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सुख-दुख

जब टीवी टुडे ग्रुप के पत्रकार संजय सिन्हा ने सड़क पर गिरी एक अनजानी लड़की की जान बचा ली

संजय सिन्हा

संजय सिन्हा


Sanjay Sinha : कल मैंने यमराज के एक चंपू को चैलेंज किया। आप सोच रहे होंगे कि मैं सुबह-सुबह ये क्या फेंक रहा हूं। लेकिन मैं फेंक नही रहा, बल्कि सच कह रहा हूं। हुआ ये कि 9 अगस्त की रात मैं दिल्ली से जयपुर गया, अपनी बहन से राखी बंधवाने। वोल्वो बस से सारी रात यात्रा करते हुए मैं सुबहृ-सुबह जयपुर पहुंच गया था और जयपुर में एक रात रह कर कल सुबह की बस से मैं दिल्ली के लिए निकल पड़ा। बस आधे रास्ते यानी मिडवे पर रुकी, चाय पानी के लिए। वहां सबने कुछ न कुछ खाया, फ्रेश हुए और वापस बस में बैठने के लिए पहुंचे ही थे कि एक ल़ड़की खड़े खड़े अचानक रो़ड पर गिरी। ऐसा लगा जैसे पल भर में उसका संसार खत्म हो गया। वो खड़े खड़े ऐसे गिरी थी कि सब के सब भौचक्के रह गए।

संजय सिन्हा

संजय सिन्हा

संजय सिन्हा


Sanjay Sinha : कल मैंने यमराज के एक चंपू को चैलेंज किया। आप सोच रहे होंगे कि मैं सुबह-सुबह ये क्या फेंक रहा हूं। लेकिन मैं फेंक नही रहा, बल्कि सच कह रहा हूं। हुआ ये कि 9 अगस्त की रात मैं दिल्ली से जयपुर गया, अपनी बहन से राखी बंधवाने। वोल्वो बस से सारी रात यात्रा करते हुए मैं सुबहृ-सुबह जयपुर पहुंच गया था और जयपुर में एक रात रह कर कल सुबह की बस से मैं दिल्ली के लिए निकल पड़ा। बस आधे रास्ते यानी मिडवे पर रुकी, चाय पानी के लिए। वहां सबने कुछ न कुछ खाया, फ्रेश हुए और वापस बस में बैठने के लिए पहुंचे ही थे कि एक ल़ड़की खड़े खड़े अचानक रो़ड पर गिरी। ऐसा लगा जैसे पल भर में उसका संसार खत्म हो गया। वो खड़े खड़े ऐसे गिरी थी कि सब के सब भौचक्के रह गए।

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30-32 साल की एक लड़की मेरी आंखों के आगे बेहोश पड़ी थी। मै बहुत जोर से चिल्लाया और उसे होश में लाने के लिए हिलाने लगा। मेरा हाथ उसकी नाक तक पहुंचा, मैंने महसूस किया को सांस रुक गई है, दिल की धड़कन थम गई है, नब्ज कहीं है ही नहीं। मैं पागलों की तरह चिल्लाता हुआ उसकी छाती पर जोर जोर से मारने लगा। वहां भीड़ लग गई थी। अपनी एक सह यात्री से मैंने कहा कि आप इसे अपने मुंह से कृत्रिम सांस दे सकती हैं क्या? किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। सामने एक लड़की जमीन पर गिरी हुई थी, जो हमारी बस की ही यात्री थी। वो भी जयपुर से दिल्ली आ रही थी, और अचानक आधे रास्ते में यमराज के एक चंपू वहां पहुंच गए अपनी ड्यूटी निभाने। जींस और टीशर्ट में लड़की का शरीर पड़ा था और बस के सभी यात्री सहमे से खड़े तमाशा देख रहे थे। किसी ने कहा शायद मिर्गी का दौरा है, किसी ने कहा कि यूं ही बेहोश हो गई है, किसी ने कहा कि दिल का दौरा पड़ा है। सब कुछ कुछ कह रहे थे, पर किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है?

2 अप्रैल 2013 को सुबह करीब 11 बजे मेरे पास एक अनजान व्यक्ति का फोन पुणे से आया था। उसने पूछा था कि क्या आप सलिल सिन्हा को जानते हैं? मैंने घबराते हुए कहा था कि हां, वो मेरा छोटा भाई है। क्या हुआ उसे? उधर से अनजान व्यक्ति ने कहा कि ये बेहोश हो गए हैं। मैं जोर से चिल्लाया था कि अरे, क्या हुआ मेरे भाई को? उस व्यक्ति ने मुझे सांत्वना देने की कोशिश की थी, लेकिन फोन रखते हुए मैंने सुन लिया था कि वो बुदबुदा रहा था, “इनकी तो सांस ही बंद हो गई है।”

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कुल जमा मेरे भाई के जमीन पर गिरने के दो मिनट में मेरे पास फोन आ चुका था लेकिन मेरा भाई नहीं बचा था। मैं भागता हुआ चार घंटे में दिल्ली से पुणे पहुंच गया था लेकिन मेरे सामने मेरा जो भाई जो जमीन पर लेटा हुआ था, वो उसकी मृत देह थी। पता ही नहीं चला कि कैसे और शरीर के दस द्वार में से किससे उसके प्राण पखेरु उड़ गए थे।

मैं बहुत रोयां। इतना कि अब तक आंसू नहीं सूखे। लेकिन मेरा भाई नहीं लौटा। वो मेरे लिए सिर्फ एक याद बन कर रह गया। 40 साल से कम की उम्र में, यमराज का एक चंपू टहलता हुआ आया और अपने हिस्से का काम करके चलता बना। कोई वजह नहीं थी कि सुबह दस बजे तैयार होकर टाई पहन कर मेरा जो भाई घर से एकदम स्वस्थ दफ्तर गया हो, और जो यूं ही दफ्तर से नीचे उतरा हो, शायद सिगरेट पीने, शायद आईसक्रीम खाने वो यमराज के चंपू के जाल में फंस जाए और यूं ही जमीन पर गिरे और प्राण निकल जाएं, बस 60 सेकेंड में।

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भाई की मौत के बाद मैंने पहली बार इस तरह की मौत के बारे में पढ़ना शुरू किया। पता चला कि इस तरह गिरते ही एक मिनट में जो मौत हो जाती है, उसकी वजह कार्डियक अरेस्ट यानी हृदय घात हैं। इस तरह के ‘घात’ के लिए किसी को दिल का मरीज होने की जरुरत नहीं होती। आम तौर पर सिगरेट और तनाव इसकी वजह हो सकते हैं, लेकिन बिना इसके भी इस तरह के घात होते हैं। सच कहें तो यमराज के छोटे मोटे चंपू अपना कोटा पूरा करने के लिए अकेले में धावा बोलते हैं, और मिनट भर में हार्ट को फेल कर अपना काम करके निकल लेते हैं। उसके चंगुल में कोई भी फंस सकता है। उस दिन मेरा भाई फंस गया था, कल वो लड़की फंस गई थी। आप बहुत ध्यान से, इस बात को समझिएगा कि आम तौर पर ‘कार्डियक अरेस्ट’ के वक्त व्यक्ति अकेला होता है। ज्यादातर मामलों में उसके रिश्तेदार, परिचित वहां नहीं होते। उन तक जब ये खबर पहुंचती है तो देर हो चुकी होती है। यमराज का अदना सा कर्मचारी धोखे से अपना काम कर चुका होता है। और बाद में परिजन उस मौत की वजह तलाशते हैं, कहते हैं कि दिल का दौरा पड़ गया था। खाने पीने का ध्यान नहीं रखा होगा, वगैरह वगैरह।

लड़की नीचे जमीन पर पड़ी थी। 30 सेकेंड बीत चुके थे। उस अनजान और अकेली लड़की की छाती पर मैं दोनों हाथों से मारे जा रहा था। मुझे ऐसा करते देख बस के बाकी यात्री हतप्रभ लेकिन मूक खड़े थे। मेरे साथ एक और लड़की उसके पांव पर अपनी हथेलियां रगड़ने लगी। पर शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी। एक व्यक्ति उसके हाथ में नब्ज टटोल रहा था, उसे नब्ज का अतापता नहीं था। सबके चेहरे सफेद पड़ गए थे। मेरे सामने तो मानो मेरा भाई ही लेटा हुआ था। मैं तुल गया था कि लोहा लेकर रहूंगा।

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एक… दो… तीन… चार…कुल मिला कर 1 मिनट हुए होंगे, मैने पूरी ताकत से उसके सीने पर एक और जोरदार घूसा मारा। लड़की की आंख खुली और भीड़ में से एक आदमी चिल्लाया, सांस चल पड़ी है, सांस चल पड़ी है। फिर आगे जो हुआ उसमें कोई बड़ी बात नहीं। बड़ी बात इतनी ही है कि लड़की की सांस लौट आई। वो जिंदा हो गई। यमराज के चंपू के इरादे को हमने मिल कर तोड़ दिया था। उसने मौका देख कर एक अकेली लड़की के प्राण चुराने की कोशिश की थी, हम 40 यात्रियों ने मिल कर यमराज के उस चंपू की अच्छी पिटाई की और लड़की को नहीं मरने दिया।

तब तक उन्ही यात्रियों में से एक आदमी आगे आया और उसने बताया कि वो डॉक्टर है। उसने ल़ड़की का मुआयना किया, और बताया कि इन्हें अचानक कार्डियक अरेस्ट हुआ था, पर समय पर सही उपचार हुआ और बच गई है। इस तरह के हृदय घात को अंग्रेजी में सडेन कार्डियक अरेस्ट यानी ‘एससीए’ कहते हैं। अमेरिका में अमूमन प्रति वर्ष चार लाख लोग ऐसे ही घात से मरते हैं। हिंदुस्तान में कितने मरते हैं, इसका आंकड़ा मुझे नहीं पता, लेकिन मैं जानता हूं कि ऐसी मौत को ज्यादातर लोग दिल की बीमारी से जोड़ लेते हैं। वो ऐसा मान बैठते हैं कि दिल का दौरा पड़ा और मौत हो गई।

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नहीं, आप ऐसी भूल मत कीजिएगा। यमराज के चंपू की बात रहने दीजिए, लेकिन इस सच को जानना बेहद जरुरी है कि अगर कभी किसी को हृदय घात हो तो क्या करके उसे बचाया जा सकता है। ये हमारी शिक्षा व्यवस्था का दोष है कि हमें प्राथमिक उपचार के बारे में नहीं पढ़ाया जाता, हम किसी को कृत्रिम सांस देना नहीं जानते, हम किसी के हार्ट को पंप करना नहीं जानते, हम हार्ट अटैक और हार्ट फेल का मतलब नहीं समझते। मैंने अपने भाई की मौत के बाद इस विषय पर बहुत पढ़ा और समझ पाया कि अगर किसी को दिल का दौरा पड़े तो उसके पास स्वर्णिम 30 मिनट होते हैं, अस्पताल पहुंच जाने के। अगर दिल का दौरा पड़ा कोई व्यक्ति उस आधे घंटे में सही तरीके से अस्पताल पहुंच जाए तो बहुत मुमकिन है वो बच जाएगा। लेकिन किसी को अगर कार्डियक अरेस्ट हो तो उसके पास कुल जमा दो मिनट होते हैं।

अमेरिका में तो जगह जगह ऐसी मशीनें होती हैं, जिनसे दिल को जोरदार झटका दिया जाता है, और समय पर ये काम हो गया तो आदमी बच जाता है। हिंदुस्तान में वो मशीन अस्पतालों में होती है, लेकिन आम तौर पर आदमी के अस्पताल पहुंचते पहुंचते दस पंद्रह मिनट खर्च कर चुके होते हैं, जबकि ऐसी परिस्थिति में कोई भी सिर्फ उतनी ही देर बच सकता है जितनी देर आदमी अपनी सांस रोक कर जिंदा रह सकता है। एक मिनट, डेढ़ मिनट बहुत है। बड़ी बात ये नहीं कि कार्डियक अरेस्ट हुआ किसे है, बड़ी बात है कि किसके सामने हुआ है। अगर आपने एकदम समय पर उसके दिल की धड़कन को चलाने में कामयाब रहे तो पांच फीसदी ही सही, मर कर आदमी जिंदा हो जाता है। वो लड़की उन्हीं पांच फीसदी में से एक थी, जो कल जी उठी।

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हो सकता है उस लड़की को भी जब वो पूरी तरह ठीक हो जाएगी तो ये समझ में न आए कि वो यमराज के घर से लौट आई है, क्योंकि आदमी ये समझ ही नहीं पाता कि उसकी मौत भी हो सकती है, पर सच यही है कि वो लौट आई है।
हमने यमराज के चंपू से लोहा लिया। उसके लौट आने के बाद उसके फोन से एक नंबर लेकर फोन किया तो उसकी बहन ने फोन उठाया। मैंने इधर से इस लड़की की जानकारी दी तो उसने उधर से बताया कि वो उसकी बहन है। मैंने कहा कि वो जयपुर से दिल्ली आते हुए बहरोर के मिडवे पर अचानक बेहोश हो गईं। पर अब ठीक हैं। उधर से मैंने घबराई हुई आवाज़ सुनी थी, ठीक वैसे ही जैसे मेरी आवाज़ को उस अनजान शख्स ने सुना होगा जिसने मेरे भाई के बेहोश होने के बाद मुझे फोन कर खबर दी थी। पर उसके फोन रखते हुए मेरे कानों ने सुन लिया था कि ‘सांस नहीं चल रही है’। उस लड़की की बहन ने भी भीड़ की आवाज़ को सुना होगा, कि ‘सांस चल पड़ी है’।

उस दिन मेरा भाई नहीं बचा, लेकिन कल किसी की बहन बच गई।

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सोचता हूं मेरा भाई भी बच गया होता। काश उसके यूं ही गिर पड़ने पर उसके सीने पर भी किसी ने खूब मारा होता। इतना मारा होता कि उसकी पसली टूट जाती। पर क्या पता इससे उसके दिल की धड़कन लौट आती। लौट क्या आती, लौट ही आती। पसलियां फिर ठीक हो जाती हैं, लेकिन दो मिनट से ज्यादा दिल की धड़कन बंद रह तो फिर कुछ भी ठीक नहीं होता।

काश हमारे यहां ‘बाबा ब्लैक शिप’ पढ़ाने की जगह स्कूलों में इस तरह के प्राथमिक उपचार आदि के बारे में पढ़ाया जाता तो शायद एक संजय सिन्हा आज बिलख नहीं रहे होते। वो भी उस लड़की के घर वालों की तरह मुस्कुरा रहे होते, और बता रहे होते कि अरे यूं ही गर्मी से बेहोश हो गए थे, पर किसी ने सीने पर मार मार कर सीना ही सूजा दिया है। कोई नहीं, सूजा हुआ सीना भी ठीक हो जाएगा, मौत के मुंह से निकलने की यादें भी धुंधली हो जाएंगी।

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ज़िंदगी की यादें धुंधली हो जाती हैं। यादों का धुंधला जाना ही जीवन का चक्र है। यादों का थम जाना तो मौत होती है। चंद तस्वीरों और एक तारीख में सिमट जाने वाली यादें अगर रुलाती हैं, वो यादें तो खुशनुमा यादें होती हैं, जिनमें मौत से लड़ कर लौट आने का थ्रिल होता है। भविष्य में अगर आपको कोई इस तरह अचानक यमराज के चंपू का शिकार होता हुआ मिले तो उसे छोड़िएगा नहीं। तमाशबीन मत बनिएगा। लड़का हो या लड़की उसके सीने पर अपने हाथों से हमला बोल दीजिएगा। उसके होठों को अपने होठों से, अपने हिस्से की थोड़ी हवा दे दीजिएगा। क्या पता कहीं किसी संजय सिन्हा के आंसू इससे पुछ जाएं! क्या पता आपको दुआ मिले, दुआ एक जिंदगी को लौटा लेने की!

xxx

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कल शाम उस लड़की ने मुझे फोन किया

कल तक मुझे नहीं पता था कि मां ने मुझे सावित्री और सत्यवान की जो कहानी सुनाई थी, उसमें दरअसल हुआ क्या था? मुझे विश्वास है कि आपको भी नहीं पता होगा कि वाकई में सत्यवान को हुआ क्या था, और कैसे सावित्री यमराज से अपने पति सत्यवान को छीन लाई थी? मां कहानी सुनाते हुए कहती थी कि कैसे एक दिन अचानक सावित्री के पति सत्यवान की मृत्यु हो गई और सावित्री यमराज के आगे अड़ गई कि वो अपने पति के बिना जीवित ही नहीं रहेगी। मां बहुत मनोयोग से बताती कि सावित्री के भीतर जीने का जो उत्कृष्ट भाव था उसके बूते ही उसने यमराज के साथ वाक युद्ध किया और उससे ये वरदान पा लिया कि वो अनेक पुत्रों की मां बनेगी। मां जब कहती कि जिस महिला का पति मर गया हो वो पुत्र की मां बनेगी, ये अजीब आशीर्वाद यमराज ने उसे दे दिया था तो उसे लगता कि सावित्री सचमुच संसार की सबसे बुद्धिमान महिला थी। मां को उसकी बुद्धिमता से ज्यादा उसके ‘सत्त’ पर नाज था, उसकी ‘पवित्रता’ पर नाज था।

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खैर, बचपन में मैं इस कहानी को सुनते हुए अपनी आंखें बंद कर मां जैसी ही एक महिला की कल्पना में डूब जाता। पांच फीट पांच इंच लंबी, पतली और खूब गोरी, थोड़ी छोटी मगर गहरी आंखें। लाल-लाल पतले होंठ, एकदम सीधा तना हुआ बदन। मन पूरी तरह आत्मविश्वास से लबरेज। जीने की उत्कृष्ट आकांक्षा। मां की कहानी आगे बढ़ती रहती, सावित्री मेरे लिए मां बन कर खड़ी हो जाती। अचानक कहानी में ट्रेजेडी आती, उसके पति सत्यवान के प्राण पखेरू बन कर आसमान में उड़ जाते हैं और वो कटे हुए वृक्ष की भांति जमीन पर गिर पड़ता।

सावित्री को अपने पति से बहुत प्यार था। वो मरने को तैयार थी, लेकिन पति के बिना जीने को तैयार नहीं। और फिर उसका सामना यमराज से होता है और वो यमराज से अपने पति के प्राण वापस लौटा लेती है। कहानी पूरी होते-होते मां की आंखें चमकने लगतीं, और उसका पूरा भाव ऐसा हो जाता कि मानो संसार की हर महिला अपने सुहाग के लिए सचमुच यमराज से टकरा जाने का दम रखती है। कहानी खत्म होती, मैं सावित्री को संसार की सबसे वीर महिला मान कर नींद में खो जाता, और मां आखिर में दोनों हाथ जोड़ कर सावित्री को प्रणाम कर सो जाती।

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कल तक मैं यही मानता था कि बहुत दिलचस्प होते हुए भी सावित्री की कहानी एक काल्पनिक कहानी थी। आप में से बहुत से लोग इसे पति के प्यार में समाहित एक नारी के त्याग की कहानी ही मानते होंगे। कई लोग इसे धर्म से जोड़ कर एक धार्मिक गाथा के रूप में भी मानते होंगे। लेकिन कल मैंने इसे विज्ञान की भाषा में पढ़ा। कल मैंने पहली बार जाना कि ये तो एक सच्ची घटना है जिसे मेडिकल साइंस की किताब में पढ़ाया जाता है। कल मैंने पहली बार जाना कि हमारी कोई भी पौराणिक कहानी सिर्फ कोरी कल्पना नहीं, बल्कि विज्ञान की कसौटी पर कसी हुई कहानी है। बस उसकी भाषा देश, काल, समय और परिस्थिति के हिसाब से है, और इसी वजह से हमें कई बार वो काल्पनिक कहानी लगती है। आइए आज मैं आपको उसी सावित्री और सत्यवान की कहानी को मेडिकल की भाषा सुनाता हूं।

कल मैंने अपनी पोस्ट में लिखा कि जयपुर से दिल्ली आते हुए कैसे एक लड़की को हृदय घात का दौरा पड़ा। कैसे अचानक उसे कार्डियक अरेस्ट हुआ और वो बीच रास्ते में चाय पानी के लिए रुकी बस में दुबारा चढ़ने से पहले कटे हुए वृक्ष की तरह धड़ाम से गिर पड़ी। कैसे उसकी नब्ज एक सेकेंड में थम गई, सांस रुक गई और दिल ने धड़कना बंद कर दिया। और क्योंकि ठीक ऐसे ही साल भर पहले मैंने अपने भाई को सदा के लिए खो दिया था, इसलिए उस लड़की की छाती पर मैंने अपने दोनों हाथों से मारना शुरू कर दिया और लड़की की सांस लौट आई।

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मैंने ये सब लिखा और बताने की कोशिश की कि ‘सडेन कार्डियक अरेस्ट’ यानी अचानक दिल की धड़कन का बंद हो जाना एक दुर्घटना है। मैंने अपनी साधारण भाषा में ये समझाने की कोशिश की कि इस तरह किसी का भी हार्ट फेल हो सकता है और हम उसे दिल का दौरा पड़ना मान कर चुप हो लेते हैं। जब दिल धड़कना बंद कर देता है और असमय हमारा प्रिय हमसे सदा के लिए जुदा हो जाता है तो हम इसे ईश्वर की मर्जी मान कर, रो कर शांत हो लेते हैं। कई लोगों ने कल की पोस्ट पर अपनी टिप्पणी में लिखा है कि उसने अपने पिता को खो दिया, अपने भाई को अपनी ही आंखों के आगे पल भर में मर जाते हुए देखा, बहन को सड़क के किनारे सदा के लिए शांत हो जाते देखा…

मैं सबके दर्द को समझ पा रहा था। मैं समझ रहा था कि कल पहली बार बहुत से लोगों को ये लग रहा था कि अगर हमारी शिक्षा व्यवस्था में इस तरह की बीमारी के बारे में पढ़ाया गया होता, प्राथमिक उपचार के बारे में बताया गया होता तो उस बेटी की आंखों में आज आंसू नहीं होते जिसने अपने पिता को यूं ही पानी का एक गिलास मांगने के बाद सोफे पर लुढ़क कर मरते हुए देखा था। उस बहन की आंखें पिछले चौदह साल से ये सवाल नहीं पूछ रही होतीं कि उसका सगा छोटा भाई अचानक कुर्सी से किसी काम से उठ कर गिर कर मर क्यों गया? और घर के लोग सोचते कि वो इस तरह गिर कर मजाक कर रहा है, उसके पहले उसके प्राण उड़ न जाते।

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आज मैं जानबूझ कर किसी के नाम नहीं लिख रहा, किसी के नाम को टैग नहीं कर रहा, क्योंकि ऐसी यादें शोक पैदा करती हैं, ऐसी यादें कमजोर बनाती हैं।

कल जब मैंने इस पोस्ट को लिखा तो मेरे एक ‘परिजन’ ने देश के जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर केके अग्रवाल के एक प्रजेंटेशन को कमेंट के रूप में डाला जिसमें डॉक्टर साहब ने बहुत ही शानदार तरीके से ‘सडेन कार्डियक अरेस्ट’ के बारे में लोगों को जागरुक करने की कोशिश की है। उन्होेंने एक पुतले के सहारे ये बताने की कोशिश की कि अगर किसी को अचानक ‘हृदय घात’ हो जाए तो उसे कैसे जमीन पर लिटा कर खुद घुटने के बल बैठ कर अपने दोनों हाथों को जोड़ कर उस मृत व्यक्ति की छाती के बीच में पूरी ताकत से बार बार दबाना चाहिए।

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इसे ही हार्ट पंप करना कहा जाता है। डॉक्टर अग्रवाल के मुताबिक मेडिकल साइंस में जिसे भी कार्डियक अरेस्ट होता है, वो मर चुका होता है। उसकी सांस रुक चुकी होती है, दिल की धड़कन बंद हो चुकी होती है। और उन्हीं के मुताबिक उस मृत व्यक्ति की छाती पर जब आप पूरी ताकत से जिस तरह बैठ कर दोनों हाथों से बार बार दबाव डालते हैं तो उस बैठने के आसन को ‘सावित्री आसन’ कहा जाता है।

सावित्री आसन?

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हां, किसी ने ये सोचने की जहमत ही नहीं उठाई कि सावित्री और सत्यवान की कहानी में दोनों जब कहीं जा रहे होते हैं, तो अचानक सत्यवान को कहीं हृदय घात ही तो नहीं होता? उसके दिल की धड़कन अचानक बंद हो जाती है, उसकी नब्ज थम जाती है, सांसें रुक जाती हैं और वो मर चुका होता है। और जिसे हम यमराज से वाक युद्ध और पुत्र प्राप्ति का वरदान मान कर दैवीय चमत्कार कह रहे हैं, वो दरअसर सावित्री का सत्यावान के सीने पर लगातार किया जा रहा पंप होता है, और कुछ मिनट में सत्यवान जी उठता है। देखने वाले चमत्कार-चमत्कार कह कर खुशी से नाच उठते हैं। कोई कहता है कि उसने सावित्री को सत्यवान के लिए यमराज से लड़ते देखा। कोई उनके बीच के संवाद को अपने मन की भाषा में सुन और समझ लेता है। पर हकीकत यही है कि सत्यवान को सडेन कार्डियक अरेस्ट होता है, और सावित्री अपना साहस नहीं खोती, वो लगातार उसकी छाती पर पूरी ताकत से हमला बोल देती है। वो चीख चीख कर कहती है कि मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी, मैं तुम्हें ऐसे अकेले छोड़ कर इस आखिरी यात्रा पर नहीं निकलने दूंगी। और देखते देखते सत्यवान के प्राण लौट आते हैं।

जिस तरह घुटनों के बल बैठ कर वो अपने पति की छाती को पीटती है, उसी बैठने के अंदाज को मेडिकल साइंस में सावित्री आसन का नाम दिया गया है।

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डॉक्टर के मुताबिक अगर इस बात को लोगों तक सही तरीके से पहुंचाया जाए तो सौ में से साठ लोगों के प्राण मर जाने के पांच मिनट के भीतर लौटाए जा सकते हैं। दिल की बंद पड़ी धड़कन अगर बार बार उसे पंप करने से एक बार चल जाए तो आदमी यमराज के चंगुल से छूट कर लौट आ सकता है।

उनके मुताबिक तो अगर समय पर किसी ने विलाप करने की जगह सावित्री आसन में इस विद्या का इस्तेमाल किया होता तो आज हमारे बीच फिल्म अभिनेता संजीव कुमार, विनोद मेहरा, अमजद खान जिंदा होते। याद रखिए ये सभी सडेन कार्डियक अरेस्ट से मरे थे।

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आज मेरा खुद का छोटा भाई जिंदा होता।

आज मीना श्रीवास्त्व का छोटा भाई जो यूं ही एक दिन घर के ड्राइंग रूम में मर गया था, जीवित होता। वो जीवित होता तो उसकी बहन तीन दिन पहले बीती राखी पर उसकी कलाई में राखी बांध रही होती, और भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा का वचन दे रहा होता।

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आज मेरा भाई मेरी पत्नी को जगा कर कह रहा होता, “परजाई एक कप कड़क चाय पिलाओ। बड़े दिन हो गए आपके हाथों से चाय नहीं पी।”

ये सब हो सकता था, अगर हमें पता होता कि सावित्री ने कैसे अपने सत्यवान की जान बचाई थी।

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हमारी जिंदगी में देर हो गई है। पर किसी और की ज़िंदगी में देर न हो इसलिए जरुरी है कि उसे ‘सावित्री आसन’ के बारे में पता हो। उसे पता हो कि हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट में क्या फर्क होता है। उसे पता हो कि कैसे कार्डियक अरेस्ट में मरा हुआ आदमी जी सकता है बशर्ते एकदम समय पर उसे सत्यवान की तरह उपचार मिल जाए। जैसे परसों जयपुर-दिल्ली मिडवे पर वो लड़की बच गई।

कल शाम उस लड़की ने मुझे फोन किया था, जिसकी छाती पर सडेन कार्डियक अरेस्ट के बाद मार मार कर मैं उसके दिल की धड़कन मैं लौटा लाया था। लड़की को कुछ याद नहीं था कि उसके साथ क्या हुआ। बस उसे बाद में इतना पता चला कि शायद उसकी सांस थम गई थी, नब्ज रुक गई थी और दिल ने धड़कना बंद कर दिया था। पर सबकुछ लौट आया, और अब सामान्य हो गया है। हां, उन पांच मिनट के बारे में उसे कभी कुछ याद नहीं आएगा कि उसके साथ हुआ क्या? कैसे यमराज की मुट्ठी से वो आजाद हो गई? कल मैंने उसे बेशक सावित्री आसन के बारे में नहीं बताया, लेकिन अगली बार फोन आया तो जरुर बताउंगा। बताउंगा, ताकि कल को वो किसी सत्यवान के लिए सावित्री बन सके।

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क्या है सडेन कर्डियक अरेस्ट?

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ये सच है कि इस संसार में चमत्कार नहीं होता। फिर भी ईश्वर पर इस बात के लिए बहुत दबाव होता है कि गाहे बगाहे कुछ ऐसा होता रहे कि मानव मात्र को ऐसा लगे कि चमत्कार हुआ है और ईश्वरत्व पर विश्वास बहाल रहे। जिस चीज को आदमी नहीं समझ पाता, जिसके कारण उसके पास नहीं मौजूद होते, जिस विद्या पर उसका नियंत्रण नहीं है वो सारी बातें ईश्वरत्व के लिए कारक का काम करती हैं। यही वजह है कि दुनिया भर के अस्पतालों में, जहां विज्ञान की बड़ी-बड़ी मशीनें लगी होती हैं, उसके परिसर में भी एक कोना ईश्वर के लिए होता है। अक्सर आपने बायोलॉजी पढ़ कर आदमी के शरीर के रेशे-रेशे का अध्ययन कर चुके डॉक्टर के मुंह से भी सुना होगा कि अब भगवान ही कुछ कर सकता है, अब इन्हें दवा से ज्यादा दुआ की जरुरत है, वगैरह-वगैरह।

ईश्वर को लेकर तर्क और अंधविश्वास की लड़ाई के पीछे की सबसे बड़ी वजह ही चमत्कार है। और इस संसार में चमत्कार के न होते हुए भी खुद में ‘जीवन और मृत्यु’ दो सबसे बड़े चमत्कार हैं। जीवन को लेकर मनुष्य ने अलग तरह के कुछ प्रयोग कर लिए हैं, इसलिए जीवन पर उसका उतना विश्वास नहीं रहा जितना मृत्यु को लेकर आज भी है। क्योंकि, कहा जाता है कि जो भी इस संसार में आया है, उसे जाना ही है, और जो आया है अब तक जाता ही रहा है, इसलिए मृत्यु को लेकर मनुष्य के मन में आज भी रहस्य बरकरार है और सिर्फ यही इकलौता रहस्य आज भी ईश्वर के वजूद को बचाए हुए है। उस दिन की कल्पना मात्र करके देखिए कि आदमी ने मृत्यु को भी जीत लिया है, फिर वो क्या-क्या नही कर गुजरेगा? समुद्र मंथन में मिले अमृत कलश से लेकर अमरनाथ तक में भगवान िशव की तरफ से मां पार्वती को अमरत्व की कहानी सुनाए जाने के फलसफे के पीछे सिर्फ ईश्वरत्व का ‘भाव’ मानव मन में कहीं न कहीं जीवित रखने का प्रमाण है।

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इसलिए दुनिया में चमत्कार न होने के बावजूद और तुलसीदास के ऐसा लिख देने के बावजूद कि जीवन-मृत्यु, हानि-लाभ और यश-अपयश ईश्वर ने अपने हाथ में रख कर मनुष्य को इस संसार में भेजा है, ईश्वर को लेकर अलग तरह का आंदोलन है, विवाद है। लेकिन मुझे लगता है कि जब तक मौत पर आदमी का नियंत्रण नहीं है, जब तक पुनर्जन्म की कहानियां मौजूद हैं, जब तक बहुत से सवाल स्पष्ट रूप में अऩुत्तरित हैं, ईश्वर का वजूद रहेगा। और जब तक ईश्वर का वजूद रहेगा तब तक इस सच के साथ कि चमत्कार नहीं होते हैं, चमत्कार होते रहेंगे।

परसों मैंने लिखा था कि जयपुर से दिल्ली आते हुए मिडवे पर एक लड़की की अचानक मृत्यु हो गई। अचानक मृत्यु से मेरा मतलब उसका हार्ट फेल हो गया। उसे अचानक हृदय घात हुआ, जिसे अंग्रेजी में ‘सडेन कार्डियक अरेस्ट’ कहते हैं। लेकिन समय पर मिले प्राथमिक उपचार से उसके दिल की धड़कन लौट आई। ये चमत्कार था। विज्ञान की भाषा में भी रुके हुए दिल का चल जाना चमत्कार ही है। प्रति वर्ष करोड़ों लोग सडेन कार्डियक अरेस्ट से मरते हैं। हिंदुस्तान का तो सही में किसी के पास आंकड़ा मौजूद नहीं है। यहां जब अचानक किसी के दिल की धड़कन बंद हो जाती है, तो आदमी ईश्वर की मर्जी कह कर, सुबक कर संतोष कर लेता है। लेकिन अमेरिका जैसे देश ने, जहां हर साल कम से कम चार लाख लोग सिर्फ हार्ट फेल होने से बेवजह मर जाते हैं, इस पर काफी शोध किया है।

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मेरा मन आज इस विषय पर लिखने का नहीं था। लेकिन परसों और कल जब मैंने हृदय घात के बारे में लिखा, और आप लोगों ने इसपर इतनी प्रतिक्रिया दी, तो मैं न चाहते हुए भी एक दिन और इसपर लिखने को मजबूर हो गया हूं। कल की मेरी पोस्ट पर कई लोगों ने सडेन कार्डियक अरेस्ट के बारे में और जानना चाहा तो मुझे लगा कि सचमुच इस बारे में सबको जरा और विस्तार से जानना चाहिए। सबने मेरी पोस्ट की बहुत सराहना की। लेकिन एक भाई ने सीधे-सीधे कहा, “सर आपने सावित्री-सत्यवान की कथा का वैज्ञानिक विश्लेषण किया है। सडेन कार्डियक अरेस्ट’ के बारे में आप लोगो को और विस्तार से बताए तो अच्छा होगा। विस्तार से मेरा मतलब यह कैसे होता है? किन लोगो को हो सकता है? कार्डियक अरेस्ट की गिरफ्त में आए व्यक्ति को अगर यह पहले से ही पता चल जाये की वह कार्डियक अरेस्ट का शिकार हो सकता है तो उसे बचाया जा सकता है? ” तो मुझे लगा कि सचमुच इस बारे में कुछ जागरुक होने की जरुरत है।

मेरा यकीन कीजिए 2 अप्रैल 2013 से पहले, यानी आज से सिर्फ सवा साल पहले तक मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता था। सच कहें तो मैं सडेन कार्डियक अरेस्ट के बारे में सुना भी नहीं था। पर आज सोचता हूं कि काश सुना होता तो शायद मेरा सगा, इकलौता छोटा भाई बच जाता।

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मेरा भाई दवा की कंपनी में बड़ी पोस्ट पर काम करता था। उस समय वो पुणे में पोस्टेड था, और पूरी तरह स्वस्थ था। 2 अप्रैल की सुबह वो रोज की तरह अपने दफ्तर गया और दिन में 11 बजे शायद सिगरेट पीने के लिए दफ्तर से नीचे उतरा, और अचानक गिर पड़ा। गिर पड़ा मतलब दुनिया की निगाह में बेहोश हो गया। जब वो गिरा तो उसके पास मौजूद एक आदमी ने उसे गिरते हुए देखा। उसकी समझ में नहीं आया कि ये हुआ क्या है? एक अनजान आदमी आखिर कर भी क्या सकता था? उसने थोड़ा हिलाया-डुलाया होगा, और कुछ समझ में नहीं आया तो शायद उसकी उपरी जेब में पड़े मेरे बिजनेस कार्ड को देख कर मुझे फोन कर दिया। मुझे ये नहीं पता कि उसने फोन कैसे किया, लेकिन ये सच है कि मेरे भाई के जमीन पर गिरने के दो से तीन मिनट में मेरे पास फोन आ चुका था। उधर से घबराई हुई आवाज़ फोन पर आई थी कि ऐसा-ऐसा हो गया है। मैं दिल्ली में था, और मेरी समझ में सिर्फ इतना आया कि मैंने उस आदमी को उसकी पत्नी का नंबर दे दिया और कहा कि आप किसी तरह उसे पास के अस्पताल पहुंचाएं। जो खर्च होगा उसकी चिंता मत कीजिएगा, मैं आ रहा हूं।

यही मेरी सबसे बड़ी भूल थी। अगर मैंने पहले कभी कहीं हृदय घात के बारे में पढ़ा होता तो मैं उस आदमी से कहता कि आप बिना एक पल भी गंवाए हुए, बिना किसी की परवाह किए हुए उसकी छाती के बीचो बीच दोनों हाथ को जोड़ कर मारिए। उसकी छाती को जितनी बार मुमकिन हो पूरी ताकत से बार-बार दबाइए। इतनी जोर से दबाइए कि चाहे उसकी पसलियां टूट जाएं, पर दबाना मत छोड़िएगा।

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काश मैंने ऐसा कहा होता। अगर मैंने ऐसा कहा होता और उसने ऐसा कर दिया होता तो मेरा यकीन कीजिए मेरा छोटा भाई आज ज़िंदा होता। ठीक वैसे ही ज़िदा होता जैसे जयपुर से दिल्ली आती वो लड़की एकदम उसी परिस्थिति में मर कर जी उठी, जिसके साथ मैंने ऐसा किया। अपने भाई की मौत के बाद मैंने इस विषय पर खूब पढ़ाई की। मैं उसकी मौत की वजह जानने को बेताब हो गया। मैं ये जानना चाहता था कि पूरी तरह स्वस्थ एक आदमी आखिर अचानक मर कैसे सकता है? तो अपने इसी सवाल के जवाब को तलाशता हुआ मैं सडेन कार्डियक अरेस्ट तक पहुंचा।

इस सच को आप समझ लीजिए कि ये किसी को हो सकता है। कभी भी हो सकता है। जब तक आप इस पोस्ट को पढ़ रहे होंगे तब तक दुनिया में न जाने कितने दिलों की धड़कन बंद हो चुकी होगी। इसका शिकार हममें और आपमें से कोई भी, कभी भी हो सकता है। हालांकि मेडिकल साइंस इसके पीछे स्मोकिंग, तनाव को बड़ी वजह मानता है, लेकिन जिस लड़की का जयपुर-दिल्ली मिडवे पर हार्ट फेल हुआ था, उसके बारे में मुझे नहीं लगता कि ऐसी कोई वजह रही होगी।

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या क्या पता हो भी? पर अपने अध्ययन में मैंने ये पाया कि ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है और कभी भी हो सकता है। लेकिन जहां ये हुआ है, वहां अगर कोई एक व्यक्ति भी इसके बारे में जानता हो और समय पर हार्ट को पंप करना शुरू कर दे तो मेरा दावा है कि मरा हुआ आदमी जिंदा हो जाएगा। अगर एक मिनट से कम समय में उसे ये सुविधा मिल गई तो पक्के तौर पर। उसके बाद हर मिनट इसकी संभावना कम होती चली जाती है। मेरा भाई जब गिरा था, तब वो आदमी वहीं मौजूद था, जिसने मुझे फोन किया और अगर उसे इस बारे में पता होता तो शायद वो हार्ट पंप कर देता। पर अफसोस उसे इस बारे में बिल्कुल अंदाजा ही नहीं था।

जब वो लड़की मेरे सामने गिरी तो मुझे पता था, और पांच सेकेंड में उस तक ये प्राथमिक उपचार पहुंच गया, इसलिए उसकी जिंदगी में न होते हुए भी चमत्कार हो गया। आप गूगल पर जाकर सडेन कार्डियक अरेस्ट टाइप करें, और देखें कि आपको क्या-क्या देखने को मिलता है। इस तरह के लोगों के बारे में ही कहा जाता है कि ये मर कर दुबारा जी उठे हैं। ऐसे लोग अपना परिचय ‘सडेन कार्डियक अरेस्ट के सर्वाइवर’ के रूप में देते हैं। ऐसे लोग खुद के बारे में मानते हैं कि उन्हें दूसरा जन्म मिला है। और ऐसे लोगों की गिनती एक दो में नहीं हजारों, लाखों में है।

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मैंने कल लिखा था कि जरा सी जागरुकता होती तो सचमुच फिल्म कलाकार संजीव कुमार, अमजद खान, विनोद मेहरा आज हमारे बीच ज़िंदा होते। मेरा भाई भी ज़िंदा होता। काश ऐसा होता! जो नहीं हुआ सो नहीं हुआ। लेकिन आज सचमुच सभी को इस बारे में जागरुक होने की जरुरत है। याद रखिए आपकी जागरुकता से किसी की जान बच सकती है, तो आपकी जान भी बच सकती है। आप खुद इस बारे में जान पाए तो दूसरों की जान बचेगी और आपने दूसरों को इस बारे में बताया तो आपकी जान भी बच सकती है। जो लोग जूता सूंघाने में, हाय तौबा मचाने में समय बर्बाद करते हैं, वो आपकी छाती पर दोनों हाथों से सावित्री आसन में हमला बोल देंगे तो आपकी जान वापस लौट आएगी।

आदमी मर कर जी सकता है इस सच पर आपका यकीन बढ़ जाएगा। ईश्वर होता है आप न चाहते हुए भी मान बैठेंगे। ठीक वैसे ही जैसे कि कहा जाता है कि ‘लज़ारस’ नामक एक व्यक्ति की मौत के बाद ईसा मसीह ने उसे जीवित कर दिया था। ठीक उसी तरह जिस तरह दुनिया भर में 1982 से लेकर अब तक कम से कम 38 लोगों के नाम मेडिकल जर्नल में दर्ज हैं, जो मरने के कई घंटों बाद दुबारा जी उठे हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह सावित्री ने सत्यवान को जीवित कर लिया था। ठीक उसी तरह जिस तरह कई बार हमारे न्यूज़ रूम में खबर आती है कि अंतिम क्रिया के लिए ले जाई जा रही लाश आधे रास्ते में जी उठी और लोग भूत-भूत कह कर भाग खड़े हुए। सबकुछ होता है और हो सकता है। लेकिन अगर आप इस बीमारी और इसके त्वरित इलाज के बारे में जानेंगे तो इसमें इतना हैरान होने की दरकार नहीं रह जाएगी। आप विज्ञान की भाषा में ये समझ पाएंगे कि दरअसल हार्ट को चलाने वाली तरंगों का फ्यूज उड़ जाना ही हृदय घात कहलाता है। और हार्ट को पंप कर उस करंट को दुबारा बहाल किया जा सकता है।

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ये सच है कि जीवन-मरन ईश्वर के हाथ में ही है। लेकिन आप ईश्वर के दूत बन कर तो किसी की जान बचा ही सकते हैं। एक ‘लज़ारस’ नामक व्यक्ति की जान ईसा मसीह ने बचाई थी, एक सत्यवान की जान सावित्री ने बचाई थी। अगर आप इस दिशा में जरा सा जागरुक होंगे तो क्या पता आप भी इस पुण्य के भागीदार बन सकें। मैं कोई नहीं हूं, आपसे ये अनुरोध करने वाला, मैं कोई नहीं हूं आपको इस तरह के ज्ञान देना वाला, लेकिन फिर भी मैं ये गुस्ताखी कर रहा हूं कि आप अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को बताएं कि ‘सडेन कार्डियक अरेस्ट’ के बाद तत्काल ऐसा करने से मरा हुआ आदमी जी सकता है। ऐसा इसलिए कीिजए ताकि कोई और संजय सिन्हा भाई विहीन न हो जाए। ताकि किसी की पत्नी और किसी के बच्चे पति और पिता विहीन असमय न हो जाएं। ताकि एक भतीजा अपने चाचू को खोकर किशोर उम्र में मुझसे ये न पूछे कि ज़िंदगी होती क्या है? ताकि किसी भाभी की आंखें अपने देवर को इधर-उधर तलाशती न रह जाएं। ताकि कोई बेवजह इस संसार से रुखसत न हो जाए। ताकि ईश्वर नामक संस्था पर हमारा भरोसा बना रहे। ताकि चमत्कार के न होेने के बाद भी चमत्कार पर हमारा भरोसा बना रहे। जरुर बताइएगा अपने संपर्क में आने वाले लोगों को कि ये ‘सडेन कार्डियक अरेस्ट’ सडेन ही होता है। ‘सडेन’ मतलब अचानक, ‘अचानक’ मतलब कभी भी, कहीं भी, किसी को भी।

टीवी टुडे ग्रुप में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार संजय सिन्हा के फेसबुक वॉल से.

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0 Comments

  1. IMRAN HUSSAIN

    August 19, 2014 at 8:48 am

    आप तारीफे लायक है जो उस लड़की की जान बचाई है। आपको मेरी और से बहुत बहुत धन्यवाद। आपकी की लिखी हुई बात मेने पूरी पड़कर उसे समझा है। आवर उसको फेसबुक पर अपडेट भी किया है। टेक जो लोगे भड़ास 4 मिडिया नहीं पड़ता वो भी इस लेख को पड़कर अपने आस पास होने वाली घटना से किसी की जान बचा सके.
    इमरान हुसैन दैनिक नवज्योति कोटा राजस्थान
    mob. 8003879342

  2. dhirendra singh

    August 19, 2014 at 8:56 am

    respected sanjay ji wakai behad importent information di h apne eswar ne kabhi mouka diya to jaroor pryas karunga—–heartly thx

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