आलोक पराड़कर-
दिनेश सेठ नहीं रहे! उनसे केवल छायाकार और पत्रकार वाला संबंध नहीं था, वे मेरे अग्रज, पड़ोसी और मित्र थे। बनारस में मेरे घर से कुछ ही दूरी पर गोलघर में वे रहते थे लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि मैं उधर से गुजरूं और उनसे मिलता चलूं।
मैंने करीब तीन दशक पूर्व जब पत्रकारिता शुरू की तो मैं ज्यादातर केवल उनसे मिलने ही उनकी गली में जाया करता था। कई बार उनके दरवाजे के पास इंतजार करता था। आश्चर्य लग सकता है कि किसी से इतना पुराना परिचय रहा हो मगर यह बिल्कुल सच है कि उन्होंने कभी घर के भीतर नहीं बुलाया। शायद इसके पीछे घर के पुराने और खंडहर होते जाने की वजह भी हो सकती है।
मुझे उनकी नौकरी का भी कभी पता नहीं चला। इन वजहों से कई बार ऐसा भी लगता कि शायद उन्हें आर्थिक संकट भी रहा हो लेकिन फिर एक बार बनारस में यह खबर बहुत तेज फैली कि शहर में अगर सबसे महंगा कैमरा किसी के पास है तो वह दिनेश सेठ के पास है। ऐसे कई रहस्य उनके व्यक्तित्व का हिस्सा थे। कई बार काफी दिनों के लिए गायब हो जाते, फिर अचानक प्रकट होते।
पता चलता कि मोटरसाइकिल से दूर यात्रा पर निकल गए थे। भाई के पास पिस्तौल भी थी और काफी महंगी थी। फिर पता चली कि वे निशानेबाजी की प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं। एनआईपी और अमृत प्रभात के दिनों में उनके चित्र वहां दिखते थे। इतना जरूर था कि जब भी मैंने उनसे कोई चित्र मांगा,उन्हें कहीं ले जाना हुआ, उन्होंने कभी मना नहीं किया।
अभी दो-तीन वर्ष पूर्व ही उन्होंने मेरे लिए बनारस के घाटों पर एक फोटो शूट भी किया था। यह भी एक सच्चाई है कि मैं उनके ज्यादातर चित्रों का भुगतान नहीं कर सका। हिंदी में स्वतंत्र लेखन की जो स्थिति है उसमें इसकी गुंजाइश भी कम होती। कई बार नाम और पैसा दोनो मिलता तो खुश भी हो जाते। उनके कुछ चित्र ‘इंडिया टुडे’ में भी छपे।
एक बार तबला वादक पं.लच्छू महाराज के चित्र की जरूरत थी और उन्होंने तुरंत ढूंढकर भेज दिया था। अभी कुछ महीने पहले उनका फोन आया, बोले दो बातें आपको बतानी है। बीएचयू के दृश्य कला संकाय में जाता हूं फोटोग्राफी पढ़ाने, मुझे विजिटिंग प्रोफेसर बना दिया गया है और राज्य ललित कला अकादमी का सदस्य भी बन गया हूं।
बनारसी फक्कड़पन उनमें जिस तरह था, मुझे इन सूचनाओं से थोड़ा आश्चर्य भी हुआ लेकिन खुशी अधिक हुई। यह उनके काम की सराहना थी। फिर बोले कि आपके साथ कुछ काम करना चाहता हूं। मैंने कहा कि जरूर करेंगे। कहने लगे, बनारस की काष्ठ कला पर एक कॉफी टेबल बुक बनाते हैं। आलेख आपका होगा और चित्र मेरे होंगे।
मुझे यह प्रस्ताव पसंद आया था लेकिन अचानक उनके सर सुंदरलाल चिकित्सालय में भरती होने का पता चला। उनके व्यक्तित्व के रहस्यमय पक्ष की तरह उनकी बीमारी भी थी। शायद काफी समय से उन्हें फेंफड़ों में समस्या थी। सही इलाज नहीं कराया और न ही अधिक लोगों को बताना जरूरी समझा। 55 वर्ष की उम्र में चलते बने।
Rohit Gupta Journalist
August 25, 2021 at 10:43 am
बहुत ही दुखद समाचार है ,उनके साथ मैने भी कई वर्ष बिताए है ,फोटोग्राफी और कैमरा व् लेंस के बादशाह थे दिनेश भईया ,हमेशा कुछ न कुछ सीखते और सिखाते रहते थे ,बहुत ही सरल स्वभाव के थे ,उनकी कमी सदा खलेंगी।
माता रानी जी उन्हे स्वर्ग और शांति प्रदान करें।
दुखद दिनेश भईया आपका जाना फोटोग्राफी जगत में अभूतपूर्ण क्षति है।
आपका अपना
रोहित (राज)