Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

तुम्हारी मौत पहाड़ से भारी है : दिलीप मंडल

Dilip C Mandal : मैं अब खाली हो गया हूं, बिल्कुल खाली.  मैं अपनी सबसे प्रिय दोस्त के लिए अब पानी नहीं उबालता. उसके साथ में बिथोवन की सिंफनी नहीं सुनता. मोजार्ट को भी नहीं सुनाता. उसे ऑक्सीजन मास्क नहीं लगाता. उसे नेबुलाइज नहीं करता. उसे नहलाता नहीं. उसके बालों में कंघी नहीं करता. उसे पॉल रॉबसन के ओल्ड मैन रिवर और कर्ली हेडेड बेबी जैसे गाने नहीं सुनाता. गीता दत्त के गाने भी नहीं सुनाता. उसे नित्य कर्म नहीं कराता. उसे कपड़े नहीं पहनाता. उसे ह्वील चेयर पर नहीं घुमाता. उसे अपनी गोद में नहीं सुलाता. उसे हॉस्पीटल नहीं ले जाता.

Dilip C Mandal : मैं अब खाली हो गया हूं, बिल्कुल खाली.  मैं अपनी सबसे प्रिय दोस्त के लिए अब पानी नहीं उबालता. उसके साथ में बिथोवन की सिंफनी नहीं सुनता. मोजार्ट को भी नहीं सुनाता. उसे ऑक्सीजन मास्क नहीं लगाता. उसे नेबुलाइज नहीं करता. उसे नहलाता नहीं. उसके बालों में कंघी नहीं करता. उसे पॉल रॉबसन के ओल्ड मैन रिवर और कर्ली हेडेड बेबी जैसे गाने नहीं सुनाता. गीता दत्त के गाने भी नहीं सुनाता. उसे नित्य कर्म नहीं कराता. उसे कपड़े नहीं पहनाता. उसे ह्वील चेयर पर नहीं घुमाता. उसे अपनी गोद में नहीं सुलाता. उसे हॉस्पीटल नहीं ले जाता.

उसे हर घंटे कुछ खिलाने या पिलाने की अक्सर असफल और कभी-कभी सफल होने वाली कोशिशें भी अब मैं नहीं करता. उसकी खांसने की हर आवाज पर उठ बैठने की जरूरत अब नहीं रही. मैं अब उसका बल्ड प्रेशर चेक नहीं करता. उसे पल्स ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर लगाने की भी जरूरत नहीं रही. मेरे पास अब कोई काम नहीं है. हर दिन नारियल पानी लाना नहीं है. फ्रेश जूस बनाना नहीं है. उसके लिए हर दिन लिम्फाप्रेस मशीन लगाने की जरूरत भी खत्म हुई.

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह सब करने में और उसके के साथ खड़े होने के लिए हमेशा जितने लोगों की जरूरत थी, उससे ज्यादा लोग मौजूद रहे. उसकी बहन गीता राव, मेरी बहन कल्याणी माझी और उसकी भाभी पद्मा राव से सीखना चाहिए कि ऐसे समय में अपने जीवन को कैसे किसी की जरूरत के मुताबिक ढाल लेना चाहिए. इस लिस्ट में मेरे बेट अरिंदम को छोड़कर आम तौर पर सिर्फ औरतें क्यों हैं? देश भर में फैली उसकी दोस्त मंडली ने इस मौके पर निजी प्राथमिकताओं को कई बार पीछे रख दिया.

यह अनुराधा के बारे में है, जो हमेशा और हर जगह, हर हाल में सिर्फ आर. अनुराधा थी. अनुराधा मंडल वह कभी नहीं थी. ठीक उसी तरह जैसे मैं कभी आर. दिलीप नहीं था. फेसबुक पर पता नहीं किस गलती या बेख्याली से यह अनुराधा मंडल नाम आ गया. अपनी स्वतंत्र सत्ता के लिए बला की हद तक जिद्दी आर. अनुराधा को अनुराधा मंडल कहना अन्याय है. ऐसा मत कीजिए.

Advertisement. Scroll to continue reading.

