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सियासत

महात्मा गांधी के बारे में यह सब लिखकर टीवी पत्रकार अभिषेक साबित क्या करना चाहते हैं?

तेजतर्रार टीवी पत्रकार अभिषेक उपाध्याय इन दिनों अपने फेसबुक वॉल पर गांधी जी को लेकर एक सिरीज लिख रहे हैं. इसमें बस गांधीजी के बारे में वो बातें बताई जा रही हैं जो उनकी छवि को नकारात्मकता से भर दे. सवाल है कि अभिषेक के इस तरह से सेलेक्टेड लेखन का मकसद क्या है?

हम सब जानते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने एक खास एजेंडे के तहत महात्मा गांधी की छवि के टुकड़े टुकड़े करता रहा है, भांति भांति की बातें फैला करके. बल्कि संघ के लोग गोडसे द्वारा गांधी की हत्या तक को जायज ठहराने के ढेरों कुतर्क बतियाते हैं. एक तरफ पूरी दुनिया गांधीजी की लाइफस्टाइल की मुरीद है, उनके विचारों, उनके क्रियाकलापों की प्रशंसक है, दूसरी तरफ हमारे ही देश में ढेर सारे लोग गांधीजी की लाठी छीन कर उन्हीं के सिर पर दे मारने का प्रयत्न कर रहे हैं.

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यहां अभिषेक उपाध्याय का लिखा छापने का एक ही मकसद है. अगर सेलेक्टेड लेखन हो रहा है तो उसका जवाब भी दिया जाना चाहिए. आप सभी पाठकों से अनुरोध है कि अभिषेक के नीचे लिखे आर्टकिल को ध्यान से पढ़ें और इस तरह के लेखन के निहितार्थ क्या हैं, बताने का कष्ट करें. आप अपनी बात इस पेज पर छपे आर्टकिल के लास्ट में दिए गए कमेंट बाक्स में लिखकर अपलोड करें ताकि दूसरा पक्ष भी सामने आ सके.

-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया

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अभिषेक उपाध्याय

Abhishek Upadhyay : आज से महात्मा गांधी के नाम। ये सब महात्मा गांधी की अपनी ही “स्वीकरोक्तियां” हैं। अफसोस! नेहरू के इतिहासकारों ने इन्हें दबा दिया। इन पर भी जमकर बहस होनी चाहिए थी, जो कभी नही हुई। इन्हें पढ़िए और गांधी की 150 वीं जयंती पर उनके इस पहलू पर जमकर बहस कीजिए।

1– 21 साल के युवा मोहनदास लंदन में परायी स्त्री को देखकर विकार ग्रस्त हो जाते हैं। उनका मन उस औरत के साथ रंगरेलियां मनाने की इच्छा करता है पर वे ऐेसा कर नहीं कर पाते हैं क्योंकि ऐन मौके पर उनका एक शुभचिंतक उन्हें वहां से भगा देता है। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

2– 28 साल के गांधी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा के दौरान थकान मिटाने के लिए हब्शी औरतों की बस्ती में एक वेश्या की कोठरी में घुस जाते हैं। फिर वहां से शर्मसार होकर बाहर निकलते हैं। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

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3– 40 साल के गांधी अपने सबसे प्रिय दोस्त हेनरी पोलक की पत्नी मिली ग्राहम पोलक के प्रति एक खास किस्म की आत्मीयता महसूस करते हैं। वे एक दूसरे के निकट आ जाते हैं। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

4- 41 साल के महात्मा गांधी 18 साल की मॉड नाम की उस लड़की से प्रभावित हो जाते हैं जो विदाई के वक्त उनसे हाथ मिलाने के बजाय उनका चुंबन लेना चाहती थी। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

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5– 48 साल के गांधी नीली आंखों वाली 22 साल की सुंदर डेनिश कन्या एस्थर फैरिंग के जाल में फंस जाते हैं। उसके लिए बापू लिखते हैं, “आज रात को सोने जाते समय मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी।” (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

6– 51 साल के गांधी 48 साल की विवाहिता महिला श्रीमती सरला देवी चौधरानी के चक्कर में पड़ जाते हैं। वे उन्हें अपनी “आध्यात्मिक पत्नी” का खिताब दे डालते हैं। यह महिला भी उन्हें सपने में बार-बार परेशान करती है। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

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7– 56 साल की उम्र में महात्मा 33 साल की मैडलिन स्लेड के प्यार में पड़ जाते हैं। वे उसकी भक्ति से प्रभावित होकर उसे मीरा बना देते हैं। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

8– 60 साल की उम्र में महात्मा गांधी 18 साल की तेज तर्रार लड़की प्रेमा के माया जाल में फंस जाते हैं। प्रेमा जब उन्हें गले लगाती है तो वे कहते हैं, “तू पागल तो है ही, लेकिन तेरा पागलपन मुझे प्यारा लगता है।” (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

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9–64 साल के महात्मा गांधी एक 24 साल अमेरिकन महिला नीला सी कुक उर्फ नीला नागिनी के संपर्क में आते हैं। उसके बारे में आम धारणा होती है कि वह एक कामुक और झूठी औरत है। ये गांधी स्वयं लिखते हैं। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

10– 65 साल के महात्मा गांधी 35 साल की जर्मन महिला मार्गरेट स्पीगल उर्फ अमला को कपड़े पहनने का सलीका सिखाते हैं। इसके लिए उन्हें “पेटीकोट” शब्द के सही अनुवाद की तलाश ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में करनी पड़ती है। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

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11- 69 साल के महात्मा 18 साल की सुंदर युवती डॉक्टर सुशीला नैयर के संपर्क में आते हैं जिससे वह प्राकृतिक चिकित्सा के नाम पर नग्न होकर अपने शरीर की मालिश कराते हैं और वक्त बचाने के लिए उसके साथ स्नान भी कर लेते हैं। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

12– 72 साल के महात्मा अपने ब्रह्मचारी जीवन की प्रयोगशाला में बाल विधवा लीलावती आसर, पटियाला के बड़े जमींदार की बेटी अमतुस्सलाम और कपूरथला खानदान की राजकुमारी अमृत कौर समेत आधा दर्जन महिलाओं के साथ सिर्फ यह जानने के लिए सोते हैं उम्र के इस पड़ाव में भी क्या उनमें कामवासना शेष है? (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

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13– 76 साल के महात्मा 16 साल की आभा, वीणा और कंचन नाम की युवतियों को ब्रह्मचर्य का पाठ सिखाने के लिए “नग्न” होने को कहते हैं। (स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

14- 77 साल के महात्मा अपनी पोती मनु के साथ नोआखाली की सर्द रातें नग्न सोकर गुजारते हैं। स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

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15- 79 साल के महात्मा जीवन के अंतिम क्षणों तक आभा और मनु के साथ एक बिस्तर पर सोते हैं। स्रोत- गांधी वांगमय- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, संपूर्ण खंड)

मेरे अनन्य मित्र और बड़े भाई वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर शुक्ल सागर ने इन सभी को संकलित कर एक शानदार किताब लिखी है- महात्मा गांधी, ब्रह्राचर्य के प्रयोग। एक एक तथ्य सबूतों पर आधारित है।

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गांधी अपने दौर के सबसे बड़े अलोकतांत्रिक व्यक्ति थे। आप आसान भाषा में कहें तो सबसे बड़े तानाशाह। दो उदाहरण हैं। दोनो पुख्ता इतिहास। शशि थरूर की तरह किसी व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी का ज्ञान नही। कांग्रेस और वामपंथ का दरबारी इतिहास पढ़कर बड़े हुए लोगों के लिए अब संकट की घड़ी है क्योंकि अब इतिहास अपनी वास्तविक शक्ल में सामने आ रहा है।

1- ये साल 1938 की बात है। गुजरात के हरिपुर में कांग्रेस अधिवेशन आयोजित किया गया। सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए। सुभाष बाबू प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। वे अंग्रेजों को उनकी ही भाषा में समझाकर भारत की आजादी चाहते थे। कांग्रेस में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। अगले साल यानि 1939 में जबलपुर के पास त्रिपुरी में फिर से कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। अब तक महात्मा गांधी को समझ आ गया था कि कांग्रेस सुभाष चंद्र बोस के पीछे चलने लगी है और सुभाष बाबू इस लड़ाई को लीड कर रहे हैं। महात्मा के हाथों से जमीन खिसक रही थी। यही हुआ भी। सुभाष बाबू साल 1939 में एक बार फिर से कांग्रेस अध्यक्ष के लिए खड़े हुए। इस बार महात्मा गांधी ने उनका जमकर विरोध किया। महात्मा गांधी ने पट्टाभि सीतारमैय्या को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। यहां तक कोई दिक्कत नही थी। लोकतंत्र में विरोध सबका हक है। मगर आगे सुनिए। बड़ी बात यह थी कि महात्मा गांधी के मुखर विरोध के बावजूद सुभाष बाबू कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीत गए। गांधी के भीतर का अलोकतांत्रिक व्यक्ति ये बर्दाश्त नही कर सका। उन्होंने ऐलान कर दिया कि पट्टाभि सीतारमैय्या की हार मेरी हार है और कांग्रेस में उनके चेलों ने लोकतांत्रिक ढंग से जीते हुए सुभाष का खुला विरोध शुरू कर दिया। आखिरकार सुभाष चंद्र बोस ने इस्तीफा दे दिया।

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2– ये साल 1946 था। कांग्रेस 1946 के असेंबली इलेक्शन भारी बहुमत से जीत चुकी थी। आजादी मिलनी तय हो चुकी थी और ये भी तय था कि जो कांग्रेस का अध्यक्ष चुना जाएगा, वही देश का प्रधानमंत्री बनेगा। कांग्रेस के अध्यक्ष इस वक्त मौलाना अबुल कलाम आजाद थे। गांधी यहां भी कूद गए। चुनाव 29 अप्रैल 1946 को था। मगर गांधी ने 20 अप्रैल को ही अपनी पसंद जाहिर कर दी। उन्होंने मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए नेहरू को इस पद के लिए प्रस्तावित कर दिया। चुनाव हुआ। 15 में से 12 प्रदेश कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल के पक्ष में राय दी। नेहरू को एक भी वोट नही मिला। फिर से दोहरा रहा हूं। एक भी वोट नही मिला। मगर गांधी अड़ गए। उन्होंने सरदार पटेल पर पीछे हटने का दबाव डाला। पटेल पीछे हटे। नेहरू जिन्हें एक भी वोट नही मिला था, वे कांग्रेस अध्यक्ष बने और फिर देश के प्रधानमंत्री बने।

तो ये थे आपके गांधी। तो गांधी के बारे में ऐसे ही जानते रहिए और मजे से गाते रहिए- रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम।

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कई न्यूज चैनलों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की एफबी वॉल से.

अभिषेक की उपरोक्त पोस्ट्स को बहुतों ने शेयर-लाइक किया है और सैकड़ा से उपर कमेंट्स आए हैं. यहां हम वो चुनिंदा कमेंट्स व उन कमेंट्स के जवाब प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें अभिषेक के लिखे पर उंगली उठाई गई है.

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Akram Shakeel कितनी बार मारोगे गांधी को अभिषेक ?

Abhishek Upadhyay गांधी ने खुद को मारा है। ये सब उनका ही लिखा हुआ है। मैं तो बस दिखा रहा हूँ, ढक दिया गया चेहरा।

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Anil Kumar Yadav Abhishek गांधी जी ने स्वीकार किया है कि जिस समय उनके पिता मर रहे थे वह अपनी पत्नी के साथ थे, इसका उन्हें पश्चाताप था. इनमें से अधिकांश कन्फेशन्स खुद उन्हीं के किए हुए हैं किसी ने स्टिंग ऑपरेशन करके पता नहीं लगाया था. उन्होंने सामान्य लोगों की तरह छिपाने के बजाय सेक्स की अदम्य लालसा को स्वीकार करते हुए उससे ऊपर उठने के लिए कई तरह के प्रयोग किए. इनमें से ब्रह्मचर्य भी एक है. कोई पैदाइशी ब्रह्मचारी नहीं होता, बहुत कम लोगों ने इसे संयम, हठयोग आदि से पाने की सफल-विफल कोशिशें की हैं. गांधी जी एक साहसी, मौलिक आदमी थे. जिन चीजों को छद्म नैतिकता के नाम पर छिपाकर चुप्पी साध ली जाती है वे उसके बहुत आगे तक गए. तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने जोखिम उठाकर अपना चरित्र खुद बनाया न कि उन्हें सेलेक्टिव ढंग से सिर्फ सेक्स का हौवा दिखाकर चरित्रहीन कलर दे दिया जाए

Abhishek Upadhyay यही तो मसला है कि हमे गांधी के ‘सेलेक्टिव’ सत्य के प्रयोग पढ़ाये गए! फिर ये पाठक का विशेषाधिकार है कि वह उन्हें पढ़कर क्या तय करता है। ये वैसे ही है जैसे कुछ लोग स्टालिन को देश की संसद में श्रद्धाजंलि देते हैं, तो कुछ उसके बारे में बढ़कर इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि वह हिटलर से बड़ा मास मर्डरर था सो हमे नतीजे पाठक पर छोड़ने चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे हम काशीनाथ सिंह के उपन्यासों की भाषा के लिए करते हैं..

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Anil Kumar Yadav पाठक को नतीजा निकालने देना वाजिब बात है. लेकिन जिसने पढ़ा ही न हो और एक मिनट में राय बनाने के लिए व्याकुल हो उसे चतुराई से खास नतीजा देखने के लिए लुभाना अलग बात है. यह गांधी का चरित्र ही था कि उन्होंने उस युग के भारत में, सार्वजनिक जीवन में रहते हुए इतनी खतरनाक, आत्मघाती स्वीकारोक्तियां की, खुद की कई बार चीरफाड़ की और जननेता की तरह स्थापित हुए

Abhishek Upadhyay इसी बहाने सही गांधी पढ़े जाएंगे, लोगों को फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे से थोड़ा वक्त मिलेगा

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Anil Kumar Yadav काश ऐसा हो पाता भाई! लाइब्रेरियों में उपेक्षित पड़े गांधी साहित्य को पढ़ा जाता, अभिलेखागारों से उनके भाषणों और उनकी विजुअल रिकार्डिंग्स को देखकर उनकी हर भंगिमा को बहस का मुद्दा बनाया जाता. इसके लिए किसी और का चश्मा लगाने के बजाय अपनी इंद्रियों से दुनिया को समझने की तड़प चाहिए. सबसे बढ़कर सेक्स के मामले में लोग गांधी से प्रेरणा लेते हुए अपने बारे में खुलकर, ईमानदारी से बात करते तो गजब हो जाता. बहुत ढेर कुंठा से मुक्ति मिलती जो बच्चियों तक को बलात्कार का शिकार बना रही है. आदमी-औरत के संबंध एक नई ऊंचाई पर जाने से बहुत सारी उर्जा देश को मिलती

Sharad Chandra Srivastava अनिल जी, दुर्भाग्य है कि लोग सिर्फ ऐसे तथ्य इसलिए ढूँढने के लिए विवश हैं कि वे इसी बहाने पब्लिसिटी तलाश रहे हैं। गांधी मे अच्छी बातें भी है लेकिन अपने स्वाद और रूचि के अनुसार तथ्यों का संकलन किया जा रहा है जिससे गांधी के प्रति घृणा का प्रचार प्रसार किया जा सके और गोडसे की आत्मा की संतुष्टि के लिए समर्पित मन को ढाढ़स बंधाया जा सके।

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Abhishek Upadhyay शरद चंद्र श्रीवास्तव और काशीनाथ सिंह को उनके महान योगदान के लिए भारत रत्न दिलवाया जा सके

Pradeep Dubey अनिल कुमार यादव, ये शायद इसीलिए भी संभव है पाया क्योंकि उस दौर में आम जनता तक ये बातें पहुंच ही नहीं पाती थी… अगर आज का दौर होता तो शायद गांधीजी को ये प्रयोग करने की व सूझती और यदि सूझती तो उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती! गांधीजी बहुत अच्छे थे लेकिन हर जगह अच्छे नहीं थे!

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Sharad Chandra Srivastava प्रदीप दुबे जी, गांधी अगर जनता तक इसे पहुँचाने से डरते तो इसे छुपा जाते लिखते ही क्यों? वह एक सार्वजनिक जीवन जी रहे थे ऐसे मे वे इसमे निहित खतरों को अच्छे से समझते रहे होंगे फिर सारी बाते लोगों के सामने न सिर्फ जानकारी में ही थी बल्कि कलमबद्ध किया। वरना आपके पास ये शिगूफा कैसे मिलता कि तुरत फुरत सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का जमा जमाया नुस्खा आजमाया जाए। अपनी अपनी रूचि के अनुसार व्यक्ति तथ्यों की व्याख्या और संकलन करता है जिसे अच्छाई पर दृष्टि जमानी है वह सीखने के पर्याप्त अवसर संकलित कर सकता है जिसे बुराई पर दृष्टि जमानी है वह बुराई का आनंद ग्रहण कर सकता है। गांधी का व्यक्तित्व इतना विराट है कि अच्छा अच्छाई खोज लेता है बुरा बुराई खोज लेता है। अपने स्वाद और रूचि के अनुसार लगे रहिये।

Pradeep Dubey शरद जी, महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ इस देश के आम जनमानस में आज़ादी के लिए एकत्रित होने का साहस दिया ! वो आधुनिक भारतवर्ष के गृहस्थ संत से कम नहीं थे, ये भी स्वीकारोक्ति है! लेकिन गांधी से पहले भी ये भारत है और गांधीजी से बड़े और महान संत और महापुरुषों ने इस देश के लिए बलिदान दिया है! लेकिन बड़े से बड़ा व्यक्ति गलती जरूर करता है… पितामह भीष्म भी महान थे… गौतम बुद्ध भी… महावीर भी… विश्वामित्र से लेकर भगवान श्री कृष्ण और भगवान श्रीराम कितने नाम गिनाएं! गांधी इनसे अधिक महान नहीं थे! इस भारत धरती से ज्यादा कोई महान नहीं! लेकिन जब ये कांग्रेसी सब छोड़कर एक ही व्यक्ति को महात्मा और महान बताते हैं तो उसपर हमें आपत्ति है!

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Pankaj Saini कहीं ये भी आपकी अपनी आवश्यकतानुसार निकाली गई लाईनें तो नहीं हैं ( साॅरी BJP IT Cell की) जैसे रवीश कुमार की 10… 10 सेकंड की क्लिप अपने हिसाब से लगाकर दिखाते हैं। प्रकाश डालें…

Abhishek Upadhyay महात्मा गांधी का अपमान मत करें, रवीश पांडे के साथ उनकी तुलना करके। वे कुछ भी रहे हों पर अपने भाई भतीजों के लिए कभी पार्टी का टिकट नही मांगा था। अपने भाई या बेटे को कभी बचाने की कोशिश नही की जैसा कि कुछ लोग दलित लड़की के उत्पीड़न में फंसे भाई को बचाने के लिए करते हैं…

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Pankaj Saini अभिषेक जी अच्छा! आप दोनों के लिए एक तरह से कार्य करके, कांट छांट करके चीजें डालें वह सही और हम करें तो… गलत बात है…

Ajay Gupta ये वो हैं जो अंधकारमय भविष्यकाल को भुलाने के लिए भूतकाल में भटकते फिरते हैं। गांधी, नेहरू और रविशफोबिया के मरीज हैं

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धनञ्जय मिश्र मैंने इस किताब को पढ़ा है साथ ही गांधी “जी” से संबंधित 50 से अधिक किताबें और पढ़ी हैं ये बहुत सतही मूल्यांकन कर दिया आपने राष्ट्रपिता का ….

Abhishek Upadhyay धनञ्जय मिश्र तुम 50 किताबें पढ़कर भी जब नही समझ पाए तो यहां क्या समझोगे? समझ का भी लेवल होता है। उसके लिए परेशान नही होना चाहिए।

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धनञ्जय मिश्र सहमत हूँ सर, संभव है ये भी… लेकिन सर कभी कभी गांधीवादी विनम्र स्वीकारोक्ति बहुत देर तक चुभती रहती है…..

Abhishek Yadav …अच्छा तो ये सब फैलाना है आप लोगों को 2 अक्टूबर से, मेरा शक एकदम सही था, गोडसे वाले गांधी की विचारधारा कभी समझ भी नहीं सकते।

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Dharmendra अभिषेक यादव, अरे वामपंथी विचारधारा के माइक्रोस्कोप जी … हर लाइन ने किताब और स्त्रोत का वर्णन है । जाके वेरीफाई क्यों नही करते ताकि आपकी मनः स्तिथि को थोड़ा आराम मिले

धनञ्जय मिश्र ये किताब वेरीफाई करने लायक ही नहीं है. इस पूरी किताब में सेकंडरी सोर्सेज का इस्तेमाल किया गया है।

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धनञ्जय मिश्र कमाल है जब नोआखाली में कोई जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था दो मुल्क सम्प्रदायिकता का नंगा नाच देख रहे थे उस समय एक आदमी निहत्था नोआखाली में सौहार्द तलाशता है और उसे याद किया जाता है कि वह नोआखाली की सर्द रातों में नग्न सो रहा था इस बात के लिए….ये मुल्क एहसान फरामोशों का मुल्क है

Krishan Kumar धनञ्जय मिश्र यही तो हम भी कह रहे है कि यह मुलक एहसान फरोशो का है जहाँ गांधी को देश के बटवारे के बाद इज्जत मिलतीं है ओर गोडसे को गांधी को सजा देने के लिए गली ।

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धनञ्जय मिश्र आपको किसने कहा कि बटवारे के लिए गांधी जिम्मेदार थे?गांधी को अंतिम समय तक बटवारे की जानकारी ही नहीं थी

धनञ्जय मिश्र थोड़ा पढ़ लीजिये व्हाट्सएप से ज्ञान नहीं भक्ति प्राप्त होगी. गांधी जी ने विभाजन को कभी स्वीकार नहीं किया यही कारण है कि उन्होंने घोषणा की थी कि वो बिना वीसा और अनुमति के पाकिस्तान जायँगे क्योंकि उन्हें विभाजन स्वीकार नहीं दुर्भाग्यवश इस प्रस्तावित यात्रा से पहले उनकी मृत्यु हो गयी

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Abhishek Tripathi धनञ्जय मिश्र वाह सर, गजब कहा आपने, गांधी जी को अंतिम समय तक बंटवारे की जानकारी नही थी. ये तथ्य कहाँ से उठाया आपने?

धनञ्जय मिश्र अंतिम समय का तात्पर्य विभाजन का अंतिम समय है गांधी का नहीं ,कुछ समय दो तो मैं किताबों का स्क्रीनशॉट दे सकता हूं…कैबिनेट मिशन के ड्राफ्ट में शुरुआती तौर पर विभाजन नहीं था जब इसे सम्मिलित किया गया तो गांधी जी ने आपत्ति की कि उन्हें इस तथ्य से महरूम रखा गया स्माइली बनाने से बेहतर होता कि खोज लेटव… गांधी जी कैबिनेट मिशन के उस मत से इत्तेफाक रखते थे जिसमें मिशन ने विभाजन को नहीं स्वीकार किया था… गांधी जी ने कैबिनेट मिशन के जिस मसौदे को सहमति दी थी उसमें विभाजन का विरोध था बाद में बिना गांधी जी की सहमति के संशोधन हुआ… विभाजन के लिए कांग्रेस सहमत है और इस प्रकार की कोई योजना गांधी को इसकी जानकारी तब तक नहीं थी जब तक मॉन्टबेटन ने मीटिंग नहीं बुलाई।और जब उन्हें जानकारी हुई तो उन्होंने इस प्रस्ताव से खुद को अलग कर लिया. गांधी से संबंधित वो किताबें भी मैंने पढ़ी है गोडसे बंधु ने लिखी है जैसे गांधी वध और मैं तथा गांधी वध क्यों लेकिन मैं गोडसे मय नहीं हो पाया…

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Vivek Verma धनञ्जय , गांधी क्या थे ये बहुत विचार विमर्श का मुद्दा है जिसके भारत आने से उस युग को गांधी युग कहा जाए , जिससे चर्चिल भी घबरा जाए , जिसका सम्मान खुद बोस जी राष्टपिता कह कर करे ,जिसने खुद इतनी बेबाक़ी से अपनी आत्मकथा लिखी हो । विनोबा भावे ने कहा था “जब लोगो को अहिंसा की प्यास लगेगी तब गांधी याद आएंगे ” मुझे भी लगता है वो दिन जरूर आएगा । फेसबुक पर अपनी एकपक्षी लेखनी दिखाना बहुत आसान हैं ये भी एक दौर है जहाँ लोग अपनी देशभक्ति और पर्टीभक्ति दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं इन लोगों के लिए गांधी ना पहले कभी राष्टपिता थे और ना कभी होगें पर गांधी कल भी प्रासंगिक थे और आगें भी हमेशा रहेंगे।

धनञ्जय मिश्र ये सच है कि गांधी जी ब्रह्मचर्य के प्रयोग कर रहे थे और ये भी सच है कि उनके प्रयोग संबंधी अधिकांश पत्रों को सार्वजनिक नहीं किया गया जिससे सिर्फ तथ्य सामने आए दर्शन नहीं इसीलिए शायद विद्रूपता है।

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Vikas Singh मैं सच कहूँ तो बहुत निराश हो रहा हूँ आपकी एक के बाद एक की जा रही ऐसी टार्गेटेड पोस्ट्स से जो व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी से भी बड़ी फ्रॉड हैं । और example गांधी वांग्मय का ?? मतलब मैं पहले हँसा और फिर सर पकड़ के बैठ गया कि ये आप लिख रहे हैं, शेयर कर रहे हैं । आप मुझसे लास्ट टाइम जब मिले थे जिस सेंट्रल सेक्रेट्रिएट के बाहर , वहाँ उस सेंट्रल सेक्रेटेरिएट के अंदर एक सेंट्रल लाइब्रेरी है , उसमे आपको गाँधी वांग्मय और उसके सोर्सेज भी मिल जायेंगे । मैंने पिछले पूरे साल ऑफ़िस के दौरान वांग्मय भी पढ़ा और अन्य क़िताबें भी , और पूरे हक़ से कहता हूँ कि ऊपर की आधी गल्प आपको उसमें मिलेगी ही नहीं , और दूसरा ये की अधिकतर के सोर्स वेरिफाइड ही नहीं हैं , सोर्स अज्ञात लिखा है कई जगह और कई जगह ऐसी किताबों का जिक्र है जो प्रकाशित ही नहीं हुई । बड़ा अफ़सोस लग रहा है और सबसे ज़्यादा ये की आप हमारे विश्विद्यालय की सीनियर हैं Abhishek Upadhyay सर। आप अपने जूनियर्स जो कि आपको मानते भी हैं उनको ये नज़ीर पेश कर रहे हैं । मैं समझ ही नहीं पा रहा क्या लिखूं , कुपढ़ अंधभक्त शेयर भी कर रहे हैं । क्या बोला जाय

Abhishek Upadhyay आप अपना निर्माण कर लें, इतना बहुत है। बाकी मार्क्सवादी फर्जीवाड़े का घुन पूरे गेंहू को चौपट कर देता है। सो अपना ध्यान रखें और सीनियर सिर्फ रोमिला थापर को माने, किसी और को नही

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Priya Sur Aapke MALIK AAPKO DIL SE MAAF NAHI KARENGE. Unhone Pragya Thakur ko bhi yehi bola tha

Abhishek Upadhyay पर सोनिया गांधी अपने अनुयायियों को माफ कर देंगी। उन्होंने क्वात्रोची को भी माफ कर दिया था

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AK Singh Yadav Sintu सर, इतना भी नीचें न गिरिये कि कुछ भी अनाप सनाप बोले चले जा रहे यहां व्हाट्सअप्प यूनिवर्सिटी का नया इतिहास न गढ़िए! इन चीजों से रेमन मैग्सेसे अवार्ड नही मिल जाएगा! न इसके अतिरिक्त कोई ओर ! पत्रकारिता करिए चाटुकारिता नही अच्छी सोच रखोगे तो शायद कुछ मिल भी जाये इन सबसे कुछ मिलने वाला नही है…सिबाय चिढ़न और गलन! दिमाग मे अच्छे से बैठा लीजिये ये देश ..गोडसे की विचारधारा से नही बल्कि गांधी जी की विचारधारा से चलेगा।

Abhishek Upadhyay हां मुझे मालूम है इन सब बातों से रेमन मैग्सेसे अवार्ड नहीं मिलता है वह किसी और बात पर मिलता है

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AK Singh Yadav Sintu बड़ी शर्म की बात है कि देश के चौथे स्तंभ की आप जैसे लोग ही धज्जियां उड़ा रहे है!

Shailendra Verma AK Singh Yadav Sintu ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा है #ravishbhand जानते हैं क्यों? सर्च कीजियेगा वीडियो मिल जाये तो देखिएगा जरूर…. फिर पता चल जाएगा चौथे स्तंभ की धज्जियां कौन उड़ा रहा है

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Shiv Kumar Gupta गांधी जी की ताकत यही है कि वो हर चीज को स्वीकार कर लेते हैं । जो भी उनके अंदर है वो सब बिना आगे पीछे सोचे कह जाते हैं। यह नहीं सोचते कि लोग उसको कैसे लेंगे । यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है ।

Abhishek Upadhyay अगर यह ताकत है तो इस ताकत को सामने आना चाहिए

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Shiv Kumar Gupta बिल्कुल , मैंने भी “सत्य के प्रयोग” पढ़ें हैं । इसीलिए मैंने यह चीज कही । मैंने बहुतों को पढ़ा है, लेकिन सब अपने अंदर की कमियों को कम उजागर करते हैं अच्छाईयां ढेर बखान कर जाते हैं ।

Gaurav Trivedi अंधभक्ति में लीन अब आपके लेखन में पुर्वाग्रह से ग्रसित कुत्सित दुर्भावना और नकारात्मकता सी महसूस होती है । दुर्भाग्यशाली हैं आप जो राष्ट्रपिता को न समझ पाये ।

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Abhishek Upadhyay आप गांधीवादी रहिये। गांधी जी से उनकी प्रेरणाएं ग्रहण कीजिए। आपको नमन

Sandhya Navodita बड़ी मेहनत से आपने गाँधी के ‘बेड’ की तलाशी ली है जिसके आप माहिर हैं । काश गाँधी की सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, सत्याग्रह को भी ऐसे ही खंगाला होता।

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Abhishek Upadhyay बड़ी तकलीफ हुई आपको? वामपंथ का अक्स नज़र आ गया क्या ..

Alok Kumar अपने अपने गाँधी

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Ashutosh Kumar Pandey गाँधी को मोदी और चिन्मयानंद बना रहे हो

M Manjari Mishra हद है. हम उसके बारे में विस्तार कर रहे है जो देखने के लिए धरती पर थे ही नहीं. और उसे प्रोत्साहित कर रहे है जिसके कृत्य के भोग खुद हम होंगे. नमन इस लेखन को.

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13 Comments

13 Comments

  1. Rajkumar

    October 1, 2019 at 1:54 pm

    अभिषेक उपाध्याय नौकरी जाने से खुद विकार ग्रस्त हो गए है… महापुरुषों के ज़ीवन पर उंगली उठाकर ये क्या साबित करना चाहते हैं ? Pm मोदी भी तो गांधी जी की प्रशंसा करते हैं और rss वैचारिक मतभेद के बावजूद कभी भी गांधी जी के चरित्र को लेकर उनकी आलोचना नहीं करता है ! विकार ग्रस्त तो महाकवि तुलसी दास जी भी थे तो क्या उनकी कालजयी कृति ‘ रामचरित मानस ‘ को खारिज कर दें ! या यूँ कहें आजतक उसको कोई खारिज नहीं कर सका ! आप दूसरों पर कीचड़ उछालने से कतई महान बनने वाले नहीं है । आप गांधी से अच्छी ज़ीवन शैली जीकर सामाज / देश को नया रास्ता दिखाएँ …वो आप नहीं कर पाएंगे ? लेकिन किसी की आलोचना करके हो सकता है कोई नौकरी दे दे …लेकिन रवीश …पुण्य प्रसून….और इसी टाइप की बिरादरी में आप भी शामिल हो गए ..अफसोस आपकी पत्रकारिता मृत हो गयी है !

  2. Gulab prasad Singh

    October 1, 2019 at 3:13 pm

    गांधी जी महात्मा थे, महान थे। राष्ट्रपिता कह आज भी पूजे जाते हैं। जाहिर है उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों में असाधारण काम किए थे। परंतु उनमें भी साधारण मनुष्य वाले सारे अवगुण थे। खुद समय-समय पर उन्होंने इसे स्वीकार भी किया था।
    परंतु पट्टाभि सीतारमैया की हार के बाद उनकी हठधर्मिता और नेहरू के प्रति अतिशय अनुराग के कारण समय – समय पर लिए गए निर्णयों को लेकर थोड़ी कोफ्त तो होती ही है।

  3. हरेंद्र

    October 1, 2019 at 3:35 pm

    ये दूसरों को बदनाम करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, चाहे सामने कॊई महिला हो या महापुरुष।

  4. इंद्रभूषण मिश्र

    October 1, 2019 at 4:59 pm

    गांधी जी जैसे लाखों महापुरुष भारत में पैदा हुए। लेकिन सिर्फ गांधी का ही महिमामंडन किया गया। देश के अन्य महापुरुषों के योगदानों को भूला दिया गया, इतिहास से मिटा दिया गया। ये भी एक तरह से प्रायोजित छल है।

  5. naseem

    October 1, 2019 at 5:39 pm

    बिके हुए लोगों शुक्र अदा करो कि उनकी बदौलत आज आज़ाद हवा में सांस ले रहे हो।

  6. कुमार हर्षवर्द्धन

    October 1, 2019 at 6:29 pm

    आजादी के आंदोलन में गांधी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। लेकिन उनके दूसरे पहलू से भी आम लिगों को रूबरू कराना चाहिए। आजादी के बाद नेहरू खानदान के इशारे पर इतिहास को एकतरफा लिखने वालों इतिहासकारों को भी नंगा करना चाहिए। दो तीन बिंदुओं की ओर ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूं।
    1- गांधी भी चापलूसी से महात्मा बनें। उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर को गुरुदेव की उपाधि दी और जॉर्ज पंचम के स्वागत में गाये चारण वंदना को राष्ट्रगीत बनवा दिया। बदले में टैगोर ने गांधी को महात्मा की उपाधि से नवाजा।
    2- जहां तक उनके जीवन मे सेक्स से संबंधित कई सवाल है, जिसके बारे में कहा गया कि ये सब उनकी स्वीकारोक्ति है। तो यहां मेरा यह कहना है कि खुद को महान दिखाने के लिए क्या यह संभव नहीं है कि सेक्स से संबंधित सारी बातें अर्द्ध सत्य हो। इसके स्याह पक्ष को गांधी छिपा ले गए हो।
    3-बात-बात पर उपवास पर बैठ जाने वाले गांधी विभाजन की जानकारी मिलने पर क्यों नहीं अनशन पर बैठ गए थे?
    4- क्या यह सत्य नहीं है कि गांधी चाटुकारिता परस्त थे। नेहरू प्रेम के मोह में सरदार पटेल को पीएम बनने से रोक दिया। और कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उन्हें अपना भक्त ही पसंद था। सुभाष बाबू जैसे प्रखर राष्ट्रवादी नही। आजादी के बाद भी जब पाकिस्तानी कबाइलियों ने भारत पर आक्रमण कर दिया उसके बाद भी पटेल के विरोध के बावजूद पाकिस्तान को 55 करोड़ देने पर अड़ ही नहीं गए बल्कि उपवास पर बैठ गए। मजबूरन पटेल को झुकना पड़ा। इसकी लंबी कहानी है।
    5-नेहरू की महिलाओं के प्रति आसक्ति जग जाहिर थी लेकिन गांधी ने कभी उन्हें इसके लिए कोई सलाह नहीं दी या कोई बात नहीं कहीं।
    6- क्या यह गलत हूं कि गांधी चाहते तो सुभाष बाबू जैसे प्रखर राष्ट्रवादी देश छोड़ कर नहीं जाते। यूँ कहिए उनके कारण ही सुभाष बाबू को देश छोड़ना पड़ा।
    सही बात तो यह है कि गांधी पर बहस होनी चाहिए। उनके जीवन के सारे चमकीले ओर स्याह पक्षो को आगे लाने की आवश्यकता है। जब हमारे देश मे राम और कृष्ण पर उंगलियां उठ सकती है तो गांधी पर क्यो नहीं बहस हो सकती?

