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दो हफ्ते से कोमा में पड़े पत्रकार धीरज पांडेय मगर अमर उजाला को उनकी रत्ती भर चिंता नहीं

अमर उजाला के बस्ती ब्यूरो प्रभारी धीरज पांडेय का एक्सीडेंट हुए दो हफ्ते होने को आ गए। एक पैर बुरी तरह डैमेज हो गया है। कोमा पूरी तरह टूटा नहीं है। डाक्टर कह रहे हैं कि फ्रैक्चर्स काफी है। पूरे बाडी में। सिर में गहरी चोट है। लखनऊ के ट्रामा सेंटर में भरती हैं धीरज, जहां जिंदगी और मौत से लड़ाई चल रही है। परिणाम अच्छा ही होगा, ऐसा मन कह रहा है।

अमर उजाला के बस्ती ब्यूरो प्रभारी धीरज पांडेय का एक्सीडेंट हुए दो हफ्ते होने को आ गए। एक पैर बुरी तरह डैमेज हो गया है। कोमा पूरी तरह टूटा नहीं है। डाक्टर कह रहे हैं कि फ्रैक्चर्स काफी है। पूरे बाडी में। सिर में गहरी चोट है। लखनऊ के ट्रामा सेंटर में भरती हैं धीरज, जहां जिंदगी और मौत से लड़ाई चल रही है। परिणाम अच्छा ही होगा, ऐसा मन कह रहा है।

 

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आज से 8 साल पहले, एक शादी से लौट रही अमर उजाला टीम के वेद प्रकाश, मुकेश पांडेय, कोमल यादव, विवेक पांडे और टीपी शाही का भयंकर एक्सीडेंट हुआ था। उस एक्सीडेंट में वेद प्रकाश चौहान नामक फोटोग्राफर और कोमल यादव (सीनियर रिपोर्टर) की दर्दनाक मौत हो गई थी। ड्राइवर भी बेचारा नहीं रहा। विवेक को सबसे ज्यादा चोटें आई थीं। टीपी शाही भी चोटिल हुए थे और मुकेश पांडेय भी। मुकेश और विवेक इन दिनों अमर उजाला त्याग कर हिंदुस्तान में हैं। शाही जी अमर उजाला में ही हैं।

इन दोनों घटनाओं का जिक्र मैं क्यों कर रहा हूं। इनका जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि बीते 8 साल में इस गोरखपुर-बस्ती मंडल में पत्रकारों के साथ जो भीषण हादसे हुए, वे अमर उजाला के ही थे।

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अगर मेरी जानकारी सही है तो अमर उजाला प्रबंधन को इस बात की कत्तई चिंता नहीं कि धीरज पांडेय का क्या होगा। यह वैसा ही है, जैसे 8 साल पहले शशि शेखर के साथ था। सुबह में साढ़े 3 बजे मुझे मनोज जी (मनोज तिवारी) ने सूचित किया था कि हादसा हो गया है। मैं अमर उजाला छोड़ चुका था और सहारा में था। लेकिन, ये सारे लोग जो एक्सीडेंट का शिकार हुए थे, मेरे कलेजे के टुकड़े थे। इनकी ज्वाइनिंग मैंने ली थी (शाही जी को छोड़ कर। शाही जी अमर उजाला में मुझसे पहले से थे।) संगठन बदल देने से आदमी बदल जाते हैं क्या।

डा. अजीज के अस्पताल में अरविंद राय ने पूरी कमान संभाल रखी थी। विवेक को अमर उजाला में लाने वाले वही थे। मुझे गोरखपुर में बसाने वाले भी अरविंद राय ही हैं। सारे लोग थे। अमर उजाला के तत्कालीन संपादक केके उपाध्याय नहीं थे। उनको फोन किया तो वह दिल्ली के रास्ते में थे। कहा, मैं दिल्ली पहुंचू तब तो गोरखपुर लौटूं। फंसे हुए थे वे कहीं ट्रेन में। शशि जी को फोन किया। उन्हें बताया कि ऐसा-ऐसा हुआ है। उनका एक लाइन का जवाब था  तो मैं क्या करूं। मैंने कहा-ठीक है। कुछ मत कीजिए। जो करना होगा, हम लोग कर लेंगे। फिर मन में आया कि इनको मैसेज करो। मैसेज किया। जितने कड़क शब्दों का इस्तेमाल हो सकता था, किया। मैसेज पढ़ा उन्होंने और फ्लाइट पकड़ कर गोरखपुर आ गए। मुझे खोजवाया पर मैं मिला नहीं।

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ये कहानी क्यों। ये कहानी इसलिए क्योंकि अमर उजाला का प्रबंधन चौपट हो चुका है। सब भांग पीकर मस्त हैं। लखनऊ ट्रामा सेंटर की खबर पर यकीन करें तो आज, यानी 17 जून तक न तो लखनऊ और न ही गोरखपुर का संपादक धीरज को देखने गया। कैसे लोग हैं यार। इनमें जज्बा नहीं, जुनून नहीं, इमोशन नहीं तो ये कैसे संपादक हो गए। कल धीरज के साथ अच्छा ही होना है लेकिन अगर बुरा हो गया तो कैसे ये लोग अपनी शक्ल आइने में देख सकेंगे। जो आदमी इनके निर्देश पर महराजगंज में अपने बीमार पिता को छोड़ कर बस्ती में नौकरी कर रहा है, उस एक्सीडेंटल पत्रकार को देखने की भी सुध इन जानवरों को नहीं है तो क्या कहा जाए। पत्रकारिता को लात मारिए। खानदानी दुश्मनी वाले घरानों में भी लोग इस तरह के हादसों में एक-दूसरे का ढाढस बांधते हैं।

लेखक एवं 4यू टाइम्स के कार्यकारी संपादक आनंद सिंह से संपर्क : 8400536116

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0 Comments

  1. bed ratna shukla

    June 18, 2015 at 7:11 am

    चांडाल चौकड़ी कबिज है. लिखुंगा तफ्सील से.

  2. mukesh kul

    June 19, 2015 at 12:41 pm

    yuva jisdin media my aata hy troma center my hi ho ta hy koi nai bat nahi hy insan mar gaya hy sabhi ka sirf dua karo dost my to yahi kar raha hu

  3. alok

    June 19, 2015 at 5:43 pm

    धीरज पाण्डेय भी ग्रेटर नॉएडा मैं तैनात दिलीप चतुर्वेदी की तरह मठाधीशो की बटरिंग किये होते तो आज ये समस्या न होती. दिलीप ke लिए तो अमर उजाला ने सभी की एक एक दिन की पगार ही काट ली थी. उनकी किडनी ट्रांसप्लांट होनी थी. MD का कोई दोष नहीं है. चापलूस संपादको का कमाल है. भगवन kare धीरज आप जल्दी ठीक हो जाये.

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