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सुख-दुख

बेस्ट वैक्सीन का चयन करें और वैक्सीनेशन जल्द पूरा करें वरना नए वेरियंट बनते रहेंगे…

गिरीश मालवीय-

क्या वैक्सीनेशन ही कोरोना वायरस के प्रसार ओर म्यूटेशन का जरिया बन गया है? यह सवाल बार बार हम सबके दिमाग मे आता है लेकिन वैज्ञानिक बिरादरी से जुड़ा हुआ कोई भी शख्स इसकी पुष्टि करना तो दूर इस पर बात तक नही करता …..लेकिन अब एक ऐसे वायरोलिस्ट सामने आए हैं जिन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से कह दिया है कि कोविड का टीकाकरण ही नए वेरिएंट के उत्पन्न होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण है। हम बात कर रहे है फ्रांस के जाने माने वायरोलिस्ट प्रोफेसर ल्यूक मॉन्टैग्नियर (Prof. Luc Montagnier) की।

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मॉन्टैग्नियर कोई छोटे मोटे वायरोलिस्ट नही है इन्होंने एचआईवी वायरस की खोज के लिए फ्रांकोइस बर्रे-सिनौसी और हेराल्ड ज़ूर हॉसन के साथ चिकित्सा के क्षेत्र में 2008 का नोबेल पुरस्कार जीता था…… इसलिए आप उनकी बातों को आसानी से खारिज नही कर सकते ….दरअसल मॉन्टैग्नियर ने ये बड़े खुलासे इस महीने के शुरुआत में दिए एक साक्षात्कार में किए लेकिन चर्चा में नही आ पाए ……इस साक्षात्कार की क्लिप को अमेरिका के आरएआईआर फाउंडेशन ने विशेष तौर पर ट्रांसलेट किया जिसके बाद उनका वीडियो अब सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है ल्यूक मॉन्टैग्नियर ने इसमे साफ साफ कहा है कि….

‘ये टीकाकरण ही है, जिसके कारण वेरिएंट उत्पन्न हो रहे हैं’

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वीडियो में जब कि मॉन्टैग्नियर से सवाल पूछा गया कि टीकाकरण शुरू होने से बाद से जनवरी से नए मामले और मौत के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं, खासतौर पर युवाओं में. तो इसपर आप क्या कहते हैं?

इसके जवाब में मॉन्टैग्नियर ने कहा, ‘यह एक ऐसी वैज्ञानिक, मेडिकल गलती है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता इसे इतिहास में दिखाया जाएगा क्योंकि टीकाकरण ही नए वेरिएंट उत्पन्न कर रहा है…….

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चीनी वायरस के लिए एंटीबॉडी हैं, जो वैक्सीन से आती हैं. तो वायरस क्या करता है? क्या वो मर जाता है? या कोई और रास्ता ढूंढता है ?

वह इसका उत्तर देते हुए आगे कहते हैं, ‘तब नए तरह के वेरिएंट उत्पन्न होते हैं और ये टीकाकरण का परिणाम है.

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वैक्सीन एंटीबॉडी बनाती हैं, जो वायरस को कोई दूसरा रास्ता खोजने या मरने पर विवश करती हैं और इसी के चलते नए वैरिएंट उत्पन्न होते हैं.

वे कहते है कि आप देख सकते हैं, ये हर देश में एक जैसा ही है. टीकाकरण का ग्राफ मौत के ग्राफ के साथ चल रहा है (Vaccination Creates Variants). मैं नजदीक से इसका अनुसरण कर रहा हूं और संस्थानों में मरीजों के साथ प्रयोग कर रहा हूं. जो वैक्सीन लगने के बाद संक्रमित हुए हैं. इससे पता चलता है कि वो ऐसे वेरिएंट बना रहे हैं, जिनपर वैक्सीन कम प्रभावी है.’उन्होंने बताया कि इस घटना को एंटीबॉडी-डिपेंडेंट एनहैंसमेंट’ (Antibody Dependent Enhancement (ADE) कहा जाता है

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वे कहते हैं कि महामारी विज्ञानियों को वैक्सीन से जुड़े तथ्यों के बारे में पता है लेकिन फिर भी वे खामोश हैं.

दरअसल WHO समर्थित वैज्ञानिक समुदाय मॉन्टैग्नियर
को पसंद नही करता है क्योंकि उन्होंने पिछले साल अप्रैल 2020 में फ्रेंच चैनल CNews को दिए गए एक साक्षात्कार के दौरान दावा किया था कि वायरस, जो COVID-19 संक्रमण का कारण बनता है, एक चीनी प्रयोगशाला में एचआईवी के खिलाफ एक टीका बनाने के प्रयास का परिणाम था।

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मॉन्टैग्नियर ने कोरोनावायरस के जीनोम में एचआईवी के तत्वों और यहां तक ​​कि “मलेरिया के रोगाणु” के तत्वों की उपस्थिति की ओर भी इशारा किया था उन्होंने कहा कि नए कोरोनावायरस की ऐसी विशेषताएं स्वाभाविक रूप से उत्पन्न नहीं हो सकती हैं। एचआईवी आनुवंशिक अनुक्रमों को वायरस में डाला गया था। यह अत्यधिक परिष्कृत कार्य है।”

अगर कोई एड्स वायरस पर ही शोध करते हुए नोबेल पुरस्कार जीतता है और वो इस तरह का दावा करता है तो उसे सीरियसली लेना चाहिए..….लेकिन उनकी बातों को खारिज कर दिया गया और अब उन्होंने कोरोना वायरस के नए वेरियंट बनने के बारे यह दावा किया है आपको याद होगा कि बेल्जियम के एक बड़े वायरोलिस्ट गुर्ट वांडन बुशा ने दावा किया था कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ जो मास वैक्सीनेशिन अभियान चलाया है वो एक तरह का ब्लंडर साबित होने जा रहा है,

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उनका भी मानना था कि एक महामारी के दौरान मानव हस्तक्षेप – जैसे मास वैक्सीनेशन- हमेशा मददगार नहीं होते हैं, या यहां तक ​​कि प्रतिशोधी भी होते हैं, उन्हें ऐसे वेरिएंट के उद्भव के पक्ष में माना जाता है जो मूल वायरस की तुलना में बहुत अधिक खतरनाक और संक्रामक हैं।

बड़े पैमाने पर टीकाकरण प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करेगा और वायरस के उत्परिवर्तन को तेज करेगा। इस घटना का नाम”immune escape” है। गुर्ट वांडन बुशा का मानना था कि महामारी के बीच मास वैक्सीनेशिन अभियान बेहद खतरनाक है। “बड़े पैमाने पर टीकाकरण से, वायरस तेजी से उत्परिवर्तन की रणनीति को अपनाएगा और युवा आबादी में प्रसार को बढ़ाएगा। उन्होंने यह भी कहा था कि “these immune escapes could cause an infectious wave ” unstopable ” and cause the death of an important part of humanity.

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यानी यह दोनों बड़े वायरोलिस्ट लगभग एक जैसी ही बाते कह रहे हैं, लेकिन कोई मान नही रहा है सब वैक्सीनेशन के पीछे पड़े हैं ….मॉन्टैग्नियर सही रहे हैं कि इतिहास ही बताएगा कि कौन सही कह रहा था।


वेक्सीन संभवतः जरूरी है लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है कि वह एक निश्चित अवधि में लग जाए……यह विज्ञान सम्मत कथन है… भास्कर में अमेरिका के कोविड रिस्पॉन्स टास्क फोर्स की सदस्य और कोविड वैक्सीन कम्युनिकेशन वर्कग्रुप की प्रमुख डॉ.सायरा मडाड का इंटरव्यू छपा है वे कहती है…..’धीमी वैक्सीनेशन दर के कारण भारत कोरोना वायरस को म्यूटेट होने का पूरा अवसर दे रहा है, जो दुनिया के लिए खतरा बन सकता है। दुखद है कि भारत से जिस तैयारी की उम्मीद थी, वह नाकाफी रही है।’

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इसी इंटरव्यू में वह आगे इसे स्पष्ट करते हुए कहती है कि ‘भारत में वैक्सीनेशन की दर बहुत धीमी है। यानी वायरस को म्यूटेट होने का भरपूर मौका मिलता रहेगा और पारदर्शी डेटा नहीं होने के कारण समय रहते इनके बारे में पता नहीं चल पाएगा। ये पूरी दुनिया के किये-कराए पर पानी फेर सकता है’

भारत के बारे में डॉ मडाड सही कह रही है यहाँ वायरस की जीनोम स्टडी के बारे में ढंग से कुछ नही हुआ है लेकिन आज यहाँ हम इस बात पर डिस्कशन नही कर रहे!

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हम जानते हैं कि वायरस जब म्यूटेंट होगा तो वह नए वेरियंट बनाता है अब यह वेरियंट क्या होते हैं यह आस्ट्रेलिया की न्यूज़ वेबसाइट abc. कॉम में छपे लेख से समझने की कोशिश करते हैं-

वेरियंट क्या है?
What’s a variant?

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वायरस स्वंय से खुद को न दोहरा सकता है और न फैल नहीं सकते हैं। उन्हें ऐसा करने के लिए होस्ट की जरूरत होती है, और उन्हें दोहराने के लिए होस्ट की कोशिकाओं को हाईजैक करने की जरूरत है। जब वे एक होस्ट में स्वंय को दोहराते हैं, तो उन्हें अपने जेनेटिक मटेरियल की नकल करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है। कई वायरस के लिए, यह एक सटीक प्रक्रिया नहीं है और उनकी कॉपीस में अक्सर त्रुटियां होती हैं – जिसका अर्थ है कि वे मूल वायरस की सटीक कॉपीस नहीं हैं।…..इन त्रुटियों को म्यूटेशन के रूप में संदर्भित किया जाता है, और इन म्यूटेशन वाले वायरस को वेरिएंट कहा जाता है।

Viruses can’t replicate and spread on their own. They need a host, and they need to hijack the cells of the host to replicate. When they replicate in a host, they face the challenge of duplicating their genetic material. For many viruses, this isn’t an exact process and their offspring often contain errors — meaning they’re not exact copies of the original virus.These errors are referred to as mutations, and viruses with these mutations are called variants.

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अक्सर, ये म्यूटेशन वायरस के बायलोजिकल प्रॉपर्टी को प्रभावित नहीं करते हैं। यानी उनका इस बात पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता कि वायरस किस तरह से कॉपीस बनाता है या बीमारी का कारण बनता है।

Often, these mutations don’t affect the biological properties of the virus. That is, they don’t have any effect on how the virus replicates or causes disease.

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कुछ म्यूटेशन वायरस को दोहराने और/या संचारित करने की क्षमता को ख़राब कर सकते हैं। ऐसे म्यूटेशन वाले वेरिएंट वायरल आबादी से जल्दी गायब हो जाते हैं।

( आप ध्यान दीजिए कि 2002-03 में sars वायरस को, कोरोना वायरस के ही परिवार का था, वह अचानक से गायब हो गया, )

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Some mutations can impair the virus’s ability to replicate and/or transmit. Variants with such mutations are quickly lost from the viral population.

कभी-कभी, हालांकि, भिन्नताएं एक लाभप्रद म्यूटेशन के साथ उभरती हैं, …..आगे अंग्रेजी में ही ज्यादा बेहतर तरीके से समझ मे आएगा

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Occasionally, however, variants emerge with an advantageous mutation, one that means it’s better at replicating, transmitting, and/or evading our immune system. These variants have a selective advantage (in biological terms, they are “fitter” than other variants) and may rapidly become the dominant viral strain. There’s some concern we’re seeing a growing number of variants with advantageous mutations, contributing to the severity of the COVID-19 pandemic.

साफ है कि वेक्सीन जो ऐंटीबॉडी बनाते हैं उससे वायरस को एक तरह की चुनौती मिलती है, वो ओर बेहतर म्यूटेंट करता है, ऐसे वेरियंट बनाता है जो उस चुनोती का सामना कर पाए और अपनीं कॉपीस बना पाए, यही कारण है कि संक्रमण तेजी से फैलता है और उन लोगो को भी अपनी चपेट में ले लेता है जो पहले के मूल कोरोना वायरस से ग्रस्त होकर ठीक हो गए हैं, इसकी वजह से तेजी से मृत्यु दर बढ़ती है………

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नोबेल प्राइज विनर वायरोलिस्ट प्रोफेसर ल्यूक मॉन्टैग्नियर इसी के बारे में बात कर रहे हैं.

इसलिए वैक्सीनेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जो अगर आपने शुरू की है तो उसे जल्द से जल्द खत्म कीजिए, ओर सबसे बेस्ट वेक्सीन का चयन कीजिए नही तो नए वेरियंट बनते हैं ओर बनते रहेंगे और यही तीसरी लहर आने की भविष्यवाणी का मूल है…….. तीसरी लहर पर फिर कभी….

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रिटायर आईएएस अफसर जगदीश सिंह को पढ़िए जो दूसरा पक्ष रख रहे हैं-

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