संकट से जूझ रहे सहारा समूह के मीडिया सेक्टर की कमान संभालने के बाद उपेन्द्र राय ने एक के बाद एक ताबड़तोड़ फैसले लेते हुए सहारा मीडिया को सुगठित करने और आत्मनिर्भर बनाने की कवायद तेज कर दी है. सहारा मीडिया को सरकारी कंपनी की बजाय युवा प्रोफेशनल्स की टीम के रूप में पुनर्गठित करने हेतु साठ साल से ज्यादा उम्र के करीब 80 लोगों को हटाने का आदेश जारी किया है.
इसके दायरे में राष्ट्रीय सहारा अखबार के गोरखपुर और देहरादून के स्थानीय संपादक भी आए हैं. गोरखपुर में अनिल पांडेय साठ साल से ज्यादा के हैं तो देहरादून में दिलीप चौबे साठ साल से ज्यादा के हैं. हालांकि दिलीप चौबे ने बातचीत में साठ साल के दायरे में आकर हटाए जाने की सूचना को गलत बताया.
ज्ञात हो कि सहारा मीडिया में साठ साल का होने पर रिटायरमेंट के बाद ढेर सारे लोगों को एक्सटेंशन देकर नई सेवा शर्तों पर रखा गया था. अब इन्हें हटाया जा रहा है ताकि सहारा का बोझ कम किया जा सके. लम्बे समय तक नेपथ्य में रहे उपेन्द्र राय ने मीडिया की कमान अपने हाथ में आते ही एक बार फिर अपनी धुंआधार पारी खेलते हुये लम्बे समय से अपने पदों पर जमे लोगों को हटाकर अपने भरोसेमंद और एक्टिव लोगों को बिठाया है. कई विकेट चटकाने के बाद अब उपेन्द्र राय की नजर समूह के उन बुजुर्ग अधिकारियों पर पड़ी है जो कि 60 साल की रिटायरमेंट की उम्र पार करने के बाद भी जुगाड़ के भरोसे से संस्थान में डटे हुये थे.
ताजा कदम में उपेन्द्र राय द्वारा राष्ट्रीय सहारा समाचार पत्र और सहारा समय टीवी में जमे हुये ऐसे ही 80 लोगों को एक झटके में संस्थान से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. सूचना के अनुसार राष्ट्रीय सहारा के देहरादून संस्करण के सम्पादक व गणेशशंकर विद्यार्थी पुरुस्कार से सम्मानित दिलीप चौबे, नोएडा के आर्ट हेड विजय कौल, राष्ट्रीय सहारा गोरखपुर के संपादक अनिल पांडेय सहित 80 वरिष्ठों को तत्काल प्रभाव से संस्थान से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
उपेन्द्र के इस कदम से सहारा मीडिया के प्रिंट और टीवी के उन लोगों में भगदड़ का माहौल बन गया है जो सहारा मीडिया को सरकारी कंपनी मानकर बेमन से जुड़े हुए थे. सूत्रों के अनुसार उपेन्द्र राय ने नोएडा मुख्यालय में 21 नवम्बर को सहारा के मीडिया महंतों की एक बैठक बुलाई जिसमें कई बड़े फैसले लिये गए. इसी के तहत कई लोगों को नए नए पदों पर आसीन किया गया.
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