सहारा टीवी के लिए पटना स्थित तारामंडल आडिटोरियम में आठ मार्च को प्रेरणा मीटिंग की गयी. सीईओ उपेन्द्र राय ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम में शिरकत की. इस मीटिंग की प्रेरणा यही रही की दलाली करने वाले को पुरस्कार, पत्रकारिता करने वाले को तिरस्कार. सुमित नाम के फील्ड रिपोर्टर को स्टाफर इसलिए बनाया गया क्योंकि एयरपोर्ट पर उसने सीईओ और अन्य आगंतुकों की अगवानी के लिए भव्य व्यवस्था कर रखी थी. इसलिए उसे फ़ौरन से पेश्तर स्टाफर बना दिया गया.
श्री राय ने कहा- ”इमानदारी से काम करें”. लोगों को यह समझ नहीं आया कि इमानदारी से क्या करें, पत्रकारिता करें या चमचागिरी करें? उन्होंने यह क्लीयर नहीं किया. यहां अभी तक पत्रकारिता के लिए बिहार झारखण्ड में किसी को भी सम्मानित नहीं किया गया, ज़बकि जिसने भी दलाली चमचागिरी चापलूसी की हदें पार कर दी यानि चर्चा में शुमार हो गया तो वह प्रमोशन पा गया. यही कारण है कि पत्रकारिता के मापदंडों पर सहारा समय आज तक खरा नहीं उतर पाया है. इस विशुद्ध पत्रकारिता वाले कार्यक्रम में यह सम्मान दिया गया और सभी के सामने इसका स्तुति गायन भी किया गया.
अगर यहीं पर एक और सम्मान दिया जाता, पत्रकारिता के मूल्यों को संजोने के लिए, तो कोई बात होती, बैलेंस होता पर यहां इतने बड़े कार्यक्रम जिसका नाम प्रेरणा सम्मलेन था, उसमें प्रेरणा दी गयी कि इमानदारी से चापलूसी करते रहना है. इस कार्यक्रम में प्रिंट इलेक्ट्रानिक और उर्दू के पत्रकारों को बुलाया गया ताकि सहारा प्रकाशन की डूबती नैया को गति दिया जा सके. इस कार्यक्रम में मंच पर एक ही कुर्सी लगी थी जिस पर बाला साहब ठाकरे की तरह श्री उपेन्द्र राय बैठे थे. क्या पत्रकारिता में बराबरी की बात करने वाले अब खुद असमानता के दृष्टिकोण के शिकार हो गए हैं और मानवीय मूल्यांकन करने का सामर्थ्य खोने लगे हैं?
पटना से के. प्रमोद की रिपोर्ट.
Comments on “सहारा का सिस्टम : चमचागिरी करने वाले को पुरस्कार, पत्रकारिता करने वाले को तिरस्कार”
सहारा प्रबंधन की कमजोरी रही है कि एक शिकायत मिली की सरे अच्छे कार्यो पर कुछ समय के लिए ब्रेक लगा दिया जाता है. इसलिए सुझाव है की मेर्रित के आधार पर निर्णय लिया जाये . हम यहा एक व्यति विशेष की बात नहीं कर रहे है. सामूहिकता की बात करते है . सहारा ने बड़ी सोच समझकर वंचित लोगों के हित में २ प्रोन्नति देने का निर्णय लिया. अब सुनने में आया है कि १० वर्ष के बीच में जो लोग पैरवी के जरिए प्रोन्नति के मलाई मार लिए वो लोग नहीं चाह रहे हैं की प्रोन्नति मिले. मतलब साफ़ है कुछ जानते है की सहारा के इस कदम से उपेन्द्र जी हीरो हो जायेंगे. इसलिए शिकायत के फूफा जी कान भरने में जुटे है.
किसी भी कंपनी के लिए कौन कितना काम कर रहा है. कौन व्यक्ति संस्थान को आगे ले जाने की सोच रहा है. कंपनी को दो पैसा मिले इसके लिए नीति बना रहा है . दर दर भटक रहा है . ख़बरें लिख रहा है . शिक्षा में आगे है . अनुभव में आगे है . मैनेजमेंट का स्नेह भी उस पर है. वैसे कार्यकर्त्ता भी पीछे रह गए है. इसके पीछे एक मात्र कारन है की प्रबंधन कान का कमजोर भी होता है. एक फर्जी शिकायत मिली नहीं कि समीक्षा होने लगती है. तीन साल पहले उपेन्द्र सर ने अप्रेजल तैयार कर सबकी प्रोन्नति और वेतन बढ़ाने का खाका खिंचा था . वो भी लागू नहीं हुआ . अब फिर एक सर्कुलर जरी हुआ हुआ है .देखे क्या होता है .हम सब तो ठगे जाने के लिए बैठे है . खुशी इस बात की है कि इस बार जात पात से उपर उठकर काम किया जा रहा है. जो भरोसा दिया गया है उसे टूटने नहीं दिया जाये .
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