18 घंटे कराते हैं ड्यूटी, शिकायत करने पर मिलती है नौकर से निकालने की धमकी, छेड़खानी व लंबी ड्यूटी की शिकायत करने पर नौकरी से निकाल दी गईं एक दर्जन से अधिक फीमेल क्रू मेंबर्स… लगभग दो साल पहले जंतर मंतर पर रेलवे में अप्रेटिंस करने वाले हजारों युवा धरना-प्रदर्शन कर रहे थे तो मैंने जाकर उनका हौंसला बढ़ाया। मुझे पता चला कि उन्हें स्थाई न करने पर वे आंदोलन कर रहे हैं। उनमें से 19 युवाओं के आत्महत्या करने की बात सुनकर मैं हिल गया था।
उनके आंदोलन में मैंने सक्रिय भूमिका निभाई। आंदोलन लंबा चला पर उसका कोई हल न निकला। उस समय रेलवे के निजीकरण की शुरुआत हो चुकी थी। रेलवे के निजीकरण का जब हमने विरोध किया तो प्रधानमंत्री मोदी की न्यू इंडिया की दिखाई चमक की चकाचौंध में कितने लोग निजीकरण की यह कहकर पैरवी कर रहे थे कि सरकारी नौकरी में कोई काम करना ही नहीं चाहता।
रेलवे में प्लेटफार्म, एक्सप्रेस ट्रेनों में खाने व पीने का सामान जैसे मामले तो निजी हाथों पहले ही दे ही दिये थे। मोटी कमाई के लिए लंबी दूसरी की ट्रेनों में ‘मसाज’ का ठेका भी दिया जाने लगा था। हालांकि उसका सामाजिक विरोध होने पर वह मामला आगे नहीं बढ़ पाया। जब मोदी सरकार ने ‘तेजस’ ट्रेन चलाई तो लोगों की समझ में आ गया कि अब रेलवे का निजीकरण हो रहा है। ‘तेजस’ की लॉचिंग पर मोदी सरकार ने ऐसा दर्शाया कि जैसे रेलवे को प्राइवेट हाथों में देने से अब रेलवे की कायाकल्प ही हो जाएगी।
निजीकरण की पैरवी करने वाले विशेष रूप से देख लें कि भारतीय रेलवे की पहली प्राइवेट ट्रेन ‘तेजस’ की स्पीड, लुक और सुविधाओं का बखान तो किया जा रहा है पर उसमें काम करने वाले कर्मचारी किन परिस्थियों में काम कर रहे हैं, उनके साथ क्या-क्या हो रहा है, इसकी ओर किसी का कोई ध्यान नहीं।
ऐसी जानकारी मिल रही है कि तेजस में काम करने वाले केबिन क्रू और अटैंडेंट से 18-18 घंटे की ड्यूटी ली जा रही है। पैसेंजर्स व स्टाफ द्वारा छेड़खानी करने की खबरें सामने आ रही हैं। वेतन समय से नहीं मिल रहा है। इन सब बातों का विरोध करने पर नौकरी से निकालने की धमकी दी जा रही है।
एक दर्जन से अधिक केबिन क्रू व अटैंडेंट को बिना नोटिस के नौकरी से निकाल भी दिया गया है। यूथ की बात करने वाली मोदी सरकार के रेल मंत्री को भी इन युवाओं ने ट्वीट के माध्यम से अपनी पीड़ा बताई। आईआरसीटीसी से भी मदद मांगी पर कुछ नहीं हुआ। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की बात बात करने वाली मोदी सरकार में इन लड़कियों की कोई सुनने को तैयार नहीं है। जिस निजी फर्म द्वारा उन्हें नियुक्त किया था, वह भी नौकरी से निकालने का कारण नहीं बता रही है।
चार अक्टूबर से लखनऊ से दिल्ली के बीच चलनी शुरू हुई तेजस ट्रेन का परिचालन आईआरसीटीसी कर रहा है पर हॉस्पिटैलिटी की जिम्मेदारी वृंदावन फूड प्रोडक्ट्स (आरके एसोसिएस) की है। ये प्राइवेट कॉन्ट्रेक्टर के तौर पर आईआरसीटीसी के साथ जुड़ा बताया जा रहा है। इस फर्म ने केबिन क्रू व अटैंडेंट के तौर पर 40 से अधिक लड़के-लड़कियों तेजस में नियुक्ति दिलाई पर एक महीने के भीतर ही 20 को हटा दिया, जिनमें लगभग एक दर्जन लड़कियां हैं। अपने साथ हो रही ज्यादती का विरोध करने पर इन्हें नौकरी से निकाला गया है। यह निजीकरण का ही दुष्प्रभाव है कि एक प्राइवेट ट्रेन ‘तेजस’ के जरिए हॉस्पिटैलिटी की फील्ड में गये इन युवाओं का सुनहरे भविष्य का सपना महज कुछ दिनों में ही चकनाचूर हो गया।
