Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

जनसत्ता में ‘दुनिया मेरे आगे’ स्तंभ शुरू होने की कहानी बता रहे पत्रकार उमेश चतुर्वेदी

Umesh Chaturvedi : नवभारत टाइम्स में जब मेरे गुरू डॉक्टर रघुवंश मणि पाठक के गुरू और हिंदी के प्रकांड विद्वान पंडित विद्यानिवास मिश्र संपादक थे, तब संपादकीय पृष्ठ पर एक स्तंभ सिर्फ रविवार को छोड़कर हफ्ते में छह दिन प्रकाशित होता था -निर्बंध..तब अच्युतानंद मिश्र वहां कार्यकारी संपादक थे..चूंकि मैं हिंदी में एमए करके पत्रकारिता करने आया था, लिहाजा उन दिनों हिंदी की प्रकीर्ण विधाओं मसलन डायरी, गद्यगीत, ललित निबंध आदि से मेरा कुछ ज्यादा ही लगाव था। निर्बंध कुछ-कुछ ललित निबंध जैसा ही स्तंभ था..उन दिनों अपनी भी कच्ची-पक्की लेखनी से लिखे आलेख निर्बंध में छपे।

<p>Umesh Chaturvedi : नवभारत टाइम्स में जब मेरे गुरू डॉक्टर रघुवंश मणि पाठक के गुरू और हिंदी के प्रकांड विद्वान पंडित विद्यानिवास मिश्र संपादक थे, तब संपादकीय पृष्ठ पर एक स्तंभ सिर्फ रविवार को छोड़कर हफ्ते में छह दिन प्रकाशित होता था -निर्बंध..तब अच्युतानंद मिश्र वहां कार्यकारी संपादक थे..चूंकि मैं हिंदी में एमए करके पत्रकारिता करने आया था, लिहाजा उन दिनों हिंदी की प्रकीर्ण विधाओं मसलन डायरी, गद्यगीत, ललित निबंध आदि से मेरा कुछ ज्यादा ही लगाव था। निर्बंध कुछ-कुछ ललित निबंध जैसा ही स्तंभ था..उन दिनों अपनी भी कच्ची-पक्की लेखनी से लिखे आलेख निर्बंध में छपे।</p>

Umesh Chaturvedi : नवभारत टाइम्स में जब मेरे गुरू डॉक्टर रघुवंश मणि पाठक के गुरू और हिंदी के प्रकांड विद्वान पंडित विद्यानिवास मिश्र संपादक थे, तब संपादकीय पृष्ठ पर एक स्तंभ सिर्फ रविवार को छोड़कर हफ्ते में छह दिन प्रकाशित होता था -निर्बंध..तब अच्युतानंद मिश्र वहां कार्यकारी संपादक थे..चूंकि मैं हिंदी में एमए करके पत्रकारिता करने आया था, लिहाजा उन दिनों हिंदी की प्रकीर्ण विधाओं मसलन डायरी, गद्यगीत, ललित निबंध आदि से मेरा कुछ ज्यादा ही लगाव था। निर्बंध कुछ-कुछ ललित निबंध जैसा ही स्तंभ था..उन दिनों अपनी भी कच्ची-पक्की लेखनी से लिखे आलेख निर्बंध में छपे।

बाद में जब अच्युतानंद मिश्र जी जनसत्ता के संपादक बने तो उन्होंने अखबार को रिलांच करने की योजना बनाई। कोशिश भी की, क्यों नाकाम हुई, ये तो वही बताएंगे। लेकिन उन दिनों तक उनका स्नेह मुझे और भाई अजित राय को खूब मिलना शुरू हो गया था। उस स्नेह हासिल करने में तब के प्रतापी अखबार जनसत्ता में नौकरी पाने की लालचभरी उम्मीद भी छुपी हुई थी। उन्हीं दिनों मैंने अपनी सीमा जानने के बावजूद एक सुझाव दिया था..जनसत्ता में भी निर्बंध जैसा स्तंभ छपना चाहिए। मैं तब बहुत छोटा और बच्चा ही था। इसलिए इसका श्रेय तो मैं नहीं ले सकता। लेकिन इतना जरूर है कि तब शायद ऐसा कुछ अच्युता जी के दिमाग में भी चल रहा था। इसलिए संपादकीय पेज का जब नया लेआउट उन्होंने तैयार किया तो उसमें निर्बंध जैसा भी स्तंभ जरूर रहा। जिसे लोग ‘दुनिया मेरे आगे’ नाम से जानते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

तब से लेकर यह स्तंभ लगातार ना सिर्फ चल रहा है, बल्कि काफी लोकप्रिय भी है। इस स्तंभ में पहला आलेख अच्युताजी ने ही लिखा था- संपादक की भाषा-। हाल में जनसत्ता के मौजूदा संपादक मुकेश भारद्वाज जी से मुलाकात हुई तो उन्होंने दुनिया मेरे आगे की लोकप्रियता बने रहने की जानकारी दी। इस स्तंभ में पहले भी काफी छपा हूं..लेकिन भारद्वाज जी की जानकारी के बाद मैं लोभ संवरण नहीं कर पाया और एक आलेख भेज दिया। वही आज के जनसत्ता में साया आलेख आपके सामने है। आभार मुकेश जी…

वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
1 Comment

1 Comment

  1. ramesh dubey

    October 21, 2016 at 9:20 pm

    जियो उमेश चतुर्वेदी जी…गजब तेल लगाया आपने मुकेश भारद्वाज को…अब इसी बहाने थोड़ा छपते भी रहेंगे आप जनसत्ता में…कुछ पैसे भी मिलते रहेंगे…और आप अगर इतने साल से जनसत्ता पढ़ रहे हैं, तो भारद्वाज जी के राज में जो पतन हुआ है पेपर का, उसी के बारे में कुछ लिख देते…हिम्मत है आपकी ऐसा करने की…बिल्कुल नहीं है…और अगर नहीं है, तो कोई बात नहीं…मत कीजिए हिम्मत…क्योंकि ऐसी हिम्मत करना आपके बस का भी नहीं है…जनाजा निकाल दिया है मुकेश भारद्वाज ने जनसत्ता का…और आप बटरिंग से बाज नहीं आ रहे…ये भी करप्शन है चतुर्वेदी जी, इसे याद रखिएगा…जानता हूं, कि ‘दुनिया मेरे आगे’ कॉलम अच्चुतानंद मिश्र जी ने शुरू किया था…कहां अच्युतानंद जी और कहां मुकेश भारद्वाज…उस दौर का जनसत्ता, जब प्रभाष जोशी, अच्युतानंद मिश्र और ओम थानवी जैसे दिग्गजों, विद्वानों के हाथ कमान थी…और आज के भारद्वाज जी…रेप कर दिया अखबार का इस संपादक ने…क्या बचा…रूप-स्वरूप, तेवर-कलेवर, ख़बरें-रिपोर्ट, लेखक-कॉलमिस्ट…सब हवा हो गए…और आप बजाते रहिए ढपली…तेल लगाने का इनाम तो मिलेगा ही आपको…धन्य है आपकी पत्रकारिता…

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement