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सुख-दुख

अगर आप SC, ST, OBC हैं तो बाकियों के बराबर होने से काम नहीं चलेगा : दिलीप मंडल

Dilip Mandal : आज शायद पहली बार मेरी अपनी कहानी. जब मैं पत्रकारिता में आया तो हर दिन कम से कम दस अखबार पढ़ता था. क्योंकि मेरे नाम के पीछे जो लगा है, उसके साथ अगर मैं अपने साथ वालों से दोगुनी जानकारी न रखता, तो मुझे बराबर का भी न माना जाता. बाकी लोग न पढ़कर भी जानकार माने जाने का सुख ले सकते थे. उनका ज्ञानी होना स्वयंसिद्ध था. यह उनके टाइटिल में था. पिता के टाइटिल में था.

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Dilip Mandal : आज शायद पहली बार मेरी अपनी कहानी. जब मैं पत्रकारिता में आया तो हर दिन कम से कम दस अखबार पढ़ता था. क्योंकि मेरे नाम के पीछे जो लगा है, उसके साथ अगर मैं अपने साथ वालों से दोगुनी जानकारी न रखता, तो मुझे बराबर का भी न माना जाता. बाकी लोग न पढ़कर भी जानकार माने जाने का सुख ले सकते थे. उनका ज्ञानी होना स्वयंसिद्ध था. यह उनके टाइटिल में था. पिता के टाइटिल में था.

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जनसत्ता, कोलकाता में जब मैं काम करता था, तो न्यूज डेस्क पर सबके बराबर काम करता था. यानी आठ से दस घंटे. लेकिन इसके अलावा, ऑफिस आने से पहले, मैं हर रोज तीन-चार घंटे की रिपोर्टिंग अलग से करता था. इसके अलावा ए़डिट पेज के लिए लेख भी लिखता था. डेस्क के लोग आम तौर पर यह नहीं करते थे. मैं हर रिपोर्टिंग दिन करता था. मेरा वर्किग आवर औरों से डेढ़ गुना था. इस वजह से कम सोता था. यह मेरी च्वाइस थीं. वरना, मेरा भी काम सिर्फ ऑफिस वर्क से चल जाता.

लेकिन मुझे सिर्फ काम नहीं चलाना था. सबके कम उम्र में संपादक बनना था. यह सब इसलिए बता रहा हूं कि अगर आप SC, ST, OBC हैं तो बाकियों के बराबर होने से काम नहीं चलेगा. औरों से दोगुना तक ज्यादा मेहनत करेंगे, उनसे बेहतर करेंगे, तब कहीं बराबर के माने जाएंगे.

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आपका ज्ञान, आपका पांडित्य स्वयंसिद्ध नहीं है. हर दिन उसे साबित करना पड़ेगा. बराबर होने से आपका काम नहीं चलने वाला. आपको ज्यादा करना होगा. इंडिया टुडे का पहला मैनेजिंग एडिटर होने के बावजूद, या तमाम शीर्ष पदों पर होने के बावजूद मेरा टैलेंट स्वयंसिद्ध नहीं है. मीडिया की सबसे पॉपुलर किताब लिखने के बावजूद मेरी प्रतिभा स्वयंसिद्ध नहीं है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस के लिए मेरा चैप्टर लिखना भी मुझे टैलेंटेड कहे जाने के लिए काफी नहीं है.

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अब भी मैं नियमित लाइब्रेरी में पाया जाता हूं. मुझे आज भी साबित करना पड़ता है कि मुझे अपना काम आता है. इससे मेरा कोई नुकसान नहीं हुआ है. हमेशा अपटूडेट रहना पड़ता है. यह अच्छी बात है. है कि नहीं?

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल की एफबी वॉल से.

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0 Comments

  1. MK Rahi

    February 3, 2017 at 8:22 pm

    Dear Dilip ji, kaise hain? Maine kai baar apko bhadas ke madhyam se apna parichai diya aur sath me apna mobile no. bhi. Kyonki humlog Jansatta Kolkata me ek sath join kiye aur kaam kiye. Uske baad aapka koi pataa nahi chal paya. Pl. contact me or give your mobile no. via bhadas.
    Mera mobile no. hai.. 9935833496
    Aapney jo likha hai, wo ekdam do sau fisadi sahi hai. Aur mai aapki karmathta, kaam karney ke prati wafadari etc. etc. ka jeeta-jaagta gawah hoon.
    Manoj Rahi

  2. rajesh raj

    February 5, 2017 at 1:42 am

    वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने अपने बारे में फिर एक पोस्ट लिखी है, जिसमें उन्होंने खुद को मीडिया के शीर्ष पदों पर स्थापित बताया है।

    दरअसल, इस तरह की पोस्ट लिख कर दिलीप मंडल अपना कुछ मार्केट भाव बनाना चाह रहे हैं। न तो कभी ये मीडिया के कथित शीर्ष पद पर रहे हैं, न ही इनके लिए इण्डिया टुडे में मैनेजिंग एडिटर का पद बनाया गया था। इण्डिया टुडे से पहले वे जिस किसी मीडिया संस्थान में रहे हैं, वे सभी बहुत छोटे और जूनियर स्तर के पद थे।

    ये एम जे अकबर साहब के पुछल्ले के रूप में इंडिया टुडे में आये थे और इन्हें सीधे “एक्सक्यूटिव एडिटर” बना दिया गया था। ये इण्डिया टुडे के “एडीटर” कभी नहीं रहे।

    चूँकि इन्हें पत्रकारिता का कोई खास अनुभव नहीं था और इनके द्वारा मीटिंग में रखे गए स्टोरी आइडिया हास्यास्पद हुआ करते थे, इसलिए यहाँ इन्हें ‘एक्सक्यूटिव एडिटर’ बनाये रखना कठिन हो गया। फेसबुक पर 100 शब्दों में ज्ञान बधारने और कॉपी पेस्ट कर पीएचडी थीसिस और किताब लिखने से जरुरी नहीं कि आदमी अच्छा पत्रकार भी बन जाये।

    इनके शरद यादव, पप्पू यादव और एन डी तिवारी से अच्छे तालुकात थे, जिसका हवाला ये गाहे-बेगाहे दिया करते थे। लेकिन यहाँ इन नामों कोई पूछता न था।
    बाद में मैनेजमेंट को इन्होंने विश्वास दिलाया कि
    वे अपनी जातिगत स्थिति के कारण लालू , मुलायम, मायावती, नीतीश आदि से भी अच्छे सम्बन्ध बना कर विज्ञापन जुटा सकते हैं। उन दिनों इण्डिया टुडे हिंदी विज्ञापन की कमी से बुरी तरह जूझ रहा था। इसी कारण इन्हें “मैनेजिंग एडिटर” बना कर कुछ समय तक मैनेजमेंट ने एक प्रयोग किया। लेकिन न इन नेताओं ने इन्हें घास डाली न एक भी विज्ञापन न आया। सर्कुलेशन पहले ही बहुत गिर चुका था। नतीजतन इण्डिया टुडे मैनेजमेंट ने इनका कांट्रैक रिन्यू नहीं किया और ये बाहर कर दिए गए। लेकिन इस आदमी शातिर दिमाग देखिये कि पिछले 3 साल से यह उसी इण्डिया टुडे को बेच कर अगला जुगाड़ करने में लगा।

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