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सुख-दुख

धूर्त संत और निर्भीक पत्रकार

हरियाणा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति के हत्यारे तथाकथित संत या संतों के कलंक गुरमीत राम रहीम और उसके तीन चेलों को उम्रकैद की सजा हुई है। इस फैसले का सारे देश में स्वागत होगा। 16 साल बाद यह फैसला आया, लेकिन सही आया, बड़े संतोष का विषय है।

स्वर्गीय रामचंद्र छत्रपति एक अत्यंत निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकार थे। वे पत्रकार तो थे ही, मूलतः वे समाजसेवी थे। वे हमारे साथी थे। वे स्वामी अग्निवेशजी और मेरे साथ समाज-सुधार के आंदोलनों में जुटे रहते थे। वे आर्यसमाज द्वारा चलाए गए अभियानों में अग्रणी भूमिका निभाते थे। वे सार्वदेशिक आर्य युवक परिषद के प्रधान थे।

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जब डेरा सच्चा सौदा के सरगना गुरमीत ने ‘सच कहूं’ पत्र निकाला तो रामचंद्र ने ‘पूरा सच’ नाम का जवाबी पत्र निकाला। उन्हें धमकियां मिलती रहती थीं। उस पत्र के प्रकाशन से उन्हें कोई खास आर्थिक लाभ भी नहीं होता था लेकिन उन्होंने आर्यसमाज के संस्थापक महान संन्यासी स्वामी दयानंद सरस्वती से सीखा था कि सत्य की रक्षा के लिए मृत्यु का वरण करना हो तो उसके लिए भी तैयार रहना चाहिए। वही हुआ। उनकी हत्या कर दी गई।

बिल्कुल वैसा ही साहस एक अन्य आर्यसमाजी चौधरी कर्मवीर ने किया है। उन्होंने ‘संत’ आसाराम की पोल खोल दी है। उनकी बेटी के साथ हुए दुराचार का भांडाफोड़ करके उन्होंने अपनी जान खतरे में डाल रखी है। राम रहीम और आसाराम के कांड में दर्जनों लोगों की हत्या हुई है लेकिन फिर भी इन दोनों ‘संतों’ को कोई बचा नहीं पाया है।

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आजकल साधुगीरी बहुत बड़ा धंधा बन गया है। हमारे नेता, जो वोट और नोट के गुलाम होते हैं, वे जा-जाकर इन पाखंडी संतों और साधुओं के चरणों में मत्था टेकते हैं। ये साधु इन नेताओं को उल्लू बनाते हैं और ये नेता भी उन्हें उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं।

मैं पाठक-मित्रों से कहता हूं कि आप इस उल्लूगीरी से सावधान रहा कीजिए। किसी भी संत और नेता को भुगते बिना उस पर कभी विश्वास मत कीजिए। जहां तक स्वर्गीय रामचंद्र छत्रपति का सवाल है, उन्हें निर्भीक पत्रकारिता का राष्ट्रीय सम्मान मिलना चाहिए। उनके नाम पर हरयाणा सरकार को बड़ा पुरस्कार स्थापित करना चाहिए।

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लेखक डा. वेद प्रताप वैदिक देश के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.

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