Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

‘घर-घर तिरंगा’ अभियान के नाम पर किनकी जेबें भरी जा रही हैं!

रवीश कुमार-

घर-घर तिरंगा अभियान के लिए कर्मचारियों के वेतन से पैसे काटे जा रहे हैं। रकम बहुत मामूली है लेकिन उनकी इजाज़त और जानकारी के बिना ही पैसे काट लिए जा रहे हैं। दूूसरा यह पैसा सबके खाते से निकाल कर कहां जमा हो रहा है और किसे दिया जा रहा है? खादी का झंडा बनाने वालों को कितना दिया जा रहा है और सूरत के व्यापारियों को कितना दिया जा रहा है? कौन एजेंसी है जो कई प्रकार के विभागों के कर्मचारियों की सैलरी से पैसे निकाल कर जमा कर रही है और ख़र्च कर रही है? सरकार को जवाब देना चाहिए। तिरंगा का अभियान है। इतनी नैतिकता और पारदर्शिता तो होनी ही चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कई बैंक के कर्मचारियों ने लिखा है कि उनकी सैलरी से बिना इजाज़त तीस या पचास रुपये काट लिए गए हैं। अगर यह सही है तो बैंक के कर्मचारियों और संगठनों को बोलना चाहिए। इस तरह से वे ग़ुलाम का जीवन जीने लगेंगे। इतना तो बोलें कि वे तीस नहीं सौ रुपये देने के लिए तैयार हैं, मगर कोई उनसे पूछे। स्वेच्छा से देना चाहेंगे न कि ऊपर से आदेश आएगा। पूरा ही मामला अवैध और अनैतिक लगता है।

कायदे से सरकार को खुलेआम पैसा लेना चाहिए। ऐलान करना चाहिए कि सभी कर्मचारियों से तीस रुपये लिए जाएंगे। या फिर आयकर के साथ बीस रुपये अधिक ले लिए जाते। एक कर्मचारी की सैलरी से तीस रुपया निकाल लिया जाता है, फिर वह अपने लिए भी खरीदता है। तो वह डबल पैसा खर्च कर रहा है। इस अभियान से जिस तरह से सूरत का कपड़ा उद्योग चल पड़ा है वह अच्छा है। लोगों को काम मिल रहा है। लेकिन मामला इतना सरल नहीं है। आने वाले दिनों में गुजरात में चुनाव होने वाले हैं। वहां हज़ारों लाखों लोगों को तीन महीने के लिए अच्छा काम मिला है। क्या तिरंगा अभियान के पीछे गुजरात के ठंडे पड़े कपड़ा उद्योगों में जान डाला गया है ताकि चुनाव के समय लोगों को भ्रम हो कि काम मिलने लगा और कुछ पैसा भी हाथ आ जाए?

इसलिए यह अभियान इतना सरल नहीं है। तिरंगा को लेकर अभियान हो और लोग दबी ज़ुबान में बातें करें कि पैसा काट लिया, यह अनुचित है। यह राहजनी हुई कि आपने किसी से पैसे छिन लिए। छिनतई है। व्यापारियों से भी सीएसआर और स्वेच्छा के नाम पर यही हुआ है। उनके चुप हो जाने से कोई बात सही नहीं हो जाती। अगर सरकार सार्वजनिक ऐलान करती और अपील करती तो संदेह समाप्त हो जाते। हम जानते हैं कि खादी उद्योग अकेले करोड़ों झंडा नहीं बना सकता मगर इस देश में लाखों सेल्फ हेल्फ ग्रुप हैं। महिलाओं को लगाया जा सकता है लेकिन इस तरह से इसकी प्लानिंग हुई कि ज़्यादातर आर्डर सूरत पहुंचे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

भारत के लोग हमेशा से पंद्रह अगस्त के लिए अनगिनत जगहों पर तिरंगा फहराते हैं। मैंने हर हाउसिंग सोसायटी में देखा है। झुग्गियों और गलियों में लोग फहराते हैं। सार्वजनिक समारोह होते हैं। लोग ख़रीदते हैं। सरकार ने अगर अभियान तय किया है तो उसकी पारदर्शिता होनी चाहिए। अमित शाह ने 17 जुलाई को औपचारिक एलान किया। अब इसी तारीख को आधार बना कर आप सूरत की जिन मिलों में तिरंगा बनाया जा रहा है, उनका पता कीजिए। क्या वे पहले से तिरंगा बनाने लगे थे? उन्हें कैसे पता चला? यह भी पता होना चाहिए कि कौन आदमी, कौन विभाग सबके खाते से पैसे निकाल कर जमा कर रहा है, किस किस को जा रहा है।यह जानना इस अभियान का विरोध नहीं करना है। यह जानना ज़रूरी है। ताकि लोगों को यह न लगे अभियान तो घर-घर तिरंगा का है लेकिन जेबें कुछ लोगों की ही भरे जा रही हैं।

1 Comment

1 Comment

  1. praveen dhingra

    August 7, 2022 at 9:14 pm

    रोचक पहलू यह है कि डाकघरों में झंडा ₹25 में बेचा जा रहा है जबकि रेलवे के कर्मचारियों के वेतन से ₹50 की कटौती हो रही है अगर राष्ट्रध्वज ₹25 में मिल सकता है तो कर्मचारी वहीं से खरीद ले या रेलवे वहीं से बल्क में ले ले लेकिन नहीं कटौती डबल हो रही है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement