मैंने जीवन में बहुत कम ऐसे लोग देखे हैं जो अंदर से बहुत जीवट, मजबूत और जिजीविषा वाले होते हुए भी बाहर से बेहद सरल सहज व देसज होते हैं. निर्निमेश कुमार उन्हीं में से एक हैं. द हिंदू अखबार में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं.
कहने को वे एक बड़े अंग्रेजी अखबार के बड़े पत्रकार हैं पर देसज और सहज इतने कि पूछो मत. प्याज के दाम बढ़े तो एक रोज गए गाजीपुर सब्जी मंडी गए और बोरा भर सस्ता प्यार खरीद कर घर ले आए. निर्निमेश का घर प्रेस क्लब के पके पकाए मुफ्त के भोजन या ठेका-पट्टा व खाली बोतलों-ढक्कनों की बिक्री-कमीशन से नहीं चलता, इसलिए इन्हें खुद सस्ता प्याज खरीदने के वास्ते सब्जी मंडी जाना पड़ता है.
निर्निमेश कुमार ने पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के जमाने के प्रेस क्लब आफ इंडिया के लंबे जंगलराज को देखा-झेला है और उस कुशासन के खिलाफ लंबी लड़ाई को नेतृत्व दिया है.
निर्निमेश और उनकी टीम पुष्पेंद्र कुश्रेष्ठ को हराने में कामयाब होकर सत्ता में आई लेकिन निर्निमेश को छोड़कर बाकी सब सत्ता की मलाई चाटने में लीन हो गए. मेरिट की बजाय ‘तेरा आदमी मेरा आदमी’ वाला दौर चालू रखा. जहां कहीं से कमाई कर सकते थे, दारू की खाली बोतलों से लेकर इसके ढक्कनों की बिक्री तक से, सब के सब बेच-हड़प कर खाने-भकोसने में जुटे गए.
ये लोग एक गैंग बनाकर आपरेट करने लगे. आवाज उठाने वालों को या तो क्लब से ही निकाल देते या फिर अपने पाले में करके लालीपाप देकर मुंह बंद करा देते. पर निर्निमेश कुमार पर इनका कोई जोर न चला. निर्निमेश कुमार लगातार क्लब की बैठकों में आवाज उठाते रहे. गैंग बनाकर भ्रष्टाचार करने वालों को अकेले चैलेंज देते रहे.
इन लोगों ने निर्निमेश कुमार को पहले धमकाना चाहा. क्लब से निकालने की घुड़की-धमकी दी. पर ऐसी घुड़कियों से भला कहां डरते हैं निर्निमेश. वे बोले- तुम सब निकाल कर देख लो, कोर्ट में लाइन से न खड़ा कर दिया तो मेरा नाम निर्निमेश नहीं! बेचारे डरपोक, क्या बोलते.
निर्निमेश प्रेस क्लब आफ इंडिया के भ्रष्टाचारियों को उनके मुंह पर दलाल और भ्रष्टाचारी कह देने का साहस रखते हैं. ये साहस वही रखता है जिसका खुद का दामन और चरित्र पाकसाफ हो. निर्निमेश पर कोई उंगली नहीं उठा सकता.
निर्निमेश को भी आफर मिला, आओ मिलकर खाएं पिएं चुप रहें. पर निर्निमेश ने कहा, संभव ही नहीं, प्रेस क्लब आफ इंडिया देश भर के पत्रकारों के लिए एक बेहद पवित्र और लोकतांत्रिक जगह है. इसे हम पत्रकारों को सर्वाधिक ट्रांसपैरेंट और सर्वाधिक डेमोक्रेटिक बनाए रखना है ताकि दूसरों के लिए नजीर बन सके.
हम पत्रकार नेताओं को आए दिन सामंती, अलोकतांत्रिक, असभ्य, संवेदनहीन, भ्रष्ट, अवसरवादी आदि कहकर कोसते हैं पर जब हमें सत्ता मिल जाती है, भले ही वो प्रेस क्लब आफ इंडिया को चलाने की ही सत्ता क्यों न हो, तो हम नेताओं की ही तरह कमीने क्यों हो जाते हैं. हम क्यों लोकतांत्रिक और संवेदनशील नहीं रह जाते….
निर्निमेश कुमार एक उम्मीद हैं. निर्निमेश कुमार एक साहस हैं. निर्निमेश कुमार एक योद्धा हैं. मुश्किल ये है कि हम ऐसे लोगों की तारीफ तो करते हैं, ऐसे लोगों को महान तो बताते हैं, पर इन्हें हम वोट नहीं देते. निर्निमेश कुमार बिना राग द्वेष के चुनाव लड़ जाते हैं, इसलिए कि सालाना होने वाले चुनावों में सत्ताधारी भ्रष्टाचारी गैंग को यूं ही जीत हासिल न हो, इस मौके का इस्तेमाल बहस और आलोचना में भी हो ताकि क्लब के बाकी मेंबर्स को पता लग सके कि असल में क्लब के भीतर क्या चल रहा है.
निर्निमेश कुमार जानते हैं कि क्लब के सत्ताधारी ‘गैंगस्टर्स’ ने ऐसा तानाबाना बुन रखा है कि थोडे़ मतों से अगर हारने की बात आएगी तो उनका पूरा करप्ट सिस्टम उन्हें जिताने में लग जाएगा. तभी तो हर साल एक ही चिर परिचित शख्स मुख्य चुनाव अधिकारी बनाया जाता है. तभी तो दर्जनों ऐसे लोगों को मेंबर हर साल बनाया जाता है जो पत्रकार तो नहीं हैं लेकिन कमिटेड वोटर जरूर हैं. ये लोग दूर दूर से ट्रेनों का किराया देकर बुलाए जाते हैं, खिलाए पिलाए जाते हैं और सत्ताधारी पक्ष में वोट गिरवाकर लौटा दिए जाते हैं.
प्रेस क्लब आफ इंडिया का वही सत्ताधारी पैनल फिर चुनाव मैदान में है जिसने मुझे इसलिए क्लब से बर्खास्त कर दिया क्योंकि क्लब की जो फिलहाल सेक्रेट्री जनरल हैं, वो नो स्मोकिंग जोन में धुआं उड़ा रही थीं और इसका वीडियो बनाकर मैंने क्लब के कर्ताधर्ताओं से एक्शन लेने के लिए अपील की थी. उनके खिलाफ एक्शन तो नहीं हुआ, हां मुझे जरूर क्लब से उड़ा दिया गया. 🙂
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बातें बहुत हैं. वक्त कम है. कल वोट है. प्रेस क्लब आफ इंडिया के जो जो भी सदस्य हैं, वो कल जाएं और आंख मूंदकर एक वोट निर्निमेश कुमार को दे आएं ताकि क्लब का सड़ा हुआ पानी बाहर फेंका जा सके और कुछ ताजी हवाएं वहां आकर पस्त लोकतंत्र को स्वस्थ बना सकें.
जैजै
यशवंत
एडिटर, भड़ास4मीडिया डॉट कॉम
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