संजय कुमार सिंह-
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के आगे का सवाल – क्या मामला फ्लोर मैनेजमेंट के नए रूप का है?
भारतीय जनता पार्टी की सरकार अखबारों की खबरों से जो खेल करती है वह बेमिसाल है। विज्ञापन, सुविधाओं और लालच के साथ लापरवाही में अखबार वाले भी पार्टी की भरपूर सेवा कर रहे हैं। इसे देखना मेरे लिए अलग आनंद का विषय है। मैंने इस पर खूब लिखा है और महसूस किया है कि इंडियन एक्सप्रेस भी अक्सर सेवा भाव वाले शीर्षक लगाता है। हालांकि, बात सिर्फ खबर की नहीं, उसके डिसप्ले की भी है। अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अभिकरण वाले मामले में कल वोडाफोन के पक्ष में आए फैसले की खबर सरकार के खिलाफ थी। अगर आप दबाव में सरकार के खिलाफ खबरें नहीं छापते हैं, खोजी खबरें बंद कर रखी हैं तो वह खबर कल की लीड थी।
वैसे, पत्रकारिता में ऐसा कोई आर-पार का या सीधा सपाट नियम नहीं होता है। फिर भी अगर कोई रोता है कि वह सरकार विरोधी खबरें नहीं छाप पाता है, खोजी खबरें नहीं कर पाता है तो ऐसे मौकों पर पता चलता है कि वह असल में कितना सरकार विरोधी है। पर वह अलग मुद्दा है और मेरा अपना पैमाना है कोई अंतरराष्ट्रीय मानक नहीं। इंडियन एक्सप्रेस में कल वह खबर लीड नहीं थी। हालांकि, पहले पन्ने पर थी। यह दीगर है कि कल खबरों का पहला पन्ना कौन था और कितना विज्ञापन था, किसका था। जहां तक लीड की बात है, कल द टेलीग्राफ में भी यह खबर पहले पन्ने पर नहीं थी। लेकिन जैसा मैंने कहा, बात सरकार विरोधी खबर छापने के मौके की है। और टेलीग्राफ को इसकी जरूरत नहीं है। वह तो रोज ही छापता है। इसे इस तथ्य से समझिए कि द हिन्दू में यह खबर लीड थी। खैर, अभी यह मुद्दा नहीं है। पर मुझे बहुत दिलचस्प लगता है।
इस लिहाज से आज इंडियन एक्सप्रेस की खबर अलग और प्रशंसनीय है। बेशक यह रूटीन की खबर नहीं है और आम अखबारों में छपने वाली तो बिल्कुल नहीं। यह एक्सक्लूसिव खबर भक्ति भाव में बाकायदा छोड़ी जा सकती थी। इसलिए इस शीर्षक के साथ छपने के मायने हैं और मैं राजनीतिक मायने की चर्चा नहीं कर रहा हूं। मैं आज जिस खबर की चर्चा कर रहा हूं वह इंडियन एक्सप्रेस में पांच कॉलम में दो लाइन के शीर्षक से छपी है। उपशीर्षक से सरकारी पक्ष भी आ गया है। जो खबर में सूत्रों के हवाले से भरपूर है।
इसका अनुवाद कुछ इस प्रकार होगा, उपाध्यक्ष ने कहा कि मतविभाजन की मांग करते समय विपक्ष सीट पर नहीं था, राज्यसभा टेलीविजन कुछ और दिखा रहा है। उपशीर्षक है, अधिकारियों ने कहा, सदन में अव्यवस्था थी, अगर उपाध्यक्ष को डराया नहीं जाता तो मतविभाजन होता। कहने की जरूरत नहीं है कि इस संबंध में आरोप पहले से लगते रहे हैं। ट्वीटर पर भी कहा गया है पर इस तरह तस्वीर के साथ इतनी प्रमुखता से खबर छपने के बाद कहने -बचने-करने के लिए कुछ रह नहीं जाता है।
मनोज सीजी की बाई लाइन वाली खबर का पहला पैरा इस प्रकार है। मेरी कोशिश है कि इसका अनुवाद बिल्कुल उसी भाव और अर्थ के साथ हो जो जाए अंग्रेजी में है। इसलिए अल्पविराम, पूर्ण विराम समेत खबर इस प्रकार है, “गुजरे इतवार को राज्यसभा में अव्यवस्था के बीच कृषि विधेयक पास किए जाने के दौरान मतविभाजन की विपक्ष की मांग को खारिज किए जाने की अपनी कार्रवाई को न्यायोचित बताते हुए उपाध्यक्ष (उपसभापति) हरिवंश ने कहा कि सदस्यों ने मांग अपनी सीट से नहीं की थी। सदन में हंगामे के बीच, उन्हें यह कहते हुए सुना गया था कि मतविभाजन की मांग करने के लिए सदस्यों को अपनी सीट पर रहना होगा।”
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा राज्यसभा टेलीविजन के आधिकारिक फुटेज की समीक्षा करने पर कुछ और दिख रहा है। यह सही है कि, दोपहर बाद एक बजे – जब उपसभापति ने सदन की कार्यवाही का विस्तार किया – से 1.26 तक तक जब सदन को 15 मिनट के लिए स्थगित किया तब तक कम से कम दो सदस्य, डीएमके के तिरुचि सिवा और सीपीएम के केके रागेश मतविभाजन की मांग करते वक्त अपनी सीट पर थे। वैधानिक प्रस्ताव, प्रस्ताव और संशोधन इन्हीं ने पेश किए थे। निम्नलिखित पर विचार कीजिए।
दोपहर 1:00 बजे – विधेयकों पर चर्चा का जवाब दे रहे कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से उपसभापति कहते हैं कि एक बज गए हैं। संसदीय मामलों के मंत्री प्रहलाद जोशी सदन के विस्तार का प्रस्ताव करते हैं। उपसभापति पूछते हैं कि क्या सदन विधेयक के निपटारे तक बैठने के लिए तैयार है। कांग्रेस सदस्य आनंद शर्मा और जयराम रमेश ने मांग की कि कार्यवाही सोमवार को जारी रखी जाए वे और तिरुचि सिवा उपसभापति से सदन की राय लेने के लिए कहते हैं। उपसभापति कहते हैं कि आम सहमति है तथा तोमर से जारी रहने के लिए कहते हैं। सदस्य नारे लगाते हुए सदन के बीच में पहुंच जाते हैं।
1:03 बजे – विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद कहते हैं कि अगर सदन की कार्यवाही अवधि का विस्तार किया जाना है तो वह सहमति के आधार पर किया जाना चाहिए। वे यह भी कहते हैं कि ज्यादातर राजनीतिक दल कह रहे हैं कि आज और कल समय नहीं बढ़ाया जाना चाहिए तथा मंत्री जवाब देना जारी रख सकते हैं ….।
1:07 बजे – विपक्षी सदस्यों की नारेबाजी के बीच विधेयक पास होने से पहले उपसभापति विधायी प्रस्ताव निपटाना शुरू करते हैं। सभापति विधायी प्रस्ताव पेश करने वाले सीपीएम के केके रागेश का नाम पुकारते हैं। सदन के बीच में मौजूद एक न पहचाने जा सकने वाले सदस्य से कहते हैं कि वे अपनी सीट पर जाएं जो ऊपर गैलरी में है।
1:08 बजे – ध्वनि मत से विधायी प्रस्ताव नामंजूर हो जाता है। इसके बाद वे श्री रागेश के प्रस्ताव पर आते हैं जो विधेयक को सेलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग करता है। यह प्रस्ताव भी ध्वनि मत से नामंजूर हो जाता है।
1:09 बजे – इसके बाद वे तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन के प्रस्ताव पर आते हैं। इसके जरिए भी विधेयक को सेलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग की गई थी। यह प्रस्ताव भी ध्वनि मत से खारिज हो जाता है। मतविभाजन की मांग करती हुई आवाज सुनी जा सकती है।
