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सीपीएम के मुखपत्र ‘गणशक्ति’ में मोदी सरकार की दो वर्ष की उपलब्धि का फुल पेज विज्ञापन

Shikha : सीपीएम के दैनिक मुखपत्र अखबार “गणशक्ति” के प्रथम पृष्ठ पर मोदी सरकार की दो वर्ष की “उपलब्धि” का फुल पेज विज्ञापनl क्या अब सीपीएम के “इमानदार” कार्यकर्ताओं को (यदि कोई बचे हैं तो) अपने पार्टी मुख्यालयों पर धावा बोलकर अपने गद्दार नेत्रित्व के हाथ से लाल झंडा छीनकर उनसे किनारा नहीं कर लेना चाहिए? और कितना कलंकित करेगी यह पार्टी महान लाल झंडे को?

Shikha : सीपीएम के दैनिक मुखपत्र अखबार “गणशक्ति” के प्रथम पृष्ठ पर मोदी सरकार की दो वर्ष की “उपलब्धि” का फुल पेज विज्ञापनl क्या अब सीपीएम के “इमानदार” कार्यकर्ताओं को (यदि कोई बचे हैं तो) अपने पार्टी मुख्यालयों पर धावा बोलकर अपने गद्दार नेत्रित्व के हाथ से लाल झंडा छीनकर उनसे किनारा नहीं कर लेना चाहिए? और कितना कलंकित करेगी यह पार्टी महान लाल झंडे को?

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कामरेड शिखा के उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ कमेंट्स इस प्रकार हैं….

Shishir Gupta : मैंने और कई और लोगों ने भी माकपा के ‘गणशक्ति’ अखबार के मुख्य पृष्ठ पर मोदी सरकार का फुल पेज का विज्ञापन निकालने वाली पोस्ट डाली थी. इस पर बहुत से लोग तर्क दे रहे हैं कि अखबार सरकारी विज्ञापन के लिए कानूनन मना नहीं कर सकते. तो किसने कहा था आप विज्ञापन निकालने के लिए सरकारी विभाग में आवेदन डालिए? (अखबारों को शुरू में आवेदन करना पड़ता है, और कुछ न्यूनतम मानकों पर खरा उतरने पर ही अखबारों को सरकारी विज्ञापन के लिए सूचीबद्ध किया जाता है.) माकपा तो नव-उदारवादी पार्टियों और उनकी नीतियों का विरोध करती है (हालाँकि नीतियाँ उसकी भी कमोबेश वैसी ही होती हैं), फिर इस तरह का आवेदन करने के पहले क्या इस पार्टी को नहीं पता था कि कांग्रेस, भाजपा जैसी पार्टियाँ नव-उदारवादी हैं और अंततः उन्हीं के विज्ञापन देने पड़ेंगे? दूसरे ये तो ख़ुद को मजदूरों-किसानों की पार्टी कहते हैं तो पूंजीपतियों की सरकार के पैसे के दम पर अखबार निकालने का क्या मतलब हुआ? बात का सार ये है कि माकपा अब बहुत हद तक ख़ुद खुले तौर पर नंगा होकर सामने आ रही है. तो समझिये बात को. लाल रंग से इतने सम्मोहित ना हो जाइए कि जहाँ लाल दिखा हाँफते-डांफते पहुँच गए सलामी देने. अंतत: निराशा और अवसाद के अलावा और कुछ हाथ नहीं लगने वाला उससे. बेहतर होता कि आप मार्क्सवाद का अध्ययन करते, और लेनिन के शब्दों में उसे “ठोस परिस्थितियों का ठोस मूल्यांकन” कर कार्यान्वित करने की बात करते.

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Ashish Thakur The rules of central govt. advertisements have been written down in the “DIRECTORATE OF ADVERTISING AND VISUAL PUBLICITY” smile emoticonhttp://www.davp.nic.in/Newspaper_Advertisement_Policy.html). The sub clause f of clause 18 says: “A newspaper may be suspended from empanelment by DG, DAVP with immediate effect if It refuses to accept and carry an advertisement issued by DAVP on behalf of the Ministries/Departments of Government of India, public sector undertakings and autonomous bodies on more than two occasions.”

Ish Mishra CPM — Corporate Promoted Marxists

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Dinesh Aastik बन्गाल me इसी वजह se इनकी aisi durdasha hui hai. इन्ही paartiyo की वजह se log साम्यवाद ko अव्यवहारिक maanne का भ्रम karne lage.

Gulshan Kumar Ajmani is prakar ke vigyapan ke liye CPM ko lajja aani chaihiye. agar sabhi tarah k sarkari vigyapan hi deikhane hai to Gan shakti ka Party jornal hone ka kya matalab hai.

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Amarnath Madhur लाल झंडा जल्द ही बजरंग बली के लाल लंगोट की जगह बाँधा जाएगा.

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0 Comments

  1. sanjeev kumar singh

    May 30, 2016 at 1:14 pm

    cpm ko bjp se duri kam karne ka pahla kadam hai yah.

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