कई धाराओं में मुकदमा दर्ज करने के लिए आईओ अरविंद कुमार सहित कई पुलिसकर्मियों के खिलाफ उमेश ने दी लिखित तहरीर, इसमें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, देहरादून के एसएसपी, आईजी भी आरोपी बनाए गए…
लगता है समय का पहिया उल्टा घूम गया है. जो पुलिस वाले कल को बड़े-बड़े लोगों, अपने आकाओं का वरदहस्त होने के कारण कूद-कूद कर सरकारी कागजों में फर्जीवाड़ा कर रहे थे, दूसरी पार्टी को बिना भनक लगे घर में घुसकर अरेस्ट कर रहे थे, वही पुलिस वाले आज खुद आरोपी बनने के कगार पर हैं, वही पुलिस वाले आज खुद जेल जाने की आहट सुन कर परेशान हो रहे हैं. इस पूरे खेल में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री समेत देहरादून रेंज के आईजी, एसएसपी भी शामिल थे, ऐसा तहरीर में आरोप लगाया गया है. इसी कारण इन लोगों को साजिशकर्ता बताया गया है. उमेश कुमार ने एक लंबी चौड़ी लिखित शिकायत गाजियाबाद पुलिस को दी है. इसमें उन्होंने अपनी गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए गिरफ्तारी के वास्ते तैयार कराए गए कागजों को फर्जी करार दिया.
उत्तराखंड के सीएम के चर्चित स्टिंग प्रकरण में समाचार प्लस चैनल के सम्पादक उमेश कुमार को गिरफ़्तार करने के लिए कोर्ट से जो गिरफ़्तारी वारंट और सर्च वॉरंट लिया गया था, वह फ़र्ज़ी दस्तावेज़ पर आधारित था. जानिए पूरी कहानी, सिलसिलेवार.
सबसे पहले बीते साल 18 अगस्त और फिर 24 अगस्त को उमेश कुमार की गिरफ्तारी और घर की तलाशी के लिए अरेस्ट-सर्च वारंट लोअर कोर्ट से माँगा गया. लेकिन कोर्ट ने वारंट की अपील को निरस्त कर दिया. इसके बाद आईओ यानि जांच अधिकारी इंस्पेक्टर अरविंद कुमार सेशन कोर्ट गए. यहां यह बताना जरूरी है कि जब भी आप अरेस्ट व सर्च वारंट के लिए कोर्ट जाते हैं तो आरोपी को पार्टी बनाया जाता है ताकि उसे भी पूरी प्रक्रिया की जानकारी रहे और अपना पक्ष रख सके. पर अपने आकाओं के इशारे पर आईओ अरविंद कुमार ने एक साजिश रची. उमेश कुमार को इस वारंट के बाबत जानकारी न मिल जाए, इसके लिए पूरे प्रकरण को आईओ अरविंद कुमार बनाम स्टेट बना दिया. कायदे से इसे, सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार, आईओ अरविंद कुमार बनाम उमेश कुमार होना चाहिए था.
अगस्त की दोनों तारीखों को लोअर कोर्ट से सर्च व अरेस्ट वारंट निरस्त होने के बाद 11 अक्टूबर को देहरादून सेशन कोर्ट में अपील हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए आईओ अरविंद कुमार ने अरविंद कुमार वर्सेज सरकार का मामला बनाकर याचिका दाखिल कर दिया. एक तरह से देखा जाए तो यह याचिका सरकार बनाम सरकार ही थी क्योंकि आईओ तो सरकार की तरफ से ही याचिका दाखिल कर रहा था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सेशन में अपील के दौरान सम्बंधित पक्ष या सीधे प्रभावित / पीड़ित पक्ष, जिसके ख़िलाफ़ याचिका दाख़िल की जा रही है, को पक्षकार बनाया जाना अनिवार्य है.
अब आगे की कहानी. उमेश कुमार के एटीएस इंदिरापुरम ग़ाज़ियाबाद स्थित घर पर वारंट की तामील दिखाने के लिए सोसायटी के गेट नम्बर-4 के एंट्री रजिस्टर में आईओ अरविंद कुमार ने फ़्लैट नम्बर वाले खाने में लिखा ‘T-19’ यानि टावर-19. इसके बाद अरविंद कुमार ने टावर में लिफ़्ट के पास स्थित गार्ड के रजिस्टर में एंट्री करते समय फ़्लैट नम्बर का खाना ख़ाली छोड़ दिया. एंट्री का समय 3:55PM डाला और वापसी का समय 3:59 लिखा. वास्तविकता ये है कि उमेश कुमार चौबीसवी मंज़िल पर रहते हैं और वहां पहुंचने में लिफ़्ट तक़रीबन दो से ढाई मिनट लेती है. वापसी में भी इतना ही समय लगता है. कोर्ट में वॉरंट लेने के लिए दी गयी याचिका में टोटल 4 मिनट में वॉरंट की तामील ना होना और परिवार वालों के द्वारा वारंट ना लिया जाना बताया गया है.
आईओ अरविंद कुमार ने गेट नम्बर 4 और टावर-19 के रजिस्टर मे एंट्री करने के दौरान इन रजिस्टर के फ़ोटो खींच लिए थे. अरविंद कुमार ने गेट नम्बर-4 के रजिस्टर जिसके फ़्लैट नम्बर वाले खाने में T-19 लिखा था, उसकी फ़ोटोस्टेट कापी पर फ़्लूइड लगाकर उमेश कुमार के फ़्लैट का नम्बर 19241 डाला. जो रजिस्टर टावर १९ की लिफ़्ट के पास स्थित गार्ड के पास था उसमें ख़ाली छोड़े गए फ़्लैट नम्बर वाले खाने में उमेश कुमार का फ़्लैट नंबर 19241 लिख डाला. आईओ अरविंद कुमार और वादी आयुष गौड़ ने एक साजिश रचा.
उमेश कुमार के फ़्लैट का पता गलत डाला. उमेश कुमार 19242 यानि टावर नंबर 19 के 24वें तल्ले स्थित प्लैट नंबर दो में रहते हैं. लेकिन सभी वॉरंट की तामील दिखाया गया फ़्लैट नम्बर 19241 पर, जो निर्माण के बाद से आज तक किसी को आवंटित ही नहीं किया गया. यानि ये एक ख़ाली और खंडहर फ़्लैट है. इन दस्तावेज़ो को कोर्ट में पेश करके आईओ अरविंद कुमार द्वारा कहा गया कि उमेश कुमार वॉरंट लेने से बच रहा है और परिजनों ने वारंट लेने से मना कर दिया है.
मतलब घर में घुसकर अरेस्ट करने और तलाशी लेने के लिए एक बड़े पैमाने की साजिश को अंजाम दिया गया जिसमें ढेर सारी गलत सूचनाएं लिखी मिटाई छिपाई गईं. यह एक बड़ा फ्रॉड, बड़ा फर्जीवाड़ा और घनघोर चारसौबीसी है जिसमें ढेर सारे पुलिस वाले सीधे नपेंगे, जेल जाएंगे. इस पूरी साजिश को संरक्षण दे रहे थे उच्च अधिकारी. साजिश रचकर ग़लत धाराओं में मुकदम दर्ज करके अपनी पीठ थपथपाने वाली देहरादून पुलिस अंतत: चार्जशीट के दौरान बैकफुट पर आ गई और इन आरोपों को साबित न सर सकी.
फिलहाल तो लगता है कि समय की सुई घूम चुकी है. जो कभी थानेदार हुआ करते थे, अब वो कटघरे में खड़े दिखाई देने लगे हैं. जो कभी आरोपी था, वह एक-एक कर सत्ता रचित फर्जीवाड़े के सारे तारों का खुलासा करते हुए इसे तार-तार करता जा रहा है. इस पूरे प्रकरण में सबसे खास बात ये है कि दोनों ही पक्ष विधिक तौर पर काफी मजबूत है और एक दूसरे को कानूनी तौर पर पटखनी देने पर आमादा हैं. फिलहाल जो स्थिति है उसमें सत्ता का पलड़ा हलका पड़ चुका है. उमेश कुमार एंड कंपनी का पलड़ा भारी पड़ रहा है. यही है कि एक एक कर हर विधिक मोर्चे पर पुलिस और सरकार को मात खानी पड़ रही है.
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