उच्चतम न्यायालय में 28 अप्रैल 2015 की सुनवाई के दौरान बहुत सी बातें उठीं. यह भी बताया गया कि मजीठिया का लाभ मांगने वाले कर्मचारियों को प्रबंधन द्वारा धमकाया और डराया जा रहा है. उनसे जबरदस्ती लिखवाकर लिया गया है कि वो मजीठिआ का लाभ नहीं चाहते. अदालत को यह भी बताया गया कि प्रबंधक जबरदस्ती कर्मचारियों से लिखवा कर ले रहे हैं कि उन्होंने समझौता कर लिया है और वो मजीठिया का लाभ नहीं चाहते. इसके जवाब में मालिकों की ओर से आये बड़े और नामचीन वकीलों ने जब कुछ कहना चाहा तो अदालत ने नहीं सुना. अदालत ने इन बातों को गंभीरता से लेते हुए आदेश पास किया कि सभी राज्य सरकारें मजीठिया आदेश के अनुपालन में कार्यवाही के लिए श्रम निरीक्षकों की नियुक्ति करें और तीन महीने के अंदर अदालत के सामने रिपोर्ट प्रस्तुत करें.
ऐसे में अब गेंद हम मीडियाकर्मियों के पाले में हैं. सभी कर्मचारी गण या कोई एक कर्मचारी या कोई यूनियन लेबर इंस्पेक्टर के सामने एक शिकायत लगाए जिसमे संस्थान में कार्यरत सभी कर्मचारियों की सूची लगा कर कहा जाए कि इन सभी को मजीठिया का लाभ नहीं दिया गया है. यह जरुरी नहीं है कि सभी कर्मचारी उस शिकायत पर दस्तखत करें. आप बिना किसी कर्मचारी की सहमति लिए ही, पूरी इंप्लाई सूची पेश कर लेबर इंस्पेक्टर से शिकायत कर दें कि किसी को मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ नहीं दिया जा रहा है. इस तरह की कंप्लेन तुरंत करें. शिकायत का प्रारूप हम सभी के लिए दे रहे हैं जिसे डाउनलोड किया जा सकता है.
कर्मचारी या यूनियन की तरफ से इस बात की भी शिकायत कर सकते है कि प्रबंधकों ने उनसे जबदस्ती दस्तखत करवाया है और इसे अमान्य समझा जाये. साथ ही प्रबंधकों के खिलाफ कार्यवाही की जाये. इस बावत पुलिस में भी शिकायत की जा सकती है. अगर लेबर इंस्पेक्टर किसी तरह की गड़बड़ी कर रहा है तो उसके खिलाफ भी उसके उच्चाधिकारियों से शिकायत करें साथ ही आरटीआई लगाएं. जो लोग सेवानिवृत हो चुके हैं, त्यागपत्र दे चुके हैं, जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उनके बच्चे भी इस लाभ के हक़दार हैं. उनसे भी संपर्क कर उन्हें साथ लिया जाना चाहिए ताकि सभी लोग संगठित रह सकें और प्रबंधको को एक किनारे कर सकें.
और अंत में… अपने-अपने प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों / मंत्रियों तक यह सन्देश पहुंचा दें कि वह सभी श्रम अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दें कि Working Journalist Act, Section 17 (2) के अंतर्गत लगाये गए आवेदन पर तुरंत आदेश करें और Recovery Certificate जारी करें. इसमें ढिलाई करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करें. अलग से श्रम निरीक्षकों के नियुक्ति का मामला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत है जो कि यह तय करेगा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना हुई है या नहीं. श्रम विभाग के पास पहले से ही इस बावत क़ानूनी अधिकार है. सभी लोग श्रम विभाग में शिकायत जरूर लगाएं और इस बात को समझ लें कि सभी कर्मचारियों के दस्तखत की जरूरत नहीं है. एक ही आवेदन में सभी का नाम दिया जा सकता है. चूंकि कुछ अख़बारों के पंजीकृत ऑफिस दिल्ली में हैं इसलिए उनके सभी कर्मचारियों का दावा दिल्ली में लगाया जा सकता है, चाहे वो कहीं भी काम करते हों. इस पर बहुत ही समझदारी से आगे बढ़ने की जरूरत है. कृपया किसी क़ानूनी जानकर से मदद जरूर लें. खुद अकेले अपना जौहर न दिखाएं. यह बहुत ही उलझा हुआ क़ानूनी मामला है जिस पर आम आदमी अपना हाथ नहीं आजमा सकता है. आप चाहें तो मैं इस पर निशुल्क क़ानूनी मदद ऑनलाइन रूप में दे सकता हूं.
एक वकील से बातचीत पर आधारित.
jayesh
June 3, 2015 at 10:14 am
gr8 work done sirji…….