उर्मिलेश-
फ़ेसबुक हो, सोशल मीडिया हो या मुख्यधारा का मीडिया हो, हमने इनमें कभी भी सतही, उत्तेजक, तथ्यहीन या विभाजनकारी बातें नहीं लिखीं. सोशल मीडिया के जमाने में भी हमने अपने व्यूअर या पाठक बढ़ाने के लिए कभी अपनी टिप्पणियों को भड़काऊँ नहीं बनाया. इसके बावजूद इस वक्त (Facebook के मुताबिक़) हमारे 83 हज़ार सात सौ छियानवे फ़ालोअर हैं. चार हज़ार से अधिक FB मित्र हैं.
कुछ महीने पहले तक हमारी ज़्यादातर पोस्ट को सैकड़ों और यहाँ तक कि कुछ को हज़ारों लोग पढ़ते और Like करते थे. अनेक पोस्ट सैकड़ों लोगों द्वारा शेयर की जाती थीं. बहुत सारे लोग कमेंट लिखते थे.
कुछ महीने पहले तक हमारी पोस्ट को Like करने वालों की संख्या एक सौ या एक हज़ार नहीं, 7000 से 8000 तक पहुँची. एक दिन देखा 7600 लोगों ने मेरी एक पोस्ट को Like किया है. पर न जाने मुझमें और मेरे समाज में ऐसी क्या तब्दीली आई है कि आज डेढ़ घंटे बाद भी हमारी एक ज़रूरी पोस्ट पर महज़ 76 लोग आये. वह इतने ही लोगों को पसंद आई.
इस बीच अनेक दोस्तों ने बताया कि उन्हें Facebook पर मेरी कोई पोस्ट नज़र ही नहीं आती! कभी-कभी नज़र आती है तो फ़ेसबुक प्रबंधन की इस टिप्पणी के साथ कि इस तरह की पोस्ट क्या आप देखना चाहते हैं.
इस प्रसंग पर अगर संक्षेप में मुझे कुछ कहना हो तो इसे मैं ‘Facebook की शर्मनाक हरकत’ कहूँगा, जो निहायत लोकतंत्र-विरोधी है! यह उसकी घोषित प्रोफेशनल प्रतिबद्धताओं के भी ख़िलाफ़ है. पर क्या कहें, समकालीन भारत का यह ‘सेंगोल-समय’ है, कुछ भी हो सकता है!