मेहसाना (गुजरात) : बीते माह दो फरवरी को जब गुजरात हाईकोर्ट में मेहसाना यूनिट के 20 कर्मचारियों ने ‘दिव्य भास्कर’ के खिलाफ मजीठिया का हक न देने का केस दायर किया था, उसी वक्त छह फरवरी को मेहसाना यूनिट हेड गौरव बिसारिया और एचआर हेड राहुल खेमानी ने 20 कर्मियों में से चार को टर्मिनेट कर अपना रंग दिखा दिया था। बाकी सोलह कर्मियों को मौखिर रूप से ऑफिस आने से मना कर दिया गया। उनसे ये कहा गया कि कंपनी के सामने सर ऊंचा करने की कोशिश की है तो यहां आने की कोई जरूरत नहीं है। आपको अभी से नौकरी से निकाल दिया जा रहा है। टर्मिनेशन लेटर दो दिन में आपके घर पहुंच जाएगा।
फिर भी दूसरे दिन सात फरवरी को 16 इम्पलाई समय से ड्यूटी पर गये तो बाहर ही सिक्योरिटी ने रोक लिया। उसे आदेश था कि आरोपी 20 कर्मचारियों में से किसी को भी ऑफिस के अंदर न आने दिया जाए। नौ फरवरी को तो कंपनी ने नये कर्मचारी लेने के लिए पेपर में एडवर्टिजमेंट भी प्रकाशित कर लिए। इसके बाद शुरू हुआ कंपनी का लेटरबाजी का खेल। कंपनी ने पहले खुद कर्मचारियों को ऑफिस आने से मना किया, फिर उल्टे चोर कोतवाल को डांटे, की तरह लेटर भेजकर पूछने लगी कि आप बिना बताये ऑफिस में अनुपस्थित क्यों रहते हैं? इसका लिखित में जवाब दें।
पीड़ित कर्मचारियों के मुताबिक जवाब देने के लिए 16 कर्मचारी मेहसाना यूनिट पहुंचे तो यूनिट हेड गौरव बिसारिया ने 16 में से सिर्फ दो को अपनी केबिन में बुलाया। उन्होंने कर्मचारियों का पूरा जवाब पढ़ा, जिसमें लिखा था कि ‘हम कर्मचारी अनुपस्थित नहीं। कंपनी में अंदर आने से मना किया जा रहा है। फिर भी आप अगर इजाजत दें तो आज ही से काम पर हाजिर हैं।’ इसके बाद गौरव बिसारिया ने कहा कि आप लोगों को वापस लेने का तो सवाल ही नहीं बनता। चलो निकलो यहां से।
पीड़ित कर्मचारियों ने बताया कि कंपनी ने बिना कोई चार्जशीट दिए सीधे 16 लोगों पर डोमेस्टिक इंक्वॉयरी बैठा दी। धर्मेंद्र भट्ट को डोमेस्टिक इंक्वॉयरी आफिसर बना कर कर्मचारियों को डराने-धमकाने के जिम्मा दे दिया। जब कंपनी को अंदेशा हुआ कि बिना चार्जशीट के इंक्वॉयरी बैठा देना गलत है, इससे वह कानून के शिकंजे में फंस जाएंगी तो कंपनी ने नये तरह की धोखेबाजी शुरू कर दी।
कर्मचारियों के मुताबिक कंपनी ने 23 फरवरी 2015 की तिथि में लेटर बनाया और उसके साथ चार्जशीट जोड़कर 15 मार्च को उन सभी 16 कर्मचारियों को भेज दिया। इस लेटर में लिखा था कि आप लोगों पर ये आरोप हैं, फिर भी कंपनी चाहती है कि आप कंपनी के साथ काम करें। लेटर मिलने के तीन दिन भीतर कंपनी में काम पर उपस्थित हों। जब 18 मार्च को कर्मचारी आफिस गये तो भास्कर एचआर विभाग के हार्दिक भट्ट बोले कि हमने तो ये लेटर 23 फरवरी को भेजा था। आप लोग आज क्यों आए हो। यूनिट हेड गौरव बिसारिया ने कहा कि आप लोग अब क्यों आये हो, जब कि लेटर मिलने के बाद 27 फरवरी तक आ जाना चाहिए था।
कर्मचारियों ने कहा कि हमको लेटर कल ही मिले। हम आज ही आ गये। गौरव बिसारिया मुस्कराते हुए 23 फरवरी की डेट दिखाने लगे कि भैया ये तारीख पढ़ो। गौरव ये बताने में असमर्थ रहे कि 23 फरवरी को भेजा गया लेटर आखिर 25 दिन तक कहा घूमता रहा था, जो कर्मचारियों को अब दो दिन पहले 16 मार्च को मिला है। और दूसरी बड़ी बात, उसके साथ 14 मार्च के लेटर उसी कवर में कैसे अटैच हो गए? अब तो गौरव बिसारिया राहुल खेमानी के फेके जाल में खुद ही फंस चुके थे।
इस तरह से दिव्य भास्कर गुजरात की मेहसाना यूनिट के 20 कर्मचारियों को रोज नये-नये बहानों वाले लेटर भेज रहे हैं। साथ ही, ऑफिस बुलाकर कहा जाता है कि हमने तो आपको अभी नहीं, पहले बुलाया था। प्रबंधन को पता नहीं कि इंप्लाई भी उतने नासमझ नहीं। वे सब गंदा खेल समझ चुके हैं। इतनी बड़ी कंपनी छोटी-छोटी गलतियां कर स्वयं बड़ी मुसीबतें गले लगाये जा रही है। उसकी ताजा नजीर है, कर्मचारियों के साथ ‘डेट मेन्युपलेशन का खेल’। कंपनी अपने उन्हीं कर्मचारियों से धोखेबाजी कर रही है, प्रताड़ित कर रही है, जिन्होंने खून पसीना एक कर कंपनी को एक दशक में इस मोकाम तक पहुंचाया है।
इस माह हद तो तब हो गई, जब भास्कर ने इन कर्मचारियों को फरवरी की सेलरी तक नहीं दी। अब उन्हें अपना घर चलाना मुश्किल हो रहा है। केस होने के तुरंत बाद भास्कर ग्रुप उन्हें अपना दम दिखाने पर उतर आया है। उसे इतना भी समझ नहीं है कि कर्मचारियों को थमाए गए निष्कासन लेटर में उसने स्वयं लिख रखा है कि कंपनी के हिसाब से एक्सग्रेसिया में आप को एक महीने की सेलरी दी जायेगी। हर महीने की एक तारीख को सबकी सेलरी आईडीबीआई बैंक के अकाउंट में क्रेडिट हो जाती थी। इस महीने केस करने वाले 20 कर्मचारियों की सेलरी नहीं दी गयी।
पता चला है कि टर्मिनेट चार कर्मचारियों से बोला गया है, अपनी सेलरी का चेक ले जाओ और फुल एंड फाइनल स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर करो। इसके पीछे प्रबंधन की ये चाल मानी जा रही है कि ताकि वह चारो के हस्ताक्षरित पत्र कोर्ट में दाखिल कर ये कह सके कि इन चारों ने तो अपने सारे पैसे ले लिये और हस्ताक्षर तक कर दिये हैं। इस डर से अब वे चार कर्मचारी भी अपनी सेलरी नहीं ले पाये हैं। बाकी के 16 के साथ तो कंपनी रोज लेटर गेम कर ही रही है।
mini
March 20, 2015 at 5:04 am
हम तो पहले ही कह रहे थे कि मजीठिया का मिलना इतना आसान नहीं है. क्यों कि ज्यादा तर अखबार नेता लोगो के हैं… वो कोई ना कोई तोड़ निकाल ही देंगे… और आज जहा छोटी छोटी कम्पनयो मै यूनियन हैं वहां अखबार वालो क़ी कोई भी यूनियन नहीं है.
Don
March 20, 2015 at 9:34 am
@mini.. Dost jinhone ye kaam kiya he na woh Mard log he.. Aasan kaam to hijde bhi kar lete he.. Saala itne bade media house ke khilaf awaz uthana woh bhi apne haq ke khatir.. Ek bhot bade jazbe ka kaam he.. Samze.. Aur aasani se na sahi.. Ladai karke bhi company ko wage board dena hoga.. Warna bhaskar se bhi bada baap Sahara ka shubrato roy besahara hoke jail me apni jindgi kaat raha he bhai..