वाराणसी। वरिष्ठ पत्रकार राकेश चतुर्वेदी की कोरोना ने जान ले ली. अब वह इस दुनिया में भले ही न हों लेकिन उनकी मौत ने कई ऐसे सवाल छोड़ दिए हैं जिनका जवाब जरूरी है.
थर्मल स्कैनिक में लापरवाही क्यूं? यह तो सभी को पता है कि कोरोना के फैलाव के बाद किसी भी संस्था के कार्यालय में प्रवेश से पूर्व थर्मल स्कैनिंग कराना सरकार ने अनिवार्य कर रखा है. इस व्यवस्था के तहत सभी कार्यालयों के मुख्यद्वार पर ही थर्मल स्कैनिंग की जाती है. इसमें यदि व्यक्ति के शरीर का तापमान सामान्य से अधिक पाया गया तो उसे कार्यालय के अंदर जाने की अनुमति नहीं दी जाती है. इस आशंका पर कि वह व्यक्ति कोरोना संक्रमित हो सकता है.
जाहिर है जागरण प्रबंधन भी अपने कार्यालय में किसी को प्रवेश कराने से पूर्व इस नियम को जरूर अपनाता होगा. इस नियम के तहत दैनिक जागरण कार्यालय में ड्यूटी पर आने वाले अन्य कर्मचारियों की तरह राकेश चतुर्वेदी की भी हर रोज थर्मल स्कैनिंग होती रही होगी. वह एक सप्ताह से तेज बुखार से पीड़ित थे. यह बात उनके परिवार के लोग व सहकर्मी भी बताते हैं.
बावजूद इसके वह निधन से दो दिन पहले तक कार्यालय जाते रहे. जाहिर है, कार्यालय के गेट पर हुई थर्मल स्कैनिग में उनके शरीर का तापमान अधिक पाया गया होगा. ऐसे में उन्हें कार्यालय में प्रवेश से क्यों नहीं रोका गया.
मतलब साफ है. ड्यूटी पर आ रहे राकेश चतुर्वेदी की थर्मल स्कैनिंग करने में या तो लापरवाही बरती गयी या फिर उसके परिणाम को जानबूझ कर नजरंदाज किया गया.
यही लापरवाही बाद में उनके लिए जानलेवा बन गयी. एक बात और… राकेश के सहकर्मी ही बताते हैं कि वह बुखार से पीड़ित होने के बाद भी रोज ड्यूटी पर आते रहे.
इससे साफ पता चलता है कि उनके बुखार से पीड़ित होने की बात कार्यालय में लोगों से छिपी नहीं थी.
ऐसे में यह जानकारी प्रबंधन तक नहीं पहुंची हो, यह बात गले से उतरती नहीं. फिर प्रबंधन ने राकेश के बीमार होने की अनदेखी क्यूं की, इस सवाल का जवाब भी जरूरी है.
काश ऐसी अनदेखी न होती तो शायद राकेश जी की जान सहज ही न जाती.
मनोज श्रीवास्तव
महामंत्री
काशी पत्रकार संघ