योगी सरकार द्वारा यूपी के मान्यता प्राप्त पत्रकारों को पांच लाख का स्वास्थ्य बीमा और मरणोपरांत परिजनों को दस लाख की आर्थिक सहायता देने की घोषणा के बाद पत्रकारों में किस्म-किस्म की बातें हो रही हैं।
सरकार को शुक्रिया अदा किया जा रहा है तो ये मांग भी हो रही है कि गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए भी ये लागू हो। बीमा और मरणोपरांत आर्थिक सहयोग की राशि बढ़ाने और पेंशन की भी डिमांड की जा रही है। इस बीच हास्यास्पद बात और चर्चा का विषय ये है कि पत्रकारों के हित में यूपी सरकार के इस फैसले का श्रेय लेने के लिए पत्रकारों के दो गुटों (संगठनों) में तस्वीरबाज़ी और बयानबाज़ी की होड़ लगी है। दूसरा हास्यास्पद पहलू भी दिलचस्प है। ज़िन्दादिल सहाफी मज़ाक़ में एक दूसरे से कह रहें हैं कि तुममे सबसे पहले लाभ लेने की हवस है। तुम बीमार पड़ के स्वास्थ्य बीमा का पांच लाख का लाभ सबसे पहले लो। फिर मरो और मरणोपरांत आर्थिक सहयोग प्राप्त करने का शुभारंभ कर दो!
गौरतलब है कि सरकारी या ग़ैर सरकारी लाभ (डग्गे) पर लूटमार की खबरें और तस्वीरें कई बार वायरल हो चुकी हैं। एक सरकारी भोज में खाने पर चंद लोग ऐसा टूटे कि वहां के इंतेजामिया हाथों से प्लेट छीनने पर मजबूर हो गये। क्लार्क्स अवध में एक भाजपाई ने पत्रकार मिलन कार्यक्रम रखा जिसमें आम के बॉक्सेस बांटे। भाई लोगों ने पहने पाने के चक्कर में भगदड़ मचा दी। मेजबान को मजबूरन कहना पड़ा कि धक्का-मुक्की, शोर-शराबा मत कीजिए। लाइन में लग जाइये। सबको मिलेगा।
अभी कुछ दिन पहले एक शर्मनाक वीडियो जारी हुआ था। जिसमें मुस्लिम कार्यसेवक संघ का आज़म ख़ान नाम का शख्स प्रेस कांफ्रेंस के बाद पांच-पांच सौ रुपए के नोट बांट रहा था। और दर्जनों डग्गामार कथित पत्रकार नोट हासिल करने के लिए लूटमार, धक्का-मुक्की और छीनम झपटी मचाये थे।
बेनी बाबू स्टील मंत्री थे। होटल ताज में लेदर बैग बंटवा रहे थे। छीनम-झपटी में एक दूसरे को गिराकार लोग एक दूसरे पर चढ़ गये। ये दृश्य दूर से मानव गुंबद नज़र आ रहा था। इसी तरह कुछ बरस पहले पश्चिम बंगाल से एक शर्मनाक खबर आयी थी। भाई लोगों ने फाइव स्टार होटल में डग्गे वाला भोजन करने के बाद चांदी के चम्मच मार दिये। मुंबई में टीआरपी और बाइट को लेकर तलवारें खिची हैं। एक पत्रकार को दूसरे पत्रकारों द्वारा कूटने की वीडियो हाल ही में सबने देखीं।
ऐसे तमाम वाकिए मंज़रे आम पर आ चुके हैं। किस्म-किस्म की प्रतिस्पर्धा। कहीं बाइट और टीआरपी की तो कहीं मुखतलिफ-मुखतलिफ डग्गों की छीना झपटी की खबरें आती रही हैं। शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मान्यता प्राप्त पत्रकारों को पांच लाख के स्वास्थ्य बीमा और मौत पर परिजनों को दस लाख की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की।
ये सुनकर पत्रकारों ने योगी सरकार को आभार व्यक्त किया। लोगों को इत्मेनान हुआ। खुशी में मस्ती भी खूब हुई। कार्यक्रम स्थल से लौट रहे पत्रकारों मे एक ने दूसरे को चुटकी ली- तुम तो हर सरकारी लाभ पर सबसे पहले लपकते हो। पंद्रह लाख भी सबसे पहले झपट लो। घोषणा के बाद सबसे पहले बीमार पड़ो और पांच लाख के स्वास्थ्य बीमा का लाभ लो। इसके बाद मर जाओ और दस लाख परिजनों को आर्थिक लाभ दिलवा दो।
पत्रकारों की भलाई में सरकार की गंभीर घोषणाओं के बाद कई हास्यास्पद पहलू सामने आ रहे हैं। संगठनों में प्रतिस्पर्धा की होड़ लग गयी। पत्रकार नेता मुख्यमंत्री के साथ अपनी पुरानी तस्वीरे सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं। गोयाकि ये जाहिर कर रहे हैं कि ये देखो तस्वीर में तब मैंने ये मांग की थी जो अब पूरी हुई है। जबकि सच ये भी है कि कई वर्षों से आम पत्रकार इन संगठनों से बीमा संबंधित एक मामूली सी जानकारी प्राप्त करने का आग्रह कर रहे थे जिसे किसी नेता/संगठन ने पूरा नहीं किया। बीमा सम्बंधित एक मामूली जानकारी तक पत्रकारों को नहीं दी गई।
काग़ज़ नहीं दिखायेंगे ….
आम पत्रकारों को बस इतनी जानकारी थी कि एक संगठन के माध्यम से लखनऊ के करीब तीन सौ पत्रकारों को सरकार द्वारा बीमा लाभ दिया गया है। करीब डेढ़ दशक से सरकार द्वारा इन तीन-साढ़े तीन सौ पत्रकारों के बीमा की पच्चीस लाख की प्रीमियम राशि दी जा रही है।
ये अच्छी बात है। इसपर किसी को एतराज़ नहीं था। किंतु लखनऊ के आम पत्रकार केवल वो कागज देखना चाहते थे जिस पर बीमे का लाभ लेने वालों का नाम है। सात-आठ साल की गुजारिश के बाद भी किसी संगठन ने वो कागज नहीं दिखाये।
- नवेद शिकोह
लखनऊ