पिछले एक दो साल से लगातार यह उधेड़बुन थी कि मीडिया के क्षेत्र में ही ऐसा कुछ किया जाना चाहिए जो नया हो। नए मीडिया न्यूज पोर्टल से थोड़ा आगे, थोड़ा हटकर और थोड़ा बहुआयामी भी। वेबसाइट, न्यूज पोर्टल, न्यूज सोर्स, रिसर्च कुलमिलाकर ऐसा ही कुछ। विषय की तलाश अपने शहर अजमेर में ही पूरी हो गई। सूफी संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती और उनकी दरगाह। कुछ और भी वजह रहीं। ना गांठ में पैसा था और ना ही कोई संसाधन। बस कर दी शुरूआत। इस सच्चाई को स्वीकारने में कतई संकोच नहीं है कि इसकी शुरूआती प्रेरणा भड़ास के भाई यशवंत से मिली। उन्होंने भड़ास पर कई मर्तबा पत्रकार साथियों को इस बात के लिए प्रेरित किया है कि वे नए मीडिया में आगे आएं। उनकी इस सोच का ही परिणाम Media4Khwajagaribnawaz.com है।
अजमेर से बाहर के जितने भी मिलते हैं। उनके मन में भी ख्वाजा साहब के लिए श्रद्धा, आस्था या फिर अजीब सी उत्सुकता नजर आती है। कुछ ऐसी विचित्रताएं हैं जिसने इस दिशा में और प्रेरित किया। जैसे कि 802 साल पहले ख्वाजा साहब जिस्मानी तौर पर इस दुनिया से जा चुके थे और करीब ढाई सौ साल तक उनकी मजार कच्ची रही। कि किसी को भुलाने-बिसराने के लिए यह अरसा कम नहीं होता परंतु आज वहां दस से पंद्रह हजार लोग रोजाना आते हैं। कि इस्लाम के अनुयायियों के लिए मक्का के बाद दुनिया का यह दूसरा सबसे बड़ा आस्था का केंद्र है। कि रोजाना यहां आने वाले श्रद्धालुओं में मुसलमानों से ज्यादा तादाद हिन्दुओं की है। कि यह पहला मजार है जहां महिलाओं को भी सजदा करने की इजाजत है। कि इस्लाम के चिश्तिया सिलसिले का सबसे बड़ा केंद्र ख्वाजा साहब हैं। कि चिश्तिया सिलसिले में संगीत को प्रमुखता दी गई है। कि महफिल और कव्वाली के बगैर गरीब नवाज का जिक्र अधूरा रहता है। कि हुमायूं की जान बचाने वाले और एक दिन की बादशाहत में चमड़े के सिक्के चला देने वाले भिश्ती बादशाह का मजार इसी दरगाह में है। कि शहंशाह अकबर फतहपुर सीकरी से यहां पैदल चलकर आया। कि बादशाह जहांगीर ने तीन साल यहीं रहकर हिन्दुस्तान की सल्तनत संभाली। कि शाहजहां की बेटी जहांआरा यहीं की होकर रह गई। और यह भी कि नई दिल्ली के ख्वाजा कुतुबुद्दीन के शिष्य और हजरत निजामुद्दीन औलिया के गुरू ख्वाजा साहब की दरगाह में इतिहास के ऐसे ही कई पन्ने खुले हुए हैं।
इस वेब न्यूज पोर्टल के लिए तथ्य एवं ऐतिहासिक सामग्री जुटाने में छह महीने से अधिक का वक्त लगा। करीब पचास से अधिक फारसी और उर्दू से अंग्रेजी में अनुवादित और अंग्रेजी तथा हिन्दी ग्रंथों से सामग्री जुटाई गई। कोशिश यह की गई है कि गरीब नवाज और दरगाह शरीफ के बारे मे आपके मन मे उठने वाले हर सवाल का जवाब इस वेब न्यूज पोर्टल में मिले। ख्वाजा साहब के जन्म से लेकर दुनिया से परदा कर लेने तक की पूरी जानकारी, ख्वाजा साहब की शिक्षाएं, उनकी रहमत से जुड़ी वास्तविक घटनाएं, गरीब नवाज का करम, यहां सजदा करने आई हस्तियां, दरगाह में कहां, क्या है, कौन-कौन सी ईमारतें हैं, जियारत के दौरान किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए, अजमेर पहुंचने के लिए रेल और बसें, अजमेर पहुंचने के बाद किन-किन रास्तों से गुजर कर दरगाह पहुंचा जा सकता है, इस्लाम में सूफीमत, सूफी सिलसिला, सूफी तसव्वुुफ, गरीब नवाज और चिश्तिया