  7. Pankaj

    October 1, 2019 at 9:03 pm

    और महोदय यह सब आप सिर्फ इसलिए लिख पा रहे हैं क्योंकि सत्य और अहिंसा के पुजारी बापू ने खुद से ही अपने जीवन की इन बातों से लोगों को अवगत कराया। अभिषेक उपाध्याय खुद के गिरेबान में झांक कर देखिए क्या इन सब विकारों से आप दूर हैं।
    गांधी जी ने जो भी लिखा है बेबाक होकर लिखा है स्पष्ट लिखा है हर किसी के साथ वैसा होता है। हर कोई उस दौर से गुजरता है लेकिन अभिषेक उपाध्याय क्या आपके अंदर भी क्षमता है खुद के बारे में इस तरह से लिखने की।
    कीचड़ उछालना बहुत आसान होता है उपाध्याय जी,
    कोई यूं ही बापू नहीं बन जाता।

  8. अरविंद

    October 1, 2019 at 9:16 pm

    हे धरती के महामानव उपाध्याय जी आप धन्य हो, धन्य है आपकी लेखनी और उससे बजबजाते कॉपी पेस्ट शब्द। कॉपी पेस्ट करना आज तो सबसे बड़ा और अव्वल शगल है अधिकांश लोगों का और इसी शगल में गलतियां भी करते हैं। किसी युवा नें अभिषेक के इसी पोस्ट को शेयर किया था फेसबुक पर, मैनें उससे पूछा कि क्या गांधी जी की किताबें पढ़ी है तुमने? क्या गांधी के बारे में विस्तृत जानते हो? तो बोला नहीं भैया मैनें फेसबुक से कॉपी किया था। ये सच है भाइयों।
    वैसे गलती आपकी नहीं है अभिषेक आप जैसे लोगों को जब यह गुमान हो जाता है कि आप बड़े पत्रकार हो गए ही तो ऐसी कॉपी पेस्ट की गलतियां हो जाती है। ईश्वर आपको माफ करे। गांधी को घृणा रहित हृदय के साथ पढ़ने की नसीहत देता हूं शायद आप जैसों भटके पत्रकारों को सदबुद्धि आ जाये।
    धन्यवाद

  9. anuradha

    October 1, 2019 at 9:25 pm

    gandhi ji ke baare me jo yeh tathakathit patrkar bhai bol rahe hai yeh sabhi vikargrast mansikta ke shikar hain, Isme inka kasoor nahi Modi hava aisi chali jisme in jaise log beh gaye aur aisa kuch soch kar baith gaye ki Gandhi naam ko mitti me milane ki he hasrat paal lee. inke liye modi aur shah mahan hai uske ilawa doosra koi leader hee paida nahi hue, modi to paida nahi avtarit hue hain.. Chautha stambh dheh chuka hai mubarakbad, bahut sharam aa rahi hai patarkar bhiyo ki bhasha dekh kar…Shame on u… Gandhi ji ki kad kaathi tak na koi pahucha hai aur na pahuchega. Yashwant bhai aap bhi to kuch bolo

  10. ruchi

    October 2, 2019 at 8:04 am

    अभिषेक अच्छा होता आप गांधी के संघर्ष के वो पहलू उठाते जो किसी ने ना सुने होते, आप क्या साबित करना चाहतें हैं , जो व्यक्ति इस संसार में नहीं हैं उनके मुद्दे उखाड़ने से कु़छ हासिल नहीं होने वाल.खुलकर खेलिए जैसे न्यूज़ चैनल के सम्पादक प्लांट स्टोरी के साथ खेलते हैं आप अपनी आडियोलाजी के हिसाब से मोदी अमित शाह या अन्य पर किताब लिख सकते हैं. क्योकि इस समय पत्रकार लेखकों की बाढ़ आयी है. रही बात संघ परिवार की तो संघ मोहनदास को महात्मा मानता आया है, इसमें कोई दो राय नहीं है।

  11. ambrish

    October 2, 2019 at 12:39 pm

    Mr. Abhishek, you do not have caliber to comment on BAPU. BEST WISHES

  12. Manish Kumar singh

    October 2, 2019 at 1:34 pm

    इसका एफबी वॉल मोदी-बीजेपी की स्तुति और रवीश कुमार को गाली देने से पटी है।

    • dineshsingh

      October 3, 2019 at 1:07 pm

      इतिहास के शिलालेख में दर्ज गाँधी को इन सतही बातो से फर्क नही पड़ने वाला, जिस महामानव ने पुरे देश को एक सूत्र में जोड़कर आजादी की लड़ाई को अमली जमा पहनाया उसके व्यक्तित्व पर इन मनोरोगियों की भाषा और उसके पीछे छिपी सोच से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला .

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