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जयपुर से प्रकाशित ‘दैनिक अंबर’ के मीडियाकर्मी पांच-छह महीने से सेलरी न मिलने से हड़ताल पर

जयपुर। ‘अब सच आपके सामने’ की टैगलाइन के साथ जयपुर से प्रकशित अखबार दैनिक अंबर अब पहले से और भी खस्ता-हालत  में आ गया है। इन्ही हालातों से लगता है शायद अब यह अखबार बंद होने की कगार पर आ गया है। बताया जा रहा है कि इस अखबार में काम कर रहे लोगों को पिछले करीब 5-6 महीने से तनख्वाह नहीं मिली है, जिसकी वजह से पिछले 3-4 दिनों से इन लोगों ने सांकेतिक हड़ताल के रूप में दफ्तर जाना बंद कर रखा है, जिससे अखबार के लिए काम कर रहे कुछेक लोगों पर अतिरिक्त काम का भार बढ़ गया है।

<p>जयपुर। 'अब सच आपके सामने' की टैगलाइन के साथ जयपुर से प्रकशित अखबार दैनिक अंबर अब पहले से और भी खस्ता-हालत  में आ गया है। इन्ही हालातों से लगता है शायद अब यह अखबार बंद होने की कगार पर आ गया है। बताया जा रहा है कि इस अखबार में काम कर रहे लोगों को पिछले करीब 5-6 महीने से तनख्वाह नहीं मिली है, जिसकी वजह से पिछले 3-4 दिनों से इन लोगों ने सांकेतिक हड़ताल के रूप में दफ्तर जाना बंद कर रखा है, जिससे अखबार के लिए काम कर रहे कुछेक लोगों पर अतिरिक्त काम का भार बढ़ गया है।</p>

जयपुर। ‘अब सच आपके सामने’ की टैगलाइन के साथ जयपुर से प्रकशित अखबार दैनिक अंबर अब पहले से और भी खस्ता-हालत  में आ गया है। इन्ही हालातों से लगता है शायद अब यह अखबार बंद होने की कगार पर आ गया है। बताया जा रहा है कि इस अखबार में काम कर रहे लोगों को पिछले करीब 5-6 महीने से तनख्वाह नहीं मिली है, जिसकी वजह से पिछले 3-4 दिनों से इन लोगों ने सांकेतिक हड़ताल के रूप में दफ्तर जाना बंद कर रखा है, जिससे अखबार के लिए काम कर रहे कुछेक लोगों पर अतिरिक्त काम का भार बढ़ गया है।

करीब साढ़े तीन-चार साल पहले बड़े स्तर पर शुरू किये गए इस अखबार को लीक से हटकर “गांव से निकलकर शहर में आने वाला अखबार” के लिहाज से झुंझुनूं जिले के एक गाँव में खुद की प्रिंटिंग मशीन लगाकर शुरू किया गया था। शुरुआत में इसमें काफी लम्बी-चौड़ी टीम बनाई गई थी। कुछ समय बाद लोग धीरे-धीरे रुखसत होते चले गए। पलायन का सिलसिला तेज होने लगा। इसके पीछे वजह यह बताई जा रही है कि यहां काम करने वाले स्टाफ को अपनी पगार पाने के लिए महीनों इन्तजार करना पड़ता था।

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पगार पाने की इसी मशक्कत में कर्मी पिछले करीब 5 महीने से मालिक से मिल रहे हैं। आज-कल आज-कल के आश्वासनों से तंग आकर पिछले 8- 10 दिनों से स्टाफ में बचे गिनती के लोगों में से भी कुछ ने परेशानियां बढ़ने की वजह से विरोध स्वरूप हड़ताल करते हुए दफ्तर आना बंद कर दिया है। इसकी वजह से अब नाम मात्र के लिए बचे लोग, जो अभी भी काम कर रहे हैं, उन पर अतिरिक्त कार्यभार बढ़ गया है। ऐसे में पहले से खस्ता-हाल में चल रहे इस अखबार की हालत और भी पतली हो गई है, जिसे देखकर लगता है शायद कुछ समय बाद यह अखबार भी दूसरे कई अखबारों की तरह ही सिर्फ फाइलों में ही सिमट कर रह सकता है। अखबार के संचालक शीशराम रणवां शेखावाटी में स्कूल कॉलेज चलाते हैं।​

एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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0 Comments

  1. s. saini

    June 25, 2014 at 4:21 am

    Dainik Amber wale sale chor hai…………………………..

  2. raj

    June 25, 2014 at 1:10 am

    shesram ranwa or dinesh ranwa maha farzi hai. kayoo ka paise kha gaye or dakar bhi nahi li. Kamal Mathur ko sath laker kai logo ko apne jal mai fasaya or kam nikal kar unka 6-7 mahina ka vetan bhi kha gaya unki aukat hi nahi thi ki vo akbhar nikal sake puran staff yadi vetan mangta hai to shisram phone per galiya bakta hai or kahta hai ki jail mai band karwa dunga.
    shisram to akbhar ke sahare apni gunda-gardi chalana chanta tha.

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