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जागरण में जुनून को मिसाल बना दो, तभी मशाल रोशन होगी

दैनिक जागरण पत्र ही नहीं मित्र की भाषा को दरकिनार कर जिन कर्मचारियों की मेहनत, लगन, कर्मठता, ईमानदारी के बलबूते आसमान की ऊंचाइयों को हिंदी भाषा का सर्वाधिक पठनीय अखबार कहलाने का तमगा अपने पास सुरक्षित रखने में कामयाब रहने वाला, आज अपने कर्मचारियों को ध्वस्त करने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। यही कर्मचारी दैनिक जागरण को अपना मित्र मानने की भूल पिछले 25 सालों से करते आ रहे हैं।

दैनिक जागरण पत्र ही नहीं मित्र की भाषा को दरकिनार कर जिन कर्मचारियों की मेहनत, लगन, कर्मठता, ईमानदारी के बलबूते आसमान की ऊंचाइयों को हिंदी भाषा का सर्वाधिक पठनीय अखबार कहलाने का तमगा अपने पास सुरक्षित रखने में कामयाब रहने वाला, आज अपने कर्मचारियों को ध्वस्त करने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। यही कर्मचारी दैनिक जागरण को अपना मित्र मानने की भूल पिछले 25 सालों से करते आ रहे हैं।

बात 1990 की है, जब दैनिक जागरण दिल्ली में अपनी पहचान बनाने को बेताब था। हर विभाग में एक से बढ़कर एक कर्मठ, निपुण, निष्ठावान, जोश से लबालब आतुर कर्मचारियों की टीम जागरण को मिली। कुशल कर्मियों की बदौलत जागरण ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी।  ऐसा वक्त भी आया, जब जागरण में कार्य करने को कोई राजी नहीं होता। तब भी वहीं ओल्ड इज गोल्ड वाले कर्मचारी अपने खून-पसीने से जागरण को सींचते रहे। समय के साथ-साथ सब बदले, मैनेजमेंट बदला, अधिकारीगण बदले, कर्मचारी बदले, नीतियां बदलीं, जागरण मालिकों की सोच बदली, नहीं बदला तो जागरण के कार्यरत कर्मचारियों का जुनून।

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जागरण ने जुनूनी कर्मचारियों की बदौलत जो मुकाम हासिल किया, उनकी कभी इज्जत नहीं की। उल्टे उन्हें घृणा भरी दृष्टि से देखते आए हैं। उसका जीता-जागता उदाहरण नोएडा से लेकर आईएनएस तक मैं स्वयं रामजीवन गुप्ता हूं। नोएडा से जब भी बड़े अधिकारी आईएनएस आते तो मुझे देखकर कहते- अरे! अभी तुम जागरण में हो। नजरों से घूरकर देखना, हेय दृष्टि साफ दिखती थी। डर लगता था, भय समा जाता था, मानों शरीर में खून नहीं बचा है, क्योंकि खून की गर्मी, जागरण में कार्य कौशल दिखाने में खर्च कर दिया। बचा पानी, सो पानी में कभी आग नहीं लगती। 

हम भाग्यशाली थे, जिन्हें 1991 में कर्मचारियों के हित में उनका प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्राप्त हुआ। वेतन विसंगतियां और अन्य मांगों को लेकर 21 दिन की हड़ताल रही। कम वेतन और घर-परिवार की जिम्मेदारी निभाने के दायित्व के बीच 21 दिन हड़ताल खींचना लंबा सफर था। मैदान में हार-जीत का फैसला ना होता देख हमने हार का विष पीना श्रेयस्कर समझा। परिणामस्वरूप स्व. नरेंद्र मोहन ने परमानेंट लेटर देकर सम्मानित किया। मेरे साथियों, टूटना मजबूरी नहीं, बल्कि दैनिक जागरण का कर्मचारी होने का सबूत दिलाना था। सबूत ही आपका हथियार आज की आर-पार वाली लड़ाई में अपना अमूल्य योगदान देगा। आपका एकमात्र मकसद जीत हासिल करना है, लेकिन सब कुछ दायरे में रहकर। सतर्क, सशक्त, धैर्य ही आपकी एकता है। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी कहावत चरितार्थ है। आपके इसी जुनून को मिसाल बना दो। तभी मसाल कामयाब होगी।

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रामजीवन गुप्ता, पीटीएस, (आईएनएस) से संपर्क : 9540020221

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0 Comments

  1. विजय कुमार

    July 10, 2015 at 11:32 am

    राम जीवन आपने सच ही कहा है 1990 के दशक में हमने भी जागरण के लिए पसीना बहाया, हमें भी दूसरे अखबारों ने बुलाया,मगर जागरण से हमें नहीं जाने दिया गया,कई बार तत्‍कालीन जीएम निशाीकांत जी कहते थे कि यह उनका घर है ऐसे में कोई दूसरे घर जाता है,इसी को ध्‍यान में रखते हुए हम कहीं ओर नहीं गए, इसी का नुकसान हमने उठाया 20 साल काम करने के बाद मजेठिया का नाम लेकर निकाल दिया, हमें कहीं का नहीं छोडा, मैं तो कहुंगा कि पुराने साथी एक साथ मिलकर क्रांति का रूप तैयार कर आगे बढे

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