((यशवंत सिंह, एडिटर, भड़ास4मीडिया))
Yashwant Singh : ‘आप’ वालों की कमीनपंथी के बाद अब तो जो भी जनता की या आम आदमी की बात करता है तो जाने क्यों डर-सा लगता है बाबूजी. सोच रहा था इस चैनल के मसले पर चुप ही रहूंगा. जो भी लोग इससे जुड़े हैं या जुड़ रहे हैं सब किसी न किसी तरीके से आनलाइन-आफलाइन मित्र ही हैं. पर भाई Abhishek Srivastava ने जब ‘हुआं हुआं’ का आग़ाज़ किया है तो मेरे भी पेट में मरोड़ उठने लगी, सोचा दबा कर क्यों रखूं, निकाल ही दूं, मौका भी है और दस्तूर भी. तो, मेरी तरफ से भी थोड़ी-सी हुआं हुआं सुन लीजिए. वैसे, ‘हुआं हुआं’ को लोग गंभीरता से नहीं लेते, ‘हवा-हवाई’ टाइप ही मानते हैं और तदनुसार सुनकर भी अनसुना कर देते हैं… तो चलिए आप सभी अभी ऐसा ही मान लीजिएग क्योंकि मैं चाहता हूं कि उपर वाला उन-उन दावों को जो ये लोग कर-करा रहे हैं, बता रहे हैं, सुना रहे हैं, भुना रहे हैं, प्रचारित करा रहे हैं… सच साबित करे.
लेकिन जो लोग अंदर का सच जानते हैं उन्हें इस पर ज्यादा यकीन नहीं है. शुरुआत दीपक शर्मा से ही कर लेते हैं. बहुत दिनों तक मैं मुश्किल में पड़ा रहा यह जानने के लिए यह निरा प्रोफेशनल पत्रकार जो जीवन भर बड़े-बड़े संस्थानों में बड़े-बड़े पदों पर काम करने का आदी रहा है, करियर में ग्रोथ के लिए संस्थान और संपादक से निष्ठा बदलने का रिकार्ड रखता रहा है, अचानक एक दिन ‘आजतक’ की नौकरी छोड़कर जनता यानि आम आदमी के चैनल की बातें क्यों करने लगा है. आजतक के अंदर-बाहर खंगाला, लेकिन सबने चुप्पी साधे रखी और प्रोफेशनल जवाब दिया. पर अंतत: एक बंदा हाथ लगा. वो है तो आजतक के बाहर का लेकिन सलमान खुर्शीद से लेकर अरुण पुरी तक के यहां उसकी दुआ सलाम है. पता चला कि सलमान खुर्शीद के मसले पर दीपक शर्मा ने जो स्टिंग किया था, विकलांगों वाला, उसको लेकर खुर्शीद कोर्ट चले गए थे और वहां भारी पड़ रहे थे. अरुण पुरी ने सलमान खुर्शीद के साथ आमने सामने बैठकर बातचीत की. शर्त रखी गई कि मुकदमा तभी वापस होगा जब महीने भर तक माफीनामा चलाओगे और दीपक शर्मा को सदा के लिए बहरियाओगे.
अब भला यह सब क्यों घोषित करके होता. इसमें सबकी बेइज्जती थी. अरुण पुरी से लेकर आजतक की, दीपक शर्मा से लेकर पत्रकारिता तक की. मालिक ने बातें मान ली. इंप्लीमेंटेशन को सभ्य और सुसंकृत रूप दिया गया. माफीनामे की पट्टी लगातार चली, इसके गवाह बहुत सारे लोग हैं. इसके बाद दीपक शर्मा के हटने हटाने की प्रक्रिया शुरू हुई. स्क्रिप्ट तय कर ली गई थी. किसी को सच सामने नहीं लाने देना था. सो, उसके बाद किसने क्या कहा, वो आप सबको सब पता ही है. फेसबुक से लेकर भड़ास तक पर यह सब छपा भी है. यानि रंग रोगन करके क्रांतिकारिता और आम आदमियत को पेश किया जाना लगा.
आम आदमी की इस कथित टीम में कुछ ऐसे लोगों को भी जोड़ा गया जो जिंदगी भर पैसे के लिए पत्रकारिता करते रहे और संस्थान दर संस्थान को अपनी कुर्सी व पैकेज के भारीपन के हिसाब से बदलते रहे. करियर के आखिरी चरण में ये आम आदमियत के कथित वैकल्पिक मीडिया के रंग में रंग गए हैं क्योंकि कुछ न कुछ तो मिलेगा ही यहां. खैर, मुझे बुरा नहीं लगता यह सब देखकर क्योंकि हर जगह यही सब हो रहा है. कष्ट बस इस बात का होता है कि जो नए लड़के सपने, आदर्श, भरोसा, सरोकार, जनपक्षधरता, वैकल्पिक आदि के चक्कर में मिशनरी भाव से जुड़ जाते हैं और बिना दाम लिए अपना खून गलकार सब कुछ रचते बनाते हैं, वे सपनों के टूटने के बाद बड़े डिप्रेशन में चले जाते हैं. दलाली के वे संस्थान ज्यादा इमानदार हैं जहां सब कुछ खुल्लम खुल्ला होता है. वे साफ साफ बता देते हैं कि इतने पैसे में ये माइक आईडी पकड़ो और इतना उगाह कर महीने के लास्ट में दे देना. यहां कुछ भी हिडन नहीं होता. पर जहां जनता, आम आदमी, सरोकार, मिशन आदि की दुहाई दी जाने लगती है तो बड़ा डर लगने लगता है बाबूजी.
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.
इस प्रकरण पर अभिषेक श्रीवास्तव द्वारा लिखित पोस्ट पढ़ें…
vineet
March 31, 2015 at 4:14 pm
यसवंत जी आप का यह लेख पढा लेकीन कुछ सोचने को मजबूर हो गया ,कल तक आप के ही भड़ास फॉर मिडिया में आम आदमी के नये चैनल कि दुहाई दी जा रही थी पर आज क्या हो गया ,कल तक आप कि भी उन आम आदमियों के साथ फोटो थी और एक पल में इतना फासला कैसे हो गया ?