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मजीठिया के लिए इधर-उधर भटकने से बेहतर है कि सीधे कोर्ट जाएं या फिर सुप्रीम कोर्ट और केन्द्रीय श्रम मंत्रालय में आरटीआई लगाएं

मजीठिया वेतनमान को लेकर पत्रकारों के लिए 10 नबंवर का दिन खास हो सकता है। इस दिन गुजरात हाईकोर्ट पत्रकारों के केस की अंतिम सुनवाई करने वाला है यदि इसी दिन फैसला आ जाता है तो मजीठिया वेतनमान को लेकर प्रेस मलिकों की आफत तो तय है। जाहिर है इस केस का आधार लेकर हर राज्य में पत्रकार हाईकोर्ट जा सकते। दरअसल लेबर कोर्ट पत्रकारों का केस यह कहकर लेने से मना करता है कि वेतन भुगतान अधिनियम के तहत हम 14 हजार वेतन तक के मामलों की सुनवाई कर सकते है उससे अधिक वेतन पाने वाले अधिकारिक वेतनमान की श्रेणी में आते है और हाईकोर्ट ही मामले की सुनवाई कर सकता है।

<p>मजीठिया वेतनमान को लेकर पत्रकारों के लिए 10 नबंवर का दिन खास हो सकता है। इस दिन गुजरात हाईकोर्ट पत्रकारों के केस की अंतिम सुनवाई करने वाला है यदि इसी दिन फैसला आ जाता है तो मजीठिया वेतनमान को लेकर प्रेस मलिकों की आफत तो तय है। जाहिर है इस केस का आधार लेकर हर राज्य में पत्रकार हाईकोर्ट जा सकते। दरअसल लेबर कोर्ट पत्रकारों का केस यह कहकर लेने से मना करता है कि वेतन भुगतान अधिनियम के तहत हम 14 हजार वेतन तक के मामलों की सुनवाई कर सकते है उससे अधिक वेतन पाने वाले अधिकारिक वेतनमान की श्रेणी में आते है और हाईकोर्ट ही मामले की सुनवाई कर सकता है।</p>

मजीठिया वेतनमान को लेकर पत्रकारों के लिए 10 नबंवर का दिन खास हो सकता है। इस दिन गुजरात हाईकोर्ट पत्रकारों के केस की अंतिम सुनवाई करने वाला है यदि इसी दिन फैसला आ जाता है तो मजीठिया वेतनमान को लेकर प्रेस मलिकों की आफत तो तय है। जाहिर है इस केस का आधार लेकर हर राज्य में पत्रकार हाईकोर्ट जा सकते। दरअसल लेबर कोर्ट पत्रकारों का केस यह कहकर लेने से मना करता है कि वेतन भुगतान अधिनियम के तहत हम 14 हजार वेतन तक के मामलों की सुनवाई कर सकते है उससे अधिक वेतन पाने वाले अधिकारिक वेतनमान की श्रेणी में आते है और हाईकोर्ट ही मामले की सुनवाई कर सकता है।

खैर पत्रकारों के पक्ष में फैसला होना तय है क्योंकि औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत 95 प्रतिशत फैसले लेबर के पक्ष में जाते हैं मालिकों को सिर्फ हड़ताल में राहत मिल सकती है। उक्त मामले में प्रेस प्रबंधन ने अब तक सिर्फ एक ही दलील दी है कि कर्मचारी मजीठिया वेतनमान नहीं लेना चाहते।

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हो क्या रहा है

वर्तमान समय में टॉप प्रेस व मीडिया मालिकों को मोदी सरकार की तरफ से खूब पैसे दिए जा रहे है। ऐसे में कोई भी मीडिया या प्रेस संस्थान मोदी के खिलाफ कुछ बोलने या लिखने से कतरा रहा है। उद्योगिक संस्थान लाने के लिए केन्द्र सरकार श्रम कानूनों को शिथिल करने में लगी हुई है। लेकिन नरेन्द्र मोदी को एक बात अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि 2003 के लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी ने फील गुड का नारा दिया था जनता ने फीड गुड करा दिया था। सिर्फ बडबोल बोलने से, घोषणाएं करने से प्यासे की प्यास बुझ जाए, भूखे की भूख खत्म हो जाए तो आश्वासन व घोषणाएं ही होनी लगे।

