की खबर गुजरात दंगे की पीड़ित बिलकिस बानो के मामले में भी आई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दोषियों के ख़िलाफ़ सबूत के बावजूद निचली अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था और चार पुलिसकर्मियों तथा दो डाक्टर को सजा सुनाने के खिलाफ की गई अपील सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी। खबरों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उनके खिलाफ एकदम स्पष्ट सबूत हैं। उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी करने के निचली अदालत के फैसले को उलट दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने गैंगरेप मामले में पीड़‍ित बिलकिस बानो को 50 लाख रुपये मुआवजा, सरकारी नौकरी और घर देने का आदेश दिया है। यह बेहद चिन्ताजनक है और भ्रष्टाचार खत्म करने के दावों के बावजूद है। इसीलिए, कल मैंने यह कहने की कोशिश की थी कि जनता मांग करती है पर अखबारों का काम है जनता को वास्तविकता से परिचित कराना।

आज द टेलीग्राफ में श्रीनगर डेटलाइन से मुजफ्फर रैना की एक खबर है, फैसले के बाद भाजपा खोल में चली गई। इसमें कहा गया है, “गए साल भाजपा के कई नेता कठुआ में आठ साल की लड़की से बलात्कार और हत्या के आरोप में गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों के पक्ष में एकजुट हो गए थे। सोमवार को जब पठानकोट की अदालत ने छह अभियुक्तों को बलात्कार, हत्या और सबूत नष्ट करने का दोषी ठहराया और तीन अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई तो भाजपा नेतृत्व लगता है खोल में घुस गया है। जम्मू के कई भाजपा नेता सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं पर इस मामले में फैसले को नजरअंदाज करना पसंद किया है। …. अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद हजारों लोगों ने तिरंगे के साथ सड़कों पर प्रदर्शन कर आरोप लगाया था कि पुलिस सांप्रदायिक आधार पर काम कर रही है। दो मंत्रियों – चौधरी लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा समेत भाजपा नेताओं ने अभियुक्तों के समर्थन में रैली में हिस्सा लिया था। प्रदेश भाजपा ने पुलिस की जांच को खारिज कर दिया था और सीबीआई जांच की मांग की थी। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ऐसा आदेश करने से मना कर दिया था। समझा जाता है कि इस अपराध पर हुए ध्रुवीकरण के कारण भाजपा और पीडीए में खाई पड़ गई थी और कुछ महीने बाद सरकार से समर्थन वापस ले लिया गया था। क्या आपके अखबार ने ऐसी कोई खबर दी?

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बलात्कार और हत्या के आरोप – समान व्यवहार लेकिन सभी अखबार ऐसे नहीं हैं

ऊपर कुछ शीर्षक हैं और उससे संबंधित खबर या तथ्य आप जानते हैं। कल तक अखबारों में यह खबर छाई हुई थी। आज जम्मू के कठुआ में ऐसे ही एक अपराध पर कल पठानकोट की विशेष अदालत में दिए गए फैसले और अभियुक्तों को सजा सुनाए जाने की खबर है। आज के शीर्षक देखिए

  1. हिन्दुस्तान
    फ्लैग शीर्षक है, “इंसाफ : मासूम से दुष्कर्म और हत्या में छह दोषी, तीन को आजीवन कारावास, तीन को पांच साल की जेल”। मुख्य शीर्षक है, “कठुआ के दरिन्दो को उम्रकैद”।
  2. नवभारत टाइम्स
    कठुआ की गुड़िया को 17 महीने बाद इंसाफ
  3. नवोदय टाइम्स
    फ्लैग शीर्षक है, “कठुआ गैंगरेप एवं हत्याकांड” मुख्य शीर्षक है, 6 दोषी करार, तीन को उम्रकैद।
  4. अमर उजाला
    कठुआ केदरिन्दो को उम्रकैद
    उपशीर्षक है, आजीवन जेल में रहेगा मास्टरमाइंड ग्राम प्रधान सांझीराम, बेटा बरी
    सबूत मिटाने वाले तीन पुलिसकर्मियों को भी पांच-पांच साल की कैद
  5. दैनिक जागरण
    कठुआ कांड : तीन दरिन्दों को मौत तक जेल, तीन को पांच साल कैद
    इंसाफ – आठ वर्षीय बच्ची की सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले में 380 दिन में आया फैसला
  6. राजस्थान पत्रिका
    कठुआ कांड में तीन को उम्रकैद, सबूत मिटाने पर तीन पुलिस वालों को पांच-पांच साल की सजा
    यह पांच कॉलम में दो लाइन का शीर्षक है। इसके मुकाबले दैनिक जागरण ने आठ कॉलम में एक लाइन का शीर्षक लगाया है। बताने की जरूरत नहीं है कि उसमें पुलिस वालों को सजा की सूचना शीर्षक में नहीं है। हालांकि, खबर में बताया है कि 50,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। राजस्थान पत्रिका ने प्रमुखता से लिखा है कि यह क्रूरता बकरवालों को भगाने के लिए की गई और चिन्ताजनक है। क्या आपके अखबार से ऐसा कुछ लगता है।
  7. दैनिक भास्कर
    फांसी से बच गए कठुआ के दरिन्दे (चार कॉलम में दो लाइन दो कॉलम से कुछ ज्यादा के इस शीर्षक के साथ एक कॉलम से कुछ ज्यादा की आठ लाइनों में कहा गया है, वजह : यह सजा भारतीय दंड संहिता नहीं, जम्मू कश्मीर में लागू रणबीर दंड संहिता के तहत हुई है। इसमें 12 साल से छोटी बच्चियों के दुष्कर्म पर फांसी का प्रावधान 24 अप्रैल को कठुआ की घटना की घटना के बाद ही जोड़ा गया है। यह घटना 10 जनवरी की है और नए प्रावधान के अनुसार सुनवाई नहीं हो सकती थी। इसलिए दोषी फांसी से बच गए। इसके साथ दैनिक भास्कर ने प्रमुखता से यह भी बताया है, बच्ची की मां ने कहा – यह इंसाफ अधूरा है, दोषियों को फांसी होनी चाहिए थी।

कठुआ मामले में आरोपियों को फांसी देने की मांग ही नहीं हुई और बच्ची की मां ने कहा कि उन्हें फांसी की सजा होनी चाहिए थी तो खबर न के बराबर छपी। इसके मुकाबले कल के शीर्षक देखिए। दोनों मामले बच्चियों से बलात्कार और हत्या के हैं और अदालत ने सजा दी है तो सबूत भी हैं और मामला न्यायिक परीक्षण के एक स्तर से गुजर चुका है। अखबारों का काम था कि वे पाठकों को बताते कि इस मामले में फांसी की सजा क्यों नहीं हुई और यह भी कि टप्पल मामले में हो सकती है कि नहीं। पर ऐसा कुछ आजकल के अखबार नहीं करते हैं। हालांकि, उससे एतराज न भी हो तो टप्पल मामले में जो गुस्सा दिखाया जा रहा था वैसा आश्चर्य कठुआ मामले में सजा होने के बाद भी नहीं है। आप जानते हैं क्यों? मैं अभी उसपर बात नहीं कर रहा।

इस पूरे मामले को इस तथ्य से जोड़कर देखिए कि पिछला चुनाव प्रचार शुरू करते समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था, ‘कांग्रेस नेता कान खोलकर सुन लें, हिन्दू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता’। उन्होंने कहा था, हिन्दू आतंकवाद का झूठ फैलाने का पाप कांग्रेस ने किया है और अब इतना डर लगने लगा है कि सीट बदलनी पड़ी है। यह डर अच्छा है। कांग्रेस की पराजय पक्की है। पीएम ने कहा कि हिंदुओं को आतंकवादी बताकर कांग्रेस ने करोड़ों हिंदुओं का अपमान किया। ठीक है कि यह चुनावी भाषण था और प्रधानमंत्री ने आतंकवादी बताने को अपराध कहा था पर हिन्दुओं के खिलाफ अपराध के मामले तो साबित हो रहे हैं और जिस तरह अधिकारियों पर सबूत मिटाने के आरोप हैं उसके आलोक में यह कैसे सुनिश्चित होगा कि आतंकवाद के मामले में सबूत सफलतापूर्वक न मिटाए जाएं। अखबारों को चिन्ता इसपर भी होनी चाहिए। देखता हूं, ऐसा कुछ होता है कि नहीं।

वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट

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