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उत्तर प्रदेश

…तो इसलिए मुकुल गोयल को नाकारा बताकर समय रहते डीजीपी पद खाली करा लिया गया!

केपी सिंह-

सीएम की गुडबुक के डीजीपी से कितना छटेगा पुलिस व्यवस्था का गतिरोध… आखिर उत्तर प्रदेश के निवर्तमान पुलिस महानिदेशक शीर्ष स्तर पर नौकरशाही की लाबिंग के भवर में फंसकर प्रतिशोध की भेंट चढ़ ही गये। हालांकि उनसे पहले और डीजीपी भी रहे हैं जो कार्यकाल के पहले चलता किये गये हैं लेकिन किसी को इतने बेआबरू अंदाज का सामना नहीं करना पड़ा। मुकुल गोयल के बारे में बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी करके कहा गया कि वे निकम्मे, विभागीय कार्य में रूचि न लेने वाले और शासन के निर्देशों की अवहेलना करने वाले अधिकारी के रूप में प्रदर्शित रहे हैं। उनकी शराफत के कायल प्रदेश पुलिस के अधिकांश उच्चाधिकारी शासन की इतनी कठोर टिप्पणी से अवाक हैं और उन पर लगाये गये इन अतिरंजनापूर्ण आरोपों को पचा नहीं पा रहे हैं।

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अतिरिक्त कार्यभार औपचारिकता मात्र, उन्हें स्थायी डीजीपी मानो

फिलहाल उनकी जगह इंटेलीजेंस और विजीलेंस के मुखिया देवेन्द्र सिंह चौहान को डीजीपी का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया गया है। जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री मुकुल गोयल को डीजीपी नियुक्त किये जाने के समय से ही चौहान को इस पद पर आसीन कराने को व्यग्र थे। 2020 में उन्हें इसी मकसद से केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस लाया गया था। पर तकनीकी बाधाओं के कारण मुख्यमंत्री अपनी इस मंशा को उस समय पूरा नहीं कर सके थे क्योंकि प्रदेश कैडर के आइपीएस अधिकारियों में वे बहुत निचली पायदान पर थे।

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अगर मुकुल गोयल को कार्यकाल पूरा कर लेने दिया जाता तो देवेन्द्र सिंह चौहान उनसे लगभग एक साल पहले ही रिटायर हो जाते और डीजीपी बनने की उनकी हसरत दफन होकर रह जाती इसलिए मुकुल गोयल को नाकारा बताकर समय रहते डीजीपी का पद उनसे खाली कराने की कवायद तत्काल पूरी की जाना अब लाजिमी हो गया था।

विजिलेंस मुखिया की पावर का नमूना श्रीराम अरूण भी थे…

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प्रसंगवश इसका उल्लेख किया जा सकता है कि देवेन्द्र सिंह चौहान के पहले भी डीजीपी पद तक पहुंचने के महत्वाकांक्षी अफसर तमाम करिश्मे दिखा चुके हैं जिनमें एडीजी के पद से इस्तीफा देकर राजनीति में आने और प्रदेश मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले असीम अरूण के पिता श्रीराम अरूण का नाम भी कभी लिया गया था। श्रीराम अरूण जब एडीजी विजीलेंस थे उस समय उन्होंने भविष्य में डीजीपी पद के दावेदार बनने वाले सारे पुलिस अफसरों की फाइलें खुलवा दी थी ताकि उनके प्रमोशन का लिफाफा डीपीसी में बंद करना पड़ जाये।

डीएस चौहान को लाने के लिए किस तरह बुना गया तानाबाना…

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देवेन्द्र सिंह चैहान को अभी स्थायी डीजीपी इसलिए नहीं बनाया जा सका है कि वे वरिष्ठता क्रम में अभी भी छठे नम्बर पर हैं। यूपी कैडर के एक वरिष्ठ आईपीएस अनिल अग्रवाल केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर हैं इसलिए उन्हें छोड़ भी दिया जाये तो वे पांचवे नम्बर पर रह जाते हैं। अब पांच शीर्ष आईपीएस में विश्वजीत महापात्रा को दो महीने बाद ही रिटायर होना है इसलिए उनको डीजीपी बनाया नहीं जा सकता। इनके अलावा गोपाल लाल मीणा हैं जिनका रिटायरमेंट अगले साल 10 जनवरी को है। जाहिर है कि दो महीने बाद उनका कार्यकाल भी छह महीने से कम बच पायेगा तो वे भी डीजीपी की दावेदारी की दौड़ से बाहर हो जायेंगे और देवेन्द्र सिंह चैहान का नाम टाप 3 में आ जायेगा। तब केन्द्र में उन्हीं के नाम पर मोहर लगवाने की पैरवी राज्य सरकार की ओर से पूरी मजबूती से हो सकेगी इसलिए लोग अभी से मानने लगे हैं कि देवेन्द्र सिंह चैहान कार्यवाहक नहीं बल्कि स्थायी डीजीपी हैं जो रिटायरमेंट के बाद ही इस कुर्सी से अलग होंगे। नतीजतन फिलहाल उनको कार्यवाहक लिखा जाना औपचारिकता मात्र है।

ओपी सिंह को डीजीपी बनाने में भी सीएम ने सुपरसीड किये थे आधा दर्जन आईपीएस…

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वैसे सजातीय अधिकारी को इस कुर्सी पर देखने की मुख्यमंत्री की लालसा शुरू से ही इतनी प्रबल रही है कि देवेन्द्र सिंह चौहान के पहले ओपी सिंह को डीजीपी बनाने के लिए उन्होंने उनके ऊपर के लगभग आधा दर्जन अधिकारी सुपरसीड कर दिये थे। इसी तरह अपनी सरकार पहली बार गठित होने के बाद जब उन्होंने तत्कालीन डीजीपी जावेद अहमद को हटाकर नया डीजीपी नियुक्त करने का फैसला किया तो कार्यकाल कम रह जाने के बावजूद उनकी निगाह सुलखान सिंह पर जाकर टिकी। हालांकि सुलखान सिंह चौबीस कैरेट के ईमानदार अधिकारी रहे हैं और उनमें जबरदस्त सादगी भी थी इसलिए लोगों की सहानुभूति भी उनसे जुड़ी थी और स्वाभाविक रूप से इसके कारण उनका नाम बतौर डीजीपी इतिहास में शामिल कराने के लिए लोगों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आभार भी माना था।

सपा से रिश्ते की बात का बतंगड़…

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देवेन्द्र सिंह चौहान को अपने को साबित करने के लिए बड़ी मशक्कत की जरूरत पड़ेगी अन्यथा उनके लिए आरपी सिंह और राजकुमार विश्वकर्मा को सुपरसीड किये जाने के लिए मुख्यमंत्री पर उंगलियां जरूर उठेंगी जबकि उंगली तो मुकुल गोयल को हटाने के लिए बहुत लचर कारण बताये जाने पर भी उठ रही हैं। अगर उन्हें इसलिए हटाया गया क्योंकि वे कभी सपा के खास रहे थे तो इसमें बहुत दम नहीं है। इसके लिए उन्हें अखिलेश सरकार में एडीजी एलओ बनाये जाने की बात कही जाती है लेकिन यह बात छुपा ली जाती है कि अखिलेश सरकार ने बीच में ही उनको यहां से शंट करके लूप लाइन में डाल दिया था और बाद में उन्हें केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर चले जाना पड़ा था। इस मामले में तो कोई देवेन्द्र सिंह चौहान का भी नाम ले सकता है क्योंकि मूलतः मैनपुरी जिले के होने के नाते उनके मुलायम सिंह से काफी नजदीकी संबंध रहे हैं और इस कारण वे परिवार के बुजुर्ग के रूप में मुलायम सिंह से सामाजिक शिष्टाचार निभाने को मजबूर रहते थे जिसे लेकर उनकी कुछ तस्वीरें अखबारों में भी प्रकाशित करा दी गई थी।

नाकारा बताये गये गोयल नवाज़े जा चुके हैं उत्कृष्ट पुलिस सेवा मेडल से…

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जहां तक मुकुल गोयल की कार्यक्षमता का सवाल है उनको राष्ट्रपति के पुलिस पदक और उत्कृष्ट पुलिस सेवा पदक से अलंकृत किया जा चुका है। यह भी याद करना होगा कि उन्हीं के कार्यकाल में पहली बार उत्तर प्रदेश में देश भर के पुलिस महानिदेशकों का तीन दिन का सम्मेलन आयोजित किया गया जो इतना सफल आयोजन माना गया कि दो दिन का समय इसके लिए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने और एक दिन का समय स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिया था। अगर वे विभागीय कार्य में रूचि न लेने वाले होते तो इतना बड़ा कामयाब पुलिस आयोजन कैसे करा पाते।