कहीं पढ़ा था कि कुछ मौत चिड़िया के पंख की तरह हल्की होती है और कुछ मौत पहाड़ से भारी. अनुराधा की मृत्य पर सामूहिक शोक का जो दृश्य लोदी रोड शवदाह गृह और अन्यत्र दिखा, उससे यह तो स्पष्ट है कि अनुराधा ने हजारों लोगों के जीवन को सकारात्मक तरीके से छुआ था. वे कई तरह के लोग थे. वे कैंसर के मरीज थे जिनकी काउंसलिंग अनुराधा ने की थी, कैंसर मरीजों के रिश्तेदार थे, अनुराधा के सहकर्मी थे, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता थे, प्रोफेसर थे, पत्रकार, डॉक्टर, नाटककार, संस्कृतिकर्मी, अन्य प्रोफेशनल, पड़ोसी और रिश्तेदार थे. कुछ तो वहां ऐसे भी थे, जो क्यों थे, इसकी जानकारी मुझे नहीं है. लेकिन वे अनुराधा के लिए दुखी थे. किसी महानगर में किसी की मौत को आप इस बात से भी आंक सकते हैं कि उससे कितने लोग दुखी हुए. यहां किसी के पास दुखी होने के लिए फालतू का समय नहीं है.

अनुराधा बनना कोई बड़ी बात नहीं है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

आप भी आर. अनुराधा हैं अगर आप अपनी जानलेवा बीमारी को अपनी ताकत बना लें और अपने जीवन से लोगों को जीने का सलीका बताएं. आप आर. अनुराधा हैं अगर आपको पता हो कि आपकी मौत के अब कुछ ही हफ्ते या महीने बचे हैं और ऐसे समय में आप पीएचडी के लिए प्रपोजल लिखें और उसके रेफरेंस जुटाने के लिए किताबें खरीदें और जेएनयू जाकर इंटरव्यू भी दे आएं. यह सब तब जबकि आपको पता हो कि आपकी पीएचडी पूरी नहीं होगी. ऐसे समय में अगर आप अपना दूसरा एमए कर लें, यूजीसी नेट परीक्षा निकाल लें और किताबें लिख लें, तो आप आर. अनुराधा हैं.

दरवाजे खड़ी निश्चित मौत से अगर आप ऐसी भिड़ंत कर सकते हैं तो आप हैं आर. अनुराधा.

Advertisement. Scroll to continue reading.

जब फेफड़ा जवाब दे रहा हो और तब अगर आप कविताएं लिख रहें हैं तो आप बेशक आर. अनुराधा हैं. आप आर अनुराधा हैं अगर कैंसर के एडवांस स्टेज में होते हुए भी आप प्रतिभाशाली आदिवासी लड़कियों को लैपटॉप देने के लिए स्कॉलरशिप शुरू करते हैं और रांची जाकर बकायदा लैपटॉप बांट भी आते हैं. अगर आप सुरेंद्र प्रताप सिंह रचना संचयन जैसी मुश्किल किताब लिखने के लिए महीनों लाइब्रेरीज की धूल फांक सकते हैं तो आप आर अनुराधा हैं.

अगर आप अपने जीवन के 100 साल में भी ऐसे शानदार 47 साल जीने की सोचते हैं तो आप आर अनुराधा हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.

और हां, अगर आप कार चलाकर मुंबई से दिल्ली दो दिन से कम समय में आ सकते हैं तो आप आर अनुराधा हैं. थकती हुई हड्डियों के साथ अगर आप टेनिस खेलते हैं और स्वीमिंग करते हैं तो आप हैं आर अनुराधा. अगर महिला पत्रकारों का करियर के बीच में नौकरी छोड़ देना आपकी चिंताओं में हैं और यह आपके शोध का विषय है तो आप आर. अनुराधा हैं. अपना कष्ट भूल कर अगर कैंसर मरीजों की मदद करने के लिए आप अस्पतालों में उनके साथ समय बिता सकते हैं, उनको इलाज की उलझनों के बारे में समझा सकते हैं, उन मरीजों के लिए ब्लॉग और फेसबुक पेज बना और चला सकते हैं तो आप आर. अनुराधा हैं.

आप में से जो भी अनुराधा को जानता है, उसके लिए अनुराधा का अलग परिचय होगा. उसकी यादें आपके साथ होंगी. उन यादों की सकारात्मकता से ऊर्जा लीजिए.

Advertisement. Scroll to continue reading.

अलविदा मेरी सबसे प्रिय दोस्त, मेरी मार्गदर्शक.
तुम्हारी मौत पहाड़ से भारी है.

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.

मूल खबर….

आर. अनुराधा का निधन

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. MUKESH KUMAR SINGH

    June 17, 2014 at 6:42 pm

    धन्यवाद, दिलीप!
    अनुराधा को खूब जानने-बूझने के बावजूद जैसे तुमने उनके परिचय को उकेरा, वो बेहद मर्मस्पर्शी और प्रेरक है! अनुराधा को मैं भी तब से ही जानता हूँ, जब से तुम। तुम्हें-उनकी और उन्हें-तुम्हारी ताक़त, प्रेरणा और सम्बल बनते हुए देखकर हमेशा ख़ुशी और गर्व होता रहा!
    तुम दोनों की जैसी प्रति छाया राजू (अरिन्दम) के रूप में सामने है, वो भी अतुलनीय है! सौम्यता के लिहाज़ से तो वो बचपन से ही तुम दोनों को भी पछाड़ता रहा है! उसे मेरा हर तरह का आशीर्वाद!
    अनुराधा की कमी तो कोई नहीं भर पाएगा। वैसा अद्भुत दोस्त तो दुर्लभ ही बना रहेगा! अलबत्ता, नैनो संस्करण के रूप में नाचीज़ का तुम्हारे लिए हमेशा हाज़िर है! अनुराधा के दूर चले जाने से उपजा शून्य तो अनन्त है, लेकिन उसकी जोत शायद ही बुझे!
    मुकेश कुमार सिंह

  2. virendra azam

    June 18, 2014 at 3:45 pm

    दिलीप जी, अनुराधा जी का निधन! बस इतना भर है कि वह आपके साथ सषरीर नहीं है, आपकी गोद में उनका सिर नहीं है,बेटे के सिर पर उनका ममत्व भरा हाथ नहीं है। लेकिन अनुराधा जी आपकी,अपने मित्रों व प्रषंसकों की स्मृति में हर पल जीवित है। वह जीवित हैं पीएचडी के उस प्रपोजल में, वह जीवित है रेफरेंस जुटाने के लिए खरीदी गयी किताबों में, वह जीवित है उस तहरीर में जो किसी भी कागज पर उनकी कलम से लिखी गयी थी। वह जीवित है आपके हर उस अहसास में जो सकारात्मक हैं। वह जीवित है घर की हर दरों-दीवार में, निष्चित ही वह हर समय आपके आस-पास है और हमेषा रहेगी। हां, सषरीर न होने की कमी सब मित्रों, बहनों को खलेगी और विशेषकर आपको। आपको कमी खलेगी उस वक्त जब आप अपने जीवन के कुछ पन्ने उनसे षेयर करने की जरुरत महसूस करेगें। आपने एक दोस्त के रुप में उनकी जो सेवा की उसके लिए आप अनुकरणीय भी है और अभिनंदनीय भी। अनुराधा जी की जिजीविषा को सैल्यूट। बस! जीवन का एक सच यह भी है……….जहां हम विवश है। आपके और उनके प्रषंसकों के लिए यह समाचार दुखद है……विनम्र श्रद्धांजली!…………वीरेन्द्र आज़म, सहारनपुर

  3. Rajesh Tripathi

    July 9, 2014 at 10:13 am

    प्रिय दिलीप भाई,। भड़ास में अनुराधा जी की स्मृति में लिखी गयी दिलीप भाई की संघर्ष-गाथा से गुजरा। एक-एक शब्द दिल हिला गया, द्रवित कर गया। आप जैसा हिम्मती और हृदय से मजबूत व्यक्ति ही आपके ही शब्दों में पहाड़ से भी भारी दुख को इतनी सहजता से झेल सकता है। मैं आपको जानता हूं इसलिए दावे से कह सकता हूं कि आप भी भीतर-ही भीतर टूट और अधूरे हो गये होंगे। पत्नी को सहधर्मिणी और अर्धांगिनी कहा जाता है, अगर इसे सही अर्थों में समझा जाये तो इसका मतलब यह है कि उसके दर्द, उसकी परेशानी, जिंदगी के हर ऊंच-नीच के भी आप सहभागी होते हैं। आपको अनुराधा जी के दर्द में सहभागी कहना आपकी भावना और भाव दोनों के प्रति बेईमानी होगी। आपने ने तो उनकी तकलीफ खुद भी झेली है। आपके लिखे पर गौर करें तो लगता है जैसे उनके जीवन के हर गुजरते पल, हर आती-जाती सांस के आप न सिर्फ गवाह बल्कि खैरख्वाह रहे हैं। आपके दुख के इन क्षणों को वही जानता होगा जो किसी अपने से टूट कर और जी भर प्यार करता हो। सच्चा प्यार उसे कहते हैं जो दुनिया में एक मिसाल बन जाये। आपने वह मिसाल कायम ही है, आपने वह धर्म निभाया है जिसकी शपथ वैदिक ढंग से हुए विवाह में पति-पत्नी दोनों को दिलायी जाती है- हम एक-दूसरे के कष्ट में सहभागी बनेंगे। इस आलेख का एक-एक शब्द अनुराधा जी के साहस, उनकी एक लाइलाज बीमारी को (जहां अंत निश्चित और निकट होता है) धता बता कर अपने कर्तव्य का सम्यक और सुचारु रूप से पालन करने का जज्बा, ऐसी बीमारी से ग्रस्त लोगों को बची हुई जिंदगी सही ढंग से गुजारने को प्रेरित करेगा। इस असाध्य बीमारी से लड़ते लोगों के लिए वे जीते-जी भी प्रेरणा रहीं, उनके जाने के बाद भी उनका जीवट, उनका साहस ऐसे लोगों का पाथेय बनेगा। उन्हें लगेगा कि जितने पल जिंदगी के बचे हैं उन्हें तो इत्मीनान से जी लिया जाये। मरना तो है ही उसके लिए रोज-रोज क्या मरना। प्रभु उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें। आपके लिए मैं परंपरागत शब्द ईश्वर आपको यह दुख सहने का धैर्य दे कह कर आपके अनुराधा जी के प्रति अथाह और असीम प्यार, उनके प्रति आपके समर्पण के भाव को को अपमानित नहीं करना चाहता। आप धैर्यवान हैं, आपके सामने अभी अनुराधा जी की उस स्मृति को संवारने, उसे एक सही और सफल इनसान बनाने का कार्य है जो वे अपने पीछे छोड़ गयी हैं। मेरा आशय चिरंजीव अरिंदम से है। वह आपके पास अनुराधा जी का ही प्रतिरूप है। अबसे उसमें ही उन्हें देखिए और इतना प्यार कीजिए कि उसे मां की कमी महसूस न हो (हालांकि यह इतना आसान नहीं) । आप ऐसा कर पायेंगे मुझे पूरा यकीन है क्योंकि दिलीप चंद्र मंडल जैसे जीवट और जज्बे वाले लोग कभी टूटते नहीं। जिंदगी में आये तूफानों से कुछ समय के लिए विचलित भले हो जाते हों लेकिन संभल जाते हैं। आप भी संभलेंगे और बाकी की जिंदगी अरिंदम को आगे बढ़ाने उसे ऐसे ऊंचे मुकाम तक पहुंचाने में लगायेंगे, जिसे देख कर सब यही करें कि पिता हो तो दिलीप जी जैसा, जिसने पीड़ा के हलाहल को पीकर, दर्द में भी मुसकरा कर अपने लाड़ले को संवार दिया, उसे दुनिया का कोई गम न छू सके इतना प्यार-दुलार दिया।-राजेश त्रिपाठी, कोलकाता

  4. DR Subodh Agnihotri

    October 6, 2014 at 3:49 am

    Dilip ji Aaap Log Uttarakhand open University Aaye the Mere Jehan me sari Smaratiya Maujood hain…Anuradha ji ne kafi babaki se apne vichar rakhe the…is news se mai kafi aahat hoon.. uperwala aapko takat de..pure pariwar ko takat de…cancer ka dard mai janta hoon..meri mother bhi isi rog se chali gayee..Anuradhaji ki atma ko shanti….
    Dr Subodh, Associate Professor and Head
    Deptt of Journalism. Vardman Mahaveer open University Kota (Raj)

  5. manoj Kumar

    December 2, 2014 at 7:17 pm

    Dear Dilip ji, Aapke dukhon ko main dil se mahsoos kar rahaa hoon. Apko pataa nahin, mainey aapko kahaan nahin talasha. Bhadas ke madhyam se aapka mail ID aur phone ka bhi request kiya thha, par milaa nahin. Aaj aap miley bhi to itni bhavuk byatha ke saath…
    Aap sey miley lagbhag 20-22 saal ho gaye, jab aap Jansatta, Kolkata mein thhey. Please give your mail ID or Mobile No…. my mail ID is : [email protected]

  6. manoj rahi

    September 4, 2016 at 8:31 pm

    Dear Dilip ji,mainey kai baar bhadas ke madhyam se aapse contact kerna chaha, par vyarth raha. Na aapney dhyan diya, aur na hi bhadas ke Yashvant ji ne…!!
    Aapsey ek nivedan hai ki ya to apna phone no. mujhe dein, ya mujhe call karein….
    Manoj

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement