Sanjaya Kumar Singh : शीशे के घरों से चुनाव लड़ना… भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर पार्टी की ओर से दिल्ली की मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनना किरण बेदी के लिए काफी महंगा पड़ा। चुनाव अभी हुए नहीं है फिर भी उनके जीवन की दो प्रमुख कमाई इस चुनाव में खर्च हो गई। पहली कमाई थी इंदिरा गांधी की कार टो करने का श्रेय जो पिछले दिनों बुरी तरह खर्च हो गई। उनकी दूसरी कमाई थी – देश की पहली महिला आईपीएस होने का श्रेय। और अब यह कमाई भी खर्च होती दिखाई दे रही है।
एक पुराने अखबार के कतरन की यह तस्वीर बताती है कि देश की पहली महिला आईपीएस ऑफिसर पंजाब कैडर की सुरजीत कौर (1956) थीं जिनका 1957 में एक कार दुर्घटना में निधन हो गया था। जबकि हम लोग अभी तक किरण बेदी को ही देश की पहली महिला आईपीएस अफसर जानते-मानते रहे हैं। सुरजीत कौर के आईपीएस के लिए चुने जाने के बाद जल्दी ही निधन हो जाने और इसके करीब 16 साल बाद 1972 में किरण बेदी के आईपीएस बनने पर हो सकता है उस समय किरण बेदी को पहली महिला आईपीएस अधिकारी कहा और मान लिया गया होगा। और उनकी यही छवि बनी रही। अब अगर यह खुलासा हो रहा है तो इसका श्रेय सूचना और संचार क्रांति के साथ भारतीय चुनावों को भी देना पड़ेगा। अभी तक तो यही कहा जाता था कि शीशे के घरों में रहने वालों को दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए। पर बुलेट प्रूफ शीशे के जमाने में इसमें संशोधन की आवश्यकता लग रही है। शीशे के घरों से चुनाव नहीं लड़ना चाहिए।
किरण बेदी वाकई पहली महिला आईपीएस नहीं है वाले सच को छुपाए रखने के लिए कितने लोगों को दोषी माना जाए। जैसा कि नरेन्द्र मोदी ने कहा है कांग्रेस ने 67 साल कुछ नहीं किया – पर यह एक काम तो किया कि उनके (उनकी पार्टी) के लिए किरण बेदी तैयार करने में योगदान किया। खबर के मुताबिक दिल्ली में जाने-माने वेद मारवाह सुरजीत कौर के बैचमेट हैं, उन्होंने भी यह जानकारी सार्वजनिक नहीं की तो क्या वेद मारवाह को इस काम में कांग्रेस पार्टी का सहयोगी माना जाए। इंदिरा गांधी की कार टो करने के जिस मामले से वे स्टार बनीं उस मामले में भी कांग्रेस ने सार्वजनिक तौर पर कुछ कहा हो ऐसा सुनने में नहीं आया। उसकी इस चुप्पी को क्या माना जाए।
यूपीएससी, जो लोगों के समान्य ज्ञान की परीक्षा लेकर आईएएस-आईपीएस चुनता बनाता है, इतने वर्षों तक इस जानकारी को छिपाए रहा या एक गलत सूचना को सही करने की जरूरत नहीं समझी। क्या उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। इतना जबरदस्त सहयोग मिलने के बाद भी किरण बेदी की पसंद कांग्रेस पार्टी नहीं रही। पहले तो अन्ना आंदोलन में भाग लेकर वे कांग्रेस सरकार का विरोध करती हैं और फिर प्रमुख विरोधी दल भाजपा में शामिल हो जाती हैं। कांग्रेस का विरोध तो आम आदमी पार्टी भी कर रही थी पर उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को चुना। क्या इसलिए कि उन्हें लगता है कि उनके जैसे लोगों की शरणस्थली भाजपा है। बहुत सारे सवाल हैं और मीडिया की भूमिका भी। पर उसकी चर्चा फिजूल है। कटघरे में सिर्फ किरण बेदी नहीं – देश की राजनीति, राजनीतिक पार्टियां, समाज और संस्थाएं और कुछ दूसरे प्रमुख नागरिक भी हैं। सिर्फ किरण बेदी को दोषी मानना मुझे ठीक नहीं लग रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.
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Comments on “सच सामने आया : किरण बेदी नहीं, सुरजीत कौर आजाद भारत की पहली महिला आईपीएस अफसर”
Kiran Bedi No. 1 jhuthi lady hai aur Anna andolan ke time se hi barabar jhuth bolti rahi hai.ab to wo leader ban gai hai aur jyada jhuth bolne ki jarurat hogi.
Great !
Kiran bedi to aaj se 6 saal pahle bhi bjp mai ane ki taiyar thi mai us time delhi bjp leader nand kisor garg ka pa tha us time bhi kiran bedi ne cm seat
Bhai, kya aapne check kiya ki jo news paper ki cutting dekh rahe hai. Wo sahi hai ki nahi? Aajkal edit karna koi bhi cheej badi aasan hai. Aapne to usi par poora article likh dala. She worked for 40 years for country, aapke liye to first IPS nahi thi matlab kuch nahi thi.
Rahi baat crane bedi ki, PMO office car bhale hee na hatayi ho, traffic control ke liye crane se gadiya idhar se udhar karna Bedi ne hee shuru kiya tha. Lekin aap to yahi bologe, kiran Bedi ne PMO ki gadi nahi hatayi.
Biased reporting at its best.
Student jee, Vineet Kumar Singh jee – ठीक है कि न्यूजपेपर की कटिंग सही नहीं हो सकती है और सॉफ्टवेयर से कोई भी कैसी भी क्लिपिंग बना सकता है। पर यहां मुद्दा उसमें जो लिखा है वो है। अगर इस कटिंग में लिखी बात गलत है तो किरण बेदी ने क्यों नहीं कहा कि गलत है। किरण बेदी ने इस संबंध में सवाल पूछे जाने पर समय ना होने की बात कहकर इंटरव्यू खत्म कर दिया। ठीक है कि किरण बेदी ने 40 साल देश के लिए काम किया पर वेतन लेकर किया और राष्ट्रपति पुरस्कार भी पाईं। लेकिन जो दो बड़ी उपलब्धियां उनके नाम थीं इस चुनाव में खर्च हो गईं।