सारण और महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र का मामला
सोशल मीडिया पर कल शाम (20 मई 19) एक खबर तेजी से फैली कि बिहार के सारण (छपरा) और महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र के (ईवीएम) स्ट्रांगरूम के आस-पास ईवीएम से लदी एक गाड़ी पकड़ी गई है। आरोप था कि इसे स्ट्रांग रूम में ले जाने की कोशिश की जा रही थी और राजद कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने इसे रोक लिया। साथ में सदर बीडीओ भी थे पर उनके पास कोई जवाब नहीं था। सवाल उठना लाजिमी है – बीडीओ के साथ होने से मामला सही हो यह जरूरी नहीं है और अगर यह साधारण हो सकता है तो यह भी संभव है कि सरकारी स्तर पर ईवीएम बदलने या हेरीफेरी की जा रही हो। कोई भी सतर्क रहने की जरूरत बताएगा। अमूमन मैं जल्दबाजी में खबर शेयर नहीं करता। इसलिए मैंने इस पोस्ट को शेयर नहीं किया। हालांकि, यह खबर राजद के फेसबुक पेज R.J.D – राष्ट्रीय जनता दल पर थी ही, राजद के ट्वीटर हैंडल, @RJDforIndia से फोटो समेत ट्वीट भी हुई थी।
इसके बाद छपरा के ही मित्र, मुकुन्द हरि की पोस्ट दिखी जिसके साथ किसी कॉपी से फाड़े हुए रूलदार कागज पर हाथ का लिखा और पांच लोगों के दस्तखत वाला एक कागज पोस्ट किया गया था। इसपर लिखा था, (फोटो साथ में है) आज दिनांक 20.05.2019 को अपरान्ह 6.30 बजे 20 सारण संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचन पदाधिकारी सह अपर समाहर्ता, सारण के साथ मैंने छपरा सदर प्रखंड स्थित ईवीएम वेयर हाउस का अवलोकन किया जहां से 12 BU, 12 CU एवं 12 VVPAT जो मतगणना कर्मियों के प्रशिक्षण हेतु एलएनबी उच्च विद्यालय, छपरा में ले जाया गया था उसे प्रशिक्षणोपरांत पुनः गोदाम में मेरी उपस्थिति में रखा गया। इस प्रक्रिया से पूर्णतया संतुष्ट हूं। मेरे विचार से पारदर्शी प्रक्रिया से निर्वाचन का संचालन किया जा रहा है।
इसपर एसडीओ, सदर छपरा, सारण के साथ चंद्रिका राय के चुनाव अभिकर्ता प्रो. डॉ. लाल भाई यादव, निर्वाची पदाधिकारी सह अपर समाहर्ता, नोडल पदाधिकारी EVM/VVPAT कोषांग, छपरा समेत प्रभारी पदाधिकारी EVM/VVPAT कोषांग सारण के कथित हस्ताक्षर हैं और दो अन्य दस्तखत पढ़े जा सक रहे हैं। एक पर कोई पदनाम नहीं है। दूसरे के नीचे युवा राजद जिला उपाध्यक्ष, छपरा लिखा है। पांच लोगों के दस्तखत वाले इस दस्तावेज पर कोई मुह नहीं है। मैं इससे संतुष्ट तो नहीं था पर मुझे लगा यूं ही आरोप लगाना भी ठीक नहीं है इसलिए इसे पक्का कर लिया जाए। मेरा मानना है कि ईवीएम अगर नियमानुसार ले जाएं जाएंगे तो उसका छपा हुआ दस्तावेज होगा। समय, तारीख, स्थान, उद्देश्य सब बताते हुए। पकड़े जाने पर वह दस्तावेज दिखाना पर्याप्त होगा क्योंकि पहली नजर में उसे संतोषजनक लगना चाहिए। इस मामले में ऐसा कोई दस्तावेज होता तो बात बढ़ती ही नहीं।
बात बढ़ी तो किसी एक या दो व्यक्ति का कहना कि वह अमुक पदाधिकारी है और अमुक उद्देश्य से ईवीएम ले जाया गया था और अब वापस लाया गया है पर्याप्त नहीं है। ले जाए जाने और वापस लाने का अधिकृत दस्तावेज तो होना ही चाहिए। किसी अधिकारी को पहचानना वैसे भी सबके लिए संभव नहीं है। कुछ अधिकारी और कुछ लोग (वो भले ही चुनाव लड़ने वाले किसी एक या दो उम्मीदवार के अभिकर्ता हों) के संतुष्ट होने से मेरा संतुष्ट होना जरूरी नहीं है। पूरे निर्वाचन क्षेत्र के सभी मतदाताओं का तो बिल्कुल नहीं। इसलिए मुझे इस दस्तावेज पर यकीन नहीं है। पर मामला छपरा का है और मैं गाजियाबाद में बैठकर इसकी पुष्टि नहीं कर सकता हूं। और मुझे करने की जरूरत भी नहीं है।
वैसे तो यह एक गंभीर मामला है पर मुझे दिल्ली के अखबारों में यह खबर उतनी प्रमुखता से छपी नहीं दिखी। मुझे तो दिखी ही नहीं, हो सकता है अंदर के पन्नों पर कहीं छोटी या दबी हो पर प्रमुखता से तो नहीं है। मुझे यह किसी बड़े मामले का सूत्र भी लगता है। इस खबर के मामले में अपनी सामान्य समझ से मैं कह सकता हूं कि यह दस्तावेज पर्याप्त नहीं है। मैं बिल्कुल संतुष्ट नहीं हूं और मुझे इसमें गड़बड़ होने की पूरी शंका लग रही है। कारण ऊपर बता चुका हूं। इसके अलावा, इसके अलावा 6 दिसंबर 2018 का चुनाव आयोग का आदेश देखिए। इसे भी साथ ही पोस्ट किया जा रहा है। यह मतदान में उपयोग किए गए औऱ नहीं किए गए ईवीएम, वीवीपैट के भंडारण से संबंधित समान्य निर्देश हैं।
रेखांकित किया हुआ हिस्सा हिन्दी में (अनुवाद मेरा) इस प्रकार होगा, “मतदान वाले और रिजर्व सभी ईवीएम मतदान के बाद हर समय सशस्त्र पुलिस की सुरक्षा में रहेंगे। रिजर्व ईवीएम भी उसी समय लौटाए जाने चाहिए जब मतदान वाले ईवीएम प्राप्ति केंद्र पर लौटाए जाएं।” दूसरा रेखांकित वाक्य इस प्रकार है, “यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी रिजर्व ईवीएम भी उसी समय स्ट्रांग रूम में जमा कराए जाएं जब चुनाव वाले ईवीएम उसके लिए निर्धारित स्ट्रांग रूम जमा कराए जाएं।” ठीक है कि इसमें प्रशिक्षण के लिए उपयोग किए जाने वाले ईवीएम के बारे में नहीं लिखा है पर क्या आपको लगता है कि मतदान के बाद ऐसे ईवीएम लाकर उसी स्ट्रांग रूम में रखना सामान्य बात है जहां मतदान वाले ईवीएम रखे हैं? कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे ईवीएम को अन्य से बिल्कुल अलग रखा जाना चाहिए औऱ यह सुनिश्चित होना चाहिए कि इन्हें गिना न जाए और ये कल स्ट्रांग रूम में कैसे पहुंचे इसकी जांच तो होनी ही चाहिए। यह सामान्य मामला बिल्कुल नहीं है। चुनाव आयोग का यह आदेश मुझे एक मित्र से मिला है। आयोग के वेबसाइट पर मैं इसे नहीं ढूंढ़ पाया। जबकि मैं इसे अंग्रेजी और हिन्दी दोनों में तलाश रहा था।
चुनाव आयोग के वेबसाइट पर सारा काम हिन्दी में करा दिए जाने का दावा है इसलिए उम्मीद भी थी। मैंने तारीख वार, पत्र संख्या के आधार पर हर तरह से ढूंढ़ने की कोशिश की। ऐसे में मुमकिन है, आम कर्याकर्ता के लिए ईवीएम ले जा रही किसी गाड़ी को रोकना और उसके साथ चल रहे व्यक्ति द्वारा खुद को अधिकारी कहने पर चुनौती देना मुश्किल हो। दूसरी ओर, चुनाव आयोग के वेबसाइट पर मुझे प्रशिक्षण के लिए ईवीएम आदि ले जाए जाने से संबंधित 9 अक्तूबर 2018 का एक आदेश मिला। इसके मुताबिक इसे अलग रखा जाना है, कहां रखा जा सकता है यह सब बताया गया है पर यह नहीं लिखा है कि चुनाव वाले ईवीएम के साथ रखा जाएगा। ऐसे ईवीएम तहसीलदार कार्यालय में भी रखे जा सकते हैं। इनपर स्टिकर लगा रहता है आदि। इससे साफ है कि दोनों ईवीएम अलग होते हैं और उन्हें अलग रखा जाना है। इसके अलावा और भी नियम हैं, इस बात की जांच होनी चाहिए कि इस मामले में इनका पालन किया गया था कि नहीं। कायदे से यह काम अखबारों का है ताकि लोगों में भ्रम न रहे और लोगों को नियमों से संबंधित खास बातें मालूम रहें। पर अखबार अमूमन ईवीएम के लफड़े में नहीं पड़ते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट