Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

हर चुनाव के बाद थोड़ा सा संविधान नष्ट कर दिया जाता है !!

पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम अपने साप्ताहिक कॉलम में इस बार चुनाव जीतने के लिए संवैधानिक मूल्यों से समझौता करने और मीडिया की हालत बताने के साथ यह सवाल उठाया है कि क्या चुनावों के बाद संवैधानिक मूल्य बचे रहेंगे? इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि अगर हर चुनाव के बाद थोड़ा-सा भी संविधान नष्ट कर दिया जाता है, तो इन चुनावों का औचित्य क्या रह जाता है? मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा जाने वाला चिदंबरम का यह कॉलम जनसत्ता में हिन्दी में छपता है। एक्सप्रेस की तमाम अच्छी खबरें नहीं छापने वाला जनसत्ता चिदंबरम का यह कॉलम छापता है। आइए इसका लाभ उठाया जाए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आप इस कॉलम को पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में अंतिम दो राज्यों में मतदान (सात दिसंबर) के दो दिन बाद और मतगणना (11 दिसंबर) के दो दिन पहले पढ़ेंगे। इसलिए मुझे ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत नहीं है।

जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए हैं वे पूरे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान भारत के ज्यादा गरीब राज्यों में से हैं, जो सांस्कृतिक रूप से समृद्ध, सामाजिक रूप से रूढ़िवादी/ पीछे लौटने वाले, शैक्षिक रूप से पिछड़े और आर्थिक रूप से सीढ़ी के निचले पायदान पर आते हैं। मानव विकास के मामले में मिजोरम सबसे ऊपर है, लेकिन संसाधनों के मामले में काफी गरीब है, और इसलिए वह भी गरीब राज्यों में आ जाता है। तेलंगाना ऐसा राज्य है कि वह जो चाहे हासिल कर सकता है, लेकिन वह अब भी एक नए स्टार्ट-अप की तरह है और आगे नहीं बढ़ पाया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

चुनावों के नतीजे पांचों राज्यों की जनता के लिए तो निर्णायक होंगे, लेकिन बाकी देश के लिए अनिश्चय पैदा करने वाले होंगे। अगर मिजोरम और छत्तीसगढ़ में त्रिशंकु विधानसभा नहीं बनती, तो पांचों राज्यों में स्पष्ट बहुमत वाली सरकारें बनेंगी। यह दुनिया को इस बात का संकेत होगा कि संस्थाओं को खत्म करने की कोशिशों के बावजूद भारत में लोकतंत्र फल-फूल रहा है। हालांकि संस्थाओं को थोड़ा नुकसान तो पहुंचा ही दिया है।

समान और अलग कारक
इन पांचों राज्यों में ये समान कारक थे- बिना थके प्रचार करने वाले नरेंद्र मोदी; कड़ी चुनौती दे रहे राहुल गांधी; बढ़ती बेरोजगारी; किसानों की मुश्किलें, कर्ज और गुस्सा; धन का बेहताशा बेजा इस्तेमाल; मतदाताओं को बांटने का खुला खेल और ईवीएम पर उठते सवाल।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कुछ खास अंतर भी रहे। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछली तीन बार से लगातार सत्ता में बने रहे मुख्यमंत्री ऐतिहासिक चौथी बार का लक्ष्य लिए हुए हैं। राजस्थान में, भाजपा का मुख्यमंत्री एक बार जीतता और एक बार हारता रहा है, और इस बार वहां मुख्यमंत्री के हारने की बारी है! मिजोरम में, कांग्रेस के मुख्यमंत्री का सत्ता में रहने और बलिदान (ललदेंगा के पक्ष में) का रेकार्ड रहा है। लेकिन इस बार उन्हें अपने ही पुराने साथियों से चुनौती मिली। तेलंगाना में, जो देश का सबसे नया राज्य है, 2014 के विजेता को इस बार अपनी सरकार और आत्मसम्मान बचाने के लिए जूझना पड़ रहा है।

इन चुनावों के नतीजे देश और दो बड़ी पार्टियों- भाजपा और कांग्रेस के लिए महत्त्वपूर्ण होंगे। परिणामों के बाद का परिदृश्य तो और ज्यादा महत्त्वपूर्ण होगा, इस मायने में कि कटुता के साथ लड़े गए चुनावों में हमारे संवैधानिक मूल्य कितने बच पाए हैं। मेरा मानना है कि हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि अगर हर चुनाव के बाद थोड़ा-सा भी संविधान नष्ट कर दिया जाता है, तो इन चुनावों का औचित्य क्या रह जाता है?

Advertisement. Scroll to continue reading.