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श्रम विभाग की कमाई का जरिया

मजीठिया वेतनमान श्रम विभाग की कमाई का अच्छा जरिया बन गया है। यदि इससे संबंधित कोई शिकायत आती है तो श्रम विभाग पहली नोटिस तो आनन-फानन में जारी करता है। फिर संस्थान के मैनेजर से संपर्क साधकर पैसे की मांग करता है जिससे उक्त केस कोर्ट ना फारवर्ड किया जाए। अब जब श्रमिक विभाग जाता है तो समझौता कराने के लिए एक-एक माह की डेट दी जाती है। उस दिन संस्था की तरफ से कोई नहीं आता तो दूसरी नोटिस, फिर घूस और दूसरी नोटिस में भी नहीं आया तो एक बार और समय, तीसरी बार भी नहीं आया तो राज्य शासन के श्रम मंत्रालय भेज देते है या भी नोटिस पर नोटिस का खेल चलता है अंत में मामला श्रम न्यायालय भेजा जाता है तब तक 1 साल बीत जाते है।
 अब पत्रकार घूमता रहे इससे बेहतर है सीधे हाईकोर्ट चला जाए तो श्रम विभाग के चक्कर नहीं लगाने पड़ेगे। नतीजन सभी प्रेस मालिक यह आदेश निकाल चुके है कि श्रम विभाग के बारे में कुछ नहीं लिखना है क्योंकि यदि लिखे तो दूसरे दिन मजीठिया वेतनमान को लेकर नोटिस आ जाएगी या छापा पड़ जाएगा।

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आरटीआई लगाएं

वैसे इधर-उधर भटकने से बेहतर है कि सीधे कोर्ट जाएं। लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर पत्रकार सूचना का अधिकार लगाकर जिले के श्रम विभाग और श्रमायुक्त से यह पूछे की मजीठिया वेज बोर्ड के संबंध में 7 फरवरी 2014 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य/जिले के कितने कितने प्रेस अनुपालन कर रहे है। या राज्य/जिले के कितने प्रिंट मीडिया/न्यूज एजेंसियां मजीठिया वेतनमान दे रही है। दूसरा प्रश्न यह पूछें कि यदि मजीठिया वेतनमान नहीं दे रही है तो विभाग द्वारा क्या कार्यवाही की गई।

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ऐसी ही आरटीआई सुप्रीम कोर्ट और केन्द्रीय श्रम मंत्रालय में लगाए फिर पत्रकारों की सक्रियता और एकता के आगे कौन टिकता है। वर्तमान समय में पत्रकारों को एकजुट होने की जरूरत है, यदि मजीठिया वेतनमान पत्रकारों को मिलने लगेगा तो मीडिया संस्थानों के अंदर की राजनीति, पेड न्यूज की बीमारी, प्रतिस्पर्धा आदि अपने आप खत्म हो जाएंगी। चूंकि पत्रकार की कलम किसी की गुलाम नहीं, प्रेस मालिक यदि लिखने नहीं देगे तो अभिव्यक्ति के हजार माध्यम है सो अपनी अभिव्यक्ति का गला ना घोटें और उक्त मामले में खुलकर कलम चलाए।

वेतन गणना

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वेतन गणना का अच्छा कार्य सीए ही कर सकता है फिर भी सामान्य जानकारी के अनुसार गणना पेश की जा रही है।

जैसे मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसा के अनुसार उच्च वेतन पर विचार करें तो वर्ग 1 श्रेणी के अखबार जितना टर्न ओवर 1000 करोड़ से ऊपर है। वर्ग एक के पत्रकारों अर्थात् सलाहकार संपादक, रेसिडेंट एडिटर्स, मैनेजर एडिटर्स आदि का वेतनमान 25000 एआरआई (4 प्रतिशत) 54800 मतलब 54800 मूल वेतनमान है जबकि 25000 को आधार मानकर साल में 4 प्रतिशत वेतन वृद्धि करनी है। अर्थात् इस वेतनमान पर साल में वेतन वृद्धि महज 1000 रूपए होगी और यह बेसिक में जुड़ जाएगी और अगले साल का वेतन 55800 हो जाएगा।

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मूल वेतन 54800
वेरिएबल पे 19180                                    बेसिक का 35 प्रतिशत (चार्ट अनुसार)
डीयरनेस एलांउस (डीए) 35620                      बेसिक का 65 प्रतिशत
(1 जनवरी 2014 से जून 2014 की गणना)

जुलाई 2014 से दिसंबर 2014 तक का डीए
डीयरनेस एलांउस (डीए) 40004                      जुलाई 2014 से दिसंबर 2014 तक 73 प्रतिशत

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हाउस रेंट- 7398                                      (बेसिक $ वेरियवल पे का 10 प्रतिशत)
मकान किराया एक्स शहर के लिए बेसिक का 30 प्रतिशत, वाई शहर के लिए 20 प्रतिशत और जेड श्रेणी के शहर के लिए 10 प्रतिशत निर्धारित है।
कौन सा शहर किस श्रेणी का है इसका निर्धारण मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसा में दिया हुआ है।

ट्रास्टपोर्ट एलाउंस 3699                              (बेसिक $ वेरियवल पे का 5 प्रतिशत)
ट्रास्टपोर्ट एलाउंस एक्स शहर के लिए बेसिक का 20 प्रतिषत, वाई शहर के लिए 10 प्रतिशत और जेड श्रेणी के शहर के लिए 5 प्रतिशत निर्धारित है।

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मेडिकल एलांउस 1000
मेडिकल एलाउंस वर्ग 1 व 2 के अखबारों के लिए लिए 1000 और 3 व 4 श्रेणी के अखबारों के लिए 500 रूपए निर्धारित है।

नाइट एलाउंस 3000, 100 रूपए प्रतिदिन
वर्ग 1 व 2 के अखबारों के लिए लिए 100 रूपए प्रतिदिन और 3 व 4 श्रेणी के लिए 75 रूपए व अन्य श्रेणी के अखबारों में कार्यरत कर्मचारियों को 50 रूपए प्रतिदिन निर्धारित है।

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कनवेन्स 9130 बेसिक का 16.66 प्रतिशत
समुद्र तल से 1500 मीटर ऊंची जगहों में रहने वालों पत्रकारों को हार्डशिप एलांउस 1000 रूपए प्रतिमाह दी जाती है।

इसमें पीएफ 12.36 प्रतिषत व इनकम टैक्स की कटौती होती है।

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इसके अलावा तीन उच्च माह के वेतन के बराबर एरियर्स अर्थात् तीन माह का वेतन और एक माह के वेतन के बराबर न्यूनतम बोनस देने का मजीठिया वेतनबोर्ड में प्रावधान है।

दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, जागरण, नईदुनिया, इंडियन एक्सप्रेस आदि प्रेस का आय-व्यय 1000 करोड़ से ऊपर है। यदि इतना वेतन मिलने लगे तो पत्रकारों को कोई छोटी दृष्टि से नहीं देखेगा।

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नोट- मजीठिया वेतन बोर्ड की गणना कृप्या अच्छे सीए से कराए। उक्त गणना सिर्फ जानकारी के लिए है विषेषज्ञ या अंतिम गणना नहीं है।

 

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भड़ास को भेजे गए पत्र पर आधारित।

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0 Comments

  1. maheshwar

    October 15, 2014 at 7:16 am

    matele ji current me DA 73 % hai. aage bhi dekhe. bonus ke liye aalag act hai. kam se kam 8.33 % bonus dena jaruri hai.

  2. Kashianth Matale

    October 14, 2014 at 1:28 pm

    Dear Sir
    Sambhit News me Basic 54800/- aur DA 35620 (Baisc 65%) bataya hai. Aur Bonus ka bhi ullekh kiya hai.
    Meri Jankari ke hisaba se DA 65% nahi hai. Aur Bonus ka bhi Ullekh nahi hai. Agar MAjithia Wage Board notification me hai to ja us section ki jankar bhadas4m3dia.com par post kare, taki hum bhi aisi demand kare.
    Thanks
    Kashinath Matale

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