सुप्रीम कोर्ट में एक हस्तक्षेप याचिका दायर की गई है. इसमें महामारी के दौरान मीडियाकर्मियों की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है. साथ ही पत्रकारों और उनके परिवारों को उचित कोरोना इलाज सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है.
डॉ कोटा नीलिमा की ओर से एडवोकेट लुबना नाज़ ने याचिका दायर की. इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज की निदेशक डॉ कोटा नीलिमा ‘रेट द डिबेट’ की भी निदेशक हैं. आवेदन में बताया गया कि अप्रैल 2020 से अब तक 346 पत्रकारों की मौत हुई है. महामारी के दौरान बिना किसी मान्यता के काम कर रहे पत्रकारों के लिए चिकित्सा सुविधाओं और संस्थागत समर्थन की कमी है. पत्रकारों की 34% मौतें मेट्रो शहरों में हुई हैं जबकि 66% मौतें छोटे शहरों में हुई हैं. 54% मौतें प्रिंट मीडिया में हुई हैं और सबसे ज्यादा मौतें 41-50 साल के आयु वर्ग में हुई हैं.
याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई पत्रकार कल्याण योजना (जेडब्ल्यूएस) के तहत विशेष अभियान के दिशानिर्देशों में एक पत्रकार के मान्यता विवरण की आवश्यकता होती है. मीडिया कर्मियों में प्रबंधकीय स्तर पर या पर्यवेक्षी रूप में कार्यरत व्यक्तियों को इसमें शामिल नहीं किया जाता. इससे बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी राहत से वंचित रहते हैं.
याचिका में कहा गया है कि एक ही मीडिया संगठन में काम करने वाले पत्रकारों में से एक मान्यता प्राप्त है और दूसरा गैर-मान्यता प्राप्त है. इनमें भेदभाव करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.
याचिका में ये मांगें हैं-
सभी पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को ‘फ्रंटलाइन वॉरियर्स’ के रूप में मान्यता दिया जाए ताकि वे ऐसे सभी कर्मचारियों को दिए जा रहे लाभों का लाभ उठा सकें।
सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा पत्रकारों/मीडिया व्यक्तियों (मान्यता प्राप्त और गैर-मान्यता प्राप्त) के लिए COVID -19 महामारी के लिए चिकित्सा सुविधाओं और संबंधित लाभों के संबंध में एक व्यापक दिशानिर्देश तैयार किया जाए।
महामारी के इस संकट समय में पत्रकारों के निजी और साथ ही सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज और उनके बिलों की प्रतिपूर्ति के लिए सरकार को निर्देश दिया जाए।
सरकार को पत्रकार के तत्काल परिवारों को अनुग्रह राशि या रोजगार सहायता के रूप में प्रतिपूरक सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया जाए।
राज्यों के बीच समानता बनाए रखने के लिए मुआवजे के रूप में दी जाने वाली न्यूनतम राशि तय करें।
सरकार को निर्देश दें कि पत्रकारों को वॉक-इन-रजिस्ट्रेशन और टीकाकरण की सुविधा दी जाए। इनके लिए CoWIN पर पंजीकरण करना अनिवार्य न रखा जाए।
सरकार को निर्देश दें कि मान्यता प्राप्त और गैर-मान्यता प्राप्त पत्रकारों, नियोजित और स्वतंत्र, ग्रामीण और शहरी, तकनीशियनों के बीच भेदभाव न करें और योजनाओं के उद्देश्य से सभी को सहायता प्रदान की जाए।
सरकार को ‘पत्रकार और मीडियाकर्मियों’ की परिभाषा में संपादकीय स्टाफ, फोटोग्राफर, वीडियोग्राफर, कैमरामैन, तकनीशियन, तकनीकी कर्मचारी और सभी सहायकों को शामिल करने का निर्देश दिया जाए।