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सुख-दुख

पहले प्रधानमंत्री मौनी था, अब ढोंगी है!

Anil Singh : देश ने दस साल तक मनमोहन सिंह जैसे मौनी प्रधानमंत्री को झेला। अब मोदी के रूप में उसे ढोंगी प्रधानमंत्री को झेलना पड़ रहा है। मन की बात में मोदी ने कहा था कि ड्रग्स का धन आतंकवादियो को जाता है। अब पता चला है कि पंजाब में उनकी ही साझा सरकार के मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ड्रग्स के धंधे में लिप्त हैं। यही नहीं, मजीठिया मोदी सरकार की मंत्री हरसिमरत कौर के छोटे भाई हैं। ड्रग्स रैकेट के मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है जो केवल मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर सकता है, इस मामले की सही जांच सीबीआई ही कर सकती है। हर जगह बातों की तोप दागनेवाले प्रधानमंत्री आखिर धर्म-परिवर्तन पर संसद में आकर बयान क्यों नहीं दे रहे! क्या यह देश के सर्वोच्च सदन की अवमानना नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि जनता से झूठ बोलकर सत्ता में पहुंचे नमो को अपने बेनकाब होने का डर सताने लगा है! दिक्कत यह है कि विकल्पहीनता के चक्कर में अवाम के सामने इस ढोंगी और वाचाल को चुनने के अलावा कोई विकल्प भी तो नहीं है। दिल्ली में यकीनन विकल्प है, लेकिन उसे भी सर्वे का शंख बजाकर दबाने की कोशिश की जा रही है।

ताऊ बोल्या, ये तो मने शकल से ही स्मगलर लागे से…

Anil Singh : देश ने दस साल तक मनमोहन सिंह जैसे मौनी प्रधानमंत्री को झेला। अब मोदी के रूप में उसे ढोंगी प्रधानमंत्री को झेलना पड़ रहा है। मन की बात में मोदी ने कहा था कि ड्रग्स का धन आतंकवादियो को जाता है। अब पता चला है कि पंजाब में उनकी ही साझा सरकार के मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ड्रग्स के धंधे में लिप्त हैं। यही नहीं, मजीठिया मोदी सरकार की मंत्री हरसिमरत कौर के छोटे भाई हैं। ड्रग्स रैकेट के मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है जो केवल मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर सकता है, इस मामले की सही जांच सीबीआई ही कर सकती है। हर जगह बातों की तोप दागनेवाले प्रधानमंत्री आखिर धर्म-परिवर्तन पर संसद में आकर बयान क्यों नहीं दे रहे! क्या यह देश के सर्वोच्च सदन की अवमानना नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि जनता से झूठ बोलकर सत्ता में पहुंचे नमो को अपने बेनकाब होने का डर सताने लगा है! दिक्कत यह है कि विकल्पहीनता के चक्कर में अवाम के सामने इस ढोंगी और वाचाल को चुनने के अलावा कोई विकल्प भी तो नहीं है। दिल्ली में यकीनन विकल्प है, लेकिन उसे भी सर्वे का शंख बजाकर दबाने की कोशिश की जा रही है।

ताऊ बोल्या, ये तो मने शकल से ही स्मगलर लागे से…

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I hate this person from the bottom of my heart, इसलिए नहीं कि इसने मेरा कुछ बिगाड़ा है, बल्कि इसलिए इसने सत्यमेव जयते के इस देश में झूठ की जीत का सिक्का जमाया है। मुझे इसमें और फेयरनेस क्रीम बेचनेवाली हिंदुस्तान यूनिलीवर में कोई फर्क नहीं दिखता। आप लोगों को पसंद है तो अच्छा है। यह देश का भविष्य संवार दे तो बहुत ही अच्छा है। लेकिन जो सत्ता झूठ और हिंसा-प्रतिहिंसा के दम पर हासिल की गई हो, भावनाओं के उबाल पर हासिल की गई हो, वह कभी भी देश और अवाम का भला नहीं करती। दुनिया इसकी गवाह है। भावनाओं की चासनी तो देखिए कि आप जैसे तमाम समझदार लोग भी बहे जा रहे हैं, छलावे में बहके जा रहे हैं।

रेलवे का प्राइवेटाइजेशन नहीं तो 100% एफडीआई क्या है! प्रधानमंत्री मोदी ने बनारस में डीजल इंजिन बनाने के डीएलडब्ल्यू कारखाने में बार-बार ज़ोर देकर कहा कि रेलवे का ‘प्राइवेटाइजेशन’ नहीं किया जाएगा। इस बाबत यूनियन के लोग झूठी अफवाह फैला रहे हैं। उन्होंने कर्मचारियों से कहा कि आप लोग तो 22-25 साल के होकर रेलवे से जुड़े होंगे, जबकि उनका जुड़ाव बचपन से है। इसलिए वे रेलवे का निजीकरण नहीं होने देंगे। जो होगा, वह कर्मचारियों और देश के भले के लिए होगा। मोदी ने कहा कि रेलवे में रुपया आए, डॉलर आए या पाउंड आए, क्या फर्क पड़ेगा। लेकिन उनकी सरकार ने रेलवे में जिस 100% एफडीआई या प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी है, उसका मतलब 100% स्वामित्व से है। विदेशी पूंजी कोई खैरात बांटने के लिए निवेश नहीं करती। 49% के बजाय वो 100% इसीलिए चाहती है कि उसे शत-प्रतिशत मालिकाना चाहिए। मोदी सरकार ने रेलवे के जिन 17 प्रमुख क्षेत्रों में 100 प्रतिशत विदेशी मालिकाने की इजाज़त दी है उसमें इंजिन व कोच निर्माण, रेलवे का विद्युतीकरण, रेलवे टेक्निकल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की स्थापना और हाई स्पीड ट्रेन प्रोजेक्ट शामिल हैं। क्या सत्यनिष्ठ महामना मोदी जी यह बताना चाह रहे थे कि विदेशी पूंजी को ऐसे कामों का मालिकाना देना रेलवे का ‘प्राइवेटाइजेशन’ नहीं है। या, उनको मालूम है कि जनता को जो बोल दो, सच मान लेगी; उसे अंदर घुसकर समझने की फुरसत कहां है! मित्रों, सच देख लेता हूं तो कह देता हूं। आपको इसमें नकारात्मकता दिखे तो मैं कुछ नहीं कर सकता। सच देखने और कहने की आदत से विवश हूं।

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मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार और अर्थ कॉम डॉट कॉम के संस्थापक संपादक अनिल सिंह के फेसबुक वॉल से.

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0 Comments

  1. Ashish Ranjan

    January 3, 2015 at 9:46 am

    Dilli mai vikalp? kaun? kejriwal bhagoda? makkar insaaan!

  2. vishal

    January 3, 2015 at 5:35 pm

    Maza aa gya koi himmat se likha warna sab dabaav me aakar chup ho jate h salute u

  3. इंसान

    January 4, 2015 at 2:41 am

    सैंकड़ों वर्षों बाद केंद्र में पहली बार राष्ट्रवादी शासन स्थापित हो पाया है और मुझे खेद है कि देश-द्रोही तत्वों को बल देते मोदी विरोधी विचार पत्रकारिता की मर्यादा का उल्लंघन कर रहे हैं। सोचता हूँ कि भारतीय उप महाद्वीप में वरिष्ठ पत्रकार जैसी मानसिकता वाले मूल निवासियों पर मुट्ठी भर फिरंगियों ने कितनी सरलता से प्रभुत्व प्राप्त कर लिया होगा! मैं चाहूंगा कि कोई उचित शासकीय नियामक विभाग लेखक द्वारा मोदी जी के लिए अपमानजनक और अभियोगात्मक विचारों के लिए जवाबदेही मांगे।

  4. Rajeev

    January 4, 2015 at 5:24 am

    Dear Mr.Singh, i am surprised that a sr jorno like u hav made such a comment….Can u pls suggest one name who can carry himself better that Modi ji in the international arena?Hope u wil not say Anil Singh. You fail to understand that Modi ji has has brought about a massive change in the global and äsia pacific diplomacy(which u call dhongi)….who is not dhongi tell me…..U,me? We are all split personalities,what u call dhongi in a crude language…..to criticize is in DNA of an Indian….try to be a critic…..Mr.Singh…..just let me know one better and bigger dhongi that Modi ji???I am waiting for ur reply…….

  5. Hari lal yadav

    January 4, 2015 at 7:48 am

    Kaun hai yeh Anil singh…
    khaa mukha Modi ko gaali dekar khud ko jatana chahata.. hai..

    bhai baraak obama ko gali do
    nawaz ko gaali do…
    kuch nahi… to khud ko gaali do…
    lekin to 125 caror logo ke liye je raha hai usko gaali naa do…

    aap to jeewan bhar khud ke liye jiye hai.. kabhi samaj ke liye bhai jeeye hai.. aap…

  6. amit

    January 8, 2015 at 1:30 am

    तो ये साबित हुआ अनिल कि तू गांडू है तुझे बोलने लिखने की भी तमीज नहीं, लालू-ममता का सगे वाला है क्या तू। जा मर।

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