Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

गोवा अपनी राजनीति के नए प्रतिमान गढ़ने की तरफ बढ़ रहा है!

-संदीप सोनवलकर

गोवा की लहरों में राजनीतिक उफान! खूबसूरत समुद्री किनारोंवाला गोवा सभी को लुभाता है। लेकिन कोरोना की कसक के बीच खराब आर्थिक हालात से लोग हैरान हैं। धंधा चौपट है, फिर भी चुनाव तो होना ही है, सो दुष्कर हालात में भी गोवा अपनी राजनीति के नए प्रतिमान गढ़ने की तरफ बढ़ रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

गोवा की उछाल मारती समुद्री लहरों में राजनीतिक के रंग दिखाई देने लगे हैं। लेकिन इन्हीं रंगों को बदरंग कर रही है कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन की आहट। दिसंबर का महीना है और गोवा में दुनिया भर से लोग साल के इस आखिरी महीने में मौज मस्ती और नये साल का स्वागत करने पहुंचते है। लेकिन दो साल से कोरोना के असर से परेशान ओमिक्रॉन ने दहशत में डाल दिया है। नये साल के आने के पहले ही यहां से टूरिस्ट की वापसी शुरु हो गयी है और ज्यादातर होटल और क्लब खाली खाली से पड़े हैं। हाल यह है कि वीकेंड की रातों को गोवा के जिन मशहूर जगहों क्लब कबाना और थलासा जैसी जगहों पर प्रवेश के लिए मिन्नतें करनी पड़ती थी अब वहां पर खुद क्लब के लोग सड़क पर खड़े होकर टूरिस्ट को बुला रहे हैं। थलासा के जुएल लोबो के अनुसार नये वेरिएंट की खबरों के चलते अचानक भीड़ घट गयी है और अब हम भी लोगों को फ्री एंट्री दे रहे हैं। इस बीच चुनाव सर पर आ रहे हैं और आगे क्या होगा, सभी असमंजस में हैं। जीवन से लेकर समाज और माहौल से लेकर राजनीति हर तरफ असमंजस है।

असल में कोरोना के कारण गोवा में इस साल विदेशी पर्यटक आ नहीं पाये। उम्मीद थी कि दिसंबर में विमान सेवाएं शुरु होंगी तो विदेशी आयेंगे। लेकिन नये वेरिएंट के कारण सारी उड़ानें बंद कर दी गयी है साथ ही चार्टर प्लेन की परमीशन भी नहीं मिल रही है। इसलिए अब कोई उम्मीद नहीं बची है। लगभग सारे बीच सूने हैं और विदेशी सुंदरियां अंतरंग कपड़ों में नहीं दिख रही हैं। इसीलिए गोवा में आनेवाले देसी लोगों के लिए सबसे बड़े आकर्षण सन बाथ का माहौल भी इस बार नहीं बन पा रहा है। आप कल्पना नहीं कर पायेंगे, लेकिन गोवा में बीच पर बनी दुकानें जो रात भर खुली रहती थीं, वो अब दस बजे के बाद ही बंद हो रही है। करीब चालीस प्रतिशत दुकानें इस बार खुली ही नहीं। गोवा के एडवोकेट अनिकेत देसाई के अनुसार कोराना ने गोवा की इकानामी को खत्म कर दिया है। दो साल बाद इस बार कुछ उम्मीद थी, लेकिन नये वेरिएंट के डर से सब खत्म हो रहा है। गोवा में बेरोजगारी और गरीबी बढ़ रही है। सरकार को माइनिंग शुरु करना चाहिये ताकि लोगों को पैसा मिल सके।

Advertisement. Scroll to continue reading.

चुनावी चुहल और दलबदल

खराब हालात में भी राजनीतिक पार्टियां फरवरी में चुनाव के लिए दम लगा रही है। चुनावी दलबदल औऱ दावे शुरु होने के साथ ही घात प्रतिघात की राजनीति दम भरने लगी है। पोस्टर वार में केजरीवाल और ममता दीदी की टीएमसी सबसे आगे दिख रही है। एयरपोर्ट से लेकर पणजी शहर तक हर जगह दोनों ने सैकड़ों पोस्टर बैनर लगा दिये हैं। लेकिन असली लड़ाई तो बीजेपी और कांग्रेस में ही है। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर की गैर मौजूदगी में हो रहे पहले चुनाव में बीजेपी को चेहरे की तलाश है तो कांग्रेस अपने पुराने चेहरे दिगंबर कामत पर दांव लगा रही है। कोरोना में सरकारी काम नहीं होने से लोग परेशान है लेकिन कांग्रेस इसे भुना नहीं पा रही है। पार्टी ने पी चिदंबरम को यहां काम पर लगाया है, लेकिन कांग्रेस को डर है कि केजरीवाल की आप और ममता बनर्जी की टीएमसी असल में उन सरकार विरोधी वोटों को काट देगी जो कांग्रेस को मिल सकते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

असलियत से अलग चुनावी मुददे

गोवा में लोग बेरोजगारी, मंदी और विकास नहीं होने से परेशान हैं। लेकिन मुद्दा यहां पर करप्शन और दस साल पहले शाह कमीशन की रिपोर्ट में बताये गये 35 हजार करोड़ के माइनिंग स्कैम को बनाया जा रहा है। टीएमसी ने गोवा के एक एनजीओ गोवा फाउंडेशन के समझाने पर 35 हजार करोड़ के जुमले को उछाल दिया है। लोगों को कहा जा रहा है कि अगर ये पैसे सरकार ने वसूल लिये तो गोवा के हर घर को तीन लाख रुपये मिलेंगे। लेकिन इस दावे की असलियत यही है कि ये भी उन पंद्रह लाख रुपये के जुमले की तरह ही है, जो देश के हर खाते में आने वाले थे। गोवा में 2012 में बीजेपी ने जस्टिस एम बी शाह की रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस को घेरा था। बीजेपी ने शाह कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर 35 हजार करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया था। लेकिन जब खुद बीजेपी के मनोहर पर्रिकर सत्ता मे आ गये तो फंस गये, फिर पर्रिकर ने ही कह दिया कि 35 हजार करोड़ नहीं करीब 3 हजार करोड़ का नुकसान हुआ। पर्रीकर ने इसकी जांच के लिए चार्टर्ड एकाउंटेट की एक कमेटी भी बना दी जिसने बताया कि असल में तो ये आंकड़ा 300 करोड़ भी नहीं है, वो भी रेवेन्यू का नुकसान है। इसकी गिनती भी अब तक ठीक से दस साल में नहीं हो पायी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बदलती राजनीति के बदलते रंग

साफ लग रहा है कि चुनाव में एक बार फिर से जनता को भरमाने की कोशिश हो रही है। वैसे तो गोवा में ममता बनर्जी की कोई खास राजनीतिक हैसियत बन नहीं सकती। फिर भी उनकी टीएमसी ने 300 करोड़ की रेवेन्यू के नुकसान वाले इस मुददे को उछाल दिया है। लेकिन बीजेपी या कांग्रेस इसे काउंटर नहीं कर पा रही है। कांग्रेस ने गोवा में लोकायुक्त बनाने का नारा दिया है और बीजेपी विकास की बात कर रही है। जमीनी हालत ये है कि गोवा में बेरोजगारी की दर 11 प्रतिशत तक हो रही है और कोरोना से बेहाल लोगों के पास पैसे नहीं है। जाहिर है राजनीतिक दल अभी तक जमीन नहीं पकड़ पा रहे है। उधर कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रॉन की वजह से फिर से लॉकडाउन की आहट शुरु हो गयी है। गोवा में टैक्सी चलाने वाले अशरफ का कहना है कि इस बार अगर फिर से लॉकडाउन हो गया तो हम बरबाद हो जायेंगे। बरबादी की इसी आशंका के बीच चुनाव सर पर है, इसीलिए गोवा के माहौल में राजनीति नए प्रतिमान गढ़ रही है। (प्राइम टाइम)

Advertisement. Scroll to continue reading.

(लेखक संदीप सोनवलकर वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement