
Deepankar Patel : दैनिक जागरण की ‘प्लेब्वॉय’ पत्रकारिता…. “राष्ट्रवादी” अख़बार ने तो कछुए को ही प्लेब्वॉय बना दिया. न्यूज राईटर ने कहां से लिया इतना ज्ञान, कहां फिट किया?
कहीं पुस्तक मेले से सस्ती वाली प्ले ब्वॉय मैगजीन ख़रीद के उलट-पुलट तो नहीं की? कछुए को बूढ़ा भी बोला, प्लेब्वॉय भी बोला दोनों एक साथ कैसे हो सकता है जी….
प्लेब्वॉय मार्केट का ही ख्याल कर लेते जिसमें कहा जाता है, ‘PlayBoys never Grow Gray.’
और तो और, कछुआ!! वो तो ये ख़बर पढ़कर हैमिल्टन के साथ दोहराएगा…..”I don’t believe, I have ever a playboy life.”
हेफनर अपनी कब्र से पत्रकार को दुआ दे रहे होंगे…
बेटा तुमने नाम जिन्दा रखा है, दिनभर ख़बर बनाने के बाद रात में तकिए के नीचे रखी मैगजीन पढ़ते रहना.
क्या जागरण को राष्ट्रवादी पत्रकारिता से कम पाठक मिल रहे हैं? क्या गिरती अर्थव्यवस्था, नौकरियों के अकाल और CAA के महाकाल में जागरण का अस्त हो रहा है?
वैसे अगर सच में क्राइसिस है तो ‘फार क्राइसिस सेक’ एक स्टोरी आयडिया दे देता हूं, जागरण चाहे तो इस हेडलाइन के साथ फॉलो कर सकता है-
” कौन-कौन से जानवर होते हैं प्लेब्लॉय? तस्वीरों में देखें”
कंटेट क्लच – स्लाइड-स्लाइड एंड… स्लाइड..
PlayBoyJournalism
YellowJournalism
युवा मीडिया विश्लेषक दीपांकर पटेल की एफबी वॉल से.
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Bbc की कॉपी की है।