सिलसिला, सूफी काव्य, नृत्य और संगीत, दरगाह कमेटी, अंजुमन सैयद जादगान, अंजुमन शेख जादगान, सज्जादानशीन आदि तमाम ऐसी जानकारियां हैं जो एक जगह और हिन्दी में नहीं मिल सकेगी। इसके अलावा ख्वाजा साहब और दरगाह से जुड़ी जरूरी ताजातरीन खबरें भी मुहैया रहेगी। सूफी संगीत की अपनी अलग दुनिया होती है। इसलिए हर महीने एक सूफी गाना भी इस वेब न्यूज पोर्टल पर सुनने को मिलेगा। आने वाले दिनों में दरगाह के खुद्दाम, अजमेर की होटलें, अजमेर में कहां से क्या खरीदारी कर सकते हैं, टेªवल कंपनियां, सरवाड़ शरीफ, नागौर शरीफ, तारागढ़ शरीफ आदि जानकारियां भी शीघ्र मुहैया करवाई जाएंगी। ख्वाजा साहब, गरीब नवाज और दरगाह शरीफ आदि नामो से कई वैबसाइट हैं। सब में दो बातें समान है। एक सभी अंग्रेजी में हैं और दूसरी ज्यादातर वैबसाइट वे हैं जो ख्वाजा साहब के खादिमों ने बनाई है जिनका मुख्य मकसद लोगों को जियारत के लिए आमंत्रित करना होता है।
दरगाह आने वाले जायरीन में 90 फीसदी हिन्दी भाषा बोलते-समझते हैं। इसलिए इरादा किया गया कि वेबसाइट हिन्दी में हो और इसे रूप दिया गया वेब न्यूज पोर्टल का, www.media4khwajagaribnawaz.com नाम से। एक और मकसद था विभिन्न समाचार पत्रं, पत्रिकाएं, न्यूज व फीचर एजेंसियां, वेबसाइट, न्यूज चैनल चाहें तो इस ‘वेब न्यूज पोर्टल’ की जानकारियों और खबरों का इस्तेमाल अपने लिए कर सकें। कितनी और कैसी खबरें बनती हैं इस दरगाह से। पिछले एक-दो महीने में यहां जम्मू-कश्मीर से पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफती, बांग्ला देश संसद की अध्यक्ष डॉ शीरिन शरमीन चौधरी, फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली, अभिनेत्री करीना कपूर, शायर वसीम बरेलवी, अनवर जलालपुरी, आप पार्टी की राखी बिडला, दुनिया के सबसे बुजुर्ग चित्रकार सैयद हसन रजा, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, उनकी पत्नी सलमा अंसारी, अजय देवगन, क्रिकेटर अजहरूद्दीन, फिल्म अभिनेत्री मनीषा कोईराला आदि यहां जियारत के लिए आए। बाबा फरीद का चिल्ला जियारत के लिए खुला। मोहर्रम में कर्बला का मंजर और हाइदौस की परम्परा। ऐसी बहुत सी खबरें हैं जो पठनीय और जानकारी के लिए जरूरी होती हैं। वेब न्यूज पोर्टल का लिंक http://www.media4khwajagaribnawaz.com है। अभी तक कोई टीम नहीं है। एक अकेले पत्रकार, वकील और राजनीति व मीडिया विश्लेषक राजेंद्र हाड़ा का प्रयास। दस साल दैनिक नवज्योति, दस साल दैनिक भास्कर और अन्य अखबार-एजेंसियों का करीब 28 साल का पत्रकारिता व लेखन का अनुभव साथ है और विश्वास है, अकेले ही कुछ कर दिखाने का।
लेखक राजेंद्र हाड़ा अजमेर के जाने-माने पत्रकार और वकील हैं. उनसे संपर्क 09829270160 या 09549155160 या [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
tejwani girdhar
November 24, 2014 at 4:24 pm
मेरी शुभकामनाएं स्वीकार कीजिए
ajit
January 9, 2015 at 7:35 pm
क्या शर्म नहीं आती एक विदेशी जासूस का गुणगान करते हुए, पत्रकार हो या दलाल।
tejwani girdhar
January 10, 2015 at 3:57 am
मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना
aslam khan
February 12, 2015 at 6:40 am
masha allah …..jankari rakhna aur auro tak pahuchana ilam (knowlege) Ki nishani he…..