यह भी रोजगार के साथ मजाक ही है कि वृंदावन फूड के एचआर प्रदीप सिंह मामले में यह कह रहे हैं कि किसी को नौकरी से हटाया नहीं गया है। जैसे ही दूसरी तेजस ट्रेन चलेगी या इसी ट्रेन में बोगियां बढ़ाई जाएंगी तो इन युवाओं को शामिल कर लिया जाएगा। उनका यह भी कहना है कि किसी के साथ दुर्व्यवहार की शिकायत उन तक नहीं पहुंची है। अगर पहुंचती है तो वे मैनेजमेंट को जानकारी देकर इसकी जांच कराई जाएगी। दरअसल सरकारी विभागों के हो रही निजीकरण का मामला बिल्कुल मुनाफे से जुड़ा है। तेजस ट्रेन में मुनाफा यात्रियों से ही होगा। यात्रियों से टिकट और सुविधाओं के नाम अधिक रकम वसूलने के लिए तेजस प्रबंधन जरूर ऐसा कुछ कर रहा होगा कि जिससे यात्रियों को दूसरी अन्य ट्रेनों से उसमें कुछ अलग हटकर लगे। इन सब बातों की आड़ में आर्थिक, दैहिक और मानसिक शोषण को बढ़ावा मिलता है।
जब देश के कानून में आठ घंटे की ट्यूटी है तो तेजस में 18 घंटे काम का क्या मतलब है ? यह सीधा-साधा सरकार से एक सौदा है जिसमें, एक निजी संस्था ने सरकार को एक मुश्त रकम दी और अब मुनाफा लेने के चक्कर में कर्मचारियों का शोषण कर रही है। क्योंकि खुद सरकार ने यह सौदा किया है तो संस्था का यह भय भी खत्म हो गया है कि उसका कुछ बिगड़ेगा। तेजस के स्टाफ कहना है कि उनसे हर रोज 18 घंटे काम कराया जाता था और अगर इस बीच रेस्ट रूम में उन्हें आराम भी नहीं करने दिया जाता था।
ऐसी जानकारी मिली है कि इन एक दर्जन से ज्यादा केबिन क्रू मेंबर्स दिवाली के बाद हटा दिया गया। जब उन्होंने हटाए जाने का कारण पूछा तो ख़राब परफॉरमेंस बताया गया। ये सब प्रोबेशन पीरियड पर थे, लेकिन जो ऑफर लेटर उन्हें वृंदावन फूड्स से मिला था, उसमें एक महीने के नोटिस की बात कही गई थी। इनमें कई लड़कियों की ड्यूटी सुबह 5 बजे शुरू होती थी और रात दस बजे के बाद वह अपने घर पहुंचती थीं। शुरुआत में उनसे ज्यादा काम होने का बहाना बनाकर काम कराया गया। कहा गया कि बाद में काम कम हो जाएगा तो घंटे भी कम हो जाएंगे।
पता चला है कि प्राची नाम की एक कर्मचारी एक दिन काम से इतना थक गई थी कि चक्कर खाकर ट्रेन में ही गिर गईं और बेहोश हो गई। उन्हें कानपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। यह क्रूरता ही है कि जब उन्हें होश आया तो छुट्टी देने के बजाए अगले दिन वापस ड्यूटी पर बुला लिया गया। अटैंडेंट विशाल कुमार के बारे में पता चला है कि ड्यूटी के दौरान उनके पैर में छाले निकल आए थे और जब उन्होंने इसकी जानकारी सीनियर मैनेजमेंट को दी तो उन्हें अगले दिन से नौकरी पर न आने को बोल दिया।
यह निजीकरण का ही असर है कि तेजस में फीमेल केबिन क्रू को ‘ट्रेन हॉस्टेस’ भी कहा जा रहा है। इनका ड्रेस अप एयर हॉस्टेस की तरह है। तेजस चलने के शुरुआती दिनों से ही लगातार पैसेंजर्स द्वारा जबरन सेल्फी लेने और कमेंट करने की खबरे आने लगी थीं, जिसके बाद आईआरसीटीसी की ओर से कहा गया था कि अधिकारी होस्टेस से यात्रियों के व्यवहार का फीडबैक लेंगे। इसके आधार पर नियमों बदलाव कर शरारती यात्रियों से निपटने के प्रबंधन किए जाएंगे, लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हुआ है।
यह स्वभाविक भी है कि जब तेजस प्रबंधन यात्रियों से सुविधाओं के नाम पर अधिक रकम वसूलेगा तो यात्री तो इन सबका नाजायज फायदा उठाएंगे ही। प्रबंधन मुनाफे के लिए इन बातों को सामान्य तरीके से लेता होगा।
ऐसी भी जानकारी मिली है कि नए अटैंडेंट्स को शुरुआत में ट्रेनिंग देने के लिए दूसरी ट्रेन के सीनियर अटैंडेंट बुलाए गए थे। इन अटैंडेंट्स ने कई बार शराब पीकर फीमेल केबिन क्रू के साथ छेड़खानी भी की। जब इसका उन्होंने विरोध किया तो कार्रवाई की बात कहकर मामले को दबा दिया गया। इसके अलावा मेकअप ठीक से न करने जैसी छोटी-छोटी बातों पर केबिन क्रू से सीनियर मैनेजर जुर्माना वसूलने की बातें सामने आई हैं।
लगातार हो रही छेड़खानी व लंबे ड्यूटी आई की शिकायत उन्होंने आईआरसीटीसी के मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक अश्विनी श्रीवास्तव से की तो उन्होंने कहा कि वे इस मामले का समाधान जल्द से जल्द करेंगे। कोई समाधान तो नहीं निकला बल्कि कुछ दिनों के भीतर उनको नौकरी से ही हटा दिया गया। ट्रेन में वृंदावन फूड व आरके मील्स की ओर से भी स्टाफ रहता था, जिससे सभी क्रू मेंबर्स ने शिकायत की लेकिन कोई असर नहीं हुआ।
तेजस में लगभग 30 क्रू मेंबर व अटैंडेंट अभी भी काम रहे हैं। स्टाफ कम होने की वजह से इन पर काम का प्रेशर और बढ़ गया है। इन लोगों ने जब इसकी शिकायत मैनेजमेंट से की तो उन्हें बोल दिया गया कि जैसे दूसरे लोगों को हटाया गया है, वैसे ही उन्हें भी हटा दिया जाएगा। नौकरी बचाने के चक्कर में बाकि क्रू मेंबर्स विरोध नहीं कर पा रही हैं। वह चाहती हैं कि उनके ड्यूटी के घंटे कम किए जाएं और टाइम पर सैलरी मिले।
ऐसी भी जानकारी मिली है कि तेजस में पानी व फूड की क्वालिटी से भी समझौता किया जाता है। फिल्टर वॉटर के बजाए सादा पानी ही कई बार यात्रियों को बोतल में दे दिया जाता है और यह सब मैनेजमेंट ही कराता है।
आईआरसीटीसी के मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक अश्विनी श्रीवास्तव ने यह कहकर मामले से पल्ला झाड़ लिया कि इस बात की उन्हें कोई जानकारी नहीं है। आईआरसीटीसी के पीआरओ सिद्धार्थ सिंह का कहना है कि क्रू मेंबर व अटैंडेंट को हटाने का फैसला निजी फर्म (वृंदावन फूड प्रोडक्ट्स) का है न कि आईआरसीटीसी का।
ज्ञात हो कि आईआरसीटीसी के साथ जुड़े प्राइवेट कॉन्ट्रेक्टर वृंदावन फूड पहले भी विवादों में घिरा रहा है।
दरअसल, पिछले दिनों इस फर्म ने 100 पुरुष उम्मीदवारों की भर्ती के लिए एक विज्ञापन निकाला था। विज्ञापन की सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि इस विज्ञापन में सिर्फ अग्रवाल और वैश्य समुदाय के उम्मीदवारों की भर्ती करने की बात कही गई है। हालांकि, सोशल मीडिया पर विरोध के बाद फर्म ने विज्ञापन वापस ले लिया। देखने की बात यह भी है कि तेजस एक्सप्रेस देश की पहली कॉरपोरेट ट्रेन है।
लेखक चरण सिंह राजपूत सोशल एक्टिविस्ट और बेबाक जर्नलिस्ट हैं.