गोयल फील्ड पर न जाने के लिए किये गये थे बाध्य…

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उनके फील्ड पर न जाने की बात भी बहुत स्पष्ट है। उनसे पहले हितेश अवस्थी को जब डीजीपी बनाया गया था तो उन्होंने अपनी पहली प्रेस कान्फ्रेस में ही कह दिया था कि डीजीपी का काम जिलों में जाना नहीं है लेकिन उन्हें कभी इस तरह की धारणा के लिए टोकने की जरूरत महसूस नहीं की गई जबकि मुकुल गोयल ने तो पहली मीडिया वार्ता में कहा था कि वे अपने कार्यालय में ही बने रहने की बजाय मानिटरिंग के लिए समय-समय पर बाहर समीक्षा बैठकें करेंगे। अगर वे ऐसा नहीं कर पाये तो अनुमान लगाया जा सकता है कि निश्चित रूप से उन्हें इसके लिए ऊपर से रोका गया होगा। लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली के निरीक्षण के समय व्याप्त गंदगी के आधार पर जब उन्होंने मौके पर ही प्रभारी निरीक्षक को निलंबित करने का आदेश जारी किया तो उन्हें नीचा दिखाने के लिए इसके क्रियान्वयन पर न केवल रोक लगा दी गई बल्कि इसे ऐसे प्रचारित किया गया जिससे उनकी सत्यनिष्ठा पर लोगों में संदेह व्याप्त हो जाये और मुख्यमंत्री के मुंह से वीडियों कान्फ्रेसिंग में यह कहला दिया गया कि डीजीपी कार्यालय की थानों में नियुक्ति की संस्तुतियां जिलों के मुखिया मान्य न करें। हालांकि तथ्य यह बताते हैं कि उनके समय थानों की नीलामी का कोई मामला सामने नहीं आया जबकि योगी के समय ही एक दौर ऐसा था कि ऐसे आरोपों के कारण बुलंदशहर के तत्कालीन एसएसपी एन कोलांची और प्रयागराज के तत्कालीन एसएसपी अतुल शर्मा आदि को सरकार को निलंबित करना पड़ गया था।

नोएडा के तत्कालीन एसएसपी वैभव कृष्ण ने तो अपने पांच समकक्षों द्वारा थाने देने के लिए सौदेबाजी करने के सबूत पैनड्राइव में इकट्ठा करके तत्कालीन डीजीपी ओपी सिंह को सौंप दिये थे। बाद में जब सरकार ने उनके आरोपों की जांच के लिए एसआईटी गठित की तो उसे ओपी सिंह ने पैनड्राइव देने में लगातार टालमटोल की। बाद में एसआईटी ने देरी से जांच रिपोर्ट सौंपते समय ओपी सिंह की इस अडंगेबाजी को भी वहन किया लेकिन ओपी सिंह को लेकर तरह-तरह की चचार्ये खूब चली। बावजूद इसके मुख्यमंत्री का वरदहस्त उन पर बना रहा। यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि मुकुल गोयल के बारे में जिलों के अधिकारियों को बड़ी शिकायतें थी जबकि मुकुल गोयल उन्हें लगातार जलील किये जाने का एहसास कर लेने के बाद जोन, रेंज और जिलों के पुलिस मुखियाओं से बात तक करने में खुद ही कतराने लगे थे तो उनसे ये लोग तंग कैसे हो सकते थे। इसी तरह उनके द्वारा मीडिया ब्रीफिंग से बचने की बात भी बेमानी है क्योंकि उन्होंने तो पदभार संभालते ही लम्बी ब्रीफिंग की थी। पर आगे उन्हें इसके लिए अपने कदम संभवतः शासन की मंशा के कारण रोक देने पड़े थे।

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गोयल के स्वतः कहीं और शिफ्ट हो जाने का शायद था इंतजार…

विधानसभा चुनाव के समय निर्वाचन आयोग के निर्देशों के कारण जब हर स्तर पर पुलिस में तबादलों की सूची बनाने की कवायद की जाने लगी तो इसके लिए तीन समितियां बनायी गई पर मुकुल गोयल को एक भी समिति में नहीं रखा गया जबकि वे तीनों समितियों के अध्यक्ष होने चाहिए थे। यह भी सभी जानते हैं कि हर डीजीपी तभी सफलतापूर्वक काम कर पाता है जब उसे अपने मुताबिक अपनी टीम बनाने दी जाये लेकिन मुकुल गोयल की स्थिति यह थी कि वे जिन नामों की संस्तुति करते थे उन अधिकारियों को जिलों में पोस्ट करने की बजाय सजा वाले स्थानों पर भेज दिया जाता था। कुल मिलाकर प्रयास यह था कि मुकुल गोयल अपनी उपेक्षा से ऊबकर खुद ही पलायन करने की पेशकश कर दें।

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जो भी हो गोयल के हट जाने से होगा पुलिस व्यवस्था का भला…

बहरहाल मुकुल गोयल का हट जाना एक तरह से अच्छा ही हुआ क्योंकि उनके प्रति शासन के रवैये से पुलिस की व्यवस्था डैड मोड में चली गई थी जिसका खामियाजा लोगों को उठाना पड़ रहा था। भले ही उनके समय सोनभद्र में 11 आदिवासियों की हत्या, कानपुर के बिकरू में 8 पुलिस कर्मियों को शहीद किये जाने और हाथरस में दलित किशोरी की रेप के बाद हत्या और उसके शव को घर वालों को सौंपने की बजाय पुलिस द्वारा जलवा दिये जाने जैसे सरकार की नाक कटाने वाला एक भी बड़ा कांड सामने नहीं आया। पर यह उनकी खुश किस्मती भर रही वरना जिस तरह से पुलिस व्यवस्था पंगु हो गई थी उसमें बहुत बड़े-बड़े बवाल हो जाने थे। अब मुख्यमंत्री की पसंद के डीजीपी कुर्सी पर बैठ गये हैं तो पुलिस व्यवस्था में यह गतिरोध निश्चित रूप से छटेगा। बशर्ते देवेन्द्र सिंह चौहान प्रभावी ढंग से मोर्चा संभालें।

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इंटेलीजेंस और विजीलेंस की कमान होने से देवेन्द्र सिंह चौहान को गड़बड़ी करने वाले जिला प्रमुखों की सारी कच्ची पक्की पुख्ता जानकारियां होंगी इसलिए उन्हें सारे दागदार एसएसपी, एसपी जिलों से वापस बुला लेना चाहिए और जिलों के लिए अपनी साफ सुथरी नई टीम बनानी चाहिए। जोन और रेंज के मुखिया मुकुल गोयल के कार्यकाल में शहंशाह बन गये थे जबकि जब तक ये लोग जिलों का लगातार भ्रमण न करते रहें तब तक जिलों में स्थिति ठीक नहीं रह सकती। देवेन्द्र सिंह चौहान को इन पदों के अफसरों को आराम तलबी छोड़कर फील्ड पर जाने के लिए मजबूर करना पड़ेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी झांसी मंडल के दौरे में इन्हें लक्ष्य करके चेतावनी जारी की थी।

एसीएस होम के पुलिस पर हावी रहने के दिन भी लदेंगे…

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ओपी सिंह की तरह देवेन्द्र सिंह पर भी एसीएस होम को अभी की भांति पुलिस पर हावी बने रहने का अवसर नहीं मिल पायेगा इसलिए वे इस मामले में कारगर कदम आराम से उठा सकते हैं। महत्वपूर्ण पदों पर अफसरों की नियुक्ति में सामाजिक समीकरणों को भी उन्हें दुरूस्त करना चाहिए जो अभी एकतरफा हैं। रेंकर आईपीएस को जिलों की कमान सौंपने में काफी कंजूसी दिखायी दे रही है जिससे उनमें कुंठा है। तमाम रेंकर अफसर इसके कारण लूप लाइन में ही रिटायर हो जाने के लिए विवश हैं। जिला पुलिस प्रमुख के रूप में कार्य करने का उन्हें थोड़ा और ज्यादा अवसर दिलाने का अगर देवेन्द्र सिंह चौहान पैरवी कर पाते हैं तो यह बहुत अच्छा होगा।

इस बीच जिला पुलिस प्रमुखों की जबावदेही तय की जाने में व्याप्त संकोच के कारण भी स्थितियां बिगड़ी हैं और पुलिस की निरंकुशता की शिकायतें बढ़ी हैं। नये डीजीपी इसमें कड़ाई करेंगे तो शिकायतें भी कम होगी और जिला पुलिस प्रमुखों के रूप में नई तैनातियां बढ़ने से ज्यादा से ज्यादा अफसरों को आजमाया जा सकेगा तो बेहतर पुलिसिंग के लिए ज्यादा विकल्प तैयार होंगे। अगर पुलिस के सम्मुख मौजूद चुनौतियों के बेहतरीन निदान में देवेन्द्र सिंह चैहान ने अपना करिश्मा दिखाने में कसर नहीं छोड़ी तो उनकी छवि भी मजबूत होगी और मुख्यमंत्री की भी शानदार छवि स्थापित होगी।

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2 Comments

2 Comments

  1. MUDIT MATHUR

    May 18, 2022 at 9:18 am

    पुलिस व्यवस्था पर एक अच्छी ख़बर।

  2. Aamir Kirmani

    May 18, 2022 at 8:39 pm

    डीजीपी मुकुल गोयल के हटाए जाने के बाद मैंने फेसबुक पर एक पोस्ट भी लिखी थी। शायद आप लोगों की नजर से गुज़री हो। यदि आपको पसंद आए तो आप लोग वहां भी कमेंट कर सकते हैं लिंक नीचे है
    https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10229076405320132&id=1393366289

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