Deepak Sharma-
सिलिंडर में सिर्फ 10-15 मिनट का ऑक्सीजन बचा था। यानि इमर्जेन्सी के सिर्फ 15 ही मिनट थे। पर किसी भी अस्पताल में बिस्तर नहीं मिल रहा था। घर से 5 मिनट की दूरी पर फोर्टिस अस्पताल ने हाथ खड़े कर दिए थे। वहाँ इमर्जेन्सी में भी जगह नहीं थी। मैक्स में भी कोई गुंजाईश नहीं थी। पत्नी का चौथा दिन था, बुखार बार बार 101 जा रहा था। मैंने उनसे कहा कि वो मम्मी को किसी तरह से बिस्तर से उठाये, उन्हें तुरंत अस्पताल लेकर जाना होगा। उस वक़्त उनका ऑक्सीजन लेवल 66 तक गिर चुका था, साँसे उखड़ी हुई थी।
कोई सुने न सुने, ईश्वर ने सुनी और किसी तरह 87 साल की मम्मी जीने से उतरकर कार में बैठ सकी। ये बात 9 मई की सुबह की थी। फिर मित्रों की मदद से घर से 12 किलोमीटर दूर, DRDO अस्पताल में मम्मी को ऑक्सीजन वाला बिस्तर मिल गया।गाड़ी जितनी जल्दी पहुँच सकती थी, DRDO पहुँच गयी।अगले 72 घंटो में उनके हाल बेहतर हुए। 3-4 दिन बाद पत्नी भी कुछ बेहतर हुई। कोविड से संक्रमित बेटी को भी राहत मिली।
इन दुश्वारियों के बीच, मेरे बड़े जीजा मेरठ में ICU में भर्ती थे। बड़ी मुश्किल से उन्हें भी बिस्तर मिला था । कुछ और नज़दीकी रिश्तेदार भी गंभीर संक्रमण से जूझ रहे थे। जाहिर है, ऐसे संकट से गुजरते समय आप अख़बार या टीवी नहीं देख पाते। दोस्तों, शुभचिंतकों के फोन नहीं उठा पाते। आपकी नज़र सिर्फ मरीज़ के हाल, डॉक्टर की सलाह और ईश्वर के आशीर्वाद पर रहती है।आप उम्मीदों पर जीते हैं, क्यूंकि आपको कल की खबर नहीं होती।
10-12 दिन के मुसीबत भरे इस दौर को डिटेल में लिखना नहीं चाहता हूँ। जो गुजर गया सो गुजर गया। लेकिन कुछ बातें अब आपसे करनी है।
सबसे पहले कि इस संक्रमण को गंभीरता से लीजिये , शुरू से ही।अगर मर्ज़ बढ़ रहा है और आप देर से जागे, तो परिस्थितयां हाथ से निकल सकती हैं। फिर कुछ भी हो सकता है, क्यूंकि एक वक़्त के बाद स्टेरॉयड, बाकि लाइन ऑफ़ ट्रीटमेंट, इस महामारी में अक्सर बेअसर साबित होते हैं। इसलिए पूरी एहतियात बरते और तेज बुखार के मांमले में, कोशिश करें कि शहर के बेस्ट डॉक्टर से ही सलाह लें।
दूसरी बात, दूसरी लहर के कहर के लिए सरकार, प्रशासन, अदालतें, निजी संस्थाए और मीडिया, सभी अपनी जिम्मेदारी में फेल हुए हैं । मार्च से ही महाराष्ट्र के डॉक्टर, संक्रमण रोगों के विशेषज्ञ और यहाँ तक केंद्र के स्वास्थ्य सलाहकार(विरोलॉजिस्ट, एपिडोमोलॉजिस्ट) आगाह कर रहे थे कि देश में दूसरी लहर आने वाली है। वे आगाह कर रहे थे कि दूसरी लहर ज्यादा खतरनाक होगी। वे कह रहे थे कि सरकार को इस चुनौती से निपटने के लिए गंभीरता से तैयारी करनी होगी।
लेकिन देश का सारा फोकस तब चुनाव पर ठहरा हुआ था। सारे चैनल, अख़बार, न्यूज़ एजेंसी , किसी को कोविड की कतई परवाह नहीं थी। और महीने भर बाद , फिर लहर ने आखिकार कहर बरपा दिया। बिना किसी तैयारी के, बिना किसी एहतियात के, समूची व्यवस्था ने हाथ खड़े कर दिए और देश में हज़ारों लोग , बिस्तर, ऑक्सीजन, ईलाज और दवा के अभाव में मारे गए।
एक खोजी पत्रकार के तौर पर, अपनी जिम्मेदारी निभाने में, मैं भी विफल रहा। साल भर पहले, मैंने, देश के कई बड़े विरोलॉजिस्ट, वैक्सीन एक्सपर्ट, और संक्रमण रोगो के विशेषज्ञों से दर्ज़नो इंटरव्यू किये और ढेरों ब्रेकिंग ख़बरें की। लेकिन जब देश को वाकई आगाह करना था तब में चुनाव और हल्की किस्म की सियासी ख़बरों में मशगूल रहा। 27 -28 साल की मेरी पत्रकारिता की ये बड़ी भूल थी।
पर पिछले दस बारह दिनों में मेरी आँखें खुली हैं।अपने पर बीती तो बाकि लोगों का भी दर्द महसूस हो रहा हे । इसलिए बार बार सोच रहा हूँ, मुझसे गलती कहाँ हुई ? इतने अनुभव के बाद भी, मैं , क्यों नहीं हेल्थ एक्सपर्ट्स की बार बार की चेतावनियों को भांप सका ? ICMR के अधिकारी और इतने विरोलॉजिस्ट को जानते हुए भी मैंने उनसे फ़रवरी -मार्च में सम्पर्क क्यों नहीं किया? घर से थोड़ी दूर पर, NII (नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ इम्मुनोलॉजी) का दफ्तर है, इतने वैज्ञानिकों को वहां जानता हूँ, फिर भी समय पर उनसे सम्पर्क नहीं किया?
घर से दस मिनट की दूरी पर राधा स्वामी परिसर में देश का सबसे बड़ा, दस हज़ार बिस्तर वाला कोविड अस्पताल था, मार्च में जब वो अस्पताल, विघटित किया जा रहा था, तब डॉ संदीप शर्मा ने खबर दी थी कि ये अस्पताल डिस्मेंटल नहीं होना चाहिए? दूसरी लहर में ये दस हज़ार बिस्तर का अस्पताल दिल्ली के लिए जीवन रक्षक होगा …लेकिन मैंने खबर नज़रअंदाज़ कर दी। मेरा ध्यान चुनाव पर टिका था। कुछ ही दिन बाद, अप्रैल में अस्पताल डिस्मेंटल कर दिया गया, और लहर आने पर, बेड और ऑक्सीजन के आभाव में दिल्ली में लोग अस्पतालों के बाहर दम तोड़ते रहे। राधा स्वामी परिसर में ये दस हज़ार बिस्तर होते, तो कम से कम राजधानी में सैकड़ों लोगों के जीवन बचाये जासकते थे।
बहरहाल, ऐसे बहुत से सवाल हैं। पर अब मुझे सबक मिल चुका है। गलतियों का अहसास है। शायद इसलिए कहीं न कहीं, मन में अपराध बोध सा है। शायद ऐसा आभास हो रहा है कि देश को बेहतर रिपोर्टिंग की सख्त ज़रुरत है। पर्देदारी बहुत हो चुकी। परदे सिस्टम को ढकते हैं। पर जिस दिन पर्दा हटता है, व्यवस्था नंगी हो जाती है। इसलिए मुझे व्यवस्था का राय बहादुर , खान बहादुर नहीं बनना है। मुझे पंडारा रोड पर मकान नहीं चाहिए। मुझे आलोक मेहताओं की पद्मश्री नहीं चाहिए। मुझे ख़िताबों की खवाइश से आगे निकलकर आप सब के लिए बेहतर रिपोर्टिंग करनी है। ऐसी रिपोर्टिंग जहाँ आगाह करना है, वहां कर सकूं। जहाँ पर्दा हटाना है, वहां हटाकर सही तस्वीर दिखा सकूं।
उम्मीद है, अब तक हुई गलती आप माफ़ करेंगे और आगे साथ देंगे।
सौजन्य-फेसबुक
डा 0 मनीषा सिंहँ
May 19, 2021 at 1:45 pm
दूसरी लहर के कहर के लिए सरकार, प्रशासन, अदालतें, निजी संस्थाए और मीडिया, सभी अपनी जिम्मेदारी में फेल हुए हैं ।
आप के विचार से मैं सौ फीसदी सहमत हूं l इसी विचार को लेकर अभी यशवंत जी से मेरा सप्ताह भर पहले एक लम्बी बहस हुई मेरा मानना हमें अपनी सभी संस्थानों के कार्य प्रणाली का पुनरावलोकन करने की आवश्यकता है इस महामारी में केवल शासन व प्रशासन की विफलता पर अपना ध्यान केंद्रित करना फिर से हम बडे कैनवास से अपनी निगाह जान बुझ फेरने के सामान हैं।
आपने ने जितनी साफ गोई से अपनी कमियां स्वीकारी है यह स्पष्ट प्रदर्शित करता है कि आप में विवेक एंव तर्क बचा हुआ है। आज आप के प्रति मेरे मन में सम्मान और भी बढ गया हैं | निसंदेह आज हमें अपनी सभी संस्थाओं शासन प्रशासन अदालत मिडिया सबकी उपादेयता तथा कार्य पर विस्तृत् संवाद की आवश्यकता प्रकट हो रही है |
उम्मीद हैं आप लोग इसे बनाये रखेगे l
धन्यवाद
विजय सिंह
May 19, 2021 at 8:22 pm
हाँ , तमाम सफाई के बावजूद सच यही है कि जिम्मेदार संस्थाएं कर्तव्य निर्वहन में पिछड़ गईं क्योंकि स्वास्थ्य यहाँ कभी भी प्रमुख विषय नहीं रहा। यदि रहा होता तो आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हम स्वास्थ्य सेवाओं में कमी का रोना नहीं रोते। राजनीति और राजनीतिक समाचार यहाँ पाठकों ,दर्शकों और संस्थानों के लिए हमेशा पसंदीदा विषय रहा है ,यही विडम्बना है।
संजय शर्मा
May 19, 2021 at 9:34 pm
इन दीपक शर्मा का बड़े दिनों बाद लेख पढा. एक नंबर का मोदी भगत था. अक्सर फेसबुक पर मेरी बहस हो जाती थी. मोदी से टस से मस ना होना इनकी आदत थी.
पत्रकार समाज का आईना होता है और इनको लाखों लाशें मिलने पर भी कुछ नहीं दिखा और दिखा तो तब दिखा जब खुद के घर में नौबत आ गई. जब खुद पर बीतती है तब ही कुछ नजर आता है ऐसे आदमी को मैं पत्रकार तो क्या इंसान भी मानने से इंकार करता हूं.
Sudhir kaushik
May 20, 2021 at 1:43 pm
हम तो एक आम जनता में से एक हैं । सब कह रहे थे सब चंगा है तो शादी विवाह पार्टी सब में नंगे होकर खूब नाचे । पथ प्रदर्शक ही गलत राह दिखा रहे थे तो क्या करें । इतने नुकसान बाद जागे हैं पर कितने लोग जागे हैं
गोबर वाहक गलती मान ही नहीं सकते हैं ।
सतीश शर्मा ही नहीं हम भी लट्टू हुए जा रहे थे ।
जिंदा रहना चाहते हैं पर अकेले नहीं साथियों के साथ ।