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चन्द्रयान मिशन भले असफल हो गया लेकिन दीपक चौरसिया वहां पहुंच गए! देखें तस्वीरें

Dilip Khan : जैसे-जैसे चंद्रयान मिशन चांद के क़रीब पहुंच रहा था, वैसे-वैसे टीवी मीडिया कुएं की गहराई में डूब रहा था। फोटो में स्कूटी वाला हेलमेट, मेडिकल स्टोर से ख़रीदे गए दस्ताने और ढीले पैजामे को क्लिप से बांधकर एस्ट्रोनॉट बने माननीय दीपक चौरसिया। इस देश को टीवी ने तमाशे में बदल दिया है।

Prakash K Ray : इस तस्वीर पर भी रोया जाना चाहिए। कीटनाशक छिड़काव करते हुए इस्तेमाल होनेवाला प्लास्टिक, कचकड़ा का टोप, बरसाती जूता और गोलगप्पा बेचनेवाले का दस्ताना पहनकर तथा पाजामे में क्लिप लगाकर वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया की मून लैंडिंग की यह तस्वीर हिंदी पत्रकारिता की प्रतिनिधि तस्वीर है। संपादकों से लेकर स्ट्रिंगरों तक सभी लहकट नील आर्मस्ट्रांग और यूरी गगारिन हुए जा रहे हैं।

Avinash Pandey Samar : इसरो का चन्द्रयान मिशन असफल हो गया तो क्या हुआ? दीपक चौरसिया वहाँ पहले ही पहुँच चुके हैं, सारी सूचनाएँ भेजते रहेंगे- जैसे विक्रम लैंडर क्या क्या पका सकता है, जेब में पर्स रखता है कि नहीं (चौरसिया मोदी जी से पूछे थे)- और बाक़ी सब! इसरो पर गर्व करें, दलाल मीडिया पर और भी ज़्यादा. So what if ISRO’s Chandrayaan2 mission failed? Dipak Chaurasia has already landed there, and will send us all the information- like what all can Vikram Lander cook, if it had a purse in his pocket like Modi ji or not and so on! Be Proud Of ISRO, prouder of Paid Media!

Dilip Khan : पहले मुझे लगा कि दीपक चौरसिया ने हाथ में दस्ताने पहने हैं। फिर ये वाला फोटो मिला। दस्तानों के बदले मोज़े पहनकर एस्ट्रोनॉट बने हैं चौरसिया जी। पिछली पोस्ट में मोज़े / जुराब /socks को दस्ताना लिखने के लिए मैं माफ़ी मांगता हूं।

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Prakash K Ray : वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया की मून लैंडिंग की तस्वीरों का परीक्षण करने के बाद दिलीप खान ने जानकारी दी है कि जिसे हमलोग दस्ताना समझ रहे थे, असल में वह जुराब यानी मोजा था। पिछली पोस्ट को नई जानकारी के साथ पढ़ा जाए।

Ramkumar Singh : पत्रकारिता का कफ़न पहनकर चाँद पर जाने को उतारू एक पत्रकार। (इसे पूरा यक़ीन है कि यह विक्रम को ढूँढ लेगा।)

Ajit Tripathi : टीवी पत्रकारिता का पहला हीरो- दीपक चौरसिया… टीवी पत्रकारिता का पहला स्टार- दीपक चौरसिया…. फिल्मों में, टीवी शो में किसी पत्रकार का पहली बार जब जिक्र होता था तो वो दीपक चौरसिया होते थे… दीपक चौरसिया के नाम से चुटकुले बनते थे… अकेले दीपक चौरसिया की ही ख्याति थी कि लोग डीडी पर समाचार देखने के लिए उत्सुक होने लगे थे… दीपक चौरसिया टीवी पत्रकारिता में सिर्फ एक नाम नहीं एक ब्रांड रहे हैं, ऐसा ब्रांड जिसके आस पास कोई फटक नहीं सकता था… मैंने तीन साल तक दीपक सर के साथ काम किया, मैंने सार्वजनिक जगहों पर उनका जलवा देखा, लोगों को दीपक चौरसिया के साथ सेल्फी के लिए होड़ में शामिल होते देखा, दीपक सर का एक ऑटोग्राफ पाने के लिए लोगों को तड़पते देखा…टीवी मीडिया में ऐसा कोई स्तंभ शायद ही बचा हो जहां दीपक चौरसिया न पहुंचे हों। मगर समय ने दीपक चौरसिया को कहीं का नहीं छोड़ा…. ये वो दीपक चौरसिया नहीं हो सकते जो हजारों हजार पत्रकारिता के छात्रों के ख्वाब हुआ करते थे… दीपक सर ने कुछ खुद को खत्म किया, और कुछ उनके सलाहकारों ने उनकी जड़ में मट्ठा डाल दिया…

Vishwa Deepak : राष्ट्रवादी बेवकूफ दीपक चौरसिया ने पहली बार ऐसा नहीं किया है. एनडीए पार्ट वन में तब के गृहमंत्री आडवाणी जी की चमचागीरी के लिए मशहूर और इसी वजह से तकरीबन सेलिब्रिटी का दर्जा पा चुके इस मूर्ख ने भारत की टीवी पत्रकारिता को अच्छा खासा नुकसान पहुंचाया है. एक बार ये मुक्केबाजी वाले दस्ताने पहनकर “खली द ग्रेट” से लड़ने रिंग में उतर गया था. यह देश के नंबर वन चैनल आजतक के इतिहास एक अलग ही अध्याय है. इस पर मीडिया विमर्श करने वालों को अलग से लिखना चाहिए. दुर्भाग्य ये है कि टीवी पत्रकारिता में ऐसे ही लोगों की भरमार है. 100 करोड़ की वसूली के आरोप में तिहाड़ जेल की हवा खा चुका सुधीर चौधरी परमाणु हमले से बचने के उपाय समझता है. बाकी चार-पांच जो अर्नब गोस्वामी के बोन्शाई संस्करण हैं उनके बारे में क्या ही कहा जाए. महिला एंकर (जिनका नाम न लेना ही बेहतर होगा) पुरुष बनने की ग्रंथि में इंसानों की विकृत प्रजाति में तब्दील होती जा रही हैं – जैसे जॉम्बीज. पटना, रांची, भोपाल, जयपुर जैसे छोटे मंझले शहरों से आई ये एंकर (पत्रकार ?) इस नियम को अपवाद साबित कर चुकी हैं कि स्त्रियां ज्यादा संवेदनशील, गरिमापूर्ण और मानवीय होती हैं. एक दिन एक मोहतरमा मोदी का पिछला भविष्य बता रही थीं. (शायद उनको उनके पिछले जन्म के बारे में पता होगा). वो बता रही थीं कि मोदी पिछले जन्म में सर सैयद अहमद खान थे. इस देश की सामूहिक समझ अगर गाय-गोबर और गोमूत्र से आगे नहीं जा पा रही है, अगर इस देश का बहुसंख्यक तबका धर्मान्धता के कुएं में गिरता जा रहा है, तो इसमें इस देश के समाचार चैनलों और इससे शुरुआती संपादकों का बहुत बड़ा योगदान है. उदय शंकर से लेकर रजत शर्मा तक और सतीश के सिंह से लेकर शाज़ी जमा और राजनीति से रिटायर हो चुके आशुतोष तक सबने इस बर्बादी में अपने-अपने हिस्से का हवन किया है. इसी का नतीजा है कि इस देश का केन्द्रीय शिक्षा मंत्री बोलता है कि (केवल) संस्कृत दुनिया की पहली भाषा है, आईआईटी में जाकर कहता है कि बच्चों को रामसेतु पर रिसर्च करना चाहिए. ये सारे दुर्भाग्य एक साथ जिस परिघटना की वजह से भारत माता के सिर पर फूटे हैं उसे भक्त गण और उनके विरोधी भी मोदी परिघटना के नाम से जानते हैं. पर यह सच है कि हमारे आसपास जो भी हो रहा है वह न्यूज़ चैनल द्वारा तैयार किए गए बहुसंख्यक समाज की मानसिक विकृतियों का एक अंश भर है. सतह के नीचे पतन जारी है.

प्रशांत शुक्ल : चांद पर रोवर संभालते हुए और जमीदोज़ होती पत्रककिता के ताबूत में आखिरी कील ठोंकते हुए दीपक चौरसिया.

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https://www.facebook.com/bhadasmedia/videos/733652110382493/
4 Comments

4 Comments

  1. Rajesh sable

    September 7, 2019 at 5:18 pm

    वाह भाई पत्रकारिता हो तो ऐसी है ऐसी न्यूज़ पढ़ कर मजा आ गया

  2. हेमनिधि

    September 7, 2019 at 5:31 pm

    ऐसी ही भ्रामक प्रचार कर , और इस जैसे पत्रकारों ने अडानी , और अम्बानी से पैसे खाकर 1 पार्टी विशेष के लिये 2014 एवम 2019 में इतना जमकर प्रचार किया कि ये पार्टी सत्ता में आ गई और पूरे देश की जनता महंगाई और बेरोजगारी तथा अब आर्थिक मंदी से जूझ रही है ।

  3. naseem

    September 9, 2019 at 10:44 am

    joker ban chuke hain chaurasiya . media me aise jokeron ki bharmaar hai .

  4. jaiprakash upadhyay

    September 9, 2019 at 9:39 pm

    bahut duKhd, patrakarita me itne saal tk kaam karne ke bavjud is patrakar ko yah samajh nhi aaya ki uski aisi harkat hasyaspad ho sakti ha. n sirt deepak balki bahut se media house me aajkal dramebaji ho rahi hai. aise hi kuchh electronics media karmiyo ki vajah se aaj electronic media haasy ka patra ban chuka hai. maaf kare, maine kuchh jyada hi teekha likh diya.
    jaiprakash upadhyay
    sr sub editor navbharat raipur (chhattisgarh)

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