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सुख-दुख

धर्म और धार्मिकों पर लगाम ज़रूरी है, ये बात सबसे पहले ईसाईयों ने समझी!

सिद्धार्थ ताबिश-

उनका धर्म जब अपने शुरुवाती दौर के बाद बेलगाम हुवा तब तमाम उतार चढ़ाव के बाद इसाई ये समझ गए कि उन्हें अगर धर्म और आधुनिक दुनिया को साथ साथ रखना है तो धर्म और धार्मिकों को ऐसे खुला नहीं छोड़ा जा सकता है.. क्यूंकि दसवीं शताब्दी में वो ये जान चुके थे कि क्रूसेड जैसे धर्म युद्धों में जितने लोग उन्होंने बाहर के बारे उस से ज्यादा अपने मारे गए.. क्यूंकि धार्मिक पागलपन अपनाई हुई भीड़ को आप जब बेलगाम छोड़ देते हैं तो ये एक पूरी कौम को “आत्महत्या” के लिए भेजने जैसा हो जाता है.. इसाईयत के उस दौर में इसाई धर्म और उसकी मान्यताओं का फायदा लोग अपने लिए ठीक से इस्तेमाल करते थे.. कोई मर्द किसी औरत के दिल में अगर अपनी जगह नहीं बना पाता था तो वो उसे “चुड़ैल” घोषित कर देता था.. बाक़ी काम भीड़ कर लेती थी.. कोई भी चालाक व्यक्ति जिनकी सांसारिक महत्वाकांक्षा नहीं पूरी हो पाती थी वो पोप बनकर बिशप बन कर तमाम वो काम कर लेता था जो वो आम इंसान बनकर कभी नहीं कर पाता.. जिस से भी बिशप को दुश्मनी हो जाती थी वो उसे शैतान से लेकर कुछ भी घोषित करवा कर भीड़ के हाथों ही मरवा देता था.. ऐसे उसके हाथ भी साफ़ रहते थे और अगला निपट भी जाता था.

ईसाईयों ने धर्म को सुनियोजित किया.. उसे ख़त्म नहीं किया क्यूंकि उस दौर में धर्म ही एकमात्र रास्ता था लोगों पर “राज” करने का.. लोगों को अपने हिसाब से चलाने का.. ईसाईयों ने ये नियम बनाये कि हर कोई नन, पोप, बिशप नहीं बन सकता है.. कोई भी संत नहीं बन सकता है जब तक उसे संत सीधा सबसे बड़ा चर्च वेटिकन न घोषित करे.. संत की उपाधि हर किसी को नहीं मिलती है

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इस का सबसे बड़ा फायदा ये हुवा कि धर्म के नाम कोई भी मानसिक बीमार, महत्वाकांक्षी व्यक्ति ऊँची धार्मिक कुर्सी पर नहीं पहुँच पाता है.. और इसके परिणाम स्वरुप इसाईयत से धर्म और राजनीति अलग हो सके.. जहाँ जहाँ इसाईयत है वहां चुनाव और मतदान पर धर्म का प्रभाव न के बराबर होता है.. और इसी वजह से इसाई देश तरक्की और तकनीकी के मार्ग पर आगे बढ़ सके.. क्यूंकि उनके यहाँ चुनाव के मुद्दे जनता और उसकी बेहतरी के मुद्दे होते हैं.. अमेरिका जैसे देश इसाई मुल्क होने बावजूद इस दुनिया में टॉप पर हैं.. क्यूंकि वहां धार्मिक भीड़ नियम तोड़ कर नहीं चल सकती है.. कोई भी घर में बैठ के अपने आपको बाबा या संत घोषित नहीं कर सकता है.. कर भी देता है तो उसे चर्च की मान्यता नहीं मिलती है

ऐसा ही कुछ सऊदी अरब ने किया.. वो भी धार्मिक भीड़ के पागलपन को समझा.. उसने ये समझा कि इस्लाम धर्म के मानने वालों के लिए कितने सख्त नियम यानि शरिया का होना ज़रूरी है.. सऊदी किसी भी सूफ़ी, गूफ़ी, बाबा, ढाबा को कोई मान्य्यता नहीं देता है.. उसके नियम इतने सख्त हैं कि आप वहां बाबा बने तो आपकी गर्दन कटनी तय है.. इसीलिए आजतक वहां किसी घर में कोई भी आध्यात्मिक, रूहानी या संत जन्म नहीं लेता है.. सारे संत और बाबा भारत और पाकिस्तान में पैदा होना पसंद करते हैं.. वहाँ भीड़ कभी भी किसी को “गुस्ताख-ए-रसूल” का इलज़ाम लगा कर मार नहीं सकती है.. सऊदी से जन्मा इस्लाम अपने जन्मस्थल में शान्ति और सभ्यता का मज़हब बना रहता है मगर सऊदी से बाहर, भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में जाते ही ये निरंकुश भस्मासुर जैसा हो जाता है क्यूंकि भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों की पाम्परायें आज़ाद परम्पराएँ हैं.. ख़ासकर भारत की संस्कृति और विचारधारा किसी संगठित धर्म के लिए एकदम प्रतिकूल हैं और यहाँ अगर किसी ने भी संगठित धर्म जैसा कुछ स्थापित करने की कोशिश की तो ये देश बस कुछ ही दशकों में समाप्ति के कगार पर होगा

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इसलिए या तो इसाईयों जैसा बनाओ अपने धर्म को या फिर चीन हो जाओ जहाँ धर्म ही न हो सिरे से.. बीच में रहोगे तो सिवाए विनाश के भविष्य कुछ भी नहीं होगा

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1 Comment

1 Comment

  1. Ajay balani

    May 18, 2023 at 6:40 pm

    लोगों की बहुत बड़ी गलतफहमी है कि नास्तिक देश सभ्य और तरक्की याफ्ता होते हैं, और उदाहरण भी बड़े अजीब देते हैं, जैसे ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड या ये महाशय चीन का उदाहरण देते हैं.. मतलब, कुछ भी? ये तीनो देश ही नास्तिक नही, कोई भूमि नास्तिक होती है भला? शासन तंत्र हो सकता है नास्तिक, पिछली सदी का जर्मनी, इटली और इस सदी का रूस देखिये, नास्तिकता ने क्या बना दिया इन्हे? फ़ासिस्ट, नाज़ी और रूस को ज़ार, स्टालिन से लेकर पुतिन तक नास्तिक जल्लादों ने चलाया और दुनिया को खतरे मे डाला नास्तिकता ने! जबकि नॉर्डिक देश आस्तिक होके भी दुनिया मे सबसे तरक्की याफ्ता हैं, एक भारत भी है, फ्रांस भी है..जो धर्म निर्पेक्षता का मुखोटा लगाके बहुसंख्यक वाद के भस्मासुर पे बैठे हैं और अपने धर्म निरपेक्ष कानूनों को सिर्फ मुस्लिमों पे लागू करते हैं, खुद पे नही, इनका संविधान अल्पसंख्यक के लिए है, खुद ये मनुवादी हैं!

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