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मजीठिया वेतनमान: काश! कोर्ट से पूछने का अधिकार होता…

मजीठिया वेतनमान मामले में अगर मुझे सुप्रीम कोर्ट से पूछने का अधिकार होता तो पूछता कि आपको यह न्यायालय के अवमानना का मामला क्यों नहीं लगता? पत्रकारों को मजीठिया वेतनमान दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भले ही कई कदम उठाए हैं लेकिन प्रेस मालिकों पर इसका तनिक भी भय नहीं है। अधिकांश पत्रकार आज भी मजीठिया वेतनमान के लिए तरस रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में दो साल से न्यायालय अवमानना का सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

<p>मजीठिया वेतनमान मामले में अगर मुझे सुप्रीम कोर्ट से पूछने का अधिकार होता तो पूछता कि आपको यह न्यायालय के अवमानना का मामला क्यों नहीं लगता? पत्रकारों को मजीठिया वेतनमान दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भले ही कई कदम उठाए हैं लेकिन प्रेस मालिकों पर इसका तनिक भी भय नहीं है। अधिकांश पत्रकार आज भी मजीठिया वेतनमान के लिए तरस रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में दो साल से न्यायालय अवमानना का सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।</p>

मजीठिया वेतनमान मामले में अगर मुझे सुप्रीम कोर्ट से पूछने का अधिकार होता तो पूछता कि आपको यह न्यायालय के अवमानना का मामला क्यों नहीं लगता? पत्रकारों को मजीठिया वेतनमान दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भले ही कई कदम उठाए हैं लेकिन प्रेस मालिकों पर इसका तनिक भी भय नहीं है। अधिकांश पत्रकार आज भी मजीठिया वेतनमान के लिए तरस रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में दो साल से न्यायालय अवमानना का सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

इस संबंध में यदि आम नागरिक को कोर्ट से सवाल पूछने का अधिकार होता है तो कोर्ट से पूछा जाता कि आपको यह न्यायालय अवमानना का मामला क्यों नहीं लगता? जब कुछ प्रेस मालिकों ने यह जवाब नहीं दिया कि हम मजीठिया वेतनमान दे रहे हैं या नहीं। हजारों पत्रकारों ने न्यायालय में प्रकरण दर्ज कराया कि हमें मजीठिया वेतनमान नहीं मिल रहा है।  जब पीडि़त सुप्रीम कोर्ट में प्रमाण प्रस्तुत कर रहा है फिर सुप्रीम कोर्ट को ऐसा क्यों नहीं लगता कि यहां न्यायालय अवमानना का मामला बनता है? भारत सरकार को आम नागरिकों के हित के लिए कोर्ट से भी सवाल पूछने का हक मिलना चाहिए। और संतोषजनक जवाब ना देने पर जजों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए। नहीं तो कुछ जज अपने स्व विवेकाधिकार का गलत उपयोग करते हैं।

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सुप्रीम कोर्ट को सभी आरोपी प्रेस मालिकों, यूनिट हेडों, संपादकों, महाप्रबंधकों, मुद्रक एवं प्रकाशकों को जमानती वारंट जारी करना चहिए और इन्हें जमानत इसी शर्त पर देनी चाहिए कि वे यह शपथ पत्र के साथ कोर्ट को लिखत रूप से अश्वस्त करें कि एक माह में सभी को मजीठिया वेतनमान दिया जाएगा। इसके बाद भी कोई कर्मचारी पीडि़त होता है तो उसे सुप्रीम कोर्ट में आनलाइन शिकायत करने का मौका मिले और आरोपी प्रेस मालिक, मुद्रक एवं प्रकाशक, महाप्रबंधक, संपादक को सीधे गिरफ्तारी वारंट काटा जाए. इस मामले में तर्क कुतर्क करने से डिले जस्टिस, जीरो जस्टिस के बराबर परिणाम हो रहा है।

महेश्वरी प्रसाद मिश्र
पत्रकार
[email protected]

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0 Comments

  1. mm

    November 13, 2016 at 7:30 pm

    Maheshwari ji se mai 200% sahmat hoon. Apney jo sawal uthaye hain, ekdam sahi hai. Ye to jaan-boojh kar malikon ko raahat dene ke liye delay kiya jaa raha hai, tabhi to ye tuchchey malikaan nirbhay hoker ghoom rahey hain aur manmanaa kar rahey hain…
    “Contempt” ka matlab kya hota hai, ab ye humlog unhein samjhayenge, to fir kahey ko Judge aur kahey ko judgement….!

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