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आवाजाही

गिरिजेश मिश्र दैनिक भास्कर जालंधर के सम्पादक बन गए हैं!

सत्येंद्र पीएस-

गिरिजेश मिश्र दैनिक भास्कर जालंधर के सम्पादक बन गए हैं। मूल रूप से बस्ती के रहने वाले गिरिजेश तेज तर्रार और हँसमुख व्यक्तित्व वाले पत्रकार हैं।

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मैंने गिरिजेश को करियर की शुरुआत से देखा है। अभी याद नहीं आ रहा है कि कैसे और किसके माध्यम से पहली मुलाकात हुई, लेकिन हम लोग दिल्ली के पांडव नगर में रहकर नौकरी के लिए साथ साथ संघर्ष कर रहे थे। मैं उम्र में थोड़ा बड़ा था तो गिरिजेश, राहुल सिंह, प्रेम यादव का मैं भैया हुआ करता था और इन लोगों से 4 साल अनुभवी था। इन लोगों ने शादी भी नहीं की थी, उस हिसाब से भी मैं सीनियर था।

पांडव नगर के जिस मकान में हम रहते थे, वह ट्रेन गुजरने पर हिलता था। हम लोग काम करके सो जाते थे तो कभी फील नहीं हुआ। पत्नी आईं और उन्होंने बताया कि यह मकान हिलता है तो मैंने उनको डांटकर चुप करा दिया कि कोई भूत प्रेत है क्या कि रात को बिल्डिंग हिलाएगा।

लेकिन वह डरी हुई रहती थीं। फिर मैंने गिरिजेश को बताया कि भाई साहब हमको भी लगता है कि यह मकान हिलता है। फिर उन्होंने भी फील किया कि सच में ऐसा है। और धीरे धीरे सभी ने महसूस किया कि मकान ट्रेन गुजरने से हिलता है!

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वो भी क्या दिन थे! गरीबी भी बड़ी गरबीली हुआ करती थी। ज्ञान उस समय भी दिया करता था, लेकिन गिरिजेश जी ने सबसे पहले ग्रहण किया, उसके बाद प्रेम जी ने। राहुल सन्त स्वभाव के हैं।
प्रेम, गिरिजेश, राहुल के साथ प्रवीण, आशीष झा, अखिलेश प्रताप सिंह और नीलकमल सुंदरम भी जुड़ गए। हर छुट्टी पार्टी का दिन होती थी। पत्नी जब गोरखपुर चली जाती थीं तो बैचलर्स पार्टी होती थी। सीमित कमाई में हम आनन्द बहुत लेते थे। उस दौर में हम लोग जो बनने का सपना देखते थे, सभी अपने अपने सपनों के आसपास हैं। लेकिन वो लम्हे, वो पल, वो पार्टियां जो हम लोगों ने जी ली, अब खूबसूरत यादें हैं।

खैर…

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गिरिजेश जी के साथ बहुत प्यारी प्यारी यादें हैं। नौकरी के लिए उनका संघर्ष, उसके बाद भास्कर में कम स्टाफ में रातों की नींद हराम करके काम करना, दिल्ली, रांची, पंजाब तक का उनका सफर सहित सब कुछ याद है कि वह किस तरह स्टेप बाई स्टेप बढ़े। आज वह जो बने हैं, उसके लिए वह निश्चित रूप से डिजर्व करते हैं। ऐसे लोग जब आगे बढ़ते हैं तो कर्म पर भरोसा कायम होता है।

पहले जब वह प्रभारी वगैरा बने तो उसे साझा करना मैंने उचित नहीं समझा। लेकिन अब ऐसा लगा कि उनके साथ की यादें अन्य मित्रों के साथ साझा की जाएं। मेरे संस्मरण (परिकल्पित) के वह भी एक मजबूत पात्र जो हैं!

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बहुत बहुत बधाई मित्र।

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