-नवीन कुमार-
इस्लाम के नाम पर इंसानियत को रौंदने की छूट नहीं दी जा सकती। फ्रांस सरकार की लैसिती नीति आज की नहीं है।
जो लोग किसी किताब के नाम पर कत्लेआम और दहशतगर्दी के हिमायती हैं वो जाहिल हैं, इंसानियत के दुश्मन है। इस्लाम को इससे लड़ना ही चाहिए।
फ्रांस एक महान देश है। जिसकी सरकार के पास व्यंग्य, कार्टूनों, आलोचनाओं और लेखकों को बर्दाश्त करने और उसका सम्मान करने का साहस है। बार बार निशाना बनाए जाने के बाद भी उसने कौम पर कोई टिप्पणी नहीं की है। वो सिर्फ अपने भविष्य को बचाने की कोशिश कर रहा है।
ऐसे हर आदमी को इसका सम्मान करना चाहिए जो जम्हूरियत का, आदमी में आदमी के विश्वास का हिमायती है। चाहे वो किसी भी मजहब का हो। कट्टरपंथ किसी भी तबके या समूह का हो, किसी भी हिस्से का हो, खतरनाक है।
-विजय शंकर सिंह-
आज पैगम्बर मोहम्मद का जन्मदिन है. आज ईदमीलादुन्नबी है। यानी पैगम्बर हजरत मोहम्मद की यौमे पैदाइश। पैगम्बर ने अरब के मूढ़ और जहालत भरे तत्कालीन समाज मे एक प्रगतिशील राह दिखाई थी। एक नया धर्म शुरू हुआ था। जो मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करता था, समानता और बंधुत्व की बातें करता था और इस धर्म का प्रचार और प्रसार भी खूब हुआ। वह धर्म इस्लाम के नाम से जाना गया।
पर आज हजरत मोहम्मद और इस्लाम पर आस्था रखने वाले धर्मानुयायियों के लिये यह सोचने की बात है कि उन्हें क्यों बार बार कुरान से यह उद्धरण देना पड़ता है कि, इस्लाम शांति की बात करता है,पड़ोसी के भूखा सोने पर पाप लगने की बात करता है, मज़दूर की मजदूरी, उसका पसीना सूखने के पहले दे देने की बात करता है और भाईचारे के पैगाम की बात करता है।
आज यह सारे उद्धरण जो बार बार सुभाषितों में दिए जाते हैं उनके विपरीत इस्लाम की यह क्षवि क्यों है कि इसे एक हिंसक और आतंक फैलाने वाले धर्म के रूप में देखा जाता है। यह मध्ययुगीन, धर्म के विस्तार की आड़ में राज्यसत्ता के विस्तार की मनोकामना से अब तक मुक्त क्यों नहीं हो पाया है ?
फ्रांस में जो कुछ भी हुआ, या हो रहा है वह एक बर्बर, हिंसक और मध्ययुगीन मानसिकता का परिणाम है। उसकी निंदा और भर्त्सना तो हो ही रही है, पर इतना उन्माद और पागलपन की इतनी घातक डोज 18 साल के एक किशोर में कहाँ से आ जाती है और कौन ऐसे लोगों के मन मस्तिष्क में इंजेक्ट करता है कि एक कार्टून उसे हिंसक और बर्बर बना देता है ?
फ्रांस में जो कुछ भी हुआ है वह बेहद निंदनीय और शर्मनाक है। पहले पैगम्बर मोहम्मद के एक कार्टून का बनाया जाना और फिर उस कार्टून के प्रदर्शन पर एक स्कूल के अध्यापक की गला काट कर हत्या कर देना। बाद में चर्च में घुस पर तीन लोगों की हत्या कर देना। यह सारी घटनाएं यह बताती है कि धर्म एक नशा है और धर्मान्धता एक मानसिक विकृति।
एक सवाल मेरे जेहन में उमड़ रहा है और उनसे है, जो इस्लाम के आलिम और धर्माचार्य हैं तथा अपने विषय को अच्छी तरह से जानते समझते हैं। एक बात तो निर्विवाद है कि, इस्लाम में मूर्तिपूजा का निषेध है और निराकार ईश्वर को किसी आकार में बांधा नहीं जा सकता है। इसी प्रकार से पैगम्बर मोहम्मद की तस्वीर भी नही बनायी जा सकती है। यह वर्जित है और इसे किया भी नहीं जाना चाहिए। यह भी निंदनीय और शर्मनाक है।
पर अगर ऐसा चित्र या कार्टून, कोई व्यक्ति चाहे सिरफिरेपन में आकर या जानबूझकर कर बना ही दे तो क्या ऐसे कृत्य के लिये पैगम्बर ने कहीं कहा है कि, ऐसा करने वाले व्यक्ति का सर कलम कर दिया जाय ? मैंने मौलाना वहीदुद्दीन खान का एक लेख पढ़ा था, जिंसमे वे कहते हैं कि ब्लासफेमी या ईशनिंदा की कोई अवधारणा इस्लाम मे नहीं है। वे अपने लेख में पैगंबर से जुड़े अनेक उदाहरण भी देते है। अब अगर पैगम्बर ने यह व्यवस्था नहीं दी है तो फिर यह किसने तय कर दिया है कि, चित्र या कार्टून बनाने वाले की हत्या कर दी जाय ?
इस्लाम के अंतिम पैगम्बर हजरत मोहम्मद के जन्मदिन पर उनके अनुयायियों और उनके पंथ के विद्वानों को आज आत्ममंथन करना चाहिए कि कैसे उनका यह महान धर्म अब भी मध्ययुगीन हिंसक और बर्बर मानसिकता का परिचय देता रहता है। ऐसी हिंसक घटनाएं और इनका मूर्खतापूर्ण समर्थन यह बताता है कि आस्थाएं कितनी भुरभुरी ज़मीन पर टिकी होती है, जो अक्सर आहत हो जाती है। आस्थाओं के आहत होने की मानसिकता भी एक संक्रामक रोग की तरह है। यह संक्रामकता किसी भी महामारी से अधिक घातक होती है।
पैगम्बर के जन्मदिन ईद मिलादुन्नबी के इस अवसर पर आप सबको शुभकामनाएं।
-पंकज मिश्रा-
जब तक धर्म को लेकर कट्टरता बनी रहेगी , मुसलमानों का कुछ भी हला भला नही होने का , माना कि अपने दौर का सबसे इंकलाबी धर्म था मगर वही दौर आज तो नही है , इतिहास के एक दौर में पैदा हुई चीजें , इतिहास के एक दौर में अप्रासंगिक होकर खत्म हो जाती है , सबसे आधुनिक होने का घमंड में कब तक जीते रहोगे , अब वो जदीदियत की बात अफसानों में है , हकीकत में इसका उल्टा है |
आसमान से कोई किताब नही उतरती , न वेद उतरे थे न कुरान …
साइबर क्राइम के लिए कुरान में कौन सी आयत है , या वेदों में कौन सा श्लोक है , या बाइबिल में कहीं कुछ लिखा है …. ये आज की जरूरियात है जिसमे कोई आसमानी किताब राह नही दिखा सकती | अरे जब इनकी जरूरत थी तब थी , अब इनकी जगह लाइब्रेरी में तो हो सकती है रिसर्च के लिए , मगर जिंदगी इनके हिसाब से नही चल सकती …..
मानो न मानो तुम्हारी मर्जी …. बुखार होगा तो पैरासीटामोल से ही उतरेगा , सांस नही ले पाओगे तो वेंटिलेटर ही बचाएगा , किडनी गई तो डायलिसिस होगी , भले हजरत मूसा ने समंदर फाड़ दिया हो , ईसा फिर से जिंदा हो गए थे ….लेकिन तुमको नही जिंदा करेंगे … जिंदा रहना है तो विज्ञान पढ़ो , फलसफा पढ़ो , तारीख जानो , आलोचना का एहतराम करो , काहे कि , इल्म ही खुदा है , वाहे गुरु है , भगवान है | इल्म पर ईमान लाओ |
Sobu
October 31, 2020 at 7:58 am
काफिरों के खिलाफ नफरत और जोर-जबरदस्ती का आदेश देने वाली आयतों को आसमानी किताब से हटाया जाना जरूरी है… क्योंकि यही आयतें और मजहबी कट्टरता फिर मदरसों-मस्जिदों में बार बार रटाई जाती है। तुर्की के कमाल अतातुर्क इस बात को समझ गए थे और अब चीन भी समझ गया है, परन्तु दुर्भाग्य से हमलोग अभी भी सोए हुए हैं।