हिंदुस्तान से बाहर किए गए भागलपुर के संपादक गीतेश्वर, स्टाफों की लगी हाय खा गई
कहते हैं ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं। लगभग ढाई वर्ष से हिंदुस्तान भागलपुर के संपादक गीतेश्वर को संस्थान ने बाहर का रास्ता दिखा दिया।
ढाई साल पहले भागलपुर के स्थानीय संपादक कुमार अभिमन्यु के फेयरवेल के दिन ही ज्वाइन करने वाले गीतेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा था कि- मैं स्टाफ फ्रेंडली नहीं हूं।
इन ढाई वर्षों में उन्होंने इस बात को कई बार साबित किया। उनका सफर हिंदुस्तान भागलपुर में आखिरी दिनों तक स्टाफ को तंग करने में ही बीत गया।
तीन वर्षों में यहां कार्यरत कुछ चमचों को छोड़कर शायद ही भागलपुर या उनके अधीन 13 ब्यूरों में कार्य करने वाला कोई स्टाफ होगा जो उनसे दुखी ना हो, जिनकी छुट्टी को लेकर संपादक गीतेश्वर से पंगा न हुआ हो। शायद ही कोई स्टाफ बचा हो जिसकी संपादक गीतेश्वर ने छुट्टी मंजूर किए जाने के बावजूद अबसेंट दिखाकर सैलरी ना काटी हो।
इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि एक स्टाफ के घर गमी होने पर उस स्टाफ की छुट्टी को नामंजूर करते हुए उसे अबसेंट दिखाकर उनकी सैलरी काटी गई। इस तरह लगभग सारे स्टाफ उनसे दुखी थे और उनके जाने की कामना कर रहे थे।
कई लोगों की हाय लेने के बाद बीते कुछ दिनों पहले भागलपुर के 9 स्टाफ को कोरोना लॉकडाउन के बहाने हटाया गया। ये वही स्टाफ थे जिनकी कई बार कई बातों को लेकर संपादक गीतेश्वर से पंगा हुआ था। आखिर उनकी आखिरी हाय संपादक गीतेश्वर को लग ही गई।
गीतेश्वर के संस्थान से हटने पर भागलपुर हिंदुस्तान के अधीन काम करने वाले कुछ चमचों को छोड़कर सभी खुश हैं। शाम पांच बजे उन्होंने ह्वाट्सएप ग्रुप पर संदेश छोड़ा और निकल लिए।
इधर उनके हटने के बाद अब उनके यस सर कहने वाले चमचों को अब नया जूता मिल जाएगा चाटने को। बीते कई वर्षों की चमचागिरी करने की ये प्रैक्टिस नये संपादक का जूता चमकाने के काम आएगी।
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।