इसके बाद कुछ सेकेंड के लिए आवाज बंद हो जाती है। उपसभापति कहते हैं कि मतविभाजन के लिए मांग सीट पर रहकर की जानी चाहिए।
1:10 बजे – अब वे तिरुचि सिवा का प्रस्ताव लेते हैं। यह भी विधेयक को सेलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग करने के लिए है और ध्वनि मत से नामंजूर हो जाता है। तस्वीरों में स्पष्ट नजर आता है कि सिवा अपनी सीट पर हैं। एक हाथ उठाकर वे मतविभाजन की मांग कर रहे हैं। डेरेक ओ ब्रायन सदन के बीच में पहुंचते हैं उनके हाथ में नियम पुस्तिका है। चीखते हैं, आप ऐसा नहीं कर सकते हैं ….. नियम क्या है। तस्वीरों में दिखता है कि सिवा अभी भी सीट पर हैं।
1:11 बजे – उपसभापति विधेयक की धाराओं पर एक-एक कर विचार करना शुरू करते हैं। वे रागेश द्वारा पेश संशोधन की मांग पर आते हैं ….. तस्वीरों में दिख रहा है कि रागेश सीट पर हैं। विभाजन की मांग कर रहे हैं। ध्वनि मत से संशोधन नामंजूर कर दिए गए।
1:12 बजे – तस्वीरों में दिखता है कि रागेश अपनी सीट पर हैं और सिवा अपनी सीट पर कागज फाड़ रहे हैं। हल्ला गुल्ला बढ़ जाता है।
इसके बाद बताया गया है कि 1:12 बजे से लेकर बाकी समय क्या होता है। 1:26 बजे सदन को 15 मिनट के लिए स्थगित कर दिया जाता है। खबर में बताया गया है कि सांसदों ने अखबार से क्या कहा। इसके अनुसार सदस्यों ने कहा कि वे नियम जानते हैं। सदन के बीच में तब गए थे जब समय बढ़ाने की बात हुई लेकिन जब प्रस्ताव निपटाए जाने लगे तो वे अपनी जगह पर थे। उनकी बात नहीं सुनी गई। अखबार ने यह भी लिखा है कि उपसभापति ने उसके सवालों के जवाब नहीं दिए। पर उनके सचिवालय के सूत्रों ने अखबार से कहा कि शोर के मारे उनका ध्यान बंट गया था। क्योंकि वे कोशिश कर रहे थे कि कागज उनसे न छीन लिए जाएं। सदन में व्यवस्था नहीं थी, काम ज्यादा था इसलिए विधेयक को उसी दिन पास करने का दबाव था और सूत्रों ने यह तर्क भी दिया कि अगर विपक्ष ने कार्यवाही बाधित नहीं की होती तो मतविभाजन होता।
बेशक इंडियन एक्सप्रेस की यह खबर एक अच्छी पत्रकारिता का उदाहरण है। लेकिन मेरा मानना है कि तथ्य बताने के बाद निष्कर्ष निकालने का काम पाठकों पर छोड़ देना चाहिए। असली पत्रकारिता यही है कि घटना या सूचना जस के तस रख दी जाए पाठक को तय करने दिया जाए। लेकिन यहां सूत्रों के हवाले से लीपापोती की कोशिश की गई है। जब सभापति ने सवालों का जवाब नहीं दिया या देने की जरूरत नहीं समझी तो सूत्रों के हवाले से उनका पक्ष क्यों रखना? एक पाठक के रूप में मुझे लगता है कि यह गंभीर पत्रकारिता की अपनी साख बनाने के साथ छवि बनाने का काम भी है। वैसे ही जैसे टाइम में खबर छपी तो उसका अनुवाद छापकर प्रचारित किया जाए। टाइम की खबर देने का श्रेय और प्रचार दोनों।
