यूपी के डीजीपी ने जिस मामले में खुद इंट्रेस्ट लिया, अपनी तरफ से जांच बिठाई, पूरे मामले की तहकीकात कराई, जांच नतीजा अभी आना बाकी है, उसी मामले में उन्हीं की पुलिस ने अपने बॉस को इग्नोर करते हुए कागजों में गुपचुप ढंग से फर्जीवाड़ा करके इनामी बनाए गए निर्दोष युवक को घर से उठा लिया और फर्जी मुठभेड़ दिखाकर अपनी पीठ ठोंक ली.
मामला बुलंदशहर के बीवीनगर थाना क्षेत्र का है. वहां के गांव भापुर के युवक सौरभ के परिजनों का गांव के ही एक हिस्ट्रीशीटर से पारिवारिक रंजिश है. आरोप है कि हिस्ट्रीशीटर की मिलीभगत थाना-पुलिस से है. इसी कारण हत्या के एक ऐसे मामले में सौरभ को आरोपी बना दिया गया जिसमें उसका नाम पीड़ितों की तरफ से नामजद तक नहीं किया गया है. पुलिस ने अपनी तरफ से हत्यारों के बयानों में सौरभ का नाम जोड़ा और कागजों में ही कुर्की वगैरह करके पच्चीस हजार का इनामी बदमाश घोषित कर दिया.
सौरभ अपने मां के साथ गाजियाबाद में रहता था. पीड़ित सौरभ के मां और पिता ने मीडिया वालों के जरिए अपना प्रार्थनापत्र डीजीपी के यहां पहुंचवाया. डीजीपी ने एक जांच बिठाई. सीओ ने जांच रिपोर्ट लखनऊ भेज दी. इस जांच रिपोर्ट पर अभी डीजीपी ने कोई फैसला नहीं लिया लेकिन एसटीएफ और गाजियाबाद पुलिस ने मिलकर मां के साथ रह रहे पीड़ित सौरभ को घर से उठा लिया और फर्जी मुठभेड़ का सीन क्रिएट कर गिरफ्तार दिखा दिया.
इस प्रकरण के बाद कहा जाने लगा है कि यूपी पुलिस तो अब अपने डीजीपी की भी नहीं सुनती. योगी राज में कानून का शासन लागू करने की कोशिश में बेलगाम पुलिस जंगलराज कायम कर रही है. निर्दोषों को फर्जी मामलों में फंसा कर पुलिस पहले इनामी बदमाश घोषित करती है फिर घर से उठाकर फर्जी मुठभेड़ में गिरफ्तार दिखाते हुए अपनी पीठ थपथपाती है. पुलिस के सताए हुए लोगों की तादाद बेतहाशा बढ़ रही है जिसका खामियाजा चुनावों में भाजपा और योगी को भुगतना पड़ सकता है.
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