Hindu
November 3, 2016 at 8:22 am
अजमेर शरीफ के दरगाह की सच्चाई:
अजमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर इतनी भीड़ थी कि वहाँ की कोई बैंच खाली नहीं थी। एक बैंच पर एक परिवार, जो पहनावे से हिन्दू लग रहा था, के साथ बुर्के में एक अधेड़ सुसभ्य महिला बैठी थी।
बहुत देर चुपचाप बैठने के बाद बुर्खे में बैठी महिला ने बगल में बैठे युवक से पूछा, “अजमेर के रहनेवाले हैँ या फिर यहाँ घूमने आये हैं?”
युवक ने बताया, “जी अपने माता पिता के साथ पुष्कर में ब्रह्मा जी के मंदिर के दर्शन करने आया था।”
महिला ने बुरा मुँह बनाते हुए फिर पूछा, “आप लोग अजमेर शरीफ की दरगाह पर नहीं गये?”
युवक ने उस महिला से प्रतिउत्तर कर दिया, “क्या आप ब्रह्मा जी के मंदिर गयी थीं?”
महिला अपने मुँह को और बुरा बनाते हुये बोली, “लाहौल विला कुव्वत। इस्लाम में बुतपरस्ती हराम है और आप पूछ रहे हैं कि ब्रह्मा के मंदिर में गयी थी।”
युवक झल्लाकर बोला, “जब आप ब्रह्मा जी के मंदिर में जाना हराम मानती हैं तो हम क्यों अजमेर शरीफ की दरगाह पर जाकर अपना माथा फोड़ें।”
महिला युवक की माँ से शिकायती लहजे में बोली, “देखिये बहन जी। आपका लड़का तो बड़ा बदतमीज है। ऐसी मजहबी कट्टरता की वजह से ही तो हमारी कौमी एकता में फूट पड़ती है।”
युवक की माँ मुस्काते हुये बोली, “ठीक कहा बहन जी। कौमी एकता का ठेका तो हम हिन्दुओं ने ही ले रखा है।
अगर हर हिँदू माँ-बाप अपने बच्चों को बताए कि अजमेर दरगाह वाले ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने किस तरह इस्लाम कबूल ना करने पर पृथ्वीराज चौहान की पत्नी संयोगिता को मुस्लिम सैनिकों के बीच बलात्कार करने के लिए निर्वस्त्र करके फेँक दिया था और फिर किस तरह पृथ्वीराज चौहान की वीर पुत्रियों ने आत्मघाती बनकर मोइनुद्दीन चिश्ती को 72 हूरों के पास भेजा था तो, शायद ही कोई हिँदू उस मुल्ले की कब्र पर माथा पटकने जाए।
पृथ्वीराज चौहान गोरी को १७ बार युद्ध में हराने के बाद भी उसे छोड़ देता है जबकि एक बार उस से हारने पर चौहान के आँख फोड़ के बेरहमी से मार कर उसके शव को घसीटते हुए अफ़ग़ानिस्तान ले गया और दफ़्न किया।
आज भी चौहान के क़ब्र पर जो भी मुसलमान वहॉ जाता है प्रचलन के अनुसार उनके क़ब्र को वहॉ पे रखे जूते से मारता है। ऐसी बर्बरता कहीं नहीं देखी होगी। फिरभी हम हैं कि…बेवकुफ secular बने फिर रहे है…!
“अजमेर के ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती को ९० लाख हिंदुओं को इस्लाम में लाने का गौरव प्राप्त है. मोइनुद्दीन चिश्ती ने ही मोहम्मद गोरी को भारत लूटने के लिए उकसाया और आमंत्रित किया था…”
(सन्दर्भ – उर्दू अखबार
“पाक एक्सप्रेस, न्यूयार्क १४ मई २०१२).
अधिकांश हिन्दू तो शेयर भी नहीं करेंगे…
दुख है ऐसे हिन्दुओ पर…!
Hindu
November 3, 2016 at 8:22 am
अजमेर शरीफ के दरगाह की सच्चाई:
अजमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर इतनी भीड़ थी कि वहाँ की कोई बैंच खाली नहीं थी। एक बैंच पर एक परिवार, जो पहनावे से हिन्दू लग रहा था, के साथ बुर्के में एक अधेड़ सुसभ्य महिला बैठी थी।
बहुत देर चुपचाप बैठने के बाद बुर्खे में बैठी महिला ने बगल में बैठे युवक से पूछा, “अजमेर के रहनेवाले हैँ या फिर यहाँ घूमने आये हैं?”
युवक ने बताया, “जी अपने माता पिता के साथ पुष्कर में ब्रह्मा जी के मंदिर के दर्शन करने आया था।”
महिला ने बुरा मुँह बनाते हुए फिर पूछा, “आप लोग अजमेर शरीफ की दरगाह पर नहीं गये?”
युवक ने उस महिला से प्रतिउत्तर कर दिया, “क्या आप ब्रह्मा जी के मंदिर गयी थीं?”
महिला अपने मुँह को और बुरा बनाते हुये बोली, “लाहौल विला कुव्वत। इस्लाम में बुतपरस्ती हराम है और आप पूछ रहे हैं कि ब्रह्मा के मंदिर में गयी थी।”
युवक झल्लाकर बोला, “जब आप ब्रह्मा जी के मंदिर में जाना हराम मानती हैं तो हम क्यों अजमेर शरीफ की दरगाह पर जाकर अपना माथा फोड़ें।”
महिला युवक की माँ से शिकायती लहजे में बोली, “देखिये बहन जी। आपका लड़का तो बड़ा बदतमीज है। ऐसी मजहबी कट्टरता की वजह से ही तो हमारी कौमी एकता में फूट पड़ती है।”
युवक की माँ मुस्काते हुये बोली, “ठीक कहा बहन जी। कौमी एकता का ठेका तो हम हिन्दुओं ने ही ले रखा है।
अगर हर हिँदू माँ-बाप अपने बच्चों को बताए कि अजमेर दरगाह वाले ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने किस तरह इस्लाम कबूल ना करने पर पृथ्वीराज चौहान की पत्नी संयोगिता को मुस्लिम सैनिकों के बीच बलात्कार करने के लिए निर्वस्त्र करके फेँक दिया था और फिर किस तरह पृथ्वीराज चौहान की वीर पुत्रियों ने आत्मघाती बनकर मोइनुद्दीन चिश्ती को 72 हूरों के पास भेजा था तो, शायद ही कोई हिँदू उस मुल्ले की कब्र पर माथा पटकने जाए।
पृथ्वीराज चौहान गोरी को १७ बार युद्ध में हराने के बाद भी उसे छोड़ देता है जबकि एक बार उस से हारने पर चौहान के आँख फोड़ के बेरहमी से मार कर उसके शव को घसीटते हुए अफ़ग़ानिस्तान ले गया और दफ़्न किया।
आज भी चौहान के क़ब्र पर जो भी मुसलमान वहॉ जाता है प्रचलन के अनुसार उनके क़ब्र को वहॉ पे रखे जूते से मारता है। ऐसी बर्बरता कहीं नहीं देखी होगी। फिरभी हम हैं कि…बेवकुफ secular बने फिर रहे है…!
“अजमेर के ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती को ९० लाख हिंदुओं को इस्लाम में लाने का गौरव प्राप्त है. मोइनुद्दीन चिश्ती ने ही मोहम्मद गोरी को भारत लूटने के लिए उकसाया और आमंत्रित किया था…”
(सन्दर्भ – उर्दू अखबार
“पाक एक्सप्रेस, न्यूयार्क १४ मई २०१२).
अधिकांश हिन्दू तो शेयर भी नहीं करेंगे…
दुख है ऐसे हिन्दुओ पर…!
Mohammad Firoj
February 24, 2019 at 6:45 am
Subhan Allah