एक ही स्टिंग ने सारी चौकीदारी की पोल खोल दी। सब चौकीदार नंगे हो गए। मोदी कह रहे हैं कि हमने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई है। उधर सांसद खुद ही कह रहा है कि हम कालेधन से वोट खरीदते हैं। पार्टी हमें कालाधन मुहैया कराती है। चुनाव में पैसा बंटा है और बंटेगा। पिछले चुनाव में 5 करोड़ उड़ाने वाले इस चुनाव में 15 करोड़ उड़ाने को तैयार है।
ये जो हज़ारों एलईडी स्क्रीन वाली रैलियां हैं, ये मुफ्त की नहीं हैं। अरबों खर्च होते हैं, अरबों की लूट में कॉरपोरेट और नेता डुबकी लगा रहे हैं और पब्लिक को उल्लू बना रहे हैं। ईमानदारी और पारदर्शी व्यवस्था के नाम पर देश भर को मूर्ख बनाकर अकूत संपत्ति बटोरी, और उससे वोट खरीदेंगे। यही इनका विकास है। अब क्या इससे भी अच्छे दिन चाहिए?
अब कोई पूछे कि गरीबों को न्यूनतम आय का पैसा कहां से आएगा तो उससे कहिए- वहीं से आएगा जहां से वोट खरीदने के लिए आता है। वहीं से आएगा जहां से लाखों करोड़ पूंजीपतियों पर लुटाने के लिए आता है। वहीं से आएगा जहां से मोदी के गगन विहार के लिए आता है। वहीं से आएगा जहां से चैनलों को खरीद कर पत्रकारों को पालतू बनाने के लिए आता है।
इस देश में मनमोहनी पूंजीवाद की कृपा से अकूत पैसा है, प्रकृति की कृपा से अकूत संसाधन हैं, तुम अपनी लूट की चिंता करो, देश की रहने दो, तुमसे न हो पाएगा।
देखें पूरा स्टिंग….
Manika Mohini : TV9 न्यूज़ चैनल ने आज बहुत से नेताओं का स्टिंग ऑपेरशन दिखाया जिनमें शामिल थे बिहार के सांसद पप्पू यादव, AAP सांसद साधु सिंह, BJP सांसद बहादुर कोली, BJP सांसद उदित राज, SP सांसद नागेंद्र पटेल, LJP के समस्तीपुर के सांसद दलित नेता रामचंद्र पासवान, जो रामविलास पासवान के भाई हैं, कांग्रेस के केरल के सांसद एम के राघवन, BJP महाराष्ट्र के वर्धा के सांसद रामदास तड़स तथा कुछ अन्य, जो मैं देख नहीं सकी।
न्यूज़ चैनल के कुछ पत्रकार फ़र्ज़ी कम्पनी के नाम पर इन नेताओं से उनके निवास या कार्यालय पर मिले, अपना कुछ काम करवाने के लिए कहा, जसके एवज में करोड़ों रुपये की पेशकश की। सभी नेताओं ने इन पत्रकारों की जाँच करनी ज़रूरी नहीं समझी और अपने खर्च के सारे भेद खोल दिए। सबने बताया कि वे पैसा नकद लेंगे। इन नेताओं की नज़रों में सिर्फ़ पैसा प्रमुख था। स्टिंग ऑपेरशन के बाद इन्हें सचाई बताई गई तो ये सब मुकर गए कि इन्होंने वह सब कहा है जबकि इनका सच वीडियो में कैद था।
जब यह पता किया गया कि इन नेताओं को सज़ा की क्या संभावना हो सकती है तो एक वरिष्ठ जानकार ने बताया कि कोर्ट सबूत माँगती है और इनके द्वारा पैसा लेने का कोई सबूत नहीं है।
प्रोग्राम संचालकों का यह कथन उचित था कि ये स्टिंग देख कर इनके पार्टी प्रमुख ही इनके ख़िलाफ़ कार्यवाई करें तो करें। सब पार्टी प्रमुखों को चाहिए कि ऐसे भ्रष्टाचारी सांसदों को पार्टी से बाहर करें। यूँ तो इस क्षेत्र में सभी भ्रष्ट हैं पर जिसका पता चल जाए, उसे तो निकालो।
Kumar Vinod : मैं तो पिछले 25 साल से ये राय रखता हूं…! पप्पू_यादव जैसे लोगों को राजनीति से बाहर होना चाहिए। TV9 Bharatvarsh के स्टिंग ऑपरेशन में पप्पू यादव का सच देखकर ये राय न सिर्फ पुख्ता हुई, बल्कि अफसोस भी हुआ कि ये अब तक नहीं हो पाया. जबकि जो कानून है उसके मुताबिक या उसमें कुछ और सुधार कर होना ये चाहिए था कि को ऐसे लोगों को कतई टिकट नहीं देना चाहिए। अगर ऐसे लोग निर्दलीय चुनाव लड़ें या अपनी पार्टी बनाकर, चुनाव आयोग को इन्हें शेषनी अंदाज में रोकना चाहिए- बेटा, तुम तो चुनाव नहीं लड़ोगे, जाओ जिस कोर्ट में अदालत में फरियाद करना है करो- तुम्हारे खिलाफ तो केस हम देख लेंगे!
लेकिन गया जमाना टीएन शेषन जैसे चुनाव आयुक्तों का, जो खुलेआम कहते थे- मैं तो नाश्ते में नेताओं को खाता हूं! मोदी जब पीएम बने थे, तो इन्होंने एक उम्मीद ये भी जगाई थी- बोलते थे मैं सारे राजनीतिक दलों से बात करूंगा. और तरीके निकालूंगा कि राजनीति से अपराधियों का सफाया कर सकूं. 2014 के चुनाव में ये मुद्दा केजरीवाल ने गर्म किया था, जब उन्होंने संसद के बाहर धरने पर बैठे हुए कहा था- संसद में 150 से ज्यादा अपराधी इसी टर्म में बैठे हैं. तब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अपने अपराधों से बरी शायद नहीं हो पाए थे.
खैर, मसला ये नहीं है कि कौन अपराध के दायरे में है या नहीं. मसला था- इतने बहुमत के साथ दूसरे दलों को विश्वास में लेने का साथ अपनी पार्टी से अपराधियों को हटाने पर मजबूर करने की रणनीति तैयार करने की. लेकिन उसके बाद क्या हुआ? क्या आपको याद आता है कि मोदी ने कोई ऐसी बैठक बुलाई हो? अपने शपथ समारोह में भले ही सार्क देशों के नेताओं को बुला लिया, लेकिन अपने देश के विपक्षी दलों को शायद ही कभी एक मंच पर लाने की कोशिश की. ताकि गरीबों के कल्याण, किसानों की दशा सुधार, महिला आरक्षण, राजनीति में अपराधीकरण और भ्रष्टाचार के खिलाफ एकमुश्त रणनीति पर विचार हो सके…!
बल्कि ये आदमी तो ऐसे मुद्दों पर कभी कभार निजी जुमले फेंकने के सिवा अमूमन ऐसे चुप रहा, जैसे अपने ही चुनावी भाषण और वादे भूल गया. तब ये भी कहते थे मोदी कि पांच साल बाद में पूरा हिसाब किताब दूंगा. लेकिन अब सुनने में आ रहा है क्या- कांग्रेस 70 साल में सब करने का दावा नहीं कर सकती, मैं 5 साल में कैसे करूं…!
देश की बेहतरी के लिए ये सारी बातें चुनावी बहस में शामिल की जानी चाहिए. टीवी हो या मीडिया का कोई और मंच- बात इतनी उठे कि दूर तलक जानी चाहिए. हमें ये मान लेना नहीं चाहिए अगर कोई दावा करे कि- ‘देश सुरक्षित हाथों में है’ हमें उसके दावे की जांच करनी चाहिए न कि अपने भरोसे के साथ देश को भी उसकी भक्ति में गिरवी रख देनी चाहिए…
पत्रकार कृष्ण कांत, मणिका मोहिनी और कुमार विनोद की एफबी वॉल से.