दांव पर मूल्य
इसलिए मुझे यहां उन संवैधानिक मूल्यों को गिनाने दीजिए जो दांव पर लगे हैं।

सबसे पहले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के मूल्यों की बात है, जिसकी जिम्मेदारी चुनाव आयोग को सौंपी गई है। चुनाव आयोग ने कई तरह से लोगों को निराश किया है, और सबसे बड़ी नाकामी बेहिसाब धन के इस्तेमाल को रोक पाने में रही है। खर्च की सीमाएं मखौल बन कर रह गर्इं। लोग अब यह सोचने लगे हैं कि चुनाव सिर्फ वही लड़ सकता है जो अमीर या भ्रष्ट या फिर दोनों हो। अगर उम्मीदवार के पास पैसे नहीं हैं, तो पार्टी को चाहिए कि वह अपने जमा खजाने से उन्हें दे- जैसा कि जयललिता ने किया था, और भाजपा भी अब बड़े पैमाने पर ऐसा कर रही है। चुनाव आयोग ने मतदान और मतगणना के लिए ईवीएम-वीवीपैट प्रणाली की सुरक्षा को दुरुस्त करने में अनिच्छा दिखा कर लोगों को निराश किया। आयोग पच्चीस फीसद से भी कम मतदान केंद्रों पर ईवीएम और वीवीपैट पर्चियों के मिलान का बंदोबस्त कर पाया। इसका मतलब यह होगा कि नतीजों की घोषणा में दो से तीन घंटे की देरी होगी, लेकिन लोगों का भरोसा जीतने के लिए यह एक बहुत ही छोटी कीमत है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दूसरी बात स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया के महत्त्व को लेकर है। कुछ टीवी चैनल तो न सिर्फ पे-चैनल हैं, बल्कि वे पेड चैनल हैं। बाकी, जिन्हें पैसे नहीं दिए गए, वे काफी हद तक डर के मारे झुक गए। ज्यादातर अखबार अपनी आजादी बचाने के लिए संघर्ष करते रहे, और उनका स्तर सिर्फ तभी गिरा जब प्रधानमंत्री से संबंधित खबरों की रिपोर्टिंग हुई। कांग्रेस और राहुल गांधी हमले के लिए पसंदीदा बने हुए हैं, लेकिन ये हमले हल्के ही साबित हो रहे हैं, जिसका पता कांग्रेस की लोकप्रियता के बढ़ते ग्राफ से चलता है। लोकसभा चुनावों के पहले मीडिया को चौथे स्तंभ के रूप में अपनी निडर और स्वतंत्र छवि फिर से हासिल करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए।

तीसरी बात निष्पक्ष मत के महत्त्व से जुड़ी है। हर चुनाव में जाति का गणित सबसे महत्त्वपूर्ण आधार बन जाता है, उम्मीदवारों के चयन से लेकर सरकारों के गठन तक में। जाति के इस कदर हावी हो जाने से दूसरे महत्त्वपूर्ण कारकों जैसे पार्टी वृत्तांत, नेतृत्व, कामकाज, उम्मीदवारों की योग्यता, घोषणापत्रों के वादे आदि का तेजी से ह्रास हो रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

चौथी बात है निर्वाचन क्षेत्र के फैसले के महत्त्व की। अगर विजेता जनता के निर्णय से विश्वासघात करता और कलाबाजी दिखाने वाले कलाकार की तरह बर्ताव करने लगता है, एक पार्टी से दूसरी में कूदता रहता है, तो फिर ऐसे में उम्मीदवार आधारित निर्वाचन क्षेत्र विशेष का क्या औचित्य रह जाता है? हमें इसके विकल्पों पर गंभीरता से विचार करना होगा।

इन सबके बावजूद 11 दिसंबर को नतीजे आएंगे। गलियारों में जो कानाफूसी चल रही है, उनमें से कुछ ये हैं-

Advertisement. Scroll to continue reading.
  • कांग्रेस और भाजपा में दोस्तों का कहना है कि राजस्थान में कांग्रेस जीतेगी!
  • कांग्रेस में दोस्त कह रहे हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस जीतेगी, लेकिन भाजपा में दोस्त इस पर चुप्पी साधे हुए हैं!
  • छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बहुमत से बहुत ही मामूली अंतर से पिछड़ सकती है। त्रिशंकु विधानसभा में कोई नहीं जानता कि बसपा-जोगी क्या करेंगे!
  • तेलंगाना के मुख्यमंत्री के एक करीबी व्यक्ति ने बहुत ही विश्वास के साथ कहा है कि राज्य में कांग्रेस आ रही है!
  • मिजोरम के नतीजों पर कोई भी भविष्यवाणी नहीं कर रहा है, सिवाय यह कहने कि भाजपा अपने खेल का इंतजार कर रही है!
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement