Abdul Basit-
इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन खुद जाहिल अज्ञानी मुसलमान है… नोट- 1- पोस्ट लिखने का मकसद किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है.. 2- सिर्फ अपने लोगों की ग़ल्तियों को उजागर करना है.. 3- जज्बात में आकर कोई भी मुसलमान गाली गलौच ना करे.. 4- अगर किसी को कोई बात बुरी लगती है तो मर्यादा में रहकर सवाल करे..
ज़्यादातर पढे-लिखे नौजवान मुसलमान अपनी नाकामयाबी और पिछड़े रहने का कारण या तो भारत की लगभग हर समय की सरकार पर लगाते है, या RSS पर लगाते है, या बड़े बड़े हिन्दु संगठनो पर लगाते है, लेकिन अपनी तालीम और हुनर पर कभी बात नहीं करते..
सभी मुसलमान अपने आस-पास के इलाको मे निगाहे घुमाकर देखले, अपनी बहन को बहन और दूसरे की बहन बेटियों को आइटम और माल बताने वाले मुसलमान, सियासी इकतिदार पोवर और पोजीशन के लिए दूसरों के तलवे चाटने वाले मुसलमान, हर शहर के मुस्लिम होटलों पर निहारी पाए पेल रहे मुसलमान, पान की गुमटी और चाय की दुकानों पर सड़े कप और प्यालों में भिनभिनाती मख्खियों के बीच चाय पीते मुसलमान, आधी रात तक गली मुहल्लों की रौनक बढ़ाने वाले मुसलमान, गालियों की नई नई वैरायटी ईजाद करने वाले मुसलमान, बिना कागज़ात बाइक को हवा में उड़ाते हुवे नई नस्ल के नौजवान मुसलमान, पकड़े जाने पर मुहल्ले के युवा नेता जी के आगे बाइक छुड़वाने की गुहार लगाते मुसलमान, नज़दीकी थाने और मुक़ामी पुलिस चौकी के मुखबिरी करते मुसलमान..
कोई खास तालीम या हुनर न होने के बावजूद सरकार पर मुसलमानों को नौकरियां न देने का इल्जाम लगाने वाले मुसलमान, हर गली कूचे मुहल्ले और सड़क पर टटपुंजिये युवा नेताओं, नगर अध्यक्षों के नाम के फ्लेक्स बोर्ड लगाने वाले मुसलमान, मिलावट करना, कम तौलना और गरीबो का हक मारने वाले मुसलमान, जेल और कचहरी में धक्के खाने वाले मुसलमान, वादा करने के बावजूद वादा न निभाने वाले मुसलमान, और ईद के दिन सिनेमाघरों में सलमान खान की फिल्मों को सुपर हिट का तमगा दिलाने वाले मुसलमान, रात में गलियों, बन्द बाज़ारों और स्टेशन का चक्कर लगाने वाले मुसलमान, जुमे के दिन को बिरयानी, गोशत, पुलाव कभी मिस न करने वाले मुसलमान, अख़बार मेगेज़ीन न लेकर क़ीमती से कीमती पेड चैनल अमेजॉन प्राइम, हॉटस्टार, बिना ऐड का यूट्यूब एन्जॉय करने वाले मुसलमान, बच्चों की स्कूल फ़ीस में आनाकानी करने, युनिफ़ॉर्म और किताबों मे कटोती करने वाले मुसलमान, बच्चों की पढ़ाई पर तवज्जो न देकर इन्वर्टर की बैटरी TV सीरियल के लिये बचाने वाले मुसलमान, अपने रिश्तेदार, बीमार, मुस्तहक़ को नज़र अन्दाज़ करके नेता, मन्त्री, पुलिस, प्रशासन, बॉस को दावत खिलाने वाले मुसलमान, अपने खर्चो पर लगाम लगाकर अपने बच्चों को अपनी नस्लो को बेहतरीन से बेहतरीन तालीम न देने वाले मुसलमान..
तो बताओ क्या ऐसे मुसलमानो के साथ इंसाफ होगा, क्या अल्लाह की रहमत ऐसे मुसलमानो पर नाजिल होगी, क्या ऐसे मुसलमानो को समाज मे इज्जत मिलेगी, क्या ऐसे मुसलमानो को समाज अपना पाएगा, क्या ऐसे मुसलमान सरकारी नौकरीयों मे जा पाएगे, क्या ऐसे मुसलमान सिस्टम का हिस्सा बन पाएगे ??
कोई भी कौम तब तक तरक़्क़ी नही कर सकती जब तक की उसकी जड़े, उसकी नस्लें तालीमयाफ्ता ना हों, बेशक़ आप समाजी औऱ माली तौर पर क़ामयाब हों, लेकिन एक बेहतरीन किरदार ईल्म से ही पैदा होता है, तालीम ही इंसान को अच्छे औऱ बुरे लोगों की पहचान कराती है, तालीम से ही इंसान दूसरों की पहचान करता है कि कौन उसके साथ है औऱ कौन उसका मुखालिफ ? कम से कम कौम के बच्चो को इतनी तालीम तो दें, इस लायक तो कर ही दें कि उसका अख़लाक़ औऱ किरदार मज़बूत हो जाए, गर आपके पास तालीम और ईल्म ना होगा तो यक़ीन मानिए ज़िंदगी के हर मोड़ पर आपकी आस्तीन से साँप निकलते रहेंगे जो कि आपको भी नुकसान पहुंचायेंगे औऱ आपके मुताल्लिकीन को भी डसते रहेंगे..
रात के 2-2 तीन-तीन बजे सौकर सुबह 12 बजे उतने वाले कौम अल्लाह से दुआएं कर रही है कि कोई उमर-बिन-खत्ताब या सुल्तान सलाहुद्दीन अय्युबी या उमर-बिन-अब्दुल अज़ीज़ आएंगे और मुसलमानो के हालात ठीक कर देंगे..
खुदा ने आज तक उस कौम की हालत नहीं बदली
न हो एहसास जिसको खुद अपनी हालत बदलने का
कल मुसलमान इंसाफ, दयानतदारी, सच्चाई और हिम्मत व बहादुरी के लिए मशहूर था आज मुसलमान बदअखलाक, बदकिरदार, झूठा, मक्कार, आतंकवाद के लिए बदनाम है, कल लोग थोड़ा खाकर भी अल्हम्दुलिल्लाह कहते थे, आज अच्छा और ज़्यादा खाकर भी कहते हैं मज़ा नहीं आया, कल इन्सान शैतान के कामों से तौबा करता था आज शैतान इन्सान के कामों से तौबा करता है, कल लोग अल्लाह के दीन के लिए जान देते थे आज लोग माल के लिए जान देते हैं, कल घरों से क़ुरआन की तिलावत की आवाज़ आती थी आज घरों से गाने की आवाज़ आती है, कल औलाद माँ-बाप का कहा मानती थी आज माँ-बाप औलाद के कहने के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारते है, कल लोग क़ुरआन व हदीस के मुताबिक ज़िंदगी गुज़ारते थे आज लोग माडर्न फ़ैशन के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारते हैं, कल लोग रात-दिन दीन सीखने और अल्लाह की इबादत में गुजारते थे आज लोग अपना रात-दिन शोहरत और माल व दौलत कमाने में गुजारते है, कल लोग अल्लाह की रज़ा के लिए हज करते थे आज लोग नाम व शोहरत के लिए हज करते है, कल मुसलमान दहेज न लेने के लिए मशहूर था आज दहेज हत्या और बहू उतड़ीपन के लिए बदनाम है..
आज मुस्लिम समाज की अक्सरियत एक रिवायती दीन को फोलो कर रही है जिसका हकीकत से दूर दूर का भी कोई वास्ता नहीं, मैने बड़े बड़े दीनदारों के निकाह देखे लेकिन आज तक एक भी ऐसा नहीं देखा जिसने डहेज न लिया हो, किसी ने खुलेआम लिया तो किसी ने चुपचाप लिया, इज्तमों में भी निकाह देखे लेकिन वो भी विदाई के वक्त डहेज से नहीं बच पाए, कोई कितना ही बड़ा अल्लाह वाला आपके निकाह को पढ़ा दे उससे क्या फर्क पढ़ता है, जब तक आपकी खुद की नियत ठीक नहीं है, अगर आप की नियत ठीक नहीं तो आपका बड़े बड़े इज्तमें में निकाह पढ़वाना भी एक रियाकारी के सिवा और कुछ नहीं हो सकता है, मेरी बात बुरी लगे आपको, अगर लगती है तो लगे मुझे कोई फर्क नहीं पढ़ता, मेरा काम सच बोलना और सही बात कहना है, आज बिरादरीवाद हमारे समाज में किसी नासूर से कम नहीं है, जिसे हम कोई बुराई भी नहीं समझते, जब कि मैं कहता हूं यह डहेज से भी बड़ा जुर्म है, यह एक ऐसी बीमारी है कि एक बिरादरी का बे नमाजी पसंद किया जाता है बामुकाबिल एक गैरबिरादरी के नमाजी इंसान के..
मुसलमान को गुस्सा कब आता है, मुसलमानो को गुस्सा तब आता है, जब पड़ोसी तरक़्क़ी कर लिया, घर मे अच्छा खाना नही मिला, शादी में इज़्ज़त नही मिली, अपनो से क़र्ज़ मांगा नही मिला, सगे भाई के नल का पानी कैसे रोकना, समाज मे बैठने को कुर्सी नही मिला, बेटे की शादी में सही खाने को नही मिला, बेटे को मन मुताबिक दहेज़ नही मिला, घर वालों पर रुआब झड़ने को नही मिला, बाप दादा की ज़मीन में 1 हाथ कम ज़मीन मिला..
और गुस्सा कब नही आता, जब औलाद जाहिल रहे, औलाद दारू पिये, घर वाले किसी की शिकायत करे चुगली करे, झूठी तारीफ हो, समाज मे झूठी इज़्ज़त हो, मस्जिद के सदर मस्जिदो को आर्थिक नुक्सान पहुँचा रहे हो, मनमानी पर उतारू हो, बहुत सारी कहानी है कुरेदना नही चाहता, सिर्फ हसद जलन क़ौम में कोई तरक़्क़ी करे, उसके पीछे लग जाना इसी में समय खत्म हो जाता है, पूरे मोहल्ले में किसके घर मे क्या हो रहा बड़े शौक से सुनना, यही है मुसलमानों के पसमांदा होने की सबसे बड़ी वजह, अल्लाह हमसब को नेक हिदायत दे समाज की बुराई से दूर रखे..
अजान पर पाबंदी लगाने पर सारे के सारे मुसलमान सरकार और तमाम हिन्दु संगठनो पर विधवा विलाप और रंडी रौना जो करते है, इस सबका फायदा ही क्या है, जब तुम सिर्फ जुमे के दिन ही नमाज पढ़ते हो, और ये जो जुमे के दिन मुसलमान आते है, ये कहा से आते है, और बाकि दिन ये मुसलमान कहा चले जाते है, क्या जुमे के दिन आसमान से फरिश्ते उतरते है नमाज पढ़ने के लिए, अगर बाकि के डीनो मे भी इसी तरह जैसे जुमे दिन के मुसलमानो की भीड़ मस्जिद मे आती है, उसी तरह आने लगे, तो क्या किसी की जुर्रत हो पाएगी, आजान पर कुछ बोल पाने की..
शैतान ने क्या किया था, शैतान ने कोई कोई ज़िना किया था, कोई क़तल किया था, शराब पी थी, जुआ-खेला था, क्या किया था इस ने, कोई शिर्क किया था इसने ? इस ने एक सजदे का इनकार किया था सिर्फ़ एक सजदे का इनकार किया और हमेशा के लिए मर्दूद हो गया और मुस्लमान को होश नहीं जो दिन में पाँच नमाज़ों में आने वाले 34 फर्ज सजदों का इनकार करता है और फिर भी बेफ़िकर है, ये सोचता है कि वो मर्दूद नहीं हुआ, कितने सुकून से सोता है, चाय पीता है खाना खाता है, बीवी के पास जाता है, घूमता फिरता है, खेलता है कूदता है, हर काम करता है लेकिन सिर्फ़ सातवें दिन जुमे वाले दिन टोपी रख कर मस्जिद में आ जाता है जैसे नमाज़ सिर्फ़ जुमे की फ़र्ज़ है, क्या अल्लाह सिर्फ़ जुमे को खिलाता है, क्या अल्लाह सिर्फ़ जुमे को बुलाता है, क्या अल्लाह सिर्फ़ जुमे को नेअमतें उतारता है..
मुस्लिम समाज मे पड़ोस की अनाथ बेटी और विधवा औरत कहा कहा घूमती है ये सबको मालूम होता है, मोहल्ले की नौजवान लड़किया किस टाइम कॉलेज और किस टाइम ट्यूशन जाती है, और किस टाइम वापस आती है, ये भी सबको मालूम होता है, लेकिन रात को कौन सी अनाथ बेटी और कौन सी विधवा पैसो के अभाव मे भुकी सौ गई, ये किसी को मालूम नही होता..
इस्लाम में जातिवाद नहीं है, लेकिन मुसलमानो में तो है..
इस्लाम में ब्याज नहीं है, लेकिन मुसलमानो में तो है..
इस्लाम में शराब नहीं है, लेकिन मुसलमानो में तो है..
इस्लाम मे दहेज नही है, लेकिन मुसलमानों में तो है..
इस्लाम में औरत को बराबरी का दर्जा दिया गया है, लेकिन मुसलमानो में ?
इस्लाम में बाप की विरासत में बेटी का हिस्सा और शौहर की विरासत में बिवी का हिस्सा है, लेकिन मुसलमानो में ?
अबे जाहिलों कब तक इस्लाम की आड़ में अपने गुनाह छिपाते रहोगे, हक़ीक़त का सामना कब करोगे ?
सुवर का गोश्त ( मीट ) खाने के अलावा मुसलमान वो सारे काम कर रहे हैं, जो इस्लाम में मना है..
Zahirbhatti
July 4, 2021 at 12:02 am
गौर करने वाली बात। सही फरमाया।
arafat
July 6, 2021 at 11:05 am
well written.
bold but to the point article.
शहजाद मोहम्मद पत्रकार
March 26, 2022 at 4:31 pm
अपने हक और सच बात लिखी है कि जब तक यह जाहिल मुसलमान रहेंगे तो हम लोगों को बेइज्जत होना पड़ेगा आज भी सब चीजों को समझ नहीं रहा है कितने सारे हालात कैसे आ रहे हैं क्यों आ रहे हैं और ना अपने बच्चों को तालीम की तरफ को भी तवज्जो देते हैं बस अपनी शान शौकत गोश्त खाना नई गाड़ी खरीदना टीवी नई नई लेके आना और अपने पड़ोसी का ख्याल ना रखना आपस में लड़ते रहना और दूसरों के साथ देना अपनों को बढ़ते हुए ना देखना और गोश्त की गर्मी को दिखाना कहीं भी कोई भी मामला फंसे वहां हम जरूर देखेंगे नमक के जैसे उस केस में जरूर हम शामिल होंगे यही हमारी पहचान रह गई है यह सब हलीम ना होने की वजह से है अगर आप भी हम लोग ना जागे तो हमारे हालात और बिगड़ते जाएंगे इसलिए आप सभी से मेरी गुजारिश है कि तालीम की तरफ अपने बच्चों का ख्याल रखें और आपस में तालमेल बैठा कर रहे किसी की बुराई किसी की लड़ाई ना करें और आपस में भाईचारा बनाकर जहां भी रहे इसी तरह से रहो
Sarthak Maurya
June 3, 2022 at 4:46 pm
To be honest.. This is one of the best and eye opening article I’ve ever read ❤ !!
Education is really important.. No matter , weather he/she belongs to non-muslim religion Or Muslim religion , Rich or poor ;
EDUCATION IS IMPORTANT
Saifi bhai
December 9, 2022 at 6:06 pm
100% agreed with your article. Ye article kisi aayine se km nhi h jo aaj ke musalmam ko unka asli chehra dikhata h