दूसरा मामला फ्लोर मैनेजमेंट का है। इस संबंध में 31 जुलाई 2019 को मैंने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था, आज लगभग सभी अखबारों में तीन तलाक विधेयक (‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019’) राज्य सभा में पास हो जाने की खबर लीड है। राज्य सभा में सरकार का बहुमत नहीं होने के बावजूद इस विधेयक के पास हो जाने का कारण यह बताया गया है कि विपक्ष के 20 सांसद मतदान के मौके पर गैरहाजिर रहे। हालांकि, अमर उजाला ने लिखा है कि 50 से ज्यादा सांसद गैरहाजिर रहे। राज्य सभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है। इस समय 245 सदस्य हैं। 233 निर्वाचित और 12 नामांकित। पक्ष विपक्ष मिलाकर कुल 183 वोट पड़े। एक वोट नहीं गिने जाने का भी चक्कर है। संजय सिंह जैसे कुछ लोगों की संख्या घटाकर आप अनुपस्थित सदस्यों का अनुमान लगा सकते हैं। हि्दुस्तान टाइम्स ने पार्टी वार अनुपस्थित सदस्यों की संख्या लिखी है और टेलीग्राफ की खबर में पार्टी की लाचारी बताई गई है।
कुछ अखबारों ने राज्यसभा में विधेयक पास होने का श्रेय भाजपा की प्रबंध क्षमता को भी दिया है। इसमें इंडियन एक्सप्रेस की स्पष्टता या जर्नलिज्म ऑफ करेज का जवाब नहीं है। आप जानते हैं कि इस विधेयक के पक्ष में 99 वोट पड़े और 84 इसके खिलाफ। इस तरह विधेयक पास हो गया। अगर 20 गैरहाजिर सांसद उपस्थित रहते तो स्थिति कुछ और होती पर नहीं रहने से अगर विधेयक पास हो गया है तो उनसे पूछा जाना चाहिए था कि वे क्यों अनुपस्थित थे और अनुपस्थित रहकर क्या उन्होंने विधेयक को राज्य सभा में पास होने और कानून बनाने में सहयोग नहीं किया। विधेयक पास हो गया और कैसे पास हो गया यह खबर तो कल ही सबको पता थी। आज अखबारों में यह नई चीज हो सकती थी। यह भाजपा या सरकार के खिलाफ भी नहीं है। पर किसी अखबार ने ऐसा किया क्या? अखबार जब फ्लोर मैनेजमेंट के नाम पर संसदीय व्यवस्था से खिलवाड़ की तारीफ करें या उसे नजरअंदाज करें तो इस तरह हंगामें में कृषि विधेयक पास कराना क्या अलग किस्म का मैनेजमेंट नहीं था?
लेखक संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने अनुवादक हैं.
हरि प्रकाश लाटा
September 28, 2020 at 7:54 am
इंडियन एक्सप्रेस सरकार विरोधी खबरों के लिये ही जाना जाता है । हिन्दू से कम सरकार विरोधी खबरें एक्सप्रेस में नहीं छपती । इस खबर में भी एक्सप्रेस ने पत्रकारिता के सभी मापदंडों का निर्वहन किया है । और हरिवंश जी ने भी राज्यसभा की नियमावली , परंपराओं और राज्यसभा में उस खास समय की परिस्थितियों के अनुसार ही निर्णय लिये हैं ।
केवल इसलिए कि आप सरकार विरोधी हैं और इस बिल के पास होने की आपको आलोचना करनी ही करनी है , आप अनावश्यक हरिवंश जी को कटघरे में खड़ा कर रहें हैं ।
राज्यसभा के निलंबित सांसदो के अशोभनीय गतिविधियों पर आप कुछ नहीं कह रहे हैं ? माने आप उनकी हरकतों को जायज मानते हैं ?
फैसल खान
September 28, 2020 at 11:21 am
ऐसे लोग सरकारी दलाल होते हैं,घी चुपड़ी रोटियां खाने का अपना अलग ही मज़ा है और जब सरकार की तरफ से शानदार टुकड़े डाले जाएं तो ऐसे बेईमान लोगों का ईमान बहुत जल्द डोल जाता है