मोहम्मद इरफ़ान-
रात मेरे बेटे ने अपने दोस्तों के साथ दिल्ली के चिड़ियाघर की सैर का इरादा किया। जब वह बहुत छोटा था तब हम उसको चिड़ियाघर घुमाने ले गए थे। उस दिन बारिश हो रही थी यह उसकी स्मृति में है। बाक़ी चीज़ें उसकी याद में नहीं हैं।
कैसे जाएंगे ? कौन सा मेट्रो स्टेशन। उसके बाद ऑटो। टिकट कितने का होगा। ये सब बातें रात में हो चुकी थीं।
आज सुबह ये लोग चिड़ियाघर पहुँच गए। थोड़ी देर में मेरे पास फोन आया कि टिकट्स ऑनलाइन बुक करने होंगे। ज़ाहिर है पेमेंट्स भी ऑनलाइन होने थे। मैंने कहा अगर वहाँ कोई बार कोड हो तो उसका फोटो भेजो। जो बारकोड वहां से फोटो की शक्ल में मेरे पास व्हाट्सअप पर आया उसे स्कैन करने पर पता चला कि वह इनवैलिड है। फिर उसने (अबान ने) मुझे चिड़ियाघर के प्रवेशद्वार पर लिखी वेबसाइट का लिंक भेजा और कहा मेनू में सबसे नीचे टिकट बुक करने का ऑप्शन होगा। मेनू मेरी नज़र में Human Resource पर जाकर ख़त्म हो रहा था। मैंने फोन किया तो उसने बताया स्क्रॉल करने से नीचे book tikets का ऑप्शन आएगा। टिकट बुक करने के उस ऑप्शन पर नाम (with surname/second name अनिवार्य), फोन नंबर और कैप्चा एंटर (जो कि एक बार में कैप्चा कोड एक्सेप्ट नहीं करता) के फील्ड्स दिखे। फिर OTP और दूसरे तमाम डिटेल्स।
मुझे 20 मिनट यह सब करने में लगे और फिर टाइम स्लॉट्स। चार चार घंटे के दो स्लॉट्स। पहले ही स्लॉट में टिकट बुक कराया क्योंकि अगला स्लॉट दो घंटे बाद शुरू हो रहा था। बुक्ड स्लॉट के दो घंटे ही टिकट की फीस से इस्तेमाल होंगे।
सोचता हूँ वो हज़ारों लोग जो चिड़ियाघर की सैर को आकर टिकट घर की खिड़की से 10 बीस रुपये के टिकट लेकर दिन भर घूम लिया करते थे उन पर इस खून में व्यापार का क्या असर पड